बहुजन जननायक ,1857 की जंगे आजादी के महासंग्राम के महान क्रांतिकारी आजादी के जननायक राबिन हुड टंटैया भील के शहादत दिवस पर शत्-शत् नमन
4,दिसम्बर,1889
वो थे इसलिए आज हम हैं
इतिहास के पन्नों से
— Tale Of Indian Robin Hood,Tantya Bhil —
—— जिन्हें हमारे समाज ने भुला दिया क्रांतिदूत
बहुजन,आदिवासी समाज की शान,1857 की जंगे आजादी के महासंग्राम के महान क्रांतिकारी आजादी के जननायक राबिन हुड टंटैया भील के शहादत दिवस पर शत्-शत् नमन एंव विनम्र श्रद्धांजलि ——
— जब जरूरत थी चमन को तो लहू हमने दिया,अब बहार आई तो कहते हैं तेरा काम नहीं —
—— मध्यप्रदेश का जननायक टंट्या भील आजादी के आंदोलन के उन महान नायकों में शामिल है जिन्होंने आखिरी साँस तक फिरंगी सत्ता की ईंट से ईंट बजाने की मुहिम जारी रखी थी गुरिल्ला युद्ध के इस महारथी ने 19वीं सदी के उत्तरार्ध में लगातार 15 साल तक अंग्रेजों के दाँत खट्टे करने के लिए अभियान चलाया। अंग्रेजों की नजर में वह डाकू और बागी था क्योंकि उसने उनके स्थापित निजाम को तगड़ी चुनौती दी थी ——
—— साथियों क्या आप लोगों को पता है गणतंत्र दिवस परेड 2009 में मध्यप्रदेश की झाकी इंडियन राॉबिनहुड जननायक टंटया भील ने राजपथ की शोभा बढ़ाई। जनसंपर्क विभाग मध्य प्रदेश के लिये इस झाँकी का निर्माण मेसर्स आरएस भटनागर एण्ड संस नई दिल्ली के द्वारा किया गया था ——
—— 1857 के विद्रोह में जिन अनेक देशभक्तों ने कुर्बानियां दी थी, उन्हीं में से एक प्रमुख्य नाम है आदिवासी टंट्या मामा आजादी के इतिहास में उनका जिक्र भले ही ज्यादा न हो मगर वह मध्य प्रदेश में मालवा और निमाड़ अंचल के आदिवासियों के लिए आज भी किसी देवता से कम नहीं है आवो उन्हें हम याद करते हैं उनके शहादत दिवस पर शत्-शत् नमन एंव विनम्र श्रद्धांजलि ——
—— यहां गाया जाता है चरित्र ——
—— अमर शहीद,क्रांतिदूत टंटया मामा की सबसे अधिक गाथाएं निमाड़ अंचल में रची गईं। मालवी, मराठी, गुजराती, राजस्थानी आदि में भी टंट्या भील का चरित्र गाया जाता है। टंट्या भील आज भले ही हमारे बीच न हों पर उनकी बातें आज भी होती हैं उनके किस्से आज भी लोगों को रोमांचित करते हैं ——
—— आदिवासी जननायक टंटैया मामा भील का जीवन परिचय ——
—— खंडवा जिले की पंधाना तहसील के बडदा में 1842 में भाऊसिंह के यहाँ एक बालक ने जन्म लिया, जो अन्य बच्चो से दुबला-पतला था | निमाड में ज्वार के पौधे को सूखने के बाद लंबा, ऊँचा, पतला होने पर ‘तंटा’ कहते है इसीलिए ‘टंट्या’ कहकर पुकारा जाने लगा टंट्या की माँ बचपन में उसे अकेला छोड़कर स्वर्ग सिधार गई | भाऊसिंह ने बच्चे के लालन-पालन के लिए दूसरी शादी भी नहीं की | पिता ने टंट्या को लाठी-गोफन व तीर-कमान चलाने का प्रशिक्षण दिया | टंट्या ने धर्नुविद्या में दक्षता हासिल कर ली,लाठी चलाने और गोफन कला में भी महारत प्राप्त कर ली | युवावस्था में उसे पारिवारिक बंधनों में बांध दिया गया | कागजबाई से उनका विवाह कराकर पिता ने खेती-बाड़ी की जिम्मेदारी उसे सौप दी | टंट्या की आयु तीस बरस की हो चली थी, वह गाँव में सबका दुलारा था, युवाओ का अघोषित नायक था | उसका व्यवहार कुशलता और विन्रमता ने उसे लोकप्रिय बना दिया ——
—— अंग्रेज 'इंडियन रॉबिनहुड' तो भारतीय कहते थे 'टंट्या मामा'——
—— टंट्या भील वो शख्सियत थे,अंग्रेजी दमन को ध्वस्त करने वाली जिद तथा संघर्ष की मिसाल की मिशाल कायम की थी जननायक टंट्या ने अंग्रेजी हुकूमत , जमींदार द्वारा ग्रामीण जनता के शोषण और उनके मौलिक अधिकारों के साथ हो रहे अन्याय-अत्याचार की खिलाफत की सबसे बड़ी बात यह है कि स्वयं प्रताड़ित अंग्रेजों की सत्ता ने जननायक टंट्या को “इण्डियन रॉबिनहुड’’ का खिताब दिया ——
—— जंन्मस्थान-खंडवा जिले की पंधाना तहसील के बडदा (मध्य प्रदेश)में सन 1842 में ——
—— द न्यूयार्क टाइम्स के 10 नवंबर 1889 के अंक में टंट्या भील की गिरफ्तारी की खबर प्रमुखता से प्रकाशित हुई थी। इसमें टंट्या भील को इंडिया का रॉबिनहुड बताया गया था। टंट्या भील अंग्रेजों का सरकारी खजाना और अंग्रेजों के चाटूकारों का धन लूटकर जरूरत मंदों और गरीबों में बांट देते थे। वह गरीबों के मसीहा थे। वह अचानक ऎसे समय लोगों की सहायता के लिए पहुंच जाते थे, जब किसी को आर्थिक सहायता की जरूरत होती थी। वह गरीब-अमीर का भेद हटाना चाहते थे। वह छोटे-बड़े सबके मामा थे। टंट्या भील को टंट्या मामा के नाम से भी जाना जाता है। उनके लिए मामा संबोधन इतना लोकप्रिय हो गया कि प्रत्येक भील आज भी अपने आपको मामा कहलाने में गौरव का अनुभव करता है ——
—— स्वाधीनता के स्वर्णिम अतीत में जाँबाजी का एक नाम है इंडियन राबिनहुड टंट्या भील ——
——आदिवासी जननायक,महान क्रांतिकारी अमर शहीद योद्धा टंट्या भील वो शख्सियत थे,अंग्रेजी दमन को ध्वस्त करने वाली जिद तथा संघर्ष की मिशाल कायम की थी जननायक टंट्या ने अंग्रेजी हुकूमत , जमींदार द्वारा ग्रामीण जनता के शोषण और उनके मौलिक अधिकारों के साथ हो रहे अन्याय-अत्याचार की खिलाफत की ——
——साथियों इतिहासविद् और रीवा के अवधेशप्रताप सिंह विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एसएन यादव कहते हैं कि वह इतना चालाक था कि अंग्रेजों को उसे पकड़ने में करीब सात साल लग गए। उसे वर्ष 1888-89 में राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया ——
—— डॉ. यादव ने बताया कि मध्यप्रदेश के बड़वाह से लेकर बैतूल तक टंट्या का कार्यक्षेत्र था। शोषित आदिवासियों के मन में सदियों से पनप रहे अंसतोष की अभिव्यक्ति टंट्या भील के रूप में हुई। उन्होंने कहा कि वह इस कदर लोकप्रिय था कि जब उसे गिरफ्तार करके अदालत में पेश करने के लिए जबलपुर ले जाया गया तो उसकी एक झलक पाने के लिए जगह-जगह जनसैलाब उमड़ पड़ा
—— कहा जाता है कि वकीलों ने राजद्रोह के मामले में उसकी पैरवी के लिए फीस के रूप में एक पैसा भी नहीं लिया था ——
—— जब अंग्रेजी हुकूमत किसी भी प्रकार टंटया को काबू में नहीं कर पाए तो उन्होंने षडयंत्र का सहारा लिया | घोषणा की गई कि टंटया पर लगाए गए सारे आरोप वापस ले लिए गए हैं | इस प्रकार षडयंत्र और फरेब से उसे गिरफ्तार किया गया | पहले तो इंदौर में सेंट्रल इंडिया एजेंसी जेल में रखा गया किन्तु बाद में उन्हें जबलपुर ले जाया गया । जहां ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा उनपर अमानवीय अत्याचार किये गए । अंततः 4 दिसम्बर 1889 को उन्हें फांसी दे दी गई और उनके शरीर को खंडवा इंदौर के पास रेल मार्ग पर कलपेनी रेलवे स्टेशन के पास फेंक दिया गया निमाड़ अंचल की गीत-गाथाओं में आज भी आदिवासी जननायक टंटया मामा को याद किया जाता है ——
—— वह निमाड़ का पहला विद्रोही भील युवक था। बलशाली होने के साथ साथ उसमें चमत्कारिक बुद्धि शक्ति थी। लोकगीतों में उन्हें अवतारी व्यक्ति तक कहा जाने लगा। वह किसी स्त्री की लाज लुटते नहीं देख सकता था। टंटया के बारे में कहते हैं ——
—— तांत्या बायो,टण्टया खड माटवो,घाटया खड धान, भूख्या खडं बाटयो ——
—— अंग्रेजी हुकूमत की नजर में वह एक बागी था जिसने संकल्प लिया था कि विदेशी सत्ता के पांव उखाड़ना है। टंटया अपने दल में हमशक्ल रखता था। पुलिस को परेशान करने के लिये टंटया एक साथ पांच-छह विपरीत दिशाओं में डाके डलवाता था। बांसवाड़ा, भीलवाड़ा, डूंगरपुर, बैतूल, धार में टंटया भीलों का नायक था। लूटमार करके वह होलकर रियासत राज्य में जाकर सुरक्षित हो जाता था। पुलिस खोजती रहती पर उसे पकड़ने में असमर्थ रहती। यह भील क्रांतिकारी जो कुछ भी वह लूटता उसे अंग्रेजों के विरुद्ध ही उपयोग में लाता था ——
—— वनवासियों के इन विद्रोहों की शुरुआत प्लासी युद्ध (1757) के ठीक बाद ही शुरू हो गयी थी और यह संघर्ष बीसवीं सदी की शुरुआत तक चलता रहा ——
—— सबसे बड़ी बात यह है कि स्वयं प्रताड़ित अंग्रेजों की सत्ता ने जननायक टंट्या को “इण्डियन रॉबिनहुड’’ का खिताब दिया जहां पर इस ‘वीर पुरुष’ की समाधि बनी हुई है. वहां से गुजरने वाली ट्रेनें रूककर सलामी देती हैं यह सत्य है या नहीं आज तक पता नहीं चला,लेकिन यह धारणा ज्यादा प्रचलित है कि ——
—— आश्चर्यजनक बात रॉबिनहुड और आजादी के जननायक टंट्या मामा भील के मंदिर के पास से गुजरने वाली ट्रेनें उन्हें दो मिनट सलाम करती हैं ——
—— आवो जानें पे बैक टू सोसायटी क्या ——
—— ऐ मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय,ज्ञान,बुद्धि, पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो ——
—— तुम्हारें अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए मैं दुबारा नहीं आऊंगा,ये क्रांति का रथ संघर्षो का कारवां ,जो मैं बड़े दुखों,कष्टों को सहकर यहाँ तक ले आया हूँ,अब आगे तुम्हे ही ले जाना है ——
—— साथियों बाबा साहेब जी अपने अंतरिम दिनोँ में अकेले रोते हुऐ पाए गए। बाबा साहेब अम्बेडकर जी से जब काका कालेलकर कमीशन 1953 में मिलने के लिए गया ,तब कमीशन का सवाल था कि आपने पूरी जिन्दगी पिछड़े,शोषित,वंचित वर्ग समाज के उत्थान के लिए लगा दी काका कालेकर कमीशन ने पूछा बाबा साहेब जी आपकी राय में क्या किया जाना चाहिए बाबा साहेब ने जवाब दिया कि पिछड़े,शोषित,वंचित समाज का उत्थान करना है तो इनके अंदर बड़े लोग पैदा करने होंगें ——
—— काका कालेलकर कमीशन के सदस्यों को यह बात समझ नहीं आई तो उन्होने फिर सवाल किया “बड़े लोग से आपका क्या तात्पर्य है ? " बाबा साहेब जी ने जवाब दिया कि अगर किसी समाज में 10 डॉक्टर , 20 वकील और 30 इन्जिनियर पैदा हो जाऐ तो उस समाज की तरफ कोई आंख ऊठाकर भी देख नहीं सकता !"
—— इस वाकये के ठीक 3 वर्ष बाद 18 मार्च 1956 में आगरा के रामलीला मैदान में बोलते हुऐ बाबा साहेब ने कहा "मुझे पढे लिखे लोगों ने धोखा दिया। मैं समझता था कि ये लोग पढ लिखकर अपने समाज का नेतृत्व करेगें , मगर मैं देख रहा हुँ कि मेरे आस-पास बाबुओं की भीड़ खड़ी हो रही है जो अपना ही पेट पालने में लगी है !"
—— साथियों बाबा साहेब अपने अन्तिम दिनो में अकेले रोते हुए पाए गए ! जब वे सोने की कोशिश करते थे तो उन्हें नींद नहीं आती थी,अत्यधिक परेशान रहने वाले थे बाबा साहेब के निजी सचिव नानकचंद रत्तु ने बाबा साहेब जी से सवाल पुछा कि , आप इतना परेशान क्यों रहते है बाबा साहेब जी ? ऊनका जवाब था , " ——
—— नानकचंद , ये जो तुम दिल्ली देख रहो हो अकेली दिल्ली में 10,000 कर्मचारी ,अधिकारी यह केवल अनुसूचित जाति के है ! जो कुछ साल पहले शून्य थे मैँने अपनी जिन्दगी का सब कुछ दांव पर लगा दिया,अपने लोगों में पढ़े लिखे लोग पैदा करने के लिए क्योंकि मैं जानता था कि जब मैं अकेल पढ लिख कर इतना काम कर सकता हुँ अगर हमारे हजारों लोग पढ लिख जायेगें तो बहुजन समाज में कितना बड़ा परिवर्तन आयेगा लेकिन नानकचंद,मैं जब पुरे देश की तरफ निगाह दौड़ाता हूँ हूँ तो मुझे कोई ऐसा नौजवान नजर नहीं आता है,जो मेरे कारवाँ को आगे ले जा सकता है नानकचंद,मेरा शरीर मेरा साथ नहीं दे रहा है ,जब मैं अपने मिशन के बारे में सोचता हुँ,तो मेरा सीना दर्द से फटने लगता है ——
—— जिस महापुरुष ने अपनी पुरी जिन्दगी,अपना परिवार ,बच्चे आन्दोलन की भेँट चढाए,जिसने पुरी जिन्दगी इस विश्वास में लगा दी कि , पढा -लिखा वर्ग ही अपने शोषित वंचित भाइयों को आजाद करवा सकता हैं जिन्होंने अपने लोगों को आजाद कर पाने का मकसद अपना मकसद बनाया था,क्या उनका सपना पूरा हो गया ? आपके क्या फर्ज बनते हैं समाज के लिए ?
—— सम्मानित साथियों जरा सोचो आज बाबा साहेब की वजह से हम ब्रांडेड कपड़े, ब्रांडेड जूते, ब्रांडेड मोबाइल, ब्रांडेड घड़ियां हर कुछ ब्रांडेड इस्तेमाल करने के लायक बन गए हैं बहुत सारे लोग बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू, शराब पर सैकड़ों रुपये बर्बाद करते हैं ! इस पर औसतन 500 रुपये खर्च आता है,चाउमीन, गोलगप्पे, सूप आदि पर हरोज 20 से 50 रुपये खर्च आता है। महिने में ओसतन 600 से 1500 रुपये तक खर्च हो सकते हैं ——
—— बाबा साहेब के अधिकारों,संघर्षो,प्रावधानों की वजह से जो लोग इस लायक हो गए हैं हम लोगों पर बाबा साहेब ने विश्वास नहीं किया क्योंकि हमने बाबा साहेब के साथ विश्वासघात किया था ! उनके द्वारा दिखाए गए सपनों से हम दूर चले गए नौकरी आयी और आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक बाबा साहेब अम्बेडकर जी को भूल गए ——
——"हमारे उपर बाबा साहेब का बहुत बड़ा कर्ज है,
क्या आप उसे उतार सकते हैं,नहीं रत्तीभर भी नहीं हम जिस शख्स ने इस देश के शोषित,वंचित, पिछले, समाज,सर्वसमाज,महिलाओं भारतवर्ष के लिए अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी,अपने बच्चे,पत्नी अपने सुख चैन सब कुछ कुर्बान कर दिया जरा सोचो किसके लिए आप लोगों के लिए और हम लोग क्या कर रहें हैं टीवी,बीवी में मस्त है मिशन को भूल गये ——
—— लेकिन हमें फिर से पहले की तरह बाबा साहेब को धोखा नहीं देना चाहिए,पढ़े-लिखे लोगो अपने उपर से धोखेबाज का लेबल उतारो और बाबा साहेब के मिशन को आगे बढ़ाओ ——
——आपके बीड़ी, सिगरेट पर खर्च होने वाले 15 रुपये से न जाने कितने बच्चों को शिक्षा मिल सकती है,आपके फास्टफूड पर खर्च होने वाले 50 रुपये से न जाने कितने गरीब लोगों को दवाई मिल सकती है !आपके इन पैसों से न जाने कितने मिशनरी साथियों का खर्च चल रहा है जो पूरा जीवन समाज सेवा मे लगा रहे हैं ——
—— जरा अपने दिल पर हाथ रख कर कहो तुम क्या बाबा साहेब के पे बैक टू सोसाइटी सिद्धांत पर चल रहे हो ——
—— केवल भंडारे देना,चंदा देना,कार्यक्रम करना,ठंडे पानी की स्टाल लगाना पे बैक टू सोसाइटी नहीं है ——
——अपने जैसे सक्षम लोग पैदा करना पे बैक टू सोसाइटी है गरीब बच्चों को शिक्षित करना पे बैक टू सोसाइटी है,शिक्षित लोगों को नौकरियां दिलाना डाक्टर है ——
——बहुजनों को वैज्ञानिक,इंजिनियर,वकील,शिक्षक,डाक्टर इत्यादि बनाना पे बैक टू सोसाइटी है.बाबा साहेब के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए लगे हुए मिशनरियों को मदद देना असली पे बैक टू सोसाइटी है ——
—— आप जो पोजिशन पर है आपका फर्ज बनता है कि मेरे समाज का हर बच्चा उस पोजिशन पर पहुंचे यह पे बैक टू सोसाइटी है,अतः हम पढे-लिखे, नौकरीपेशा समाज से अपील करते हैं कि आप अपने उपर लगे धोखेबाज के लेबल को उतारने की कोशिश करें आपने ग़ैर-भाई बहनों के पास जाओ,उनकी ऊपर उठने में मदद करें,अपने उद्योग धंधे, व्यापार आदि शुरू करें, अपने आप को बेरोजगार बहुजनों के लिए रोजगार की व्यवस्था करें,अपना व्यवसाय शुरू करें, अपने समाज का पैसा अपने समाज में रोकें ——
—— प्रयत्न करें,जब तक बाबा साहेब का पे बैक टू सोसाइटी का सिद्धांत लागू नहीं होगा तब तक देश से गरीबी नहीं मिटेगी ——
—— साभार-: बहुजन समाज और उसकी राजनिति,मेरे संघर्षमय जीवन एवं बहुजन समाज का मूवमेंट {संदर्भ- सलेक्टेड ऑफ डाँ अम्बेडकर – लेखक डी.सी. अहीर पृष्ठ क्रमांक 110 से 112 तक के भाषण का हिन्दी अनुवाद), श्री गुरु रविदास जन-जागृति एवं शिक्षा समिति,(राजी),दलित दस्तक ,समय बुद्धा,,पुस्तक-'डॉ.बाबासाहेब अंबेडकर के महत्वपूर्ण संदेश एवं विद्वत्तापूर्ण कथन' के थर्ड कवर पृष्ठ से,लेखक-नानकचंद रत्तू-अनुवादक-गौरव कुमार रजक, अंकित कुमार गौतम,संपादन-अमोल वज्जी,प्रकाशक-डी के खापर्डे मेमोरियल ट्रस्ट (पब्लिकेशन डिवीजन)527ए, नेहरू कुटिया, निकट अंबेडकर पार्क, कबीर बस्ती, मलका गंज, नई दिल्ली -07, विकिपीडिया} ——
——"सामाजिक क्रांति के अग्रदूत,मानवता के प्रचारक महान स्वतंत्रता सेनानी टंटैया मामा भील जी के चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं ——
— साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए आधुनिक भारत के निर्माता बाबासाहेब अम्बेडकर जी ने वह कर दिखाया जो उस दौर में सोच पाना भी मुश्किल था —
— साथियों आज हमें अगर कहीं भी खड़े होकर अपने विचारों की अभिव्यक्ति करने की आजादी है,समानता का अधिकार है तो यह सिर्फ और सिर्फ परमपूज्य बाबासाहेब आंबेडकर जी के संघर्षों से मुमकिन हो सका है.भारत वर्ष का जनमानस सदैव बाबा साहेब डा भीमराव अंबेडकर जी का कृतज्ञ रहेगा.इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी बात खत्म करता हूं। सामाजिक न्याय के पुरोधा तेजस्वी क्रांन्तिकारी शख्शियत परमपूज्य बोधिसत्व भारत रत्न बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं
— जिसने देश को दी नई दिशा””…जिसने आपको नया जीवन दिया वह है आधुनिक भारत के निर्माता बाबा साहेब अम्बेडकर जी का संविधान —
— सच अक्सर कड़वा लगता है। इसी लिए सच बोलने वाले भी अप्रिय लगते हैं। सच बोलने वालों को इतिहास के पन्नों में दबाने का प्रयास किया जाता है, पर सच बोलने का सबसे बड़ा लाभ यही है, कि वह खुद पहचान कराता है और घोर अंधेरे में भी चमकते तारे की तरह दमका देता है। सच बोलने वाले से लोग भले ही घृणा करें, पर उसके तेज के सामने झुकना ही पड़ता है ! इतिहास के पन्नों पर जमी धूल के नीचे ऐसे ही बहुजन महापुरुषों का गौरवशाली इतिहास दबा है —
―मां कांशीराम साहब जी ने एक एक बहुजन नायक को बहुजन से परिचय कराकर, बहुजन समाज के लिए किए गए कार्य से अवगत कराया सन 1980 से पहले भारत के बहुजन नायक भारत के बहुजन की पहुँच से दूर थे,इसके हमें निश्चय ही मान्यवर कांशीराम साहब जी का शुक्रगुजार होना चाहिए जिन्होंने इतिहास की क्रब में दफन किए गए बहुजन नायक/नायिकाओं के व्यक्तित्व को सामने लाकर समाज में प्रेरणा स्रोत जगाया ——
―इसका पूरा श्रेय मां कांशीराम साहब जी को ही जाता है कि उन्होंने जन जन तक गुमनाम बहुजन नायकों को पहुंचाया, मां कांशीराम साहब के बारे में जान कर मुझे भी लगा कि गुमनाम बहुजन नायकों के बारे में लिखा जाए !
—— मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय ज्ञान,पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो ——
—―साथियों एक बात याद रखना आज करोड़ों लोग जो बाबासाहेब जी,माँ रमाई के संघर्षों की बदौलत कमाई गई रोटी को मुफ्त में बड़े चाव और मजे से खा रहे हैं ऐसे लोगों को इस बात का अंदाजा भी नहीं है जो उन्हें ताकत,पैसा,इज्जत,मान-सम्मान मिला है वो उनकी बुद्धि और होशियारी का नहीं है बाबासाहेब जी के संघर्षों की बदौलत है ——
—– साथियों आँधियाँ हसरत से अपना सर पटकती रहीं,बच गए वो पेड़ जिनमें हुनर लचकने का था ——
―तमन्ना सच्ची है,तो रास्ते मिल जाते हैं,तमन्ना झूठी है,तो बहाने मिल जाते हैं,जिसकी जरूरत है रास्ते उसी को खोजने होंगें निर्धनों का धन उनका अपना संगठन है,ये मेरे बहुजन समाज के लोगों अपने संगठन अपने झंडे को मजबूत करों शिक्षित हो संगठित हो,संघर्ष करो !
―साथियों झुको नही,बिको नहीं,रुको नही, हौसला करो,तुम हुकमरान बन सकते हो,फैसला करो हुकमरान बनो"
―सम्मानित साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए !
―सभी अम्बेडकरवादी भाईयों, बहनो,को नमो बुद्धाय सप्रेम जयभीम! सप्रेम जयभीम !!
―बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी ने कहा है जिस समाज का इतिहास नहीं होता, वह समाज कभी भी शासक नहीं बन पाता… क्योंकि इतिहास से प्रेरणा मिलती है, प्रेरणा से जागृति आती है, जागृति से सोच बनती है, सोच से ताकत बनती है, ताकत से शक्ति बनती है और शक्ति से शासक बनता है !”
― इसलिए मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर आप लोगो को इतिहास के उन पन्नों से रूबरू कराने की कोशिश कर रहा हूं जिन पन्नों से बहुजन समाज का सम्बन्ध है जो पन्ने गुमनामी के अंधेरों में खो गए और उन पन्नों पर धूल जम गई है, उन पन्नों से धूल हटाने की कोशिश कर रहा हूं इस मुहिम में आप लोगों मेरा साथ दे, सकते हैं !
―पता नहीं क्यूं बहुजन समाज के महापुरुषों के बारे कुछ भी लिखने या प्रकाशित करते समय “भारतीय जातिवादी मीडिया” की कलम से स्याही सूख जाती है —
— इतिहासकारों की बड़ी विडम्बना ये रही है,कि उन्होंने बहुजन नायकों के योगदान को इतिहास में जगह नहीं दी इसका सबसे बड़ा कारण जातिगत भावना से ग्रस्त होना एक सबसे बड़ा कारण है इसी तरह के तमाम ऐसे बहुजन नायक हैं,जिनका योगदान कहीं दर्ज न हो पाने से वो इतिहास के पन्नों में गुम हो गए —
―उन तमाम बहुजन नायकों को मैं अमित गौतम जंनपद रमाबाई नगर,कानपुर कोटि-कोटि नमन करता हूं !
जय रविदास
जय कबीर
जय भीम
जय नारायण गुरु
जय सावित्रीबाई फुले
जय माता रमाबाई अम्बेडकर जी
जय ऊदा देवी पासी जी
जय झलकारी बाई कोरी
जय बिरसा मुंडा
जय बाबा घासीदास
जय संत गाडगे बाबा
जय पेरियार रामास्वामी नायकर
जय छत्रपति शाहूजी महाराज
जय शिवाजी महाराज
जय काशीराम साहब
जय मातादीन भंगी जी
जय कर्पूरी ठाकुर
जय पेरियार ललई सिंह यादव
जय मंडल
जय हो उन सभी गुमनाम बहुजन महानायकों की जिंन्होने अपने संघर्षो से बहुजन समाज को एक नई पहचान दी,स्वाभिमान से जीना सिखाया !
अमित गौतम
युवा सामाजिक
कार्यकर्ता
बहुजन समाज
जंनपद-रमाबाई नगर कानपुर
सम्पर्क सूत्र-9452963593
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