आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक,परम पूज्य महामानव,बोधिसत्व भारत रत्न बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी के परिनिर्वाण दिवस पर शत्-शत् नमन एंव भावभिनी श्रद्धांजलि
वो थे इसलिए आज हम है
इतिहास के पन्नों से
— सामाजिक न्याय के पुरोधा,भारतीय संविधान के शिल्पकार,परमपूज्य,बोधिसत्वभारतरत्न,आधुनिक भारतीय संविधान के शिल्पकार,आजाद भारत के प्रथम कानून मंत्री, महान अर्थशास्त्री, महामानव,महिलाओं के अधिकारों के रक्षक,महिला सशक्तिकरण के महानायक,मजूदरों के मशीहा, अखंड भारत को एक सूत्र में बांधने वाले,बहुजनों के पैरों से गुलामी की जंजीरों को काटनें वाले, सर्व समाज की नारी को सम्मान दिलाने वाले, गूंगों को जुबान,बहरों को कान,अंधो को आंख देने वाले परम पूज्य महामानव,बोधिसत्व भारत रत्न बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी के परिनिर्वाण दिवस पर शत्-शत् नमन एंव भावभिनी श्रद्धांजलि —
— सम्मानित साथियों परम पूज्य बोधिसत्व भारत रत्न डा बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर जी आज इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनके विचार आज भी जिंदा है,उनको मानने और जानने वालों की तादाद बहुत तेजी से बढ़ रही है —
—— जिसने देश को दी नई दिशा””…जिसने आपको नया जीवन दिया वह है आधुनिक भारत के निर्माता बाबा साहेब अम्बेडकर जी का संविधान ——
—— आज ही के दिन 6,दिसम्बर,1956 को हमारे मशीहा आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक बाबा साहेब अम्बेडकर जी ने अपने घर 26 अलीपुर रोड निकट दिल्ली विधानसभा में अंतिम साँस ली थी 😰😰–—
— दामोदर घाटी परीयोजना,महानदी डैम, सोनघाटी बांध, दामोदर और हिंराकूड परीयोजना जैसे 15 बड़े बांधों के निर्माण में बाबासाहेब अम्बेडकर जी ने अहम भूमिका निभाई और उन्हें पुरा कराया —
— सम्मानित साथियों क्या आप लोगों को पता है आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक बाबा साहेब अम्बेडकर को भारत रत्न ,कोलम्बिया युनिवर्सिटी की और से ‘द ग्रेटेस्ट मैं द वर्ल्ड’ कहा गया। वही ऑक्सफोर्ड युनिवर्सिटी से ‘द यूनिवर्स मेकर’ कहा गया। इसके साथ ही आईबीएन , आउटलुक मैगज़ीन और हिस्ट्री (टीवी चैनल ) के किए गए सर्वे में आज़ादी के बाद देश का सबसे महान व्यक्ति चुना गया है। लेकिन बाबा साहेब के सपनों का भारत अब भी दूर है —
— आधुनिक भारत के लिए महत्त्वपुर्ण योगदान और देश इंसानों के जीवन में अद्वितीय बदलाव लाने वाले महान शख्सियत, आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक,परम पूज्य बोधित्सव बाबासाहेब डा भीमराव आंबेडकर जी के चरणों में मैं कोटि-कोटि नमन करता हूं —
— आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक परम पूज्य बोधिसत्व भारत रत्न बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी का जन्म 14 अप्रैल,1891 को तत्कालीन ब्रिटिश भारत के केंद्रीय प्रांत (मध्य प्रदेश) के इंदौर के पास महू शहर की छावनी में एक महार परिवार में हुआ था। भारतीय सामाजिक व्यवस्था में महार जाति को अछूत समझा जाता था,इसलिए बाबासाहेब जी का बचपन काफी कठिनाइयों से गुजरा —
—— आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक बाबा साहेब अम्बेडकर जी की माता जी का नाम भीमा बाई और पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल था। बाबा साहेब जी के पिता सेना में सूबेदार थे बाबा साहेब आंबेडकर जी का परिवार महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के अंबावडे गांव के मूल निवासी थे ——
— माता-पिता और गांव के नाम पर बालक का नाम भीमराव रामजी अंबावडेकर पड़ा, जैसा कि महाराष्ट्र में प्रचलन में था।
बाबासाहेब जी बचपन से ही पढ़ने में विलक्षण प्रतिभा के थे। छुआछूत प्रथा होने के वजह से बाबासाहेब जी को स्कूल में क्क्षा के बाहर भी रहकर पढ़ना पड़ा था —
— छुआछुत की भावना इस तरह मजबूत थी की स्कूल का चपरासी भी इनको पानी दूर से ही पिलाता था और जिस दिन यदि चपरासी स्कूल नही आता तो भीमराव अम्बेडकर और अन्य इन जाति के बच्चो को बिना पानी पिये ही रहना पड़ता था शायद इससे बड़ी छुआछुत की भयानकता क्या हो सकती है की बिन चपरासी के प्यासे रहना पड़ता हो जिस पर भीमराव अम्बेडकर ने स्वय अपनी दुर्दशा को ‘ना चपरासी ना पानी’ लेख के माध्यम से बताया है लेकिन इन सब से परे परमपूज्य बोधिसत्व भारत रत्न डॉ भीमराव अम्बेडकर जी गौतम बुद्ध के विचारो से बचपन से ही बहुत अधिक प्रभावित थे और बौद्ध धम्म को बहुत मानते थे —
— साथियों माता रमाबाई अंबेडकर और बाबा साहेब अम्बेडकर जी का विवाह से 4,अप्रैल सन 1906 में हुआ था तब बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी की उम्र उस समय 14 वर्ष थी और बाबा साहेब जी 10 वी कक्षा में पढ़ रहे थे शादी के बाद रामी का नाम रमा हो गया था,शादी के पहले रमा बिलकुल अनपढ़ थी. किन्तु,शादी के बाद भीमराव अम्बेडकर जी ने उसे साधारण लिखना-पढ़ना सिखा दिया था. वह अपने हस्ताक्षर कर लेती थी —
— बाबा साहेब जी रमा को 'रामू ' कह कर पुकारा करते थे जबकि रमा ताई बाबा साहब को 'साहेब ' कहती थी परमपूज्यनीय त्याग समर्पण की प्रतीक महिलाओं के संघर्षो की मिशाल थी हमारी माता रमाबाई अम्बेडकर जी —
—— माता रमाबाई अंबेडकर जी,बाबा साहेब जी आज इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनके विचार और संघर्षों की गाथा आज भी जिंदा है ,उनको मानने और जानने वालों की तादाद बहुत तेजी से बढ़ रही है ——
— जालिमों से लड़ती भीम की रमाबाई थी मजलूमों को बढ़ के जो,आँचल उढ़ाई थी एक तरफ फूले सावित्री थे साथ लड़े” भीम साथ वैसे मेरी रमाई थी —
——आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक बाबा साहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी को विश्वविख्यात महापुरुष बनाने में रमाबाई का ही साथ था ——
— आज हमारी महिलाओ चाहे वे किसी भी धर्म या जाति समुदाय से हो माता रमाबाई अंबेडकर जी पर गर्व होना चाहिए कि किन परिस्थितियों में उन्होंने बाबा साहेब का मनोबल बढ़ाये रखा और उनके हर फैसले में उनका साथ देती रही,खुद अपना जीवन घोर कष्ट में बिताया और बाबा साहेब की मदद करती रही —
— आज अगर भारत की महिलाएं आज़ाद है समता समानता के अधिकार मिले हुए हैं, तो उसका श्रेय सिर्फ और सिर्फ माता रमाबाई अम्बेडकर जी और बाबा साहेब जी को जाता है हमारा फ़र्ज़ है उनको जानने का उनके त्याग समर्पण की भावना को पहचानने का माता रमाबाई अम्बेडकर जी योगदान को झुठला नहीं सकता है समाज लोग आज भी उन्हें ऐसे मुक्तिदाता के रूप में याद करते है —
— जो शोषित समाज के आत्मसम्मान तथा हित के लिए अंतिम साँस तक लड़ीं और हर कदम पर बाबासाहेब आंबेडकर जी का साथ दिया बाबासाहेब आंबेडकर जी और माता रमाबाई अंबेडकर जी को हम केवल इसी बात से जान सकते हैं कि,वे एक महान वकील होने के बाद भी अपने पुत्र गंगाधर की मृत्यु पर उनके जेब में इतने पैसे नहीं थे, कि अपने बेटे के लिए कफन खरीद सके, कफन के लिए माता रमाई अम्बेडकर जी ने अपने साड़ी में से एक टुकड़ा फाड़ कर दिया —
— माता रमाई ने 5 संतानों को जन्म दिया नाम थे —
1-यशवंतराव
2- गंगाधर
3-रमेश
4- इंदू
5- राज रत्न
—— गरीबी किसी को ना सताए ——
— धन अभाव के कारण जब भोजन ही भरपेट नहीं मिलता था तब दवा दारू के लिए पैसे कहाँ से आते इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि यशवंतराव के अलावा सभी बच्चे अकाल ही काल कलवित हो गए —
–— दूसरे पुत्र गंगाधर के निधन की दर्द भरी कहानी डॉक्टर अंबेडकर ने इस प्रकार बतलाई थी ——
—— दूसरा लड़का गंगाधर हुआ ——
— जो देखने में बहुत सुंदर था वह अचानक बीमार हो गया दवा दारू के लिए पैसा ना था उसकी बीमारी से तो एक बार मेरा मन भी डावांडोल हो गया कि मैं सरकारी नौकरी लूं —
—— फिर मुझे विचार आया कि अगर मैंने नौकरी कर ली तो उन करोड़ो अछूतों का क्या होगा जो गंगाधर से ज्यादा बीमार है ठीक प्रकार से इलाज ना होने के कारण वह नन्ना सा बच्चा ढाई साल की आयु में चल बसा गमी में लोग आए बच्चे के मृत शरीर को ढकने के लिए नया कपड़ा लाने के लिए पैसे मांगे लेकिन मेरे पास इतने पैसे नहीं थे कि मैं कफन खरीद सकूँ ——
—— अंत में मेरी प्यारी पत्नी रामू ने अपनी साड़ी में से एक टुकड़ा फाड़ कर दिया उसी में ढंक कर उसे श्मशान पर लोग लेकर गए हैं और दफना आये,ऐसी थी
मेरी आर्थिक स्थिति ——
—– पांचवा बच्चा राज रत्न बहुत प्यारा था रमाबाई ने उसकी देखरेख में कोई कमी नहीं आने दी अचानक जुलाई 1926 में उसे डबल निमोनिया हो गया काफी इलाज करने पर भी 19 जुलाई 1926 को दोनों को बिलखते छोड़ वह भी चल बसा माता रमाबाई को इससे बहुत सदमा पहुंचा और वह बीमार रहने लगे धीरे-धीर पुत्र शोक कम हुए तो बाबा साहब भीमराव अंबेडकर महाड सत्याग्रह में जुट गये ! महाड में विरोधियों ने षडयंत्र कर उन्हें मार डालने की योजना बनाई यह सुनकर माता रमाबाई ने महाड़ सत्याग्रह में अपने पति के साथ रहने की अभिलाषा व्यक्त की ——
—— धन्य है वो माँ जिसने माँ रमाई जैसी बेटी को जन्म दिया जिसने अपने त्याग समर्पण से बाबासाहेब अम्बेडकर जी को महान बना दिया ——
——सम्मानित साथियों इतने बड़े संघर्षों की बदौलत सर्व समाज की महिलाएं और बहुजन समाज सम्मान के साथ जी रहे हैं,आज भी करोड़ों ऐसे लोग जो बाबासाहेब आंबेडकर जी,माता रमाबाई अंबेडकर जी के संघर्षों की बदौलत कमाई गई रोटी को मुफ्त में बड़े चाव और मजे से खा रहे हैं —–
—— साथियों ऐसे लोगों को इस बात का अंदाजा भी नहीं है।जो उन्हें ताकत,पैसा, इज्जत, मान-सम्मान मिला है ।वो उनकी बुद्धि और होशियारी का नहीं है,आधुनिक भारत के युगप्रर्वतक डॉ.भीमराव अम्बेडकर जी के संघर्षों की बदौलत है —–
——राष्ट्रमाता रमाई अम्बेडकर ने यह कठिन समय भी बिना किसी गिला शिकवा-शिकायत के बड़ी आसानी से हंसते हंसते बीता लिया —
——बाबा साहेब अम्बेडकर जी प्रेम से माता रमाबाई को "रमो" कहकर पुकारा करते थे,दिसंबर ——
1940 में बाबा साहेब अम्बेडकर जी ने "थॉट्स ऑफ पाकिस्तान" पुस्तक लिखी यह पुस्तक उन्होंने अपनी पत्नी "रमो" को ही भेंट की ——
—— भेंट के शब्द इस प्रकार थे ——
—— मै यह पुस्तक "रमो
को उसके मन की सात्विकता, मानसिक सदवृत्ति,त्याग समर्पण की भावना ,सदाचार की पवित्रता और मेरे साथ दुःख झेलने में,अभाव व परेशानी के दिनों में जब कि हमारा कोई सहायक न था, सहनशीलता और सहमति
दिखाने की प्रशंसा स्वरुप भेंट करता हूं ——
—– "उपरोक्त शब्दों से स्पष्ट है कि माता रमाई ने आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक बाबा साहेब अम्बेडकर जी का किस प्रकार संकटों के दिनों में साथ दिया और बाबा साहेब के दिल में उनके लिए कितना सत्कार और प्रेम था बाबा साहेब भी ऐसे ही महापुरुषों में से एक थे,जिन्हें राष्ट्रमाता रमाई अम्बेडकर जैसी बहुत ही नेक जीवन साथी मिली ——
—— सम्मानित साथियों हमारे मशीहा,आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक बाबा साहेब अम्बेडकर जी और माता रमाबाई अम्बेडकर जी को जो करना था समाज के प्रति वो कर गये,लेकिन जो हमें और हमारे समाज के लोगों को करना है वो हम नहीं कर रहें हैं ——
—— प्रत्येक महापुरुष की सफलता के पीछे उसकी जीवनसंगिनी का बहुत बड़ा हाथ होता है जीवनसंगिनी का त्याग और सहयोग अगर न हो तो शायद,वह व्यक्ति,महापुरुष ही नहीं बन पाता ——
—— आई साहेब रमाई इसी तरह के त्याग और समर्पण की प्रतिमूर्ति थी ——
—— साथियों ऐसे महान क्रांतिकारी वीरांगना माता रमाबाई को मेरा नीला सलाम ——
—— तो ऐसे थे हमारे डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर,आज वे हमारे बीच नही है,पर उनके द्वारा किये गए कार्यों, संघर्षों और उनके उपदेशों से हमेशा वे हमारे बीच जीवंत है। संविधान के रचयिता और ऐसे अद्वितीय समाज सुधारक को हमारा कोटि-कोटि नमन ——
—— बाबासाहेब आंबेडकर जी ने भारतीय संविधान के तहत कमजोर तबके के लोगों को जो कानूनी हक दिलाये है। इसके लिए बाबा साहेब आंबेडकर जी को कदम-कदम पर काफी संघर्ष करना पड़ा था —–
—— साथियों परमपूज्य बोधिसत्व भारत-रत्न बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी ने वह कर दिखाया जो उस दौर में सोच पाना भी मुश्किल था परमपूज्य बोधिसत्व भारत-रत्न बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी के संघर्षों में सबसे बड़ा योगदान माता रमाबाई अंबेडकर जी का रहा है।
प्रत्येक महापुरुष की सफलता के पीछे उसकी जीवनसंगिनी का बहुत बड़ा हाथ होता है ——
—— जीवनसंगिनी का त्याग और सहयोग अगर न हो तो शायद,वह व्यक्ति, महापुरुष ही नहीं बन पाता !
—— अक्सर महापुरुष की दमक के सामने उसका घर-परिवार और जीवनसंगिनी सब पीछे छूट जाते हैं क्योंकि, इतिहास लिखने वालों की नजर महापुरुष पर केन्द्रित होती है यही कारण है कि माता रमाबाई अंबेडकर जी के बारे में ज्यादा कुछ नहीं लिखा गया है —
—– ऐसे महान क्रांतिकारी वीरांगना माता,को मेरा नीला सलाम ——
—— जागो बहुजनों जागो अपने पूर्वजों के संघर्षों से कुछ तो सीखो —–
—– साथियों ऐसा रहा आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक बाबा साहेब अम्बेडकर जी की ज़िंदगी का आख़िरी दिन,पहले ही हो चुका था मौत का अह्सास ——
—— बाबा साहेब को अपनी मौत का अहसास हो गया था और इस बारे में उन्होंने अपने एक करीबी को खत भी लिखा था ——
—– पांच दिसंबर 1956 की सुबह डॉ. भीमराव आंबेडकर देर से सोकर उठे. 16 वर्षों से उनके निजी सचिव रहे नानक चंद रत्तू उनके उठने का इंतजार कर रहे थे. उनके जागने के बाद उन्होंने दफ्तर जाने की इजाजत मांगी. अब घर पर रह गए पत्नी सविता आंबेडकर और डॉक्टर मालवंकर, जो मुंबई से उनके स्वास्थ्य की जांच के लिए आए हुए थे. दोपहर में सविता और डॉ. मालवंकर सामान की ख़रीदारी के लिए बाजार चले गए. घर लौटने में देर हो गई ——
—— बाबासाहेब घर पर ही थे जब शाम छह बजे रत्तू ऑफिस से वापस लौटे तब तक श्रीमती आंबेडकर बाजार से नहीं लौटी थीं. आंबेडकर नाराज थे. उन्हें लग रहा था कि उनका ध्यान नहीं रखा जा रहा. रत्तू ने उनकी नाराजगी महसूस की. डॉ. आंबेडकर ने रत्तू को टाइप करने के लिए कुछ काम दिया ——
—— जैन धर्म के प्रतिनिधिमंडल से मिले ——
—— उसी रात करीब आठ बजे जैन मतावलंबियों का एक प्रतिनिधिमंडल तय समय के अनुसार उनसे मिला. आंबेडकर को महसूस हो रहा था कि वह आज मिलने की स्थिति में नहीं हैं लिहाजा मुलाकात को अगले दिन के लिए टाल दिया जाए. चूंकि वो लोग आ चुके थे, तो उन्हें लगा कि अब मिल लेना चाहिए. इसके 20 मिनट बाद वह बाथरूम गए. फिर रत्तू के कंधे पर हाथ रखकर वापस ड्राइंगरूम में लौटे. सोफे पर निढाल हो गए. आंखें बंद थीं. कुछ मिनटों पर शांति पसरी रही. जैन नेता उनके चेहरे की ओर देखे जा रहे थे. फिर आंबेडकर ने सिर हिलाया. कुछ देर बातचीत की. बौद्धिज्म और जैनिज्म को लेकर सवाल पूछे ——
—— प्रतिनिधिमंडल ने तथागत बुद्ध पर एक किताब भेंट की. वास्तव में वह उन्हें अगले दिन के एक समारोह में आमंत्रित करने आए थे. डॉ आंबेडकर ने आमंत्रण स्वीकार कर लिया. भरोसा दिलाया कि अगर स्वास्थ्य अनुमति देता है तो वह जरूर आएंगे. जब वह जैन प्रतिनिधिमंडल से बात कर रहे थे तभी डॉक्टर मालवंकर ने उनका चेकअप किया. फिर मालवंकर पूर्व निर्धारित प्रोग्राम के अनुसार मुंबई रवाना हो गए ——
—— रात में बिस्तर के पास कुछ किताबें रखने को कहा
जैन प्रतिनिधिमंडल के जाने के बाद रत्तू ने उनके पैर दबाए. डॉ. आंबेडकर ने सिर पर तेल लगाने को कहा. अब वह कुछ बेहतर महसूस कर रहे थे. अचानक रत्तू के कानों में गाने की आवाज आनी शुरू हो गई. आंबेडकर आंखें बंद करके गा रहे थे. उनके दाएं हाथ की अंगुलियां सोफे पर थिरक रही थीं. धीरे धीरे गाना स्पष्ट और तेज हो गया ——
——बाबासाहेब अम्बेडकर जी बुद्धम शरणम गच्छामी को पूरी तन्मयता से गा रहे थे. उन्होंने इसी गाने का रिकार्ड रेडियोग्राम पर बजाने के लिए कहा. साथ ही रत्तू से कुछ किताबें और द बुद्धा एंड द धम्मा का परिचय और भूमिका लाने को कहा. उन्होंने इस सबको अपने बिस्तर की बगल में टेबल पर रखा ताकि रात में इन पर काम कर सकें ——
—— रात में थोड़ा चावल खाया और फिर कुछ लिखा
कुछ समय बाद रसोइया सुदामा खाना तैयार होने की बात बताने आया. आंबेडकर ने कहा कि वह केवल थोड़ा चावल खाएंगे और कुछ भी नहीं. वह अब भी गाना बुदबुदा रहे थे. रसोइया दूसरी बार आया. वह उठे और डाइनिंग रूम में गए. वह अपना सिर रत्तू के कंधे पर रखकर वहां तक गए. जाते हुए अलमारियों से कुछ किताबें भी निकालते गए. उन्हें भी टेबल पर रखने को कहा. रात के खाने के बाद वह फिर कमरे में आए. वहां वह कुछ देर तक कबीर का गाना, ''चल कबीर तेरा भव सागर'' देर तक बुदबुदाते रहे. फिर बेडरूम में चले गए. अब उन्होंने टेबल पर रखी उन किताबों की ओर देखा, जिसे उन्होंने रत्तू से रखने को कहा था.
—— किताब द बुद्धा एंड हिज धम्मा की भूमिका पर कुछ देर काम किया. फिर किताब पर ही हाथ रखकर सो गए ——
—— छह दिसंबर की सुबह 06.30 बजे —–
सुबह जब श्रीमती आंबेडकर हमेशा की तरह उठीं तो उन्होंने बिस्तर की ओर देखा. पति के पैर को हमेशा की तरह कुशन पर पाया. कुछ ही मिनटों में उन्हें महसूस हुआ कि डॉ. आंबेडकर के प्राण पखेरू उड़ चुके हैं. उन्होंने तुरंत अपनी कार नानक चंद रत्तू को लेने भेजी.जब वह आए तो श्रीमती आंबेडकर सोफे पर लुढ़क गईं. वो बिलख रही थीं कि बाबा साहेब दुनिया छोड़कर चले गए. रत्तू ने छाती पर मालिश कर हृदय को हरकत में लाने की कोशिश की. हाथ-पैर हिलाया डुलाया. उनके मुंह में एक चम्मच ब्रांडी डाली, लेकिन सब कुछ विफल रहा. वह शायद रात में सोते समय ही गुजर चुके थे —
—— दुखद सूचना तेजी से फैली ——
— अब श्रीमती आंबेडकर के रोने की आवाज तेज हो चुकी थी. रत्तू भी मालिक के पार्थिव शरीर से लगकर रोए जा रहे थे- ओ बाबा साहेब, मैं आ गया हूं, मुझको काम तो दीजिए. कुछ देर बाद रत्तू ने करीबियों को दुखद सूचना देनी शुरू की. फिर केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्यों को बताया. खबर जंगल में आग की तरह फैली. लोग तुरंत नई दिल्ली में 20,अलीपुर रोड की ओर दौड़ पड़े. भीड़ में हर कोई इस महान व्यक्ति के आखिरी दर्शन करना चाहता था —
आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक बाबा साहेब अम्बेडकर जी के परिनिर्वाण दिवस पर शत्-शत् नमन एंव विनम्र श्रद्धांजलि
— 6,दिसम्बर,1956-एक दर्द भरी कहानी —
— साथियों राजधानी दिल्ली रात के 12 बजे थे,रात का सन्नाटा और अचानक दिल्ली, मुम्बई, नागपुर मे चारो और फोन की घंटीया बज उठी राजभवन मौन था, संसद मौन थी, राष्ट्रपती भवन मौन था,हर कोई कस्म कस्म मे था शायद कोई बडा हादसा हुआ था, या किसी बड़े हादसे या आपदा से कम नही था कोई अचानक हमें छोडकर चला गया था।जिसके जाने से करोडो लोग दुःख भरे आँसुओं से विलाप कर रहे थे,देखते ही देखते मुम्बई की सारे सड़के भीड से भर गयी पैर रखने की भी जगह नही बची थी मुम्बई की सड़को पर क्योंकि पार्थिव शरीर मुम्बई लाया जाना था और अंतिम संस्कार भी मुम्बई मे ही होना था —
— नागपुर,कानपुर,दिल्ली,चेन्नाई,मद्रास,बेंगलौर,पुणे,नाशीक और पुरे देश से मुम्बई आने वाली रैलगाडीयो और बसो मे बैठने को जगह नही थी।सब जल्द से जल्द मुम्बई पहोंचना चाहते थे और देखते ही देखते अरब सागर वाली मुम्बई जनसागर से भर गयी —
— कौन था ये शख्स ?
—— जिसके अंतिम दर्शन की लालसा में जन सैलाब रोते बिलखते मुम्बई की ओर बढ़ रहा था। देश मे ये पहला प्रसंग था जब बड़े बुजुर्ग छोटे छोटे बच्चो जैसे छाती पीट पीट कर रो रहे थे।महिलाएँ आक्रोश कर रही थी और कह रही थी मेरे पिता चले गये, मेरा बाप चला गया अब कौन है हमारा यहां ?
— चंदन की चिता पर जब उसे रखा गया तो लाखो दील रुदन से जल रहे थे।अरब सागर अपनी लहरों के साथ किनारों पर थपकता और लौट जाता फिर थपकता फिर लौट जाता शायद अंतिम दर्शन के लिये वह भी जोर लगा रहा था चिता जली और करोडो लोगो की आंखे बरसने लगी। किसके लिये बरस रही थी ये आंखे ?
—— कौन था इनका सबका पिता ? किसकी जलती चिता को देखकर जल रहे थे करोडो दिलो के अग्निकुन्ड?कौन था यहां जो छोड़ गया था इनके दिलो मे आंधियां कौन था वह जिसके नाम मात्र लेने से गरज उठती थी बिजलियाँ मन से मस्तिष्क तक दौड जाता था ऊर्जा का प्रवाह, कौन था वह शख्स जिसने छीन लिये थे खाली कासीन के हाथो से और थमा दी थी कलम लिखने के लिये एक नया इतिहास —
— आंखो में बसा दिए थे नये सपने,होठो पे सजा दिये थे नये तराने,अभिमान को दास्यता की ज़ंजीरें तोड़ने के लिये दिया प्रज्ञा का शस्त्र —
— चिता जल रही थी अरब सागर के किनारे और देश के हर गांव के किनारे मे जल रहा था एक श्मशान हर एक शख्स में और दिल मे भी जो नही पहुंच सका था अरब सागर के किनारे एक टक देख रहा था वह,उसकी प्रतिमा या गांव के उस झंडे को जिसमे नीला चक्र लहरा रहा था या बैठा था भुख, प्यास भूलकर अपने समूह के साथ उस जगह जिसे वह बौद्ध विहार कहता था —
— क्यों गांव,शहर मे सारे समूह भूखे प्यासे बैठे थे ? उसकी चिता की आग ठंडी होने का इंतजार करते हुये, कौन सी आग थी जो वह लगाकर चला गया था ? क्या विद्रोह की आग थी ? या थी वह संघर्ष की आग भूखे, नंगे बदनों को कपडो से ढकने की थी आग ?आसमानता की धजीया उड़ाकर समानता प्रस्थापित करने की आग —
—— चवदार तालाब पर जलाई हुई आग अब बुझने का नाम नही ले रही थी धू-धू जलती मनुस्मृति धुयें के साथ खतम हुई थी क्या यह वह आग थी ? जो जलाकर चला गया था ——
— वह सारे ज्ञानपीठ,स्कूल, कॉलेज मरूभूमि जैसे लग रहा था युवक,युवतियों की कलकलाहट आज मौन थी जिन्होंने हाथ मे कलम थमाई,शिक्षा का महत्व समझाया,जीने का मकसद दिया, राष्ट्रप्रेम की ओत प्रोत भावना जगाई वह युगंधर,प्रज्ञासूर्य काल के कपाल से ढल गया था —
—— साथियों जिस प्रज्ञातेज ने चेहरे पर रोशनी बिखेरी थी क्या वह अंधेरे मे गुम हो रहा था ? बडी अजीब कसमकश थी भारत का महान पत्रकार,अर्थशास्त्री, दुरद्रष्टा क्या द्रष्टि से ओजल हो जायेगा ?
— सारे मिलों पर ऐसा लग रहा था जैसे हड़ताल चल रही हो सुबह शाम आवाज़ देकर जगाने वाली धुंआ भरी चिमनियां भी आज चुपचाप थी,खेतों मे हल नही चला पाया किसान क्यों ? सारे ऑफ़िस,सारे कोर्ट,सारी कचहरी सुनी हो गयी थी जैसे सुना हो जाता है बेटी के बिदा होने के बाद बाप का आँगन —
—— सारे खेतीहर,मजदूर,किसान असमंजस मे थे ये क्या हुआ ? उनके सिर का छत्र छीन गया ——
—— वह जो चंदन की चिता पर जल रहा है उसने ही तो जलाई थी ज्योति मजदूर आंदोलन का वही तो था आधुनिक भारत मे मसीहा,युगप्रवर्तक, श्रम कानूनों का रक्षक सारी मिलों पर होती थी जो हड़ताले, आंदोलन अपने अधिकारो के लिये उसकी प्रेरणा भी तो वही था ——
— जिसने मजदूरो को अपना स्वतंत्र पक्ष दिया और संविधान मे लिख दी वह सभी बाते जिन्होंने किसानो, खेतीहारो, मज़दूरो के जीवन मे खुशियां बिखेरी थी —
— इधर नागपुर की पावन भूमि दीक्षाभूमी पर मातम बस रहा था, लोगो की चीखे सुनाई दे रही थी "बाबा चले गये" "हमारे बाबा चले गये " आधुनिक भारत का वह सुपुत्र,आधुनिक भारत का युगप्रवर्तक,जिसने भारत मे लोकतंत्र का बीजारोपण किया था,जिसने भारत के संविधान को रचकर भारत को लोकतांत्रिक गणराज्य बनाया था —
— हर नागरीक को समानता, स्वतंत्रता और न्याय का अधिकार दिया था, वोट देने का अधिकार देकर देश का मालिक बनाया था, क्या सचमुच वह शख्स नही रहा ?
—— कोई भी विश्वास करने को तैयार नही था। लोग कह रहे थे "अभी तो यहां बाबा की सफेद गाडी रुकी थी", "बाबा गाडी से उतरे थे सफेद पोशाक मे", "देखो अभी तो बाबा ने पंचशील दिये थे" "22 प्रतिज्ञाओ की गूंज अभी आसमान मे ही तो गूंज रही थी" वो शांत होने से पहले बाबा शांत नही हो सकते ——
—— भारत के इतिहास ने नयी करवट ली थी जन सैलाब मुम्बई की सड़को पर बह रहा था, भारतीय संस्कृति मे तुच्छ कहलाने वाली नारी जिसे हिन्दु कोड बिल का सहारा बाबा ने देना चाहा और फिर संविधान मे उसके हक आरक्षित किये ऐसी माँ बहनें लाखो की तादात मे श्मशान भूमी पर थी। यह भारतीय सड़ी गली धर्म परम्पराओ पर ऐक जोरदार तमाचा था क्योंकि जिन महिलाओ को श्मशान जाने का अधिकार भी नही था ऐसी "3 लाख" महिलाएँ बाबा के अंतिम दर्शन को पहुंची थी जो अपने आप मे एक एक ऐतिहासिक
पहल थी ——
— भारत का यह युगंधर,युगप्रवर्तक संविधान निर्माता,प्रज्ञातेज, प्रज्ञासूर्य, महासूर्य, कल्प पुरुष नव भारत को नव चेतना देकर चला गया,एक ऊर्जा स्त्रोत देकर समानता, स्वतंत्रता, न्याय, बंधुता का पाठ पढाकर उस प्रज्ञासूर्य की प्रज्ञा किरणो से रोशन होगा हमारा देश,हमारा समाज और पुरे विश्वास के साथ हम आगे बढ़ेंगे हाथो मे हाथ लिये मानवता के रास्ते पर जहां कभी सूर्यास्त नही होंगा, जहां कभी सूर्यास्त नही होंगा, जहां कभी सूर्यास्त नही होगा
— परम पूज्य बोधिसत्व भारत रत्न डा बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर जी ऐसे योद्धा, महामानव का नाम है, जिन्होंने शोषण के विरुद्ध आवाज बुलंद की उपेक्षितों को उनका हक दिलाने के लिए जीवन समर्पित कर दिया। जातिगत भेदभाव पांखडवाद को बढाने वालों के खिलाफ वास्तविक और ठोस लड़ाई छेड़ने वालों में बाबासाहेब जी का उल्लेखनीय नाम है,शोषित समाज को जागृत करने में उनके योगदान को हमेशा सम्मान के साथ याद किया जाएगा —
— जिसने देश को दी नई दिशा””…जिसने आपको नया जीवन दिया वह है आपका संविधान —
— हम लोग गणतंत्र के महानायक परमपूज्य बाबा साहेब डा. बी.आर. अम्बेडकर जी का हमेशा ऋणी रहेगा जिन्होंने समता समानता पर आधारित दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान दिया —
—— परमपूज्य बाबा साहेब आंबेडकर जी ने आजाद भारत में सभी वर्गो की भागीदारी सुनिश्चित की ——
— गणतन्त्र के महानायक बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी के चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर —
— भारत के संविधान को सलाम देश के प्रति लड़ने वाले शहीदों को सलाम देश पर अपनी जान निछावर करने वाले गुमनाम शहीदों को सलाम —
— परमपूज्य ,बोधिसत्व, भारतरत्न,डा भीमराव अम्बेडकर जी ने जिस भारत का सपना देख देखा था, वह समानता, स्वतंत्रता और लोकतंत्र के उच्च आदर्शों पर आधारित एक ऐसा देश था, जहां शोषित, स्त्रियां, पिछड़े, वंचित, मजदूर, किसान, आदिवासी सब सुरक्षित रहते और सबके लिए समान अवसर होता —
— संविधान आज भी वही है,लेकिन बाबा साहेब जी की वह आशंका सही साबित हुई, जहां वे कह रहे थे कि 'हमारा संविधान कैसा है यह इस पर निर्भर करता है कि इसे लागू करने वाले कैसे होंगे?'
आधुनिक भारत के महानतम समाज सुधारक और सच्चे महानायक थे —
— Water Resource Development of India - Notable contribution of Bharat Ratna Baba Saheb Dr. Ambedkar —
"भारत का जल संसाधन विकास - भारत रत्न बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर का उल्लेखनीय योगदान"
– आज परिनिर्वाण दिवस पर इस लेख का माध्यम से भारत में दामोदर, महानदी विकास तथा निर्माण में लोकप्रिय बहुउद्देशीय नदी विकास बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई, नौचालन तथा जलविद्युत ऊर्जा निर्माण के बारे में डॉक्टर अम्बेडकर की भूमिका उजागर करना तथा जनजागृति लाना है —
— 1940 के दशक में देश की आर्थिक नीति तय हो रही थी। उसकी स्थापना और स्वीकारना शुरू हुआ था। केन्द्र शासन कैबिनेट का पूर्ण विकास समिति ने सिंचाई विद्युत तथा औद्योगिक विकास की नीति अपनाने के लिये अनुशासनात्मक प्रक्रिया पूरी की जल विकास 1935 के कानून के तहत सिंचाई तथा बिजली शक्ति राज्यशासन तथा प्रान्तीय सरकार के अधीनस्थ विषय थे।जल एक प्रमुख प्राकृतिक संसाधन है। जल संसाधन का सम्बन्ध सम्पूर्ण मानव जीवन, मानव सभ्यता एवं संस्कृति से निकट तथा बहुत गहरा रहा है। जल मानव जीवन के लिये नितान्त आवश्यक तथा पवित्र माना जाता है ——
—— इसीलिये जल संसाधनों की राष्ट्रीय स्तर पर नियोजन, विकास, कार्यान्वयन और प्रबन्धन की आवश्यकता है। राष्ट्रीय जलनीति यह स्पष्ट करती है कि जल एक दुर्लभ और पवित्र राष्ट्रीय साधन है। उसका संवर्धन, प्रगति और आयोजन होना जरूरी है। जल संसाधन की परियोजनाएँ बहुउद्देशीय होनी चाहिए जैसे कि पेयजल, सिंचाई, जल विद्युत निर्माण, बाढ़ नियंत्रण नौचालन तथा उद्योग के लिये होनी चाहिए —
— देश की जलनीति बनाने तथा जल संसाधन विकास के लिये बहुत सारे शास्त्रज्ञों तथा अभियन्ताओं ने अपना योगदान दिया है। इन विभूतियों में सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरया, डॉक्टर बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर; रायबहादुर डॉक्टर ए एन खोसला; डॉक्टर के एल राव; डॉक्टर मेघनाद साहा; मानसिंग विशेष अभियन्ता (सिंचाई), बंगाल सरकार; ए करीम, उप मुख्य अभियन्ता (बिहार सिंचाई विभाग); एच.सी. प्रयिर, सचिव, बी एल सबरवाल; जे के रसेल; डब्ल्यू एल व्हर्दवीन, डी एल मजुमदार सर इगलिस आदि का जल संसाधन विकास के लिये विशेष योगदान रहा है —
— भारत निरन्तर विकास की दिशा में बढ़ रहा है। औद्योगिक उत्पादन वृद्धि के साथ-साथ अनेक संस्थान भी विकसित हुए हैं। विकास की उपलब्धि के फलस्वरूप हमारे देश ने विश्व के अग्रगण्य औद्योगिक देशों में स्थान प्राप्त कर लिया है। विकास के कारण लोगों में आर्थिक सम्पन्नता आई है। लोगों का जीवन-स्तर भी सुधरा है। तथापि, इस विकास के लिये जल संसाधन क्षेत्र का एक अहम योगदान रहा है —
— देश के विकास के लिये आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक बाबासाहेब अम्बेडकर सन 1942 से 1946 के दौरान वायसराय के मंत्रिमण्डल में श्रम मंत्री के रूप में थे —
– उन्होंने बहुउद्देशीय नदी घाटी विकास, जल संसाधन का उपयोग, रेलवे और जलमार्ग, तकनीकी बिजली बोर्ड का निर्माण, केन्द्रीय जलमार्ग, सिंचाई तथा नौचालन आयोग; केन्द्रीय जल आयोग, दामोदर नदी घाटी निगम, महानदी पर हीराकुंड बाँध का निर्माण और सोन नदी परियोजना यशस्वी करने के लिये योगदान दिया है। इससे कम लोग परिचित हैं
— बाबासाहेब अम्बेडकर की अर्थशास्त्र, राज्यशास्त्र तथा संवैधानिक कानून के क्षेत्र में बुद्धिमत्ता तथा कल्पना अलौकिक थी। श्रम मंत्रालय को जल एवं विद्युत नीति और नियोजन के फायदे को समझना डॉक्टर अम्बेडकर की भूमिका के पहलू को उजागर करना जरूरी है —
— प्रारम्भ में, तीन पंचवार्षिक योजनाओं के अन्तर्गत, देश की जलविद्युत ऊर्जा निर्माण में अनेक बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं को कार्यान्वित किया गया। जिसमें से भाखड़ा नांगल, हीराकुंड, चंबल, दामोदर, रिहंद, कोयना, पेरियार, सब्रीगिरी, कुदाह, शरावती, माचकुंद, अपर सिलेरू, बालीमेला, उमियाम आदि अधिक प्रचलित हैं, इसमें डॉक्टर अम्बेडकर ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई —
— आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक डॉक्टर बाबासाहेब अम्बेडकर इस देश के प्रथम श्रेणी के पुरुष ही नहीं बल्की भारतीय संविधान के शिल्पकार के रूप में माने जाते हैं। वे एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने अनेक विषयों मेें अपने वैचारिक चिन्तन प्रस्तुत किये थे। उन्होंने देश को विकास की संकल्पना तथा परियोजनाओं का उपहार दिया है। वह एक इतिहासकार, अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, अनुसन्धानक, विधिवेत्ता, प्रभावी वक्ता, पत्रकार, समाज के मार्गदर्शन संशोधक एवं ग्रंथकार के रूप में प्रख्यात थे। वे सन 1913 से 1916 तक और सन 1920 से 1923 तक विकसित देशों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु गए थे। भारतीय समाज निर्माण के लिये ही नहीं बल्कि अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भी उनका योगदान उल्लेखनीय रहा है,उस समय वे अन्तरराष्ट्रीय स्तर के विचारकों के सम्पर्क बनाए हुए थे —
—सिडनी वेब और बिट्रियस वेब उस समाजशास्त्र दम्पत्ती ने 21 किताबें लिखीं उन सिडनी वेब के साथ बाबा साहेब डॉक्टर अम्बेकडकर सामाजिक समस्याओं पर दीर्घ चर्चा कर सकते थे। प्रोफेसर एडवीन आर. सेलिग्मन जागतिक कीर्ति के अर्थशास्त्री थे, जिन्होंने ‘इकोनॉमिक इंटरप्रिटेशन ऑफ हिस्ट्री’ नामक ग्रंथ निर्माण में मार्क्सवादी विचारों की चर्चा को योगदान दिया था। प्रोफेसर चिटणीस अपनी निजी चर्चा में ऐसा बताते थे कि डॉक्टर अम्बेडकर पर सेलिग्मन के विचारों का प्रभाव था —
— उस सेलिग्मन के साथ डॉक्टर बाबासाहेब अम्बेडकर आर्थिक प्रश्नों पर घंटों तक वैचारिक आदान-प्रदान कर सकते थे। डॉक्टर एए गोल्डन विझर जैसे मानव-वंश-शास्त्री के साथ वे सम्पर्क बनाए हुए थे। 1 मई 1916 में जीवन के 23 साल की उम्र में उन्होंने कोलम्बिया युनिवर्सिटी में आयोजित संगोष्ठी में ‘भारत में जातिप्रथा- संरचना, उत्पत्ति और विकास’ पर शोध प्रबन्ध प्रस्तुत किया था —
— उस समय डॉक्टर केलकर जैसे भारतीयों ने भी उनकी प्रशंसा की थी। ऐसा माना जाता है कि सुप्रसिद्ध राजनीतिज्ञ प्रोफेसर हेरॉल्ड लॉस्की की ‘ग्रामर ऑफ पॉलिटिक्स’ और ‘पार्लमेंटरी गवर्नमेट इन इंग्लैंड’ नामक दो किताबें पढ़े बिना कोई भी राजकीय तत्व आगे बढ़ नहीं सकता।
—— एस ए लॉस्ली के साथ अम्बेकडकर सम्पर्क बनाए हुए थे। उस समय लंदन में अध्ययन करते समय डॉक्टर अम्बेडकर ने ‘भारत के लोकतांत्रिक प्रशासन में प्रतिनिधियों की जिम्मेवारियों’ नामक लेख प्रस्तुत करके वहाँ छात्रसंघ के सामने रखा था। इस लेख में उनकी मार्मिकता, स्पष्टवादिता और उत्तेजक विचारों के मिश्रण ने वहाँ के विश्वविद्यालय कार्यशाला में हलचल मचा दी थी। उस समय प्रोफेसर लास्की ने बाबासाहेब को ‘छिपा हुआ क्रान्तिकारी’ के नाम से सम्बोधित किया था ——
—— सन 1918 में डॉक्टर बर्टान्ड रसेल ने एक किताब लिखी थी ‘दी प्रिन्सीपल ऑफ सोशल री-कन्स्ट्रक्शन ऑफ सोसायटी’ यह किताब पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बनी थी। डॉक्टर अम्बेडकर ने ‘इण्डियन इकोनॉमिक सोसायटी जर्नल’ में मिस्टर रसेल एंड सोशल री-कन्स्ट्रक्शन’ पर समीक्षा लिखकर रसेल के समर्थकों को आश्चर्यचकित किया था ——
— इतना ही नहीं, डॉक्टर अम्बेडर के 21 ग्रंथी, 175 लेख, 200 साक्षात्कार, 315 भाषण, 600 प्रार्थना-पत्र पत्रिका, ज्ञापन-पत्र तथा पत्राचार 22 खण्डों में महाराष्ट्र सरकार ने प्रकाशित किये हैं। इंटरनेट पर बहुत सारी वेबसाइट उनके नाम पर प्रचलित हैं। अब तक 105 लेखकों ने डॉक्टर बाबासाहेब अम्बेडकर पर चरित्र लिखने का प्रयास किया है। उनमें अगर डॉक्टर धनंजय कीर लिखित चरित्र अगर हम पढ़ते हैं तो महसूस होता है कि अम्बेडकर सिर्फ दलितों के ही नहीं बल्कि वे सभी आम लोगों के मुक्तिदाता थे। इसलिये डॉक्टर अम्बेडकर को दलितों का ही नहीं बल्कि सर्वजनों का नेता कहना उचित होगा। इस प्रकार आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक बाबा साहेब अम्बेडकर जी ने भारत के निर्माण में अपना योगदान दिया है —
— आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक बाबा साहेब अम्बेडकर ने भारतीय समाज को अनेक उपहार दिये —
— बाबासाहेब अम्बेडकर का सम्पूर्ण जीवन दमन, शोषण और अन्याय के विरुद्ध अविरल क्रान्ति की शौर्य गाथा है। जिन्होंने पत्थर को ईश्वर समझने वाली हिन्दू संस्कृति में लापता हुए मानवतावाद तथा पद-दलितों के अधिकारों को बहाल किया। उन्होंने आत्मज्ञान, आत्म-प्रतिष्ठा तथा समता के लिये संघर्ष, वंचित रहे समाज को जनजागृति का सन्देश, इस अस्पृश्य भारत को दिया। डॉ. बाबासाहेब का पूरा जीवन स्वतंत्रता, समानता, भाईचारा, न्याय जैसे इन तत्वों के प्रचार-प्रसार के लिये संघर्ष में बीता, हम उनका सन 1916 में लिखा हुआ ‘जाति निर्मूलन’ से लेकर 1956 के ‘बुद्ध और उनका धम्म’ का ग्रंथसफर करते हैं तो बाबासाहेब रचित ग्रंथों के हर पन्ने पर समानता, स्वतंत्रता तथा सहानुभूति, न्याय जैसे इन मूल्यों का समर्थन करते हुए दिखाई देते हैं। उन्होंने रोटी के लिये कभी संघर्ष नहीं किया,उन्होंने इस देश में जाति, धर्म तथा भेदों की दांभिकता के विरुद्ध शंख फूँका, वह ऐसा समाज चाहते थे जिसमें वर्ण और जाति का आधार नहीं बल्कि समानता, स्वतंत्रता, सहानुभूति तथा मानवीय गरिमा सर्वाेपरि हो और समाज में जन्म, वंश और लिंग के आधार पर किसी प्रकार के भेदभाव की कोई गुंजाईश न हो —
— बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर बीसवीं सदी के ऐसे महान योद्धा थे, समाज के शोषितों, उपेक्षितों, वंचित घटकों को सामाजिक न्याय तथा स्वतंत्रता दिलाने के लिये,मानव मुक्ति के लिये उन्होंने संघर्ष किया। मनुस्मृति दहन, महाड़ का तालाब सत्याग्रह, नासिक कालाराम मन्दिर प्रवेश, पुणे का पर्वती मन्दिर सत्याग्रह, पुणे करार, धर्मान्तरण की घोषणा, स्वतंत्र मजदूर पक्ष की स्थापना सायमन कमीशन की हक और अधिकार के लिये दिये हुए ज्ञापनपत्र, ये सभी घटना, प्रसंग, मानवमुक्ति के लिये उनके संघर्ष थे। जन-प्रबोधन के लिये मूकनायक, जनता, बहिष्कृत-भारत और समता ऐसी पत्रकारिता का भी प्रयोग किया। अपने भाषण और लेखन द्वारा निरन्तर जागृत किया। दलितों अछूत, अस्पर्श समूह को सामाजिक, राजनीतिक अधिकार और स्वतंत्रता के प्रश्न की ओर सम्पूर्ण देश का ध्यान आकर्षित किया। उपेक्षित शोषित, वंचितों की आर्थिक गुलामी नष्ट कर समानता की नींव पर सामाजिक दर्जा प्रस्थापित करना, सामाजिक स्वतंत्रता बहाल करना, विषमता नष्ट करना और शिक्षा को प्राधान्य देना उनके जीवन के प्रमुख अंग थे —
–बाबा साहेब डॉक्टर अम्बेडकर ने भारतीय समाज को भारतीय संविधान, लोकतंत्र समाजवाद, समाजवादी धर्म और सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक न्याय और अधिकार दिया —
— आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक डॉक्टर बाबा साहेब अम्बेडकर ने भारत की जलनीति में बहुउद्देशीय परियोजना विकास को बढ़ावा दिया। जल संसाधन विकास में उनका योगदान अहम तथा उल्लेखनीय है —
— डॉक्टर अम्बेडकर की जल संवर्धक भूमिका —
20 जुलाई 1942 को वाइसराय के मंत्रिमंडल में श्रम मंत्री के रूप में कार्य ग्रहण किया। श्रम विभाग के साथ-साथ उनको सिंचाई और विद्युत शक्ति विभाग का भी कार्यभार सौंपा गया था। तब डॉक्टर अम्बेडकर ने युद्धोत्तर पुनर्निर्माण समिति द्वारा अपनी जल संसाधन तथा बहुउद्देशीय नदी घाटी विकास की नीति अपनाई। इस समिति में केन्द्र सरकार प्रान्तीय सरकार, रियासतों की सरकारें तथा व्यापार, उद्योग और वाणिज्य के प्रतिनिधि भी शामिल थे। मंत्री के रूप में उन तीनों विभागों के सचिव बाबा साहेब डॉक्टर अम्बेडकर की अध्यक्षता में कार्य करते थे। डॉक्टर अम्बेडकर के जलसंवर्धन के बारे में विचार उल्लेखनीय तथा सराहनीय थे।
— भारतीय संविधान के शिल्पकार डॉक्टर बाबा साहेब कहते थे, ‘‘यह सोचना गलत है कि पानी की बहुतायत कोई संकट है मनुष्य को पानी की बहुतायत के बजाय पानी की कमी के कारण ज्यादा कष्ट भोगने पड़ते हैं। कठिनाई यह है कि प्रकृति जल प्रदान करने में केवल कंजूसी ही नहीं करती, कभी सूखे से सताती है तो कभी तूफान ला देती है। परन्तु इससे इस तथ्य पर कोई अन्तर नहीं पड़ता कि जल एक सम्पदा है। इसका वितरण अनिश्चित है। इसके लिये हमें प्रकृति से शिकायत नहीं करनी चाहिए बल्कि जल संरक्षण करना चाहिए।’’
—— जनहित के लिये यदि पानी का संरक्षण अनिवार्य है, तो पुश्ता बनाने की योजना भी गलत है। यह ऐसा तरीका है जिससे जल संरक्षण का अन्तिम लक्ष्य प्राप्त नहीं होता इसलिये इसे त्याग दिया जाना चाहिए। ओडिशा का डेल्टा ही एकमात्र उदाहरण नहीं हैं जहाँ अत्यधिक पानी आता है और उसके कारण बहुतायत से संकट उत्पन्न होता है। अमेरिका में भी यही समस्या है। वहाँ की कुछ नदियों मिसौरी, मियामी और हेतेसी ने भी ऐसी समस्या उत्पन्न की है ——
— डॉक्टर बाबासाहेब कहते थे कि ओडिशा को भी वही तरीका अपनाना चाहिए जो नदियों की समस्या से निपटाने के लिये अमेरिका ने अपनाया है, वह तरीका है पानी का स्थायी भण्डार रखने के लिये कई जगह नदियों पर बाँध बनाना। ऐसे बाँध सिंचाई के साथ अन्य कई लक्ष्य भी साधते हैं। महानदी में बह जाने वाले पूरे पानी का भण्डारण सम्भव है। इतनी भूमि होने पर, दस लाख एकड़ जमीन की सिंचाई हो सकती है। जलाशयों में एकत्र जल से बिजली उत्पादन भी हो सकता है।’’ उपरिनिर्दिष्ट विषयों पर डॉक्टर अम्बेडकर के अपने खुद के विचार थे —
— सन 1942-46 में राष्ट्रीय जलनीति अपनाई गई। तब बाबा साहेब अम्बेडकर स्वयं भी सम्बोधित विचार-विमर्श में सक्रिय सहभागी थे। 15 नवम्बर 1943 से लेकर 8 नवम्बर 1945 तक उन्होंने श्रममंत्री के रूप में पाँच संगोष्ठियों को सम्बोधित किया था। इस उपलक्ष्य में उन्होंने तकनीकी संस्थाओं का निर्माण किया। केन्द्रीय जलमार्ग, ऊर्जा तथा अन्तर राष्ट्रीय नौचालन आयोग के बाद में नामान्तरण केन्द्रीय जल आयोग हुआ। बहुउद्देशीय जलसंसाधन विकास, दामोदर नदी घाटी परियोजना, महानदी बहुउद्देशीय परियोजना आदि संकल्पनाओं का निर्माण किया गया —
— साथियों डॉक्टर बाबा साहेब अम्बेडकर ने भारत की जिन दो बड़ी परियोजनाओं का निश्चय किया वह हैं- दामोदर और महानदी परियोजना —
— दामोदर नदी घाटी प्राधिकरण का गठन —
डॉक्टर अम्बेडकर 3 जनवरी 1944 की दामोदर नदी घाटी परियोजना की पहली संगोष्ठी में कहा था कि दामोदर परियोजना बहुउद्देशीय होनी चाहिए। इस परियोजना का बाढ़ की समस्या के साथ-साथ सिंचाई, ऊर्जा और नौचालन के लिये इस्तेमाल होना जरूरी हैै। इसलिये नदी घाटी प्राधिकरण, केन्द्रीय जल तथा सिंचाई नौचालन आयोग, केन्द्रीय तकनीकी ऊर्जा मण्डल के निर्माण में उनका योगदान रहा। पानी के बहुउद्देशीय विकास के लिये उनके द्वारा उठाए गए कदम साहसी कदम माने जाते हैं।
— उस समय बंगाल की दामोदर नदी में ‘दुःख का मूल’ कहीं जाने वाली दामोदर वस्तुतः भारत की राष्ट्रीय समस्या के रूप में उभरकर आ रही थी। बाढ़ की समस्या बहुत गम्भीर थी। अनाज की कमी तथा यातायात की समस्या खड़ी हुई थी। 17 जुलाई 1943 को दामोदर नदी में आई बाढ़ के कारण गम्भीर संकट उत्पन्न हो गया था। पाँच दिनों के लगातार जल रिसाव के कारण यह दरार 1000 फुट चौड़ी हो गई। इस प्रकार आई बाढ़ से 70 से अधिक गाँव प्रभावित हुए थे। 18 हजार मकान नष्ट हो गए थे। इस बाढ़ में मानव जीवन की हानि बहुत हुआ करती थी। इसलिये उस समय के बंगाल के राज्यपाल लार्ड ई जी केसी ने श्री महाराजाधिकार वर्धमान की अध्यक्षता में एक दस सदस्यीय जल समिति गठित की थी। जिसमें मेघनाद साहा जैसे विख्यात वैज्ञानिक भी शामिल थे। श्री मेघनाद साहा अनुसूचित जाति समुदाय के सदस्य थे। समिति ने जो रिपोर्ट प्रस्तुत की, वह राज्यपाल द्वारा केन्द्र सरकार के पास उचित कार्यवाई के लिये भेजी गई। बंगाल की समस्या हल करने के लिये डॉक्टर अम्बेडकर ने गवर्नर जनरल लॉर्ड वेव्हेल अभियन्ता के साथ काम करने की इच्छा प्रकट की थी —
— अमेरिका की टेनेसी नदी घाटी परियोजना के आधार पर आयोजन करना निश्चित किया गया। बाढ़ नियंत्रण, जल सिंचाई और जल विद्युत निर्माण इन तीन लक्ष्यों की पूर्ति के लिये केन्द्र सरकार के अधीन डब्ल्यू एल व्हर्दवान नामक एक अमेरिकन ने दामोदर नदी घाटी परियोजना का प्रस्ताव तैयार किया। प्राथमिक प्रतिवेदन के अनुसार, एक दस लाख क्यूसेक्स के बाढ़ के आधार पर आठ बाँधों के निर्माण की योजना बनाई गई। तिलैया, देवोलबारी, मैथन, बाँध बराकर नदी पर बेरमो, अयर सनोलापुर बाँध दामोदर नदी पर, बोकोरे तथा कोनार बाँध का बनाया जाना तय हो गया। —— इसके उपरान्त चार विशाल बाँधों का निर्माण हुआ। उनका मुख्य उद्देश्य ऊर्जा निर्माण, कृषि सिंचाई, तापीय केन्द्र और औद्योगिक विकास के लिये किया गया। तिलैया बाँध 45 मीटर ऊँचाई, कोनार बाँध 58 मीटर ऊँचाई,मैथॉन बाँध 56 मीटर ऊँचाई और पानशेत बाँध 49 मीटर ऊँचाई का
निर्माण क्रमशः सन 1953, 1955, 1957 और 1959 वर्ष में पूरा हुआ ——
— दामोदर नदी घाटी परियोजना से बहुउद्देशीय विकास-बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई और परिणामस्वरूप अकाल से मुक्ति तथा बिजली आपूर्ति की सम्भावना थी। इसलिये बंगाल और बिहार की सरकार ने इसका उत्साह से स्वागत किया। क्योंकि इस परियोजना से: (1) 4,700,00 एकड़ क्षेत्र में नियमित जलाशय से जल उपलब्ध होने वाला था, (2) 760,000 एकड़ क्षेत्र की अविरत सिंचाई के लिये पर्याप्त जल उपलब्धता (3) 300,000 किलो वॉट बिजली (4) 50 लाख लोगों का प्रत्यक्ष रूप से कल्याण होने वाला था।
— महानदी घाटी बहुउद्देशीय परियोजना —
— डॉक्टर बाबा साहेब अम्बेडकर ने कटक में ‘ओडिशा की नदियों के विकास’ की बहुउद्देशीय परियोजना पर सम्बोधन दिया। बीज भाषण उद्बोधक तथा महत्त्वपूर्ण है। डॉक्टर अम्बेडकर ओडिशा की बाढ़ की समस्या से मुक्ति चाहते थे। ओडिशा में मलेरिया से भी मुक्ति पाना चाहते थे। नौचालन तथा सस्ती बिजली तैयार करके वे अपनी जनता का जीवनमान स्तर सुधारना चाहते थे। उसके सभी उद्देश्य सौभाग्य से एक योजना से पूरे हो सकते हैं। अर्थात
—– जलाशयों का निर्माण और नदियों के बह जाने वाले पानी का भण्डारण ——
—— इस बाढ़ की समस्या का सुलझाने के लिये सन् 1928 में उड़ीसा में आई बाढ़ की जाँच के लिये सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरया के नेतृत्व में उड़ीसा बाढ़ नियंत्रण जाँच समिति का गठन किया गया। विश्वेश्वरया जैसे प्रख्यात अभियन्ता ने दो रिपोर्ट पेश की थीं। उस समय डॉक्टर अम्बेडकर दामोदर नदी परियोजना में व्यस्त थे। उनके कार्य की सराहना करते हुए उड़ीसा के प्रसिद्ध नेता हरकिशन मेहताब ने बाबा साहेब को पत्र लिखा और महानदी घाटी बहुउद्देशीय परियोजना का विकास करने की इच्छा प्रकट की ——
— सन 1945 में उड़ीसा नदी बाढ़ समस्या भारत सरकार के पास सुलझाने के लिये भेजी गई। वैसे डाक्टर ए एन खोसला, केन्द्रीय जलमार्ग, सिंचाई तथा नौचालन आयोग के अध्यक्ष के नाते भेंट की। उड़ीसा राज्य के गवर्नर के सलाहकार बी के गोखले तथा मुख्य अभियन्ता रायबाहदुर ब्रिज नारायण इस नतीजे पर पहुँचे की उड़ीसा राज्य की बाढ़, अकाल, गरीबी और बीमारी के निर्मूलन के लिये नदी जैसे जल सम्पदा का जलाशय का निर्माण करके पानी का नियंत्रण, संवर्धन तथा विनियोग कर सकते हैं। इस प्रकार बाढ़ नियंत्रण करके सिंचाई, नौचालन जल विद्युत निर्मिती, मत्स्यपालन और मनोरंजन के लिये पानी का उपयोग हो सकता है —
—— सन 1937 में, सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरया के प्रतिवेदन ने बहुउद्देशीय नदी घाटी विकास करने की सिफारिश की थी। बहुउद्देशीय विकास अमेरिका में टेनेसी नदी घाटी परियोजना, कोलम्बिया बेसिन विकास के अन्तर्गत घाटी विकास किया गया था ——
1. इन तीनों बाँधों के निर्माण में अतिरिक्त जल का इस्तेमाल बाढ़ नियंत्रण ही नहीं बल्कि सिंचाई, नौचालन और उर्जा निर्माण के लिये करना।
2. बाँध पर नौचालन जलपाश के निर्माण तथा यथासम्भव मध्यस्थ स्थान पर समुद्र के मुख से 500 किलोमीटर की दूरी तक महानदी नौचालन को बनाए रखना।
3. चिरस्थायी सिंचाई के लिये नहर प्रणाली का निर्माण करना।
4. सस्ती ऊर्जा का प्रयोग, कृषि उद्योग एवं क्षेत्र की बड़ी खनिज सम्पत्ति के उचित लाभ उठाने के लिये तीन बाँधों पर ऊर्जा संयंत्र निर्माण।
5. जल विकास और मलेरिया रोधी कार्य।
6. मत्स्यपालन एवं उत्पादन की सुविधा का प्रबन्ध।
इस प्रकार नदी विकास प्रबन्धन के लिये देश स्तर पर जलनीति का निर्माण हो गया।
— राष्ट्रीय जलनीति का उदय —
— सन 1942-46 के कालखण्ड में डॉक्टर बाबासाहेब अम्बेडकर का भारत की विकास नीति में बहुत ही महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। उनकी देश की जल और विद्युत ऊर्जा नीति स्थापना में अहम भूमिका है —
— 1940 के दशक में देश की आर्थिक नीति तय हो रही थी। उसकी स्थापना और स्वीकारना शुरू हुआ था। केन्द्र शासन कैबिनेट का पूर्ण विकास समिति ने सिंचाई विद्युत तथा औद्योगिक विकास की नीति अपनाने के लिये अनुशासनात्मक प्रक्रिया पूरी की। जल विकास 1935 के कानून के तहत सिंचाई तथा बिजली शक्ति राज्यशासन तथा प्रान्तीय सरकार के अधीनस्थ विषय थे। डॉ अम्बेडकर क्षेत्रीय विकास तथा बहुउद्देशीय विकास परियोजना द्वारा पूरे देश के अन्दर जलसंसाधन नीति लागू करना चाहते थे। इसलिये पानी का विषय उन्होंने केन्द्र सरकार के अधीन लाया —
— बाबा साहेब ने संविधान में प्रावधान किया क्योंकि उस दौरान बाबासाहेब श्रम मंत्री तथा राज्य घटना मसौदा समिति के अध्यक्ष की दोहरी भूमिका कर रहे थे —
—— इस नीति को अपनाने के लिये श्रम विभाग ने दो तकनीकी संस्थानों की नवम्बर 1944 में केन्द्रीय तकनीकी विद्युत मंडल (CTBT) तथा 5 अप्रैल 1945 में केन्द्रीय जलमार्ग सिंचाई तथा नौचालन आयोग (CWINC) स्थापना की। केन्द्रीय विद्युत मण्डल को देश के आँकड़े संकलन करना, सर्वे संचालित करना और विद्युत योजना तैयार करना जैसे महत्त्वपूर्ण कार्य सौंपे गए। इससे पूरे देश में विद्युत शक्ति पूर्ति, नियोजन, आवंटन तथा कार्यान्वयन इस प्रक्रिया को बढ़ावा मिला ——
आज के ‘केन्द्रीय जल आयोग’ को जल संसाधन कार्य, तथ्य संकलन, नियोजन, समन्वयन तथा कार्यान्वयन करने की भूमिका सौंपी, जल संसाधन के नियोजनबद्ध संवर्धन करने का अहम काम भी सौंपा गया —
—— अन्तरराष्ट्रीय नदी घाटी विकास केन्द्र शासन के दायरे में लाया गया, राज्य, प्रान्तीय तथा केन्द्र सरकार के संयुक्त वर्तमान विकास करने का प्रावधना लाया गया। इस राष्ट्रीय जलनीति को बहुउद्देशीय नदी घाटी विकास परियोजना का अंग माना गया। जिससे क्षेत्रिय विकास करने के लिये नियोजन में जल संसाधनों को बहुउद्देशीय उपयोग और सामाजिक आर्थिक तथा पर्यावरण विकास के महत्त्वपूर्ण पहलू माने जाने की शुरुआत हो गई। इसलिये दामोदर, महानदी, सोन नदी और कोसी नदी का पहली बार बहुउद्देशीय उपक्रम माना जाता है ——
— आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक डॉक्टर बाबा साहब अम्बेडकर ने इस देश की पूरी जल संसाधन विकास नीति बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हमें बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर के जन्मदिन 14 अप्रैल को ‘जल संसाधन दिवस’ के रूप में मनाना चाहिए। उनका व्यक्तित्व तथा विचारधारा पूर्णतः और सही मायने में समझने की नितान्त आवश्यकता है। राष्ट्र कौन सी दिशा में जाना चाहिए, उसका सटीक आरेखन ही उनके विचारों में स्पष्ट दिखाई देता है, अर्थ-विषयक, कृषि-विषयक, पर्यावरणवादी तथा जलसंसाधन विषयक दृष्टिकोण पूरी गम्भीरता से न लेने से —— ऐसी दुर्दशा देश को झेलनी पड़ रही है। डॉक्टर अम्बेडकर का बहुउद्देशीय नदी घाटी विकास का मॉडल आज हिमालय की बहती नदियों के बारे में अमल किया जा सकता है, गंगा, ब्रह्मपुत्र, यमुना कोसी, गंडक आदि नदियों के जल प्रबन्धन के बारे में सोचना जरूरी हुआ है। पानी की दुर्लभता, पानी की बढ़ती माँग, बढ़ते हुए शहरीकरण, गहराते पर्यावरण की समस्या में बदलाव से देश को जल संकट हो सकता है, सन 2050 ज्यादा दूर नहीं है, जल की आवश्यकता के लिये अभी से जल के प्रबन्धन, नियोजन तथा संवर्धन के बारे में प्रणाली विकसित कर जल बचाया जा सकता है। बहुउद्देशीय विकास पहलू स्वीकार कर नदियों पर विचार करना अनिवार्य किया जा सकता है ——
— विशेष साभार - डॉ. डी.टी. गायकवाड़
Sourceभगीरथ, जनवरी-मार्च 2016, केन्द्रीय जल आयोग, भारत-सहायक ग्रंथालय एवं सूचना अधिकारी
केन्द्रीय जल और विद्युत अनुसंधानशाला
खड़कवासला, पुणे-411024 —
— आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक भारत रत्न बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी ने अपने जीवन के 65 वर्षों में भारत देश को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षणिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक,औद्योगिक, संवैधानिक इत्यादि विभिन्न क्षेत्रों में अनगिनत कार्य करके राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया —
— बाबासाहेब आंबेडकर जी विदेश जाकर अर्थशास्त्र डॉक्टरेट (PhD) की डिग्री हासिल करने वाले पहले भारतीय थे,अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार विजेता महान अर्थशास्त्री प्रो. अमर्त्य सेन डॉ. बी.आर अम्बेडकर.को अर्थशास्त्र में अपना पिता मानते हैं —
— साथियों बाबा साहेब अम्बेडकर जी कुल 64 विषयों में मास्टर थे, केब्रिंज विश्वविद्यालय, इंग्लैड 2011 के अनुसार यह आकडे विश्व में सर्वाधिक है,इस विश्वविद्यालय ने बाबासाहेब को दुनिया के पहला सबसे बुद्धिमान व्यक्ति करार दिया है —
— बाबा साहेब जी ही एक मात्र भारतीय हैं जिनकी portrait लन्दन संग्रहालय में कार्ल मार्क्स के साथ लगी हुई है ये भारतीयों के लिए गर्व की बात है —
— इंडियन फ्लैग में “अशोक चक्र” को जगह देने का श्रेय भी बाबासाहेब अम्बेडकर जी को जाता है,यह बात बहुत कम लोग जानते हैं की इंडियन फ्लैग में गाँधीजी का चरखा नहीं बल्कि अशोक चक्र लगा हुआ है —
— वो बाबासाहेब जी ही थे जिन्होंने महिला श्रमिकों के लिए सहायक Maternity Benefit for women Labor, Women Labor welfare fund, Women and Child, Labor Protection Act जैसे कानून बनाए ——
—— बेहतर विकास के लिए 50 के दशक में ही आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक बाबासाहेब अम्बेडकर जी ने मध्य प्रदेश और बिहार के विभाजन का प्रस्ताव रखा था, पर सन 2000 में जाकर ही इनका विभाजन कर छत्तीसगढ़ और झारखण्ड का गठन किया गया —
— सम्मानित साथियोंबाबासाहेब डॉ.भीमराव आंबेडकर जीबीसवी सदी में दुनिया के सबसे बुद्धिमान Jurist Constitutionalist थे। जिनसे सलाह मशवरा लेने के लिए सभी देशो के महान बुद्धिजीवी आया करते थे —
— ऐसे महामानव दुनिया के सबसे महान विद्वान परमपूज्यनीय बोधिसत्व भारत रत्न डॉ भीमराव अम्बेडकर जी के चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करतें हुए मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर कोटि-कोटि नमन करता हूं —
— साथियों हमसे मशीहा आधुनिक भारत के युगप्रर्वतक बाबा साहेब आज भले ही हमारे बीच में उपस्थित नहीं हैं, लेकिन उन्होंने एक सफल जीवन जीने का जो मंत्र दिया, उस पर चलकर हम एक नए भारत की ओर बढ़ सकते हैं वे हम सब के लिए प्रेरणास्रोत के रूप में युगों-युग तक उपस्थित रहेंगे। उनके विचार, उनका जीवनशैली और उनका काम करने का तरीका हमेशा हमें उत्साहित करता है —
— बढ रही उनकी विरासत को आगे बढाने की जिम्मेदारी भी हमारे ही कन्धों पर रहेगी, जिससे देश भर में समानता, शिक्षा का प्रसार और महिलाओं को अधिकार मिलने का उनका लक्ष्य पूरा हो सकेगा —
—— वो थे इसलिए आज हम है ——
—— यारों अगर भीम न होते तो बहुजन समाज और महिलाओं का मान सम्मान न होता अगर भीम न होते तो इस देश की मुखिया कोई महिला न होती,ये सूट बूट वाले साहब न होते शोषितों वंचित समाज में ये ऐसो आराम के समान न होते ये आलिशान महल न होते ——
—— अगर इस भारत भूमि पर भीम न होते तो ये बड़ी बड़ी गाडियां, ये शोहरत ये इज्जत, ये अफसरशाही, सत्ता का स्वाद,न होता,ये उस सूर्य कोटि महापुरुष परमपूज्य
बाबा साहेब की देन है जिन्होंने अपने समाज को गुलामी से आजाद कराने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर
कर दिया ——
—— ऐसे महान शख्सियत के चरणों में शत शत नमन करता हूं, मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर वो बाबा थे जिन्होंने अपने समाज के बेटों को बचाने के लिए अपने बच्चों, पत्नी की कुर्बानी दे दी थी समाज के लिए ——
—— जरा हम लोग सोचे कि हमने क्या किया बाबा साहेब के लिए बाबा साहेब की पूजा तो हम बड़ी शिद्दत से करते हैं
ले उनकी बातों को नहीं मानते हैं ऐसे महान शख्सियत,आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक के चरणों में शत शत प्रणाम करता हूं ——
— तो ऐसे थे हमारे आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर —
—— साथियों आज वे हमारे बीच नही है, पर उनके द्वारा किये गए कार्यों,संघर्षों और उनके उपदेशों से हमेशा वे हमारे बीच जीवंत है। संविधान के रचयिता और ऐसे अद्वितीय समाज सुधारक को हमारा कोटि-कोटि नमन ——
— आधुनिक भारत के महानतम समाज सुधारक और सच्चे
महानायक, लेकिन”भारतीय जातिवादी-मानसिकता ने सदा ही इस महापुरुष की उपेक्षा ही की गई |भारत में शायद ही कोई दूसरा व्यक्ति ऐसा हो, जिसने देश के निर्माण,उत्थान और प्रगति के लिए थोड़े समय में इतना कुछ कार्य किया हो, जितना बाबासाहेब आंबेडकर जी ने किया है और शायद ही कोई दूसरा व्यक्ति हो, जो निंदा, आलोचनाओं आदि का उतना शिकार हुआ हो,जितना बाबासाहेब आंबेडकर जी हुए थे —
—— बाबासाहेब आंबेडकर जी ने भारतीय संविधान के तहत कमजोर तबके के लोगों को जो कानूनी हक दिलाये है। इसके लिए बाबा साहेब आंबेडकर जी को कदम-कदम पर काफी संघर्ष करना पड़ा था ——
—— आवो जानें पे बैक टू सोसायटी क्या ——
—— ऐ मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय,ज्ञान,बुद्धि, पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो ——
—— तुम्हारें अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए मैं दुबारा नहीं आऊंगा,ये क्रांति का रथ संघर्षो का कारवां ,जो मैं बड़े दुखों,कष्टों को सहकर यहाँ तक ले आया हूँ,अब आगे तुम्हे ही ले जाना है ——
—— साथियों बाबा साहेब जी अपने अंतरिम दिनोँ में अकेले रोते हुऐ पाए गए। बाबा साहेब अम्बेडकर जी से जब काका कालेलकर कमीशन 1953 में मिलने के लिए गया ,तब कमीशन का सवाल था कि आपने पूरी जिन्दगी पिछड़े,शोषित,वंचित वर्ग समाज के उत्थान के लिए लगा दी काका कालेकर कमीशन ने पूछा बाबा साहेब जी आपकी राय में क्या किया जाना चाहिए बाबा साहेब ने जवाब दिया कि पिछड़े,शोषित,वंचित समाज का उत्थान करना है तो इनके अंदर बड़े लोग पैदा करने होंगें ——
—— काका कालेलकर कमीशन के सदस्यों को यह बात समझ नहीं आई तो उन्होने फिर सवाल किया “बड़े लोग से आपका क्या तात्पर्य है ? " बाबा साहेब जी ने जवाब दिया कि अगर किसी समाज में 10 डॉक्टर , 20 वकील और 30 इन्जिनियर पैदा हो जाऐ तो उस समाज की तरफ कोई आंख ऊठाकर भी देख नहीं सकता !"
—— इस वाकये के ठीक 3 वर्ष बाद 18 मार्च 1956 में आगरा के रामलीला मैदान में बोलते हुऐ बाबा साहेब ने कहा "मुझे पढे लिखे लोगों ने धोखा दिया। मैं समझता था कि ये लोग पढ लिखकर अपने समाज का नेतृत्व करेगें , मगर मैं देख रहा हुँ कि मेरे आस-पास बाबुओं की भीड़ खड़ी हो रही है जो अपना ही पेट पालने में लगी है !"
—— साथियों बाबा साहेब अपने अन्तिम दिनो में अकेले रोते हुए पाए गए ! जब वे सोने की कोशिश करते थे तो उन्हें नींद नहीं आती थी,अत्यधिक परेशान रहने वाले थे बाबा साहेब के निजी सचिव नानकचंद रत्तु ने बाबा साहेब जी से सवाल पुछा कि , आप इतना परेशान क्यों रहते है बाबा साहेब जी ? ऊनका जवाब था , " ——
—— नानकचंद , ये जो तुम दिल्ली देख रहो हो अकेली दिल्ली में 10,000 कर्मचारी ,अधिकारी यह केवल अनुसूचित जाति के है ! जो कुछ साल पहले शून्य थे मैँने अपनी जिन्दगी का सब कुछ दांव पर लगा दिया,अपने लोगों में पढ़े लिखे लोग पैदा करने के लिए क्योंकि मैं जानता था कि जब मैं अकेल पढ लिख कर इतना काम कर सकता हुँ अगर हमारे हजारों लोग पढ लिख जायेगें तो बहुजन समाज में कितना बड़ा परिवर्तन आयेगा लेकिन नानकचंद,मैं जब पुरे देश की तरफ निगाह दौड़ाता हूँ हूँ तो मुझे कोई ऐसा नौजवान नजर नहीं आता है,जो मेरे कारवाँ को आगे ले जा सकता है नानकचंद,मेरा शरीर मेरा साथ नहीं दे रहा है ,जब मैं अपने मिशन के बारे में सोचता हुँ,तो मेरा सीना दर्द से फटने लगता है ——
—— जिस महापुरुष ने अपनी पुरी जिन्दगी,अपना परिवार ,बच्चे आन्दोलन की भेँट चढाए,जिसने पुरी जिन्दगी इस विश्वास में लगा दी कि , पढा -लिखा वर्ग ही अपने शोषित वंचित भाइयों को आजाद करवा सकता हैं जिन्होंने अपने लोगों को आजाद कर पाने का मकसद अपना मकसद बनाया था,क्या उनका सपना पूरा हो गया ? आपके क्या फर्ज बनते हैं समाज के लिए ?
—— सम्मानित साथियों जरा सोचो आज बाबा साहेब की वजह से हम ब्रांडेड कपड़े, ब्रांडेड जूते, ब्रांडेड मोबाइल, ब्रांडेड घड़ियां हर कुछ ब्रांडेड इस्तेमाल करने के लायक बन गए हैं बहुत सारे लोग बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू, शराब पर सैकड़ों रुपये बर्बाद करते हैं ! इस पर औसतन 500 रुपये खर्च आता है,चाउमीन, गोलगप्पे, सूप आदि पर हरोज 20 से 50 रुपये खर्च आता है। महिने में ओसतन 600 से 1500 रुपये तक खर्च हो सकते हैं ——
—— बाबा साहेब के अधिकारों,संघर्षो,प्रावधानों की वजह से जो लोग इस लायक हो गए हैं हम लोगों पर बाबा साहेब ने विश्वास नहीं किया क्योंकि हमने बाबा साहेब के साथ विश्वासघात किया था ! उनके द्वारा दिखाए गए सपनों से हम दूर चले गए नौकरी आयी और आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक बाबा साहेब अम्बेडकर जी को भूल गए ——
——"हमारे उपर बाबा साहेब का बहुत बड़ा कर्ज है,
क्या आप उसे उतार सकते हैं,नहीं रत्तीभर भी नहीं हम जिस शख्स ने इस देश के शोषित,वंचित, पिछले, समाज,सर्वसमाज,महिलाओं भारतवर्ष के लिए अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी,अपने बच्चे,पत्नी अपने सुख चैन सब कुछ कुर्बान कर दिया जरा सोचो किसके लिए आप लोगों के लिए और हम लोग क्या कर रहें हैं टीवी,बीवी में मस्त है मिशन को भूल गये ——
—— लेकिन हमें फिर से पहले की तरह बाबा साहेब को धोखा नहीं देना चाहिए,पढ़े-लिखे लोगो अपने उपर से धोखेबाज का लेबल उतारो और बाबा साहेब के मिशन को आगे बढ़ाओ ——
——आपके बीड़ी, सिगरेट पर खर्च होने वाले 15 रुपये से न जाने कितने बच्चों को शिक्षा मिल सकती है,आपके फास्टफूड पर खर्च होने वाले 50 रुपये से न जाने कितने गरीब लोगों को दवाई मिल सकती है !आपके इन पैसों से न जाने कितने मिशनरी साथियों का खर्च चल रहा है जो पूरा जीवन समाज सेवा मे लगा रहे हैं ——
—— जरा अपने दिल पर हाथ रख कर कहो तुम क्या बाबा साहेब के पे बैक टू सोसाइटी सिद्धांत पर चल रहे हो ——
—— केवल भंडारे देना,चंदा देना,कार्यक्रम करना,ठंडे पानी की स्टाल लगाना पे बैक टू सोसाइटी नहीं है ——
——अपने जैसे सक्षम लोग पैदा करना पे बैक टू सोसाइटी है गरीब बच्चों को शिक्षित करना पे बैक टू सोसाइटी है,शिक्षित लोगों को नौकरियां दिलाना डाक्टर है ——
——बहुजनों को वैज्ञानिक,इंजिनियर,वकील,शिक्षक,डाक्टर इत्यादि बनाना पे बैक टू सोसाइटी है.बाबा साहेब के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए लगे हुए मिशनरियों को मदद देना असली पे बैक टू सोसाइटी है ——
—— आप जो पोजिशन पर है आपका फर्ज बनता है कि मेरे समाज का हर बच्चा उस पोजिशन पर पहुंचे यह पे बैक टू सोसाइटी है,अतः हम पढे-लिखे, नौकरीपेशा समाज से अपील करते हैं कि आप अपने उपर लगे धोखेबाज के लेबल को उतारने की कोशिश करें आपने ग़ैर-भाई बहनों के पास जाओ,उनकी ऊपर उठने में मदद करें,अपने उद्योग धंधे, व्यापार आदि शुरू करें, अपने आप को बेरोजगार बहुजनों के लिए रोजगार की व्यवस्था करें,अपना व्यवसाय शुरू करें, अपने समाज का पैसा अपने समाज में रोकें ——
—— प्रयत्न करें,जब तक बाबा साहेब का पे बैक टू सोसाइटी का सिद्धांत लागू नहीं होगा तब तक देश से गरीबी नहीं मिटेगी ——
—— साभार-: बहुजन समाज और उसकी राजनिति,मेरे संघर्षमय जीवन एवं बहुजन समाज का मूवमेंट {संदर्भ- सलेक्टेड ऑफ डाँ अम्बेडकर – लेखक डी.सी. अहीर पृष्ठ क्रमांक 110 से 112 तक के भाषण का हिन्दी अनुवाद), श्री गुरु रविदास जन-जागृति एवं शिक्षा समिति,(राजी),दलित दस्तक ,समय बुद्धा,,पुस्तक-'डॉ.बाबासाहेब अंबेडकर के महत्वपूर्ण संदेश एवं विद्वत्तापूर्ण कथन' के थर्ड कवर पृष्ठ से,लेखक-नानकचंद रत्तू-अनुवादक-गौरव कुमार रजक, अंकित कुमार गौतम,संपादन-अमोल वज्जी,प्रकाशक-डी के खापर्डे मेमोरियल ट्रस्ट (पब्लिकेशन डिवीजन)527ए, नेहरू कुटिया, निकट अंबेडकर पार्क, कबीर बस्ती, मलका गंज, नई दिल्ली -07, विकिपीडिया} ——
——"सामाजिक क्रांति के अग्रदूत,मानवता की प्रचारक महामानव बाबा साहेब अम्बेडकर जी के चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं ——
— साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए आधुनिक भारत के निर्माता बाबासाहेब अम्बेडकर जी ने वह कर दिखाया जो उस दौर में सोच पाना भी मुश्किल था —
— साथियों आज हमें अगर कहीं भी खड़े होकर अपने विचारों की अभिव्यक्ति करने की आजादी है,समानता का अधिकार है तो यह सिर्फ और सिर्फ परमपूज्य बाबासाहेब आंबेडकर जी के संघर्षों से मुमकिन हो सका है.भारत वर्ष का जनमानस सदैव बाबा साहेब डा भीमराव अंबेडकर जी का कृतज्ञ रहेगा.इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी बात खत्म करता हूं। सामाजिक न्याय के पुरोधा तेजस्वी क्रांन्तिकारी शख्शियत परमपूज्य बोधिसत्व भारत रत्न बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं
— जिसने देश को दी नई दिशा””…जिसने आपको नया जीवन दिया वह है आधुनिक भारत के निर्माता बाबा साहेब अम्बेडकर जी का संविधान —
— सच अक्सर कड़वा लगता है। इसी लिए सच बोलने वाले भी अप्रिय लगते हैं। सच बोलने वालों को इतिहास के पन्नों में दबाने का प्रयास किया जाता है, पर सच बोलने का सबसे बड़ा लाभ यही है, कि वह खुद पहचान कराता है और घोर अंधेरे में भी चमकते तारे की तरह दमका देता है। सच बोलने वाले से लोग भले ही घृणा करें, पर उसके तेज के सामने झुकना ही पड़ता है ! इतिहास के पन्नों पर जमी धूल के नीचे ऐसे ही बहुजन महापुरुषों का गौरवशाली इतिहास दबा है —
―मां कांशीराम साहब जी ने एक एक बहुजन नायक को बहुजन से परिचय कराकर, बहुजन समाज के लिए किए गए कार्य से अवगत कराया सन 1980 से पहले भारत के बहुजन नायक भारत के बहुजन की पहुँच से दूर थे,इसके हमें निश्चय ही मान्यवर कांशीराम साहब जी का शुक्रगुजार होना चाहिए जिन्होंने इतिहास की क्रब में दफन किए गए बहुजन नायक/नायिकाओं के व्यक्तित्व को सामने लाकर समाज में प्रेरणा स्रोत जगाया ——
―इसका पूरा श्रेय मां कांशीराम साहब जी को ही जाता है कि उन्होंने जन जन तक गुमनाम बहुजन नायकों को पहुंचाया, मां कांशीराम साहब के बारे में जान कर मुझे भी लगा कि गुमनाम बहुजन नायकों के बारे में लिखा जाए !
—— मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय ज्ञान,पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो ——
—―साथियों एक बात याद रखना आज करोड़ों लोग जो बाबासाहेब जी,माँ रमाई के संघर्षों की बदौलत कमाई गई रोटी को मुफ्त में बड़े चाव और मजे से खा रहे हैं ऐसे लोगों को इस बात का अंदाजा भी नहीं है जो उन्हें ताकत,पैसा,इज्जत,मान-सम्मान मिला है वो उनकी बुद्धि और होशियारी का नहीं है बाबासाहेब जी के संघर्षों की बदौलत है ——
—– साथियों आँधियाँ हसरत से अपना सर पटकती रहीं,बच गए वो पेड़ जिनमें हुनर लचकने का था ——
―तमन्ना सच्ची है,तो रास्ते मिल जाते हैं,तमन्ना झूठी है,तो बहाने मिल जाते हैं,जिसकी जरूरत है रास्ते उसी को खोजने होंगें निर्धनों का धन उनका अपना संगठन है,ये मेरे बहुजन समाज के लोगों अपने संगठन अपने झंडे को मजबूत करों शिक्षित हो संगठित हो,संघर्ष करो !
―साथियों झुको नही,बिको नहीं,रुको नही, हौसला करो,तुम हुकमरान बन सकते हो,फैसला करो हुकमरान बनो"
―सम्मानित साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए !
―सभी अम्बेडकरवादी भाईयों, बहनो,को नमो बुद्धाय सप्रेम जयभीम! सप्रेम जयभीम !!
―बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी ने कहा है जिस समाज का इतिहास नहीं होता, वह समाज कभी भी शासक नहीं बन पाता… क्योंकि इतिहास से प्रेरणा मिलती है, प्रेरणा से जागृति आती है, जागृति से सोच बनती है, सोच से ताकत बनती है, ताकत से शक्ति बनती है और शक्ति से शासक बनता है !”
― इसलिए मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर आप लोगो को इतिहास के उन पन्नों से रूबरू कराने की कोशिश कर रहा हूं जिन पन्नों से बहुजन समाज का सम्बन्ध है जो पन्ने गुमनामी के अंधेरों में खो गए और उन पन्नों पर धूल जम गई है, उन पन्नों से धूल हटाने की कोशिश कर रहा हूं इस मुहिम में आप लोगों मेरा साथ दे, सकते हैं !
―पता नहीं क्यूं बहुजन समाज के महापुरुषों के बारे कुछ भी लिखने या प्रकाशित करते समय “भारतीय जातिवादी मीडिया” की कलम से स्याही सूख जाती है —
— इतिहासकारों की बड़ी विडम्बना ये रही है,कि उन्होंने बहुजन नायकों के योगदान को इतिहास में जगह नहीं दी इसका सबसे बड़ा कारण जातिगत भावना से ग्रस्त होना एक सबसे बड़ा कारण है इसी तरह के तमाम ऐसे बहुजन नायक हैं,जिनका योगदान कहीं दर्ज न हो पाने से वो इतिहास के पन्नों में गुम हो गए —
―उन तमाम बहुजन नायकों को मैं अमित गौतम जंनपद रमाबाई नगर,कानपुर कोटि-कोटि नमन करता हूं !
जय रविदास
जय कबीर
जय भीम
जय नारायण गुरु
जय सावित्रीबाई फुले
जय माता रमाबाई अम्बेडकर जी
जय ऊदा देवी पासी जी
जय झलकारी बाई कोरी
जय बिरसा मुंडा
जय बाबा घासीदास
जय संत गाडगे बाबा
जय पेरियार रामास्वामी नायकर
जय छत्रपति शाहूजी महाराज
जय शिवाजी महाराज
जय काशीराम साहब
जय मातादीन भंगी जी
जय कर्पूरी ठाकुर
जय पेरियार ललई सिंह यादव
जय मंडल
जय हो उन सभी गुमनाम बहुजन महानायकों की जिंन्होने अपने संघर्षो से बहुजन समाज को एक नई पहचान दी,स्वाभिमान से जीना सिखाया !
अमित गौतम
युवा सामाजिक
कार्यकर्ता
बहुजन समाज
जंनपद-रमाबाई नगर कानपुर
सम्पर्क सूत्र-9452963593
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