बहुजन जननायक अमर शहीद गुंडाधुर

             
  
     — बुमकाल विद्रोह 1910 के प्रणेता बहुजन जननायक अमर शहीद महान स्वतंत्रता सेनानी वीर शहीद गुंडाधुर के शहादत दिवस  शत्-शत् नमन एंव विनम्र श्रद्धांजलि —
—  Gundadhur" Freedom Fighter Of Bastr —
 — साथियों आवो आज आप लोगों को बहुजन समाज के ऐसे क्रांतिकारी अमर शहीद योद्धा से परिचय कराते हैं जो गुमनामी के अंधेरे में खो गए आज उनको याद करते हैं वो नाम है भूमकाल विद्रोह 1910,महान बुमकाल प्रणेता बहुजन जननायक महान स्वतंत्रता सेनानी गुंडा धुर —
      ― जब जरूरत थी चमन को तो लहू हमने दिया,अब बहार आई तो कहते हैं तेरा काम नहीं —
— साथियों बस्तर की कहानी अधूरी रह जायेगी यदि ज़िक्र न किया भूमकाल के महानायक गुंडाधुर का गुण्डाधुर ....यानी
बस्तर में अंग्रेज़ों के छक्के छुड़ाने वाला लंगोटीधारी एक धुरवा आदिवासी —

— आदिवासी जननायक गुंडाधुर-वह आदिवासी अमर शहीद जिसने ब्रिटिश सरकार,सामंतवादी ताकतों से लड़ी जल, जंगल और ज़मीन की दावेदारी की लड़ा —
        “ बस्तर की माटी का वीर सपूत जिसने अपनी वीरता और पराक्रम से अंग्रेजों और ब्रिटिश अधिकारियों के साथ साथ तत्कालिक  शासकों को दहशत और भय से परिचित कराया उस भूमकाल के जननायक से बस्तर आज भी गौरवान्वित होती है”
    — छत्तीसगढ़ में गुण्डाधुर स्मृति में साहसिक कार्य एवं खेल क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए गुण्डाधुर सम्मान स्थापित किया गया है —
— एक आदिवासी जननायक युवा महान गुण्डाधुर की कहानी सामने रख मैं गर्व से कहता हूँ की हाँ मैं भारतीय हूँ —
 — भारत की आज़ादी में महान क्रांतिकारी गुंडाधुर का अतुलनीय योगदान रहा है 1910 में अंग्रेजों के खिलाफ छत्तीसगढ़ के बस्तर में भूमकाल’ विद्रोह में इस गुंडा’ वीर ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे
— आइये इस लेख के माध्यम से जानते हैं गुंडा धुर कौन था ? वीर गुंडा से अंग्रेजी हुकूमत हैरान - परेशान । 
 — साथियों गुंडा’’ आदिवासी मूल का शब्द है, जिसे अंग्रेजी शब्दकोश ने भी स्वीकार किया है ऐसे महान शख्सियत गुंडाधुर को शत्-शत् नमन एंव विनम्र श्रद्धांजलि —
— सम्मानित साथियों क्या आप लोगों को पता है अमर शहीद गुंडाधुर के नाम पर बाद में अंग्रेजों ने बनाया था गुंडा एक्ट  —
— गुंडा शब्द को बदमाश से जोडना गलत है गुंडा एक महान क्रांतिकारी थे उनके योगदान को झुठलाया नहीं जा सकता है —
    — गुंडा धुर नेतानार ग्राम, बस्तर के एक वीर आदिवासी क्रन्तिकारी थे जिन्होंने 1910 के भूमकाल आंदोलन में एक अहम् भूमिका निभाई। गुंडा धुर के नेतृत्व में आदिवासियों ने अंग्रेजो के खिलाफ एक मिसाल कायम करने वाला विद्रोह किया। 1910 में अंग्रेजी शासन ने कांगेर जंगल के दो तिहाई हिस्से को आरक्षित वन घोषित करने का प्रस्ताव रखा और साथ ही पोडू (shifting cultivation) खेती, जंगल में शिकार तथा वन उत्पादों को लेने पर पाबन्दी लगायी। इस योजना से क्षेत्र के आदिवासियों की जीविका और जीवन प्रभावित होते, साथ ही उन्हें विस्थापित किया जाता —
— साथियों इसके साथ ही उसी समय में बस्तर का यह क्षेत्र भयानक अकाल से प्रभावित हुआ, जिसने विद्रोह को आवश्यक बना दिया। इस कारण, गुंडा धुर के नेतृत्व वाले इस आंदोलन ने ज़मींदारो और ब्रिटिश शासन के शोषण के खिलाफ भी विरोध छेड़ा। ब्रिटिश शासन को इस आंदोलन को काबू करने में महीनो लगे,  लेकिन गुंडा धुर कभी भी उनके हाथ नहीं आये। इस आंदोलन के फलस्वरूप अरक्षित वन का प्रस्ताव उसी समय रद्द कर दिया गया और बाद में उसके प्रस्तावित क्षेत्र को घटा कर आधा कर दिया गया। गुंडा धुर की बहादुरी की कहानियां आज भी कहानियों और लोक गीतों में मिलती है —


    — साथियों भाषावैज्ञानिकों ने बगैर सोचे - समझे बता दिए हैं कि बदमाश के अर्थ में गुंडा पश्तो भाषा का शब्द है। यदि गुंडा पश्तो भाषा का शब्द होता तो इसका सर्वाधिक प्रयोग शेरशाह और उनके उत्तराधिकारियों के समय में मिलता। कारण कि वे अफगान थे और पश्तो अफगानिस्तान की ही भाषा है उर्दू में पश्तो के भी शब्द शामिल हैं। यदि गुंडा पश्तो भाषा का शब्द होता तो वली, आबरू, हातिम, सौदा, मीर, मोमिन से लेकर गालिब और दाग तक कोई न कोई उर्दू का कवि गुंडा का इस्तेमाल जरूर करता। मगर ऐसा है नहीं —


— हिंदी में 1910 से पहले बदमाश के अर्थ में गुंडा का प्रचलन नहीं था। संत शिरोमणि रविदास जी महाराज,संत कबीर,सूर, तुलसी से लेकर बिहारी और भारतेंदु तक किसी ने गुंडा शब्द का प्रयोग नहीं किया। 1930 के दशक में जयशंकर प्रसाद ने गुंडा कहानी लिखी थी,जिसमें नायकत्व का भाव है —
— अंग्रेजी अखबारों में गुंडा का प्रचलन 1920 के आस-पास हुआ-अंग्रेजी साहित्य में इसका प्रयोग 1925 - 30 के बीच में मिलता है
— गुंडा मूलतः द्रविड़ भाषा का शब्द है,जिसकी परंपरा पुरानी है। इसमें उभार, गोलाई या नायकत्व का भाव है। गुंडा का प्रयोग दक्षिण में धड़ल्ले से मिलेगा। तीनों भाव में मिलेगा। तमिल में गुंडा एक ताकतवर नायक का अर्थ देता है जैसे गुंडराव, गुंडराज आदि। तेलुगु में भी बतौर नायक गुंडूराव मौजूद है। मराठी में गाँवगुंड ग्राम नायक का अर्थ देता है —
—  साथियों सही बात यह है कि छत्तीसगढ़ के बस्तर के एक छोटे से गाँव नेतानार में पले - बढ़े गुंडा धुर ने 1910 में अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने और उन्हें इस कदर तंग तथा तबाह किए कि अंग्रेजी फाइलों में गुंडा का एक अर्थ बदमाश हो गया। यह गुंडा धुर की ताकत थी —
आदिवासियों के इस वीर नायक पर नंदिनी सुंदर की पेंग्विन बुक्स इंडिया द्वारा प्रकाशित एक किताब आई है-”गुंडा धुर की तलाश में’’। लेखिका ने लिखा है कि जब वे गुंडा धुर के बारे में पूछते गाँव-गाँव घूम रही थीं तब उन्हें उनके सवालों के बहुत कम जवाब मिले। ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य सरकार के आदिवासी कल्याण विभाग के अलावा किसी को भी उनके बारे में सटीक जानकारी नहीं थी —
          — ‘सरकार ने स्वतंत्रता सेनानी के रूप में उनकी जो मूर्ति बनाई थी, मुझे उसमें विडंबना और आत्मसातीकरण तो नजर आया, लेकिन गुंडा धुर कहीं दिखाई नहीं दिया’, वे लिखतीं हैं। भारत के कोशकारों ने अंग्रेजों का अनुगमन करके ”गुंडा’’ का अर्थ ”बदमाश’’ कर दिया है। 
       —  साथियों अब भारतीय कोशकारों की जिम्मेदारी है कि अंग्रेजों द्वारा प्रयुक्त ”बदमाश’’ के अर्थ में ”गुंडा’’ शब्द को डिक्शनरी से बाहर करके, ”वीर स्वतंत्रता सेनानी’’ के अर्थ में उसे प्रचलित करें। ”बदमाश’’ के अर्थ में ”गुंडा’’ शब्द एक बहुजन स्वतंत्रता सेनानी का अपमान है —
— साथियों अंग्रेज सरकार आखिर तक नहीं पता लगा सकी यह जादुई योद्धा था कौन —
    — आजादी के लिए अंग्रेजों से संघर्ष में आदिवासी योद्धाओं का अहम रोल रहा। ऐसे ही एक आदिवासी नायक हुए थे- गुंडाधूर। 1910 में बस्तर में हुए भूमकाल आंदोलन के नेताओं में गुंडाधूर ही एक ऐसे क्रांतिकारी थे जिसे अंग्रेजी सरकार जिंदा या मुर्दा पकड़ने में नाकामयाब रही —
— अमर शहीद गुंडाधूर के बारे में अंग्रेजों की फाइल को इस टिप्पणी के साथ बंद कर दिया गया कि 'कोई यह बताने में समर्थ नहीं है कि गुंडाधुर कौन था’। बस्तर में गुंडाधूर के बारे में अब भी किवंदती प्रचलित हैं कि उसके पास चमत्कारिक शक्तियां थीं, वह मंत्र से अंग्रेजों की गोलियों को पानी बना देता था। 'सुपरहीरो' जैसी इमेज वाले इस महान आदिवासी देशभक्त को 'बस्तर का रॉबिनहुड' भी कहा जाता है —

   — भूमकाल विद्रोह अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ किए गए नौ विद्रोहों कुचले जाने से आदिवासी जनता बहुत गुस्से में थी। ऐसे ही समय 1891 में अंग्रेज शासन ने बस्तर का प्रशासन पूरी तरह अपने हाथ में लेते हुए तत्कालीन राजा रूद्र प्रताप देव के चाचा लाल कालेन्द्र सिंह को दीवान के पद से हटाकर पंडा बैजनाथ को बस्तर का प्रशासक नियुक्त कर दिया। लोकप्रिय दीवान कालेन्द्र सिंह को पद से हटाया जाना आदिवासियों को नागवार गुजरा। दूसरी तरफ, पंडा बैजनाथ के बनाए गए मास्टर प्लान के मुताबिक जगदलपुर का विकास करने के दौरान आदिवासियों पर अंग्रेजों ने जमकर जुल्म ढाए। अनिवार्य शिक्षा के नाम पर आदिवासियों के बच्‍चों को जबरन स्कूल में लाया जाना, सुरक्षित जंगल के नियम के तहत आदिवासियों को उनके ही जल-जंगल-जमीन से दूर किया जाना जैसे जुल्म और विरोध करने पर बेदम पिटाई व जेल में डाल देना, अंग्रेजों की ये नीतियां आदिवासियों को नागवार गुजरी —
— अंग्रेजों के खिलाफ इसी आक्रोश को आग को हवा देते हुए लाल कालेन्द्र सिंह ने मुरिया, मारिया और धुरवा आदिवासियों को सीधी लड़ाई के लिए तैयार किया और मारिया जनजाति के नेता बीरसिंह बेदार और धुरवा जनजाति के नेता गुंडाधुर को विद्रोह का नेतृत्व सौंप दिया। बाहरियों के खिलाफ मूलवासियों का यही विद्रोह इतिहास में भूमकाल आंदोलन के नाम से प्रसिद्ध हुआ। ‘गुंडाधूर अंग्रेजों की गोली को पानी बना देगा’ —
       — बेहद प्रभावशाली शख्सियत वाले गुंडाधुर ने आदिवासियों को संगठित करना शुरू कर दिया। गुंडाधूर ने इस क्रांति का प्रतीक आम की डाल पर लाल मिर्च को बांध कर तैयार किए गए ‘डारा मिरी’ को बनाया। कुछ इतिहासकारों के मुताबिक क्रांति के प्रतीक के रूप में गुंडाधूर की कटार को पूरे बस्तर में घुमाया गया। जहां वह कटार जाता था जन समूह गूंडाधूर के समर्थन में जुट जाता था —
   — अद्भुत संगठन क्षमता वाले गुंडाधुर ने पूरी बस्तर रियासत की यात्रा की। यह नायक जहां जाता उसका स्वागत किसी देवदूत के आगमन जैसा होता। वह बिना थके अपना काम करता रहा, किसी ने उसके तेजस्वी चेहरे पर थकान नहीं देखी। उसकी कीर्ति ऐसी फैली कि उसके बारे में कई अविश्वसनीय किवंदतियां चल पड़ीं, जैसे- गुंडाधूर को उड़ने की शक्ति प्राप्त है —
—अमर शहीद गुण्डाधुर के पास पूंछ है; वह जादुई शक्तियों का स्वामी है; जब अंग्रेज बंदूक चलाएंगे तो गुंडाधूर अपने मंत्र से गोली को पानी बना देगा —
— 75 दिनों का खूनी संघर्ष —
      — साथियों 25 जनवरी को यह तय हुआ कि विद्रोह करना है और 2 फरवरी 1910 को पुसपाल बाजार की लूट से विद्रोह शुरू हो गया। इस प्रकार मात्र आठ दिनों में गुंडाधूर और उसके साथियों ने इतना बड़ा संघर्ष करके मानो चमत्कार ही कर दिखाया। 7 फरवरी को बस्तर के तत्कालीन राजा रुद्र प्रताप देव ने सेंट्रल प्राविंस के चीफ कमिश्नर को तार भेजकर विद्रोह की जानकारी दी और तत्काल सहायता की मांग की। विद्रोह इतना ताकतवर था कि था कि सेंट्रल प्रोविन्स के 200 सिपाही, मद्रास प्रेसिडेंसी के 150 सिपाही, पंजाब बटालियन के 170 सिपाही भेजे गए —
    — 16 फरवरी से तीन मई 1910 तक ये टुकड़ियां विद्रोह के दमन में लगी रहीं। 75 दिनों तक बस्तर के विद्रोहियों और आम आदिवासियों पर कहर बरपाया गया। नेतानार के आसपास के 65 गांवों से आये बलाइयों के शिविर को 26 फरवरी को अहले सुबह घेरकर 511 आदिवासियों को पकड़ लिया गया। नेतानार के पास अलनार के जंगल में हुए 26 मार्च के संघर्ष में 21 आदिवासी मारे गये। यहां आदिवासियों ने अंग्रेजी टुकड़ी पर इतने तीर चलाए कि सुबह तीर ही तीर नजर आ रहे थे —
       — साथियों अलनार की इस लड़ाई के दौरान ही आदिवासियों ने अपने जननायक गुंडाधूर को युद्ध क्षेत्र से हटा दिया, जिससे वह जीवित रह सके और भविष्य में पुन: विद्रोह का संगठन कर सके। ऐतिहासिक सबूत मिलते हैं कि 1912 के आसपास फिर लोगों को सांकेतिक भाषा में संघर्ष के लिए तैयार करने की कोशिश की गई थी —
      — गौरतलब है कि 1910 के विद्रोही नेताओं में गुंडाधूर ही न तो मारा जा सका और न अंग्रेजों की पकड़ में आया। गुंडाधुर के बारे में अंग्रेज सरकार की फाइल इस टिप्पणी के साथ बंद हो गई, "कोई यह बताने में समर्थ नहीं है कि गुंडाधुर कौन था? कुछ के अनुसार पुचल परजा और कुछ के अनुसार कालेन्द्र सिंह ही गुंडाधुर थे। बस्तर का यह जननायक अपनी विलक्षण प्रतिभा के कारण इतिहास में सदैव महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त करता रहेगा —
— साथियों बस्तर के शहीद गुंडाधुर,जिनके डर से अंग्रेज जा छि‍पे थे गुफाओं में —
— छत्तीसगढ़ के बस्तर के एक छोटे से गांव में पले-बढ़े गुंडाधुर ने अंग्रेजों को इस कदर परेशान किया था कि कुछ समय के लिए अंग्रेजों को गुफाओं में छिपना पड़ा था.अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाला ये क्रांतिकारी आज भी बस्तर के लोगों में जिंदा है —
— बहरहाल, बस्तर के इस माटीपुत्र को तरजीह देने के लिए राज्य सरकार खेल प्रतिभाओं को उनके नाम पर पुरस्कृत करती है. तीरंदाजी के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए खिलाड़ियों को शहीद गुंडाधुर अवार्ड से सम्मानित किया जाता है — 
— लेकिन इसके बावजूद शहीद गुंडाधुर को जो दर्जा मिलना चाहिए, उसकी दरकार आज भी है. कोशिश यही होनी चाहिए कि ऐसे वीर क्रांतिकारियों के बलिदान को अपनी पहचान के लिए संघर्ष न करना पड़े —
साभार-पुस्तक : गुंडा धुर की तलाश में
लेखिका : नंदिनी सुंदर
प्रकाशक : पेंगुइन बुक्स इंडिया, यात्रा बुक्स
मूल्य : 250 रुपए
      —  सच अक्सर कड़वा लगता है। इसी लिए सच बोलने वाले भी अप्रिय लगते हैं सच बोलने वालों को इतिहास के पन्नों में दबाने का प्रयास किया जाता है,पर सच बोलने का सबसे बड़ा लाभ यही है,कि वह खुद पहचान कराता है और घोर अंधेरे में भी चमकते तारे की तरह दमका देता है। सच बोलने वाले से लोग भले ही घृणा करें, पर उसके तेज के सामने झुकना ही पड़ता है। इतिहास के पन्नों पर जमी धूल के नीचे ऐसे ही आदिवासी जननायक अमर शहीद गुंडाधुर का नाम दबा है —
     ―मां कांशीराम साहब जी ने एक एक बहुजन नायक को बहुजन से परिचय कराकर, बहुजन समाज के लिए किए गए कार्य से अवगत कराया सन 1980 से पहले भारत के  बहुजन नायक भारत के बहुजन की पहुँच से दूर थे,इसके हमें निश्चय ही मान्यवर कांशीराम साहब जी का शुक्रगुजार होना चाहिए जिन्होंने इतिहास की क्रब में दफन किए गए बहुजन नायक/नायिकाओं के व्यक्तित्व को सामने लाकर समाज में प्रेरणा स्रोत जगाया !
   ―इसका पूरा श्रेय मां कांशीराम साहब जी को ही जाता है कि उन्होंने जन जन तक गुमनाम बहुजन नायकों को पहुंचाया, मां कांशीराम साहब के बारे में जान कर मुझे भी लगा कि गुमनाम बहुजन नायकों के बारे में लिखा जाए !
          ―ऐ मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय ज्ञान,पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो !
 ― तुम्हारें अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए मैं दुबारा नहीं आऊंगा,ये क्रांति का रथ संघर्षो का कारवां ,जो मैं बड़े दुखों,कष्टों को सहकर यहाँ तक ले आया हूँ,अब आगे तुम्हे ही ले जाना है ―
      ―साथियों एक बात याद रखना आज करोड़ों लोग जो बाबासाहेब जी,माँ रमाई के संघर्षों की बदौलत कमाई गई रोटी को मुफ्त में बड़े चाव और मजे से खा रहे हैं ऐसे लोगों को इस बात का अंदाजा भी नहीं है जो उन्हें ताकत,पैसा,इज्जत,मान-सम्मान मिला है वो उनकी बुद्धि और होशियारी का नहीं है बाबासाहेब जी के संघर्षों की बदौलत है !
       ―साथियों आँधियाँ हसरत से अपना सर पटकती रहीं,बच गए वो पेड़ जिनमें हुनर लचकने का था !
 ―तमन्ना सच्ची है,तो रास्ते मिल जाते हैं,तमन्ना झूठी है,तो बहाने मिल जाते हैं,जिसकी जरूरत है रास्ते उसी को खोजने होंगें 
निर्धनों का धन उनका अपना संगठन है,ये मेरे बहुजन समाज के लोगों अपने संगठन अपने झंडे को मजबूत करों शिक्षित हो संगठित हो,संघर्ष करो !
―साथियों झुको नही,बिको नहीं,रुको नही, हौसला करो,तुम हुकमरान बन सकते हो,फैसला करो हुकमरान बनो"
       ―सम्मानित साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए !
        ―सभी अम्बेडकरवादी भाईयों, बहनो,को नमो बुद्धाय सप्रेम जयभीम! सप्रेम जयभीम —
              ―बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर  जी ने कहा है जिस समाज का इतिहास नहीं होता, वह समाज कभी भी शासक नहीं बन पाता… क्योंकि इतिहास से प्रेरणा मिलती है, प्रेरणा से जागृति आती है, जागृति से सोच बनती है, सोच से ताकत बनती है, ताकत से शक्ति बनती है और शक्ति से शासक बनता है !”
        ― इसलिए मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर आप लोगो को इतिहास के उन पन्नों से रूबरू कराने की कोशिश कर रहा हूं जिन पन्नों से बहुजन समाज का सम्बन्ध है जो पन्ने गुमनामी के अंधेरों में खो गए और उन पन्नों पर धूल जम गई है, उन पन्नों से धूल हटाने की कोशिश कर रहा हूं इस मुहिम में आप लोगों मेरा साथ दे, सकते हैं !
           ―पता नहीं क्यूं बहुजन समाज के महापुरुषों के बारे कुछ भी लिखने या प्रकाशित करते समय “भारतीय जातिवादी मीडिया” की कलम से स्याही सूख जाती है !.इतिहासकारों की बड़ी विडम्बना ये रही है,कि उन्होंने बहुजन नायकों के योगदान को इतिहास में जगह नहीं दी इसका सबसे बड़ा कारण जातिगत भावना से ग्रस्त होना एक सबसे बड़ा कारण है इसी तरह के तमाम ऐसे बहुजन नायक हैं,जिनका योगदान कहीं दर्ज न हो पाने से वो इतिहास के पन्नों में गुम हो गए !
     ―उन तमाम बहुजन नायकों को मैं अमित गौतम जंनपद   रमाबाई नगर,कानपुर कोटि-कोटि नमन करता हूं !
जय रविदास
जय कबीर
जय भीम
जय नारायण गुरु
जय सावित्रीबाई फुले
जय माता रमाबाई अम्बेडकर जी
जय ऊदा देवी पासी जी
जय झलकारी बाई कोरी
जय बिरसा मुंडा
जय बाबा घासीदास
जय संत गाडगे बाबा
जय पेरियार रामास्वामी नायकर
जय छत्रपति शाहूजी महाराज
जय शिवाजी महाराज
जय काशीराम साहब
जय मातादीन भंगी जी
जय कर्पूरी ठाकुर 
जय पेरियार ललई सिंह यादव
जय मंडल
जय हो उन सभी गुमनाम बहुजन महानायकों की जिंन्होने अपने संघर्षो से बहुजन समाज को एक नई पहचान दी,स्वाभिमान से जीना सिखाया !
              
              अमित गौतम
             युवा सामाजिक
                कार्यकर्ता         
              बहुजन समाज
  जंनपद-रमाबाई नगर कानपुर
           सम्पर्क सूत्र-9452963593

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