बहुजन नायक,महान स्वतंत्रता सेनानी,शहादत की कभी न बुझने वाली मशाल,अमर शहीद शहीदे आजम सरदार ऊधमसिंह जी की जंयती की हार्दिक बधाईयां एवं शत्-शत् नमन

   
       26,दिसंबर,1899
      वो थे इसलिए आज हम है 
             इतिहास के पन्नों से
— बहुजन नायक,महान स्वतंत्रता सेनानी,शहादत की कभी न बुझने वाली मशाल,अमर शहीद शहीदे आजम सरदार ऊधमसिंह जी की जंयती की हार्दिक बधाईयां एवं शत्-शत् नमन —
— शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले वतन पर मरनेवालों का यही बाकी निशाँ होगा — 
— जंगे आजादी के महासंग्राम के महान क्रांतिकारी,पंजाब के जलियाँवाला बाग हत्याकांड का बदला लेने वाले बहुजन योद्धा,अमर शहीद,शहीदे आजम सरदार ऊधमसिंह की जंयती पर उनके क्रांतिकारी जज्बे को सभी देशवासियों की तरफ से शत्-शत् नमन एंव विनम्र श्रद्धांजलि  —
— जब जरूरत थी चमन को तो लहू हमने दिया,अब बहार आई तो कहते हैं तेरा काम नहीं —
— हे अमर शहीद शहीदे आजम ऊधमसिंह सिंह जी शत्-शत् नमन तुम्हारी शहादत वीरता, त्याग को — 
— आओ कम से कम हम लोग मिलकर उस शहीद को अपनी श्रद्धांजलि दें,हे अमर शहीद शहीदे आजम ऊधम सिंह जी शत-शत नमन तुम्हारी शहादत वीरता,त्याग को —
— भारत के इस महान् सपूत ने बड़े गर्व और शान से कहा- मुझे मौत की सजा की कोई परवाह नहीं है क्योंकि मैंने भारत के अपमान का बदला ले लिया है —
— यह वीर क्रान्तिकारी 31,जुलाई,1940 को लन्दन में हँसते-हँसते फांसी पर झूल गया । देश पर मिटने वाले अमर शहीद ऊधम सिंह को शत्-शत् प्रणाम,उनके हौसले का भुगतान क्या होगा,उनकी शहादत का क़र्ज़ देश पर है,आप और हम इस लिए खुशहाल हैं क्योंकि अमर शहीद ऊधम सिंह जी जैसे वीरों ने अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया देश की खातिर —
— पंजाब के जालियांवाला बाग हत्याकांड का नाम सुनकर किस भारतीय का खून नहीं खौल उठता.आज भी उस नरसंहार का जिक्र होता है तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं, लेकिन अंग्रेजों की इस क्रूरता का जवाब एक महान क्रांतिकारी ने दिया था, जिसका नाम था सरदार ऊधम सिंह जी —
— ये ऐसे वीर सपूत थे जिन्होंने 21 साल बाद ही सही लेकिन अंग्रेजों से उनकी सरजमीं पर ही इस घटना बदला लिया और 1940 में उन्हें  (31 जुलाई) फांसी दे दी गई थी — 
     — धन्य है वो माँ जिसने ऐसे शूरवीर महान देशभक्त क्रांतिकारी शेर को जंन्म दिया,जल्द ही मेरी शादी मौत से होगी, यह कहकर शहीद ऊधम सिंह ने फांसी का
 फंदा चूमा —
— देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते अपनी जान कुर्बान करने वाले शहीदों की एक लंबी फेहरिश्त मौजूद है। हम भारतवासियों को को कम से कम उनकी जयंती और शहादत दिवस पर अवश्य याद करना चाहिए,उनके प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित करना चाहिए —
— अमर शहीद सरदार उधम सिंह स्वतंत्रता संग्राम के एक ऐसे ही जांबाज नौजवान थे जिन्होंने हंसते-हंसते मौत को गले लगाया था

—  शहीदे आजम ऊधम सिंह जी का जन्म आज ही के दिन यानी 26 दिसंबर 1899 को पटियाला में हुआ था !
 अमर शहीद ऊधम सिंह जी के पिता का नाम चूहड़ राम था जो उत्तर प्रदेश के एटा जिले के पटिआली गाँव के निवासी थे और जाटव (चमार) जाति के थे। वह काम की तलाश में पटियाला (पंजाब) चले गए थे। वहाँ पर उन्होंने धर्म को अपना लिया था और उन का नाम टहल सिंह हो गया थाा — — 5-6 वर्ष की आयु में ही उधम सिंह के माता पिता का देहांत हो गया था। अनाथ हो जाना पर उधम सिंह और उस के भाई अमृतसर में अनाथालय में चले गए। वहीँ पर उस की शिक्षा दीक्षा हुयी। वहीँ पर उधम सिंह ने जलियाँ वाले बाग़ में 13 अप्रैल,1919 को जनरल डायर द्वारा किए गए जनसंहार को अपनी आँखों से देखा था और उस ने उसी वक़्त इस का बदला लेने की शपथ खायी थी — 
— बहुजन नायक शहीद ऊधम सिंह जी के शहादत दिवस पर शत्-शत् नमन करता हूं मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर —
— संयोग देखिए कि 31,जुलाई को ही उधम सिंह को फांसी हुई थी और 1974 में इसी तारीख को ब्रिटेन ने इस क्रांतिकारी के अवशेष भारत को सौंपे —
— अमर शहीद,बहुजन नायक सरदार उधम सिंह की अस्थियां सम्मान सहित उनके गांव लाई गईं जहां आज उनकी समाधि बनी हुई है  —
— उत्तरप्रदेश में बहुजन समाज पार्टी के सत्ता में आने के बाद तत्तकालीन मुख्यमंत्री बहन मायावती जी ने अमर शहीद उधम सिंह को उचित सम्मान देते हुए उत्तर प्रदेश में उनके नाम पर जिले का गठन किया ज़ उत्तराखंड राज्य में है  — 
— आधुनिक भारत को जिन महापुरूषों,शहीदों, महान शख्शियत पर गर्व होना चाहिए, उनमें में से एक है बहुजन नायक महान क्रांतिकारी देशभक्त शहीद ऊधम सिंह जी का नाम —
— क्या बहुजन होने की वजह से उधम सिंह को नहीं मिला ‘शहीद-ए-आजम’ का दर्जा!भारत के स्वतंत्रा संग्राम में शहीद उधमसिंह जी एक ऐसा नाम है, जिसने अपने देश और समाज के लोगों की मौत का बदला लंदन जाकर लिया उन्होंने जालियांवाला बाग हत्याकांड के वक्त पंजाब के गवर्नर रहे माइकल ओ डायर को गोलियों से भून डाला,अपने आप में एक महान और साहसिक कारनामा था लेकिन उनकी जाति चमार उनके गुणगान में बाधा बन गई —
— 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में बैठक थी जहां माइकल ओ डायर भी वक्ताओं में से एक था। शहीद उधम सिंह जी उस दिन समय से ही बैठक स्थल पर पहुंच गए अपनी रिवॉल्वर उन्होंने एक मोटी किताब में छिपा ली। इसके लिए उन्होंने किताब के पृष्ठों को रिवॉल्वर के आकार में उस तरह से काट लिया था, जिससे डायर की जान लेने वाला हथियार आसानी से छिपाया जा सके बैठक के बाद दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए उधम सिंह ने माइकल ओ डायर पर गोलियां दाग दीं। दो गोलियां माइकल ओ डायर को लगीं जिससे उसकी तत्काल मौत हो गई। उधम सिंह ने वहां से भागने की कोशिश नहीं की और अपनी गिरफ्तारी दे दी !इस तरह से शहीद ऊधम सिंह जी ने जलियांवाला बाग हत्याकांड में मारें गये निर्दोष भाईयों की शहादत का बदला लिया है —
— शहादत की कभी न बुझने वाली मशाल,अमर शहीद उधम सिंह जी के आखिरी शब्द बाद में शहीद उधम सिंह जी पर माइकल ओ डायर‘’ की हत्या का मुकदमा चलाया गया. शहीद ऊधम सिंह जी को फांसी की सजा सुनाने से पहले जज ने उनसे कहा, तुम कुछ कहना चाहोगे तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, मुझे कुछ नहीं कहना मुझे जो करना था मैंने कर दिया. मुझे बिल्कुल अफसोस नहीं है. ‘ड्वायर’ मौत के ही लायक था. इसके कारण ही मेरे देश के लोगों की जान गई. वह असली अपराधी था, इसलिए मैंने उसे खत्म कर दिया. मुझे खुशी है कि मैंने यह काम किया,मुझे मृत्यु का डर नहीं है मैं अपने देश के लिए मर रहा हूं —
— अदालत में जब उनसे पूछा गया कि वह डायर के अन्य साथियों को भी मार सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया? उधम सिंह ने जवाब दिया कि वहां पर कई महिलाएं भी थीं और वो महिलाओं पर हमला नहीं करते —
— अंतत: 31 जुलाई 1940 में ब्रिटेन के पेंटनविले जेल में हंसते-हंसते देश के इस क्रांतिकारी ने फांसी को गले लगा लिया. एक बार पुनः शहीद ऊधम सिंह जी  की शहादत को शत-शत नमन —
  — पुराने समय से ही जातिवाद से ग्रसित समाज ने उन्हें इतिहास में भी सीमित कर दिया !निश्चित तौर पर यह सब उनकी जाति के कारण ही हुआ। दरअसल वे उस जाति और समाज का हिस्सा नहीं थे जिनके हाथों में कलम रही है.कलम वालों का इतिहास रहा है कि वे एक तरफा महिमामंडन करते रहे हैं तमाम तरह के आडंबरों और झूठों का महिमामंडन करने वाली कलम को असली नायकों के बारे में लिखने में शायद लकवा मार गया लेकिन इस पराक्रमी नायक को बहुजन होने की वजह से इतिहास के पन्नों में जो जगह मिलनी चाहिए थी वह नहीं मिल सकी और महज खानपूर्ति की गई —
— शोषित समाज को जागृत करने में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा —
— अमर शहीद शहीदे आजम ऊधमसिंह जी ऐसे योद्धा का नाम है, जिसने शोषण के विरुद्ध आवाज बुलंद की और उपेक्षितों को उनका हक दिलाने के लिए जीवन समर्पित कर दिया —
— बहुजनों के इस अप्रितम योद्धा को नमन ऐसे महामानव, जन्मजात क्रांतिकारी को एक क्रांतिकारी को मेरा नीला सलाम. कोटि-कोटि नमन करता हूं मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर !
      —— आवो जानें पे बैक टू सोसायटी क्या ——
—— ऐ मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय,ज्ञान,बुद्धि, पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो ——
—— तुम्हारें अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए मैं दुबारा नहीं आऊंगा,ये क्रांति का रथ संघर्षो का कारवां ,जो मैं बड़े दुखों,कष्टों को सहकर यहाँ तक ले आया हूँ,अब आगे तुम्हे ही ले जाना है  ——
—— साथियों बाबा साहेब जी अपने अंतरिम दिनोँ में अकेले रोते हुऐ पाए गए। बाबा साहेब अम्बेडकर जी से जब काका कालेलकर कमीशन 1953 में मिलने के लिए गया ,तब कमीशन का सवाल था कि आपने पूरी जिन्दगी पिछड़े,शोषित,वंचित वर्ग समाज  के उत्थान के लिए लगा दी काका कालेकर कमीशन ने पूछा बाबा साहेब जी आपकी राय में क्या किया जाना चाहिए बाबा साहेब ने जवाब दिया कि पिछड़े,शोषित,वंचित समाज का उत्थान करना है तो इनके अंदर बड़े लोग पैदा करने होंगें ——
—— काका कालेलकर कमीशन के सदस्यों को यह बात समझ नहीं आई  तो उन्होने फिर सवाल किया “बड़े लोग से आपका क्या तात्पर्य है ? " बाबा साहेब जी ने जवाब दिया कि अगर किसी समाज में 10 डॉक्टर , 20 वकील और 30 इन्जिनियर पैदा हो जाऐ तो उस समाज की तरफ कोई आंख ऊठाकर भी देख नहीं सकता !"
—— इस वाकये के ठीक 3 वर्ष बाद 18 मार्च 1956 में आगरा के रामलीला मैदान में बोलते हुऐ बाबा साहेब ने कहा "मुझे पढे लिखे लोगों ने धोखा दिया। मैं समझता था कि ये लोग पढ लिखकर अपने समाज का नेतृत्व करेगें , मगर मैं देख रहा हुँ कि  मेरे आस-पास बाबुओं की भीड़ खड़ी हो रही है जो अपना ही पेट पालने में लगी है !" 
—— साथियों बाबा साहेब अपने अन्तिम दिनो में अकेले रोते हुए पाए गए ! जब वे सोने की कोशिश करते थे तो उन्हें नींद नहीं आती थी,अत्यधिक परेशान रहने वाले थे बाबा साहेब के निजी सचिव  नानकचंद रत्तु ने बाबा साहेब जी से सवाल पुछा कि , आप इतना परेशान क्यों रहते है बाबा साहेब जी ? ऊनका जवाब था , " ——
—— नानकचंद , ये जो तुम दिल्ली देख रहो हो अकेली दिल्ली में 10,000 कर्मचारी ,अधिकारी यह केवल अनुसूचित जाति के है  ! जो कुछ साल पहले शून्य थे मैँने अपनी जिन्दगी का सब कुछ दांव पर लगा दिया,अपने लोगों में पढ़े लिखे लोग पैदा करने के लिए क्योंकि  मैं जानता था कि जब मैं अकेल पढ लिख कर इतना काम कर सकता हुँ  अगर हमारे हजारों लोग पढ लिख जायेगें तो बहुजन समाज में कितना बड़ा परिवर्तन आयेगा लेकिन नानकचंद,मैं जब पुरे देश की तरफ निगाह दौड़ाता हूँ हूँ तो मुझे कोई ऐसा  नौजवान नजर नहीं आता है,जो मेरे कारवाँ को आगे ले जा सकता है नानकचंद,मेरा शरीर मेरा साथ नहीं दे रहा है ,जब मैं अपने मिशन के बारे में सोचता हुँ,तो मेरा सीना दर्द से फटने लगता है ——
—— जिस महापुरुष ने अपनी पुरी जिन्दगी,अपना परिवार ,बच्चे आन्दोलन की भेँट चढाए,जिसने पुरी जिन्दगी इस विश्वास में लगा दी  कि , पढा -लिखा वर्ग ही अपने शोषित वंचित भाइयों को आजाद करवा सकता हैं जिन्होंने अपने लोगों को आजाद कर पाने का मकसद अपना मकसद बनाया था,क्या उनका सपना पूरा हो गया ? आपके क्या फर्ज  बनते हैं समाज के लिए ?
—— सम्मानित साथियों जरा सोचो आज बाबा साहेब की वजह से हम ब्रांडेड कपड़े, ब्रांडेड जूते, ब्रांडेड मोबाइल, ब्रांडेड घड़ियां हर कुछ ब्रांडेड इस्तेमाल करने के लायक बन गए हैं बहुत सारे लोग बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू, शराब पर सैकड़ों रुपये बर्बाद करते हैं ! इस पर औसतन 500 रुपये खर्च आता है,चाउमीन, गोलगप्पे, सूप आदि पर हरोज 20 से 50 रुपये खर्च आता है। महिने में ओसतन 600 से 1500 रुपये तक खर्च हो सकते हैं ——
—— बाबा साहेब के अधिकारों,संघर्षो,प्रावधानों की वजह से जो लोग इस लायक हो गए हैं  हम लोगों पर बाबा साहेब ने विश्वास नहीं किया क्योंकि हमने बाबा साहेब के साथ विश्वासघात किया था ! उनके द्वारा दिखाए गए सपनों से हम दूर चले गए नौकरी आयी और आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक बाबा साहेब अम्बेडकर जी को भूल गए —— 
——"हमारे उपर बाबा साहेब का बहुत बड़ा कर्ज है, 
क्या आप उसे उतार सकते हैं,नहीं रत्तीभर भी नहीं हम जिस शख्स ने इस देश के शोषित,वंचित, पिछले, समाज,सर्वसमाज,महिलाओं भारतवर्ष के लिए अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी,अपने बच्चे,पत्नी अपने सुख चैन सब कुछ कुर्बान कर दिया जरा सोचो किसके लिए आप लोगों के लिए और हम लोग क्या कर रहें हैं टीवी,बीवी में मस्त है मिशन को भूल गये ——
—— लेकिन हमें फिर से पहले की तरह बाबा साहेब को धोखा नहीं देना चाहिए,पढ़े-लिखे लोगो अपने उपर से धोखेबाज का लेबल उतारो और बाबा साहेब के मिशन को आगे बढ़ाओ ——
——आपके बीड़ी, सिगरेट पर खर्च होने वाले 15 रुपये से न जाने कितने बच्चों को शिक्षा मिल सकती है,आपके फास्टफूड पर खर्च होने वाले 50 रुपये से न जाने कितने गरीब लोगों को दवाई मिल सकती है !आपके इन पैसों से न जाने कितने मिशनरी साथियों का खर्च चल रहा है जो पूरा जीवन समाज सेवा मे लगा रहे हैं ——
—— जरा अपने दिल पर हाथ रख कर कहो तुम क्या बाबा साहेब के पे बैक टू सोसाइटी सिद्धांत पर चल रहे हो ——
—— केवल भंडारे देना,चंदा देना,कार्यक्रम करना,ठंडे पानी की स्टाल लगाना पे बैक टू सोसाइटी नहीं है ——
——अपने जैसे सक्षम लोग पैदा करना पे बैक टू सोसाइटी है गरीब बच्चों को शिक्षित करना पे बैक टू सोसाइटी है,शिक्षित लोगों को नौकरियां दिलाना डाक्टर है ——
——बहुजनों को वैज्ञानिक,इंजिनियर,वकील,शिक्षक,डाक्टर इत्यादि बनाना पे बैक टू सोसाइटी है.बाबा साहेब के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए लगे हुए मिशनरियों को मदद देना असली पे बैक टू सोसाइटी है ——
—— आप जो पोजिशन पर है आपका फर्ज बनता है कि मेरे समाज का हर बच्चा उस पोजिशन पर पहुंचे यह पे बैक टू सोसाइटी है,अतः हम पढे-लिखे, नौकरीपेशा समाज से अपील करते हैं कि आप अपने उपर लगे धोखेबाज के लेबल को उतारने की कोशिश करें आपने ग़ैर-भाई बहनों के पास जाओ,उनकी ऊपर उठने में मदद करें,अपने उद्योग धंधे, व्यापार आदि शुरू करें, अपने आप को बेरोजगार बहुजनों के लिए रोजगार की व्यवस्था करें,अपना व्यवसाय शुरू करें, अपने समाज का पैसा अपने समाज में रोकें ——
 —— प्रयत्न करें,जब तक बाबा साहेब का पे बैक टू सोसाइटी  का सिद्धांत लागू नहीं होगा तब तक देश से गरीबी नहीं मिटेगी ——
——  साभार-: बहुजन समाज और उसकी राजनिति,मेरे संघर्षमय जीवन एवं बहुजन समाज का मूवमेंट {संदर्भ- सलेक्टेड ऑफ डाँ अम्बेडकर – लेखक डी.सी. अहीर पृष्ठ क्रमांक 110 से 112 तक के भाषण का हिन्दी अनुवाद), श्री गुरु रविदास जन-जागृति एवं शिक्षा समिति,(राजी),दलित दस्तक ,समय बुद्धा,,पुस्तक-'डॉ.बाबासाहेब अंबेडकर के महत्वपूर्ण संदेश एवं विद्वत्तापूर्ण कथन' के थर्ड कवर पृष्ठ से,लेखक-नानकचंद रत्तू-अनुवादक-गौरव कुमार रजक, अंकित कुमार गौतम,संपादन-अमोल वज्जी,प्रकाशक-डी के खापर्डे मेमोरियल ट्रस्ट (पब्लिकेशन डिवीजन)527ए, नेहरू कुटिया, निकट अंबेडकर पार्क, कबीर बस्ती, मलका गंज, नई दिल्ली -07, विकिपीडिया} ——
 —"शहादत की कभी न बुझने वाली मशाल अमर शहीद सरदार ऊधमसिंह के चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं —
— साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए आधुनिक भारत के निर्माता बाबासाहेब अम्बेडकर जी ने वह कर दिखाया जो उस दौर में सोच पाना भी मुश्किल था —  
— साथियों आज हमें अगर कहीं भी खड़े होकर अपने विचारों की अभिव्यक्ति करने की आजादी है,समानता का अधिकार है तो यह सिर्फ और सिर्फ परमपूज्य बाबासाहेब आंबेडकर जी के संघर्षों से मुमकिन हो सका है.भारत वर्ष का जनमानस सदैव बाबा साहेब डा भीमराव अंबेडकर जी का कृतज्ञ रहेगा.इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी बात खत्म करता हूं। सामाजिक न्याय के पुरोधा तेजस्वी क्रांन्तिकारी शख्शियत परमपूज्य बोधिसत्व भारत रत्न बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं 
      — जिसने देश को दी नई दिशा””…जिसने आपको नया जीवन दिया वह है आधुनिक भारत के निर्माता बाबा साहेब अम्बेडकर जी का संविधान —
  — सच  अक्सर कड़वा लगता है। इसी लिए सच बोलने वाले भी अप्रिय लगते हैं। सच बोलने वालों को इतिहास के पन्नों में दबाने का प्रयास किया जाता है, पर सच बोलने का सबसे बड़ा लाभ यही है, कि वह खुद पहचान कराता है और घोर अंधेरे में भी चमकते तारे की तरह दमका देता है। सच बोलने वाले से लोग भले ही घृणा करें, पर उसके तेज के सामने झुकना ही पड़ता है ! इतिहास के पन्नों पर जमी धूल के नीचे ऐसे ही बहुजन महापुरुषों का गौरवशाली इतिहास दबा है —
     ―मां कांशीराम साहब जी ने एक एक बहुजन नायक को बहुजन से परिचय कराकर, बहुजन समाज के लिए किए गए कार्य से अवगत कराया सन 1980 से पहले भारत के  बहुजन नायक भारत के बहुजन की पहुँच से दूर थे,इसके हमें निश्चय ही मान्यवर कांशीराम साहब जी का शुक्रगुजार होना चाहिए जिन्होंने इतिहास की क्रब में दफन किए गए बहुजन नायक/नायिकाओं के व्यक्तित्व को सामने लाकर समाज में प्रेरणा स्रोत जगाया ——
   ―इसका पूरा श्रेय मां कांशीराम साहब जी को ही जाता है कि उन्होंने जन जन तक गुमनाम बहुजन नायकों को पहुंचाया, मां कांशीराम साहब के बारे में जान कर मुझे भी लगा कि गुमनाम बहुजन नायकों के बारे में लिखा जाए !
   —— ऐ मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय ज्ञान,पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो ——
      —―साथियों एक बात याद रखना आज करोड़ों लोग जो बाबासाहेब जी,माँ रमाई के संघर्षों की बदौलत कमाई गई रोटी को मुफ्त में बड़े चाव और मजे से खा रहे हैं ऐसे लोगों को इस बात का अंदाजा भी नहीं है जो उन्हें ताकत,पैसा,इज्जत,मान-सम्मान मिला है वो उनकी बुद्धि और होशियारी का नहीं है बाबासाहेब जी के संघर्षों की बदौलत है ——
      —– साथियों आँधियाँ हसरत से अपना सर पटकती रहीं,बच गए वो पेड़ जिनमें हुनर लचकने का था ——
       ―तमन्ना सच्ची है,तो रास्ते मिल जाते हैं,तमन्ना झूठी है,तो बहाने मिल जाते हैं,जिसकी जरूरत है रास्ते उसी को खोजने होंगें निर्धनों का धन उनका अपना संगठन है,ये मेरे बहुजन समाज के लोगों अपने संगठन अपने झंडे को मजबूत करों शिक्षित हो संगठित हो,संघर्ष करो !
      ―साथियों झुको नही,बिको नहीं,रुको नही, हौसला करो,तुम हुकमरान बन सकते हो,फैसला करो हुकमरान बनो"
       ―सम्मानित साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए !
        ―सभी अम्बेडकरवादी भाईयों, बहनो,को नमो बुद्धाय सप्रेम जयभीम! सप्रेम जयभीम !!
             ―बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर  जी ने कहा है जिस समाज का इतिहास नहीं होता, वह समाज कभी भी शासक नहीं बन पाता… क्योंकि इतिहास से प्रेरणा मिलती है, प्रेरणा से जागृति आती है, जागृति से सोच बनती है, सोच से ताकत बनती है, ताकत से शक्ति बनती है और शक्ति से शासक बनता है !”
        ― इसलिए मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर आप लोगो को इतिहास के उन पन्नों से रूबरू कराने की कोशिश कर रहा हूं जिन पन्नों से बहुजन समाज का सम्बन्ध है जो पन्ने गुमनामी के अंधेरों में खो गए और उन पन्नों पर धूल जम गई है, उन पन्नों से धूल हटाने की कोशिश कर रहा हूं इस मुहिम में आप लोगों मेरा साथ दे, सकते हैं !
           ―पता नहीं क्यूं बहुजन समाज के महापुरुषों के बारे कुछ भी लिखने या प्रकाशित करते समय “भारतीय जातिवादी मीडिया” की कलम से स्याही सूख जाती है —
— इतिहासकारों की बड़ी विडम्बना ये रही है,कि उन्होंने बहुजन नायकों के योगदान को इतिहास में जगह नहीं दी इसका सबसे बड़ा कारण जातिगत भावना से ग्रस्त होना एक सबसे बड़ा कारण है इसी तरह के तमाम ऐसे बहुजन नायक हैं,जिनका योगदान कहीं दर्ज न हो पाने से वो इतिहास के पन्नों में गुम हो गए —
     ―उन तमाम बहुजन नायकों को मैं अमित गौतम जंनपद   रमाबाई नगर,कानपुर कोटि-कोटि नमन करता हूं !
जय रविदास
जय कबीर
जय भीम
जय नारायण गुरु
जय सावित्रीबाई फुले
जय माता रमाबाई अम्बेडकर जी
जय ऊदा देवी पासी जी
जय झलकारी बाई कोरी
जय बिरसा मुंडा
जय बाबा घासीदास
जय संत गाडगे बाबा
जय पेरियार रामास्वामी नायकर
जय छत्रपति शाहूजी महाराज
जय शिवाजी महाराज
जय काशीराम साहब
जय मातादीन भंगी जी
जय कर्पूरी ठाकुर 
जय पेरियार ललई सिंह यादव
जय मंडल
जय हो उन सभी गुमनाम बहुजन महानायकों की जिंन्होने अपने संघर्षो से बहुजन समाज को एक नई पहचान दी,स्वाभिमान से जीना सिखाया !    
              अमित गौतम
             युवा सामाजिक
                कार्यकर्ता         
              बहुजन समाज
  जंनपद-रमाबाई नगर कानपुर
           सम्पर्क सूत्र-9452963593






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