15 वीं-16 वीं शताब्दी के महान संत,मानवता के प्रचारक,भेदभाव पांखडवाद के खिलाफ आजीवन संघर्ष करने करने वाले कवि,समाज सुधारक-महान क्रांतिकारी,सामाजिक एकता और समानता के प्रतीक परमपूज्य महान संत शिरोमणि सतगुरु रविदास जी महाराज के प्रकाशोत्सव(जंयती) के पावन अवसर पर लख लख बधाइयाँ एंव शत्-शत् नमन
— संत शिरोमणि सतगुरु रविदास जी महाराज —
— प्रकाशोत्सव(जंयती) के पावन अवसर पर कोटि-कोटि नमन —
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वो थे इसलिए आज हम है
इतिहास के पन्नों से
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— 15 वीं-16 वीं शताब्दी के महान संत,मानवता के प्रचारक,भेदभाव पांखडवाद के खिलाफ आजीवन संघर्ष करने करने वाले कवि,समाज सुधारक-महान क्रांतिकारी,सामाजिक एकता और समानता के प्रतीक परमपूज्य महान संत शिरोमणि सतगुरु रविदास जी महाराज के प्रकाशोत्सव(जंयती) के पावन अवसर पर लख लख बधाइयाँ एंव शत्-शत् नमन —
— मानवता के प्रचारक संत शिरोमणि रविदास जी महाराज रैदास एक ऐसे समाज की कल्पना करते हैं, जहां संपत्ति पर निजी मालिकाना नहीं होगा, समाज अमीर और गरीब में बंटा नहीं होगा, कोई दोयम दर्जे का नागरिक नहीं होगा और न ही वहां कोई छूत-अछूत होगा. अपने इस समाज को उन्होंने बेगमपुरा,बिना गम यानी बिना दुख का शहर,नाम दिया है —
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— धम्म प्रेमियों जिस कौम का इतिहास नही होता,उस कौम का कोई भविष्य नही होता,आज बहुजन समाज की बात करे तो तथागत गौतम बुद्ध के बाद बहुजन बहुजन आंदोलन के अग्रदूत संत शिरोमणि रविदास जी महाराज हुए है —
— वर्तमान समय में मानवता के प्रचारक संत शिरोमणि रविदास जी महाराज के विचारो को अमली जामा पहनाने का कार्य करने वाले गणतंत्र के महानायक,आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक बाबासाहेब अम्बेडकर ने किया,जिसकी झल आज के इस आधुनिक भारत के संविधान मे साफ दिखाई देता है —
— जब जरूरत थी चमन को तो लहू हमने दिया अब बहार आई तो कहते हैं तेरा काम नहीं —
— धम्म प्रेमियों बहुजन समाज के इतिहास को एक शेर में बताया जा सकता है,शेर इस प्रकार है —
— जब हम संगठित हुए तो सारी दुनिया पे छा गए जब हम बिखरे तो ठोकरों पे आ गए —
— जागो बहुजन समाज जागो अपने इतिहास को पढ़ो —
— बहुजन समाज के सम्मानित साथियों एंव माता बहनों को सबसे पहले धम्म प्रभात,नमो बुद्धाय,जय भीम मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर, कानपुर आप लोगों को इतिहास के उन पन्नों से रूबरू करवाना चाहता हूँ ! जिससे आप लोग शायद अनिभिज्ञ हो —
— दर्द सबके एक है,मगर हौंसले सबके अलग अलग है,कोई हताश हो के बिखर गया तो कोई संघर्ष करके निखर गया —
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— जय संत शिरोमणि रविदास जी महाराज की—
— आज हम बात कर रहें हैं 15 वीं-16 वीं शताब्दी के महान संत,मानवता के प्रचारक,भेदभाव पांखडवाद के खिलाफ आजीवन संघर्ष करने करने वाले कवि,समाज सुधारक-महान क्रांतिकारी,समता समानता के पक्षधर परमपूज्य महान संत शिरोमणि रविदास जी महाराज की —
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— मानवता के प्रचारक संत शिरोमणि रविदास जी महाराज का जीवन परिचय —
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— हमारे भारतवर्ष की पावन भूमि पर अनेक साधु-सन्तों, ऋषि-मुनियों, योगियों-महर्षियों और महामानवों ने जन्म लिया है और अपने अलौकिक ज्ञान से समाज को अज्ञान, अधर्म एवं अंधविश्वास के अनंत अंधकार से निकालकर एक नई स्वर्णिम आभा प्रदान की है। चौदहवीं सदी के दौरान देश में जाति-पाति, धर्म, वर्ण, छूत-अछूत, पाखण्ड, अंधविश्वास का साम्राज्य स्थापित हो गया था। हिन्दी साहित्यिक जगत में इस समय को मध्यकाल कहा जाता है —
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— धम्म प्रेमियों मध्यकाल को भक्तिकाल कहा गया,भक्तिकाल में कई बहुत बड़े सन्त एवं भक्त पैदा हुए, जिन्होंने समाज में फैली कुरीतियों एवं बुराइयों के खिलाफ न केवल बिगुल बजाया,बल्कि समाज को टूटने से भी बचाया. इन सन्तों में से एक थे,मानवता के प्रचारक संत शिरोमणि सतगुरु रविदास जी महाराज रविदास, जिन्हें रैदास के नाम से भी जाना जाता है —
— सन्त शिरोमणि रविदास जी महाराज का जन्म सन् 1398 में माघ पूर्णिमा के दिन बनारस के नजदीक मांडुर गढ़ (महुआडीह) नामक स्थान पर हुआ था.पिता का नाम संतोखदास (रग्घु) और माता का नाम कर्मा था —
— सन्त शिरोमणि रविदास जी महाराज समाज में फैली जाति-पाति, छुआछूत,धर्म-सम्प्रदाय,वर्ण विशेष जैसी भयंकर बुराइयों से बेहद दुखी थे !समाज से इन बुराइयों को जड़ से समाप्त करने के लिए सन्त रविदास जी ने हमेशा संघर्ष किया —
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— सन्त रविदास जी महाराज ने अपनी वाणी एवं सदुपदेशों के जरिए समाज में एक नई चेतना का संचार किया। उन्होंने लोगों को पाखण्ड एवं अंधविश्वास छोड़कर सच्चाई के पथ पर आगे बढऩे के लिए प्रेरित किया —
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— ऐसा चाहूं राज मैं,जहां मिले सबन को अन्न, छोट-बड़ो सब सम बसे, रविदास रहे प्रसन्न’
— भारत के अलावा संत शिरोमणि रविदास महाराज की जंयती अमेरिका और इंग्लैंड सहित विश्व के कई देशों में धूमधाम से मनाई जाती है —
— संत शिरोमणि.गुरु रविदास जी महाराज मध्यकालीन संतों, जिसमें तुकाराम, नरसी-दादू,मेहता,गुरूनानक,कबीर, चोखा मेला,पीपादास आदि शामिल है,इन सन्तों में संत शिरोमणि सदगुरू रविदास जी महाराज का स्थान श्रेष्ठ है इसी कारण उनको संत शिरोमणि भी कहा जाता है.ये चमार जाति में पैदा हुए —
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— सिख धर्म के पवित्र धर्म ग्रंथ गुरुग्रंथ साहिब में संकलित रविदास जी महाराज के पदों में उनकी जाति चमार होने का उल्लेख बार-बार आया है —
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— चेतना,जन आन्दोलन,समतामूलक समाज की परिकल्पना, मानव सेवा आदि क्रान्तिकारी परिवर्तन के लिए सन्त शिरोमणि रविदास जी महाराज जी का नाम बड़े आदर तथा सम्मान के साथ लिया जाता है.रविदास जी महाराज सामाजिक सुधार के लिए जीवन पर्यन्त जूझते तथा रचनात्मक प्रयत्न करते रहे.सामाजिक समानता,समरसता लाने के लिए वो अपनी वाणियों के माध्यम से तत्कालीन शासकों को भी सचेत करते रहे. घृणा और सामाजिक प्रताड़नाओं के बीच सन्त रैदास ने पांखड और भेदभाव मिटाकर प्रेम तथा एकता का संदेश दिया —
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— उन्होंने जो उपदेश दिये दूसरों के कल्याण व भलाई के लिए दिये और उनकी चाहत एक ऐसा समाज की थी जिसमें राग,द्वेष,भेदभाव,पांखडवाद ईर्ष्या,दुख,कुटिलता का समावेश न हो —
– गुरु रविदास जी महाराज कहते है कि ”बिन देखे उपजे नही आशा,जो देखू सो होय विनाशा ” अर्थात जो दिखाई नही देता उसके प्रति भावना पैदा नही होती तथा जो दिखाई देता है वह नश्वर है, उसका अन्त होना निश्चित है, गुरू रविदास जी महाराज का यह श्लोक उन्हे भगवान बुद्ध के नजदीक ला देता है —
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— मार्क्स से काफी पहले संत रविदास ने देखा था समतामूलक समाज का सपना —
— जाति व्यवस्था को चुनौती देने के साथ ही एक समतामूलक आदर्शलोक - बेगमपुरा का सपना भी संत शिरोमणि रविदास जी महाराज ने देखा था —
— विशेष साभार-द प्रिंट,कुशाल चौहान,एडवोकेट
बिरसा फुले अम्बेडकर एसोसिएशन राजस्थान, SAMAYBUDDHA's Dhamm Deshna —
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— संत शिरोमणि रविदास जी महाराज जी कहते हैं —
— ऐसा चाहूं राज्य मैं,जहां मिलै सबन को अन्न छोट,बड़ों सभ सम बसै,रैदास रहे प्रसन्न —
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— वैचारिक क्रान्ति के प्रणेता सदगुरू संत शिरोमणि रविदास जी महाराज की एक वैज्ञानिक सोच हैं, जो सभी की प्रसन्नता में अपनी प्रसन्नता देखते हैं —
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— स्वराज ऐसा होना चाहिए कि किसी को किसी भी प्रकार का कोई कष्ट न हो, एक साम्यवादी, समाजवादी व्यवस्था का निर्धारण हो इसके प्रबल समर्थक संत शिरोमणि रविदास जी महाराज माने जाते हैं. उनका मानना था कि देश,समाज और व्यक्ति की पराधीनता से उसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है.
— पराधीनता से व्यक्ति की सोच संकुचित हो जाती है ! संकुचित सोच रखने वाला व्यक्ति बहुजन हिताय- बहुजन सुखाय की यथार्थ को व्यवहारिक रूप प्रदान नहीं कर सकता है —
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— वह पराधीनता को हेय दृष्टि से देखते थे और उनका मानना था कि तत्कालीन समाज व लोगों को पराधीनता से मुक्ति का प्रयास करना चाहिए —
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— सन्त रविदास जी महाराज के मन में समाज में व्याप्त कुरीतियों भेदभाव,पांखडवाद,गैर बराबरी व्यवस्था के प्रति आक्रोश था —
— संत रविदास जी महाराज ने जन्म के आधार पर श्रेष्ठता की अवधारणा को पूरी तरह खारिज कर दिया-
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— संत शिरोमणि रविदास जी महाराज सामाजिक कुरीतियों,वाह्य आडम्बर एवं रूढ़ियों के खिलाफ एक क्रान्तिकारी परिवर्तन की मांग करते थे ! उनका स्पष्ट मानना था कि जब तक समाज में वैज्ञानिक सोच पैदा नहीं होगी, वैचारिक विमर्श नहीं होगा. और जब तक यथार्थ की व्यवहारिक पहल नहीं होगी,तब तक इंसान पराधीनता से मुक्ति नहीं पा सकता है —
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— उन्होंने कर्म प्रधान संविधान को अपने जीवन में सार्थक किया. सन्त रैदास ने सामाजिक परम्परागत ढांचे को ध्वस्त करने का प्रयास किया —
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— सतगुरू संत शिरोमणि रविदास जी महाराज कहते है —
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— रविदास ब्राह्मण मत पूजिए,जेऊ होवे गुणहीन,पूजहिं चरण चंडाल के जेऊ होवें गुण परवीन —
— उनका मानना है कि व्यक्ति का आदर और सम्मान उसके कर्म के आधार पर करना चाहिए, जन्म के आधार पर कोई पूज्यनीय नहीं होता है. बुद्ध, कबीर, फुले, आंबेडकर और पेरियार की तरह रैदास भी साफ कहते हैं कि कोई ऊंच या नीच अपने मानवीय कर्मों से होता है, जन्म के आधार पर नहीं. वे लिखते हैं—
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— संत शिरोमणि रविदास जी महाराज कहते हैं कि
जन्म के कारने होत न कोई नीच,नर कूं नीच कर डारि है, ओछे करम की नीच —
— संत रविदास जी महाराज का भी कहना है कि जाति एक ऐसा रोग है,जिसने भारतीयों की मनुष्यता का नाश कर दिया है. जाति इंसान को इंसान नहीं रहने देती. उसे ऊंच-नीच में बांट देती है. एक जाति का आदमी दूसरे जाति के आदमी को अपने ही तरह का इंसान मानने की जगह ऊंच या नीच मानता है —
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— संत शिरोमणि रविदास जी महाराज का कहना है कि जब तक जाति का खात्मा नहीं होता,तब तक लोगों में इंसानियत जन्म नहीं ले सकती —
— जात-पात के फेर मह उरझि रहे सब लोग,मानुषता को खात है,रैदास जात का रोग —
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— वे यह भी कहते हैं कि जाति एक ऐसी बाधा है,जो आदमी को आदमी से जुड़ने नहीं देती है.वे कहते हैं एक मनुष्य दूसरे मनुष्य से तब तक नहीं जुड़ सकता, जब तक जाति का खात्मा नहीं हो जाता—
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— रैदास ना मानुष जुड़े सके जब लौं जाय न जात —
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— इस वैज्ञानिक विचारधारा से तत्कालीन प्रभाव से समाज को मुक्ति मिली और आज भी इस विचारधारा का लाभ समाज को मिलता दिखाई दे रहा है. बल्कि 21वीं सदी में इसकी सार्थकता और भी बढ़ गयी है —
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— समाज सुधार की आधारशिला व्यक्ति का सुधार है. सबसे पहले व्यक्ति को नैतिक दृष्टि से सीमाओं से ऊपर उठकर विवेक, बुद्धि आदि इस्तेमाल करना चाहिए, तभी समाज उन्नत हो सकेगा. व्यक्तिगत सद्चरित्रता, स्वच्छता तथा सरलता पर ध्यान देना चाहिए —
— अपनी क्रान्तिकारी वैचारिक अवधारणा,सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना तथा युग बोध की मार्मिक अभिव्यक्ति के कारण उनका धम्म दर्शन लगभग 600 वर्ष बाद आज भी प्रासंगिक है —
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— सन्त शिरोमणि सतगुरु रविदास जी महाराज अपने समय से बहुत आगे थे.वह समतामूलक समाज की कल्पना करते थे और मानते थे कि यह तभी संभव है जब सभी के सुख-दुःख का ख्याल रखा जाए. अज्ञानता के कारण प्रभाव स्थापित करने में लोग विभेद करते हैं ! सतगुरू श्री संत शिरोमणि रविदास जी महाराज कहते हैं कि सभी जन एक ही मिट्टी के बने हैं और सभी के लिए ज्ञान का मार्ग खुला हुआ है —
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— संत रविदास जी को मीरा बाई के आध्यात्मिक गुरु के रुप में भी जाना जाता है जो कि राजस्थान के राजा की पुत्री और चित्तौड़ की रानी थी. वो संत शिरोमणि रविदास जी महाराज के अध्यापन से बेहद प्रभावित थी और उनकी बहुत बड़ी अनुयायी बनी —
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— सिक्ख धर्म के लिये सतगुरु संत शिरोमणि रविदास जी महाराज का योगदान —
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— सिख धर्म के संस्थापक गुरू नानकदेव जी गुरू रविदास जी महाराज के समकालीन थे,वे संत शिरोमणि रविदास जी महाराज से मिले भी थे तथा उनकी वाणी को साथ लेकर भी गये, वे गुरू रैदास से इतने अधिक प्रभावित थे,कि वे उनकी वाणी को स्वयं गाते भी थे —
— सिख धर्म के दशवें गुरू गोबिन्द सिंह ने अपने कार्यकाल मे समस्त भारत के सन्तों की वाणी को ‘‘गुरू ग्रन्थ साहिबा’’ मे संकलन किया.जिसमे गुरू रैदास के 41 पद को शामिल किया गया —
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— यह आम मान्यता है कि गुरू रविदास जी महाराज 100 वर्षो से भी ज्यादा जीए. अतः प्रश्न यह उठता है कि उन्होने सम्पूर्ण जीवनकाल में क्या मात्र 41 पद ही रच पायें । यह बात पूर्णत अविश्वसनीय लगता है कि, ऐसा माना जाता है कि गुरू नानक जब गुरू रैदास से मिले तब वे 41 पद को उनकी हत्या से पूर्व ही अपने साथ ले गये जिसका संकलन लगभग 150 वर्षो बाद ‘‘ गुरू ग्रन्थ साहिबा ’’ मे किया गया ।
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— सिक्ख धर्मग्रंथ में उनके पद,भक्ति गीत और दूसरे लेखन (41 पद) आदि दिये गये थे. गुरु ग्रंथ साहिब जो कि पांचवें सिक्ख गुरु अर्जन देव द्वारा संकलित की गयी. सामान्यत: रविदास जी के अध्यापन के अनुयायी को रविदासिया कहा जाता है और रविदासिया के समूह को अध्यापन को रविदासीया पंथ कहा जाता है —
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— गुरु ग्रंथ साहिब में उनके द्वारा लिखा गया 41 पवित्र लेख है जो इस प्रकार है; “रागा-सिरी(1), गौरी(5), असा(6), गुजारी(1), सोरथ(7),धनसरी(3), जैतसारी(1), सुही(3), बिलावल(2), गौंड(2),रामकली(1), मारु(2), केदारा(1), भाईरऊ(1), बसंत(1), और मलहार(3)”!
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— सतगुरू संत शिरोमणि रविदास जी महाराज बेगमपुरा शहर से उनके संबंध —
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— सभी राजा सत्ता के नशे में चूर धक्केशाही के बल पर जनता को दबाते थे वहीं तथाकथित धर्म के ठेकेदार दबे-कुचले लोगों पर हर तरह का जुल्म करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते थे ! वे वर्ण-व्यवस्था को लागू करना धर्म का मु य तथा मजबूत हिस्सा मानते थे। इसी कारण वे आड बर, पाखंड, कर्म कांडों द्वारा दलितों का शोषण करते थे। इन कारणों से दलितों की हालत इतनी दयनीय थी कि पशु भी उनसे बेहतर जीवन जी रहे थे।
ऐसे दर्दनाक तथा खौफनाक हालात में श्री गुरु रविदास महाराज जी ने जालिम राजाओं तथा धर्म के ठेकेदारों के विरुद्ध बगावत का बिगुल बजाया। इन्होंने अपने हम याली विद्वानों तथा रहबरों के साथ मिल कर भारत की चारों दिशाओं में मानवता का प्रचार किया। इस प्रचार दौरान उन्होंने दबे कुचले लोगों को पाखंड-आड बरों, कर्मकांडों से ऊपर उठ कर विद्या प्राप्त करके ज्ञानवान होकर अपनी समस्याएं खुद हल करने के लिए कहा। श्री गुरु रविदास महाराज जी ने गुरबाणी द्वारा दलितों तथा साधनविहीन लोगों को समझाते हुए कहा —
— माधो अविद्याहित कीन बिबेक दीप मलीन —
(आदि ग्रंथ,पन्ना 486)
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— संत शिरोमणि गुरु रविदास जी महाराज ने कहा कि शिक्षा के बगैर मनुष्य की बुद्धि चली गई जिस कारण मनुष्य की उन्नति रुक गई, काम-धंधे, कारोबार रुक गए। पैसा आना बंद हो गया जिससे दलित बर्बाद हो गए तथा गुलाम हो गए —
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— संत शिरोमणि श्री गुरु रविदास महाराज ने उस समय के दबे-कुचले लोगों को सामाजिक बराबरी के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दी। उन्होंने जात-पात तथा जन्म सिद्धांत को न मानने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि जन्म के आधार पर कोई छोटा न कोई बड़ा है। छोटा-बड़ा तो अच्छे या बुरे कर्मों से बनता है। कुदरत के लिए सभी बराबर हैं —
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— सतगुरु संत शिरोमणि रविदास जी महाराज ने फरमान करते हुए बताया, ‘बेगमपुरा’ में बसते हैं —
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— विख्यात संतों एवं भक्तों में श्री गुरु रविदास जी का नाम बड़ी श्रद्धा से लिया जाता है —
— आपके जन्म संबंधी यह दोहा प्रचलित है —
— चौदह सौ तैंतीस को ,माघ सुदी पंद्रास। दुखियों के कल्याण हित,प्रगटे गुरु रविदास —
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— सतगुरू संत शिरोमणि रविदास जी महाराज के समय भारत राजनीतिक दृष्टि से तो गुलाम था ही यहां के लोग मानसिक गुलामी की जंजीरों में भी जकड़े हुए थे। इसके अलावा समाज ऊंच-नीच, जात-पात, वर्ग-विभाजन और धार्मिक संकीर्णता के जाल में भी फंसा हुआ था.आपने इन कुरीतियों से समझौता नहीं किया, बल्कि आदर्श समाज बनाने का संकल्प लिया —
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— विलक्षण प्रतिभा के धनी श्री गुरु रविदास जी ने पराधीनता को पाप कहा है। आप स्वाधीनता को सुख और पराधीनता को दुख का मूल कारण मानते हैं। युगदृष्टा गुरु रविदास जी के समय समाज की स्थिति अति शोचनीय थी। समाज ऊंच और नीच वर्ग में विभाजित हो गया था। गरु रविदास जी ने समानता का पाठ पढ़ाते हुए फरमाया कि सभी प्राणी ईश्वर की ही संतान हैं। प्रभु के यहां कोई जात-पात नहीं है। संसार में आकर जो व्यक्ति जैसा कर्म करता है, उसे उसी के आधार पर पहचान मिलती है : कहि रविदास जो जपे नामु।। तिसु जाति न जनमु न जोनि कामु।।
(पन्ना 1196) —
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— आपने काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार पर विजय प्राप्त कर खुशहाल समाज की परिकल्पना की। आपने ऐसे समाज की परिकल्पना की जहां कोई छोटा-बड़ा न हो, चारों ओर खुशहाली ही हो। ऐसा आदर्श समाज गुरु रविदास जी के अनुसार बेगमपुरा (जहां कोई गम नहीं) है —
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— उसकी रूप-रेखा इस प्रकार दी गई —
बेगम पुरा सहर को नाउ।।
दूखु अंदोहु नहीं तिहि ठाउ !!
नां तसवीस खिराजु न मालु !!
खउफु न खता न तरसु जवालु !!
अब मोहि खूब वतन गह पाई !!
ऊहां खैरि सदा मेरे भाई !! रहाउ !!
काइमु दाइमु सदा पातिसाही !!
दोम न सेम एक सो आही !!
आबादानु सदा मसहूर !!
ऊहां गनी बसहि मामूर !!
तिउ तिउ सैल करहि जिउ भावै !!
महरम महल न को अटकावै !!
कहि रविदास खलास चमारा !!
जो हम सहरी सु मीतु हमारा !!
(पन्ना 345)
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बेगमपुरा
— संत शिरोमणि गुरु रविदास महाराज फरमान करते हैं कि जिस आत्मिक अवस्था वाले ‘शहर’ (माहौल, समाज) में मैं बसता हूं उसका नाम ‘बेगमपुरा’ है। वहां न कोई दुख है, न कोई चिंता और न ही कोई घबराहट है। वहां किसी को कोई पीड़ा नहीं है। वहां कोई जायदाद नहीं है और न ही कोई कर लगता है। वहां ऐसी सत्ता है जो सदा रहने वाली है। वहां कोई श्रेणी-भेद नहीं है। गुरु रविदास जी फरमान करते हैं कि ऐसी खुशनुमा आबो-हवा वाले ‘शहर’ में जो रहेंगे वही हमारे मित्र हैं। तात्पर्य यह है कि प्रभु-मिलाप वाली आत्मिक अवस्था में सदैव आनंद ही आनंद बना रहता है —
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— गुरु रविदास जी जीवन भर एक ऐसे आदर्श समाज की संरचना एवं संभाल में संलग्न रहे जहां घृणा,भेदभाव और वैमनस्य नहीं था, समता और एकता का ही बोलबाला था —
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— क्रांतिकारी विचार तथा तर्कशील उदाहरण देकर श्री गुरु रविदास महाराज जी ने उस समय के दबे-कुचले लोगों को एकजुट होकर हर प्रकार के जुल्म के खिलाफ लडऩे की प्रेरणा दी तथा सारा जीवन आपने ऐसे संघर्षमय ढंग से बिताया और जालिम शासन तथा मनुवादी सोच को बदल बेगमपुरे का संकल्प दिया। श्री गुरु रविदास महाराज जी जहां सामाजिक तौर पर चेतन थे वहीं वह प्रगतिशील विचारों को पहल देते थे। इसी कारण उनकी सोच को समझते हुए असंख्य श्रद्धालुओं के अलावा कई राजे उनके चरणों में लगे जिन्होंने गुरु रविदास महाराज जी के बेगमपुरा फलसफे का प्रचार-प्रसार किया, मानवता को पहल दी, जात-जमात, मजहब को नकारा —
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— बिना किसी दुख के शांति और इंसानियत के साथ एक शहर के रुप में गुरु रविदास जी द्वारा बेगमपुरा शहर को बसाया गया.अपनी कविताओं को लिखने के दौरान रविदास जी द्वारा बेगमपुरा शहर को एक आदर्श के रुप में प्रस्तुत किया गया था —
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— जहाँ पर उन्होंने बताया कि एक ऐसा शहर जो बिना किसी दुख, दर्द या डर के और एक जमीन है जहाँ सभी लोग बिना किसी भेदभाव, गराबी और जाति अपमान के रहते है। एक ऐसी जगह जहाँ कोई शुल्क नहीं देता, कोई भय, चिंता या प्रताड़ना नहीं हो —
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— कैसे मुगल शासक बाबर प्रभावित हुए सतगुरू संत शिरोमणि रविदास जी महाराज के अध्यापन से —
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— इतिहास के अनुसार बाबर मुगल साम्राज्य का पहला राजा था जो 1526 में पानीपत का युद्ध जीतने के बाद दिल्ली के सिहांसन पर बैठा जहाँ उसने भगवान के भरोसे के लिये लाखों लोगों को कुर्बान कर दिया। वो पहले से ही संत रविदास की दैवीय शक्तियों से परिचित था और फैसला किया कि एक दिन वो हुमायुँ के साथ गुरु जी से मिलेगा। वो वहाँ गया और गुरु जी को सम्मान देने के लिये उनके पैर छूए हालाँकि; आशीर्वाद के बजाय उसे गुरु जी से सजा मिली क्योंकि उसने लाखों निर्दोष लोगों की हत्याएँ की थी। गुरु जी ने उसे गहराई से समझाया जिसने बाबर को बहुत प्रभावित किया और इसके बाद वो भी संत रविदास का अनुयायी बन गया तथा दिल्ली और आगरा के गरीबों की सेवा के द्वारा समाज सेवा करने लगा —
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— सतगुरु संत शिरोमणि रविदास जी महाराज जी के नाम पर स्मारक,जिले —
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— सतगुरु संत शिरोमणि रविदास जी महाराज के लिये वाराणसी में श्री गुरु रविदास पार्क है जो नगवा में उनके यादगार के रुप में बनाया गया है जो उनके नाम पर
“गुरु रविदास स्मारक और पार्क” बना है —
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— सतगुरु संत शिरोमणि गुरु रविदास महाराज घाट —
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— वाराणसी में पार्क से बिल्कुल सटा हुआ उनके नाम पर गंगा नदी के किनारे लागू करने के लिये गुरु रविदास घाट भी भारतीय सरकार द्वारा प्रस्तावित है —
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— संत रविदास नगर जनपद —
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—संत रविदास नगर है जो कि पहले भदोही नाम से था अब उसका नाम भी संत रविदास नगर है —
— संत शिरोमणि श्री गुरु रविदास महाराज जन्म स्थान मंदिर वाराणसी इनके सम्मान में सीर गोवर्धनपुर,वाराणसी में श्री गुरु रविदास जन्म स्थान मंदिर स्थित है, जो इनके सम्मान में बनाया गया है पूरी दुनिया में इनके अनुयायीयों द्वारा चलाया जाता है जो अब प्रधान धार्मिक कार्यालय के रुप में है —
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— श्री गुरु रविदास स्मारक गेट —
— वाराणसी के लंका चौराहे पर एक बड़ा गेट है जो इनके सम्मान में बनाया गया है —
— सतगुरू संत शिरोमणि रविदास जी महाराज जी के नाम पर देश के साथ ही विदेशों मे भी स्मारक बनाये गये है —
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— विशेष साभार-दलित दस्तक,अशोक दास जी,पंजाब केसरी न्यूज पेपर —
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— आइए हम सभी सतगुरू संत शिरोमणि श्री रविदास महाराज जी की विचारधारा तथा मिशन की किरणें जागृत करके मानवता को बचाने का प्रण करें —
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—सामाजिक क्रांति के अग्रदूत सतगुरू संत शिरोमणि रविदास जी महाराज के चरणों में शत् -शत् नमन एंव विनम्र श्रद्धांजलि —
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— एक बात हमेशा याद रखनी चाहिए ,बहुजन महापुरुषों, गुरूओं,संत,अमर शहीदों की कुर्बानी के कारण ही आज हम सभी आजाद हैं ! उनकी कुर्बानी को हमें कभी नहीं भूलना चाहिए.लेकिन आज भी पिछड़े,शोषित,आदिवासी समाज गरीबी अशिक्षा के अभाव में गुलामी का जीवन हैं —
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— इसके हम लोग दोषी है बाबा साहेब आंबेडकर जी ने हमें वोट का अधिकार दिलाया क्यूं नहीं हम लोग अपने वोट की ताकत से ऐसी सरकार बनाये जो हमारे बारे में सोचें समनता समानता की बात करें —
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— सामाजिक क्रांति के अग्रदूत सतगुरू श्री संत शिरोमणि रविदास जी महाराज के कार्यों ने उन्हें जाति-धर्म से ऊपर उठा दिया है ! समाज के सामाजिक समता समानता के आजीवन संघर्ष इस लिए वह हमेशा याद रखे जायेंगे —
— सामाजिक क्रांति के अग्रदूत सतगुरू संत शिरोमणि रविदास जी महाराज को कोटि-कोटि नमन करता हूं —
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— साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए बहुजन नायक मान्यवर कांशीराम साहबजी,बहन मायावती जी ने वह कर दिखाया जो उस दौर में सोच पाना भी मुश्किल था —
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—— वो थे इसलिए आज हम है ——
—— यारों अगर भीम न होते तो बहुजन समाज और महिलाओं का मान सम्मान न होता अगर भीम न होते तो इस देश की मुखिया कोई महिला न होती,ये सूट बूट वाले साहब न होते शोषितों वंचित समाज में ये ऐसो आराम के समान न होते ये आलिशान महल न होते ——
—— अगर इस भारत भूमि पर भीम न होते तो ये बड़ी बड़ी गाडियां, ये शोहरत ये इज्जत, ये अफसरशाही, सत्ता का स्वाद,न होता,ये उस सूर्य कोटि महापुरुष परमपूज्य
बाबा साहेब की देन है जिन्होंने अपने समाज को गुलामी से आजाद कराने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर
कर दिया ——
—— ऐसे महान शख्सियत के चरणों में शत शत नमन करता हूं, मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर वो बाबा थे जिन्होंने अपने समाज के बेटों को बचाने के लिए अपने बच्चों, पत्नी की कुर्बानी दे दी थी समाज के लिए ——
—— जरा हम लोग सोचे कि हमने क्या किया बाबा साहेब के लिए बाबा साहेब की पूजा तो हम बड़ी शिद्दत से करते हैं
ले उनकी बातों को नहीं मानते हैं ऐसे महान शख्सियत,आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक के चरणों में शत शत प्रणाम करता हूं ——
— तो ऐसे थे हमारे आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर —
—— साथियों आज वे हमारे बीच नही है, पर उनके द्वारा किये गए कार्यों,संघर्षों और उनके उपदेशों से हमेशा वे हमारे बीच जीवंत है। संविधान के रचयिता और ऐसे अद्वितीय समाज सुधारक को हमारा कोटि-कोटि नमन ——
— आधुनिक भारत के महानतम समाज सुधारक और सच्चे
महानायक, लेकिन”भारतीय जातिवादी-मानसिकता ने सदा ही इस महापुरुष की उपेक्षा ही की गई |भारत में शायद ही कोई दूसरा व्यक्ति ऐसा हो, जिसने देश के निर्माण,उत्थान और प्रगति के लिए थोड़े समय में इतना कुछ कार्य किया हो, जितना बाबासाहेब आंबेडकर जी ने किया है और शायद ही कोई दूसरा व्यक्ति हो, जो निंदा, आलोचनाओं आदि का उतना शिकार हुआ हो,जितना बाबासाहेब आंबेडकर जी हुए थे —
—— बाबासाहेब आंबेडकर जी ने भारतीय संविधान के तहत कमजोर तबके के लोगों को जो कानूनी हक दिलाये है। इसके लिए बाबा साहेब आंबेडकर जी को कदम-कदम पर काफी संघर्ष करना पड़ा था ——
—— आवो जानें पे बैक टू सोसायटी क्या ——
—— ऐ मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय,ज्ञान,बुद्धि, पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो ——
—— तुम्हारें अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए मैं दुबारा नहीं आऊंगा,ये क्रांति का रथ संघर्षो का कारवां ,जो मैं बड़े दुखों,कष्टों को सहकर यहाँ तक ले आया हूँ,अब आगे तुम्हे ही ले जाना है ——
—— साथियों बाबा साहेब जी अपने अंतरिम दिनोँ में अकेले रोते हुऐ पाए गए। बाबा साहेब अम्बेडकर जी से जब काका कालेलकर कमीशन 1953 में मिलने के लिए गया ,तब कमीशन का सवाल था कि आपने पूरी जिन्दगी पिछड़े,शोषित,वंचित वर्ग समाज के उत्थान के लिए लगा दी काका कालेकर कमीशन ने पूछा बाबा साहेब जी आपकी राय में क्या किया जाना चाहिए बाबा साहेब ने जवाब दिया कि पिछड़े,शोषित,वंचित समाज का उत्थान करना है तो इनके अंदर बड़े लोग पैदा करने होंगें ——
—— काका कालेलकर कमीशन के सदस्यों को यह बात समझ नहीं आई तो उन्होने फिर सवाल किया “बड़े लोग से आपका क्या तात्पर्य है ? " बाबा साहेब जी ने जवाब दिया कि अगर किसी समाज में 10 डॉक्टर , 20 वकील और 30 इन्जिनियर पैदा हो जाऐ तो उस समाज की तरफ कोई आंख ऊठाकर भी देख नहीं सकता !"
—— इस वाकये के ठीक 3 वर्ष बाद 18 मार्च 1956 में आगरा के रामलीला मैदान में बोलते हुऐ बाबा साहेब ने कहा "मुझे पढे लिखे लोगों ने धोखा दिया। मैं समझता था कि ये लोग पढ लिखकर अपने समाज का नेतृत्व करेगें , मगर मैं देख रहा हुँ कि मेरे आस-पास बाबुओं की भीड़ खड़ी हो रही है जो अपना ही पेट पालने में लगी है !"
—— साथियों बाबा साहेब अपने अन्तिम दिनो में अकेले रोते हुए पाए गए ! जब वे सोने की कोशिश करते थे तो उन्हें नींद नहीं आती थी,अत्यधिक परेशान रहने वाले थे बाबा साहेब के निजी सचिव नानकचंद रत्तु ने बाबा साहेब जी से सवाल पुछा कि , आप इतना परेशान क्यों रहते है बाबा साहेब जी ? ऊनका जवाब था , " ——
—— नानकचंद , ये जो तुम दिल्ली देख रहो हो अकेली दिल्ली में 10,000 कर्मचारी ,अधिकारी यह केवल अनुसूचित जाति के है ! जो कुछ साल पहले शून्य थे मैँने अपनी जिन्दगी का सब कुछ दांव पर लगा दिया,अपने लोगों में पढ़े लिखे लोग पैदा करने के लिए क्योंकि मैं जानता था कि जब मैं अकेल पढ लिख कर इतना काम कर सकता हुँ अगर हमारे हजारों लोग पढ लिख जायेगें तो बहुजन समाज में कितना बड़ा परिवर्तन आयेगा लेकिन नानकचंद,मैं जब पुरे देश की तरफ निगाह दौड़ाता हूँ हूँ तो मुझे कोई ऐसा नौजवान नजर नहीं आता है,जो मेरे कारवाँ को आगे ले जा सकता है नानकचंद,मेरा शरीर मेरा साथ नहीं दे रहा है ,जब मैं अपने मिशन के बारे में सोचता हुँ,तो मेरा सीना दर्द से फटने लगता है ——
—— जिस महापुरुष ने अपनी पुरी जिन्दगी,अपना परिवार ,बच्चे आन्दोलन की भेँट चढाए,जिसने पुरी जिन्दगी इस विश्वास में लगा दी कि , पढा -लिखा वर्ग ही अपने शोषित वंचित भाइयों को आजाद करवा सकता हैं जिन्होंने अपने लोगों को आजाद कर पाने का मकसद अपना मकसद बनाया था,क्या उनका सपना पूरा हो गया ? आपके क्या फर्ज बनते हैं समाज के लिए ?
—— सम्मानित साथियों जरा सोचो आज बाबा साहेब की वजह से हम ब्रांडेड कपड़े, ब्रांडेड जूते, ब्रांडेड मोबाइल, ब्रांडेड घड़ियां हर कुछ ब्रांडेड इस्तेमाल करने के लायक बन गए हैं बहुत सारे लोग बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू, शराब पर सैकड़ों रुपये बर्बाद करते हैं ! इस पर औसतन 500 रुपये खर्च आता है,चाउमीन, गोलगप्पे, सूप आदि पर हरोज 20 से 50 रुपये खर्च आता है। महिने में ओसतन 600 से 1500 रुपये तक खर्च हो सकते हैं ——
—— बाबा साहेब के अधिकारों,संघर्षो,प्रावधानों की वजह से जो लोग इस लायक हो गए हैं हम लोगों पर बाबा साहेब ने विश्वास नहीं किया क्योंकि हमने बाबा साहेब के साथ विश्वासघात किया था ! उनके द्वारा दिखाए गए सपनों से हम दूर चले गए नौकरी आयी और आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक बाबा साहेब अम्बेडकर जी को भूल गए ——
——"हमारे उपर बाबा साहेब का बहुत बड़ा कर्ज है,
क्या आप उसे उतार सकते हैं,नहीं रत्तीभर भी नहीं हम जिस शख्स ने इस देश के शोषित,वंचित, पिछले, समाज,सर्वसमाज,महिलाओं भारतवर्ष के लिए अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी,अपने बच्चे,पत्नी अपने सुख चैन सब कुछ कुर्बान कर दिया जरा सोचो किसके लिए आप लोगों के लिए और हम लोग क्या कर रहें हैं टीवी,बीवी में मस्त है मिशन को भूल गये ——
—— लेकिन हमें फिर से पहले की तरह बाबा साहेब को धोखा नहीं देना चाहिए,पढ़े-लिखे लोगो अपने उपर से धोखेबाज का लेबल उतारो और बाबा साहेब के मिशन को आगे बढ़ाओ ——
——आपके बीड़ी, सिगरेट पर खर्च होने वाले 15 रुपये से न जाने कितने बच्चों को शिक्षा मिल सकती है,आपके फास्टफूड पर खर्च होने वाले 50 रुपये से न जाने कितने गरीब लोगों को दवाई मिल सकती है !आपके इन पैसों से न जाने कितने मिशनरी साथियों का खर्च चल रहा है जो पूरा जीवन समाज सेवा मे लगा रहे हैं ——
—— जरा अपने दिल पर हाथ रख कर कहो तुम क्या बाबा साहेब के पे बैक टू सोसाइटी सिद्धांत पर चल रहे हो ——
—— केवल भंडारे देना,चंदा देना,कार्यक्रम करना,ठंडे पानी की स्टाल लगाना पे बैक टू सोसाइटी नहीं है ——
——अपने जैसे सक्षम लोग पैदा करना पे बैक टू सोसाइटी है गरीब बच्चों को शिक्षित करना पे बैक टू सोसाइटी है,शिक्षित लोगों को नौकरियां दिलाना डाक्टर है ——
——बहुजनों को वैज्ञानिक,इंजिनियर,वकील,शिक्षक,डाक्टर इत्यादि बनाना पे बैक टू सोसाइटी है.बाबा साहेब के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए लगे हुए मिशनरियों को मदद देना असली पे बैक टू सोसाइटी है ——
—— आप जो पोजिशन पर है आपका फर्ज बनता है कि मेरे समाज का हर बच्चा उस पोजिशन पर पहुंचे यह पे बैक टू सोसाइटी है,अतः हम पढे-लिखे, नौकरीपेशा समाज से अपील करते हैं कि आप अपने उपर लगे धोखेबाज के लेबल को उतारने की कोशिश करें आपने ग़ैर-भाई बहनों के पास जाओ,उनकी ऊपर उठने में मदद करें,अपने उद्योग धंधे, व्यापार आदि शुरू करें, अपने आप को बेरोजगार बहुजनों के लिए रोजगार की व्यवस्था करें,अपना व्यवसाय शुरू करें, अपने समाज का पैसा अपने समाज में रोकें ——
—— प्रयत्न करें,जब तक बाबा साहेब का पे बैक टू सोसाइटी का सिद्धांत लागू नहीं होगा तब तक देश से गरीबी नहीं मिटेगी ——
—— साभार-: बहुजन समाज और उसकी राजनिति,मेरे संघर्षमय जीवन एवं बहुजन समाज का मूवमेंट {संदर्भ- सलेक्टेड ऑफ डाँ अम्बेडकर – लेखक डी.सी. अहीर पृष्ठ क्रमांक 110 से 112 तक के भाषण का हिन्दी अनुवाद), श्री गुरु रविदास जन-जागृति एवं शिक्षा समिति,(राजी),दलित दस्तक ,समय बुद्धा,,पुस्तक-'डॉ.बाबासाहेब अंबेडकर के महत्वपूर्ण संदेश एवं विद्वत्तापूर्ण कथन' के थर्ड कवर पृष्ठ से,लेखक-नानकचंद रत्तू-अनुवादक-गौरव कुमार रजक, अंकित कुमार गौतम,संपादन-अमोल वज्जी,प्रकाशक-डी के खापर्डे मेमोरियल ट्रस्ट (पब्लिकेशन डिवीजन)527ए, नेहरू कुटिया, निकट अंबेडकर पार्क, कबीर बस्ती, मलका गंज, नई दिल्ली -07, विकिपीडिया} ——
——"सामाजिक क्रांति के अग्रदूत,मानवता की प्रचारक महामानव बाबा साहेब अम्बेडकर जी के चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं ——
— साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए आधुनिक भारत के निर्माता बाबासाहेब अम्बेडकर जी ने वह कर दिखाया जो उस दौर में सोच पाना भी मुश्किल था —
— साथियों आज हमें अगर कहीं भी खड़े होकर अपने विचारों की अभिव्यक्ति करने की आजादी है,समानता का अधिकार है तो यह सिर्फ और सिर्फ परमपूज्य बाबासाहेब आंबेडकर जी के संघर्षों से मुमकिन हो सका है.भारत वर्ष का जनमानस सदैव बाबा साहेब डा भीमराव अंबेडकर जी का कृतज्ञ रहेगा.इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी बात खत्म करता हूं। सामाजिक न्याय के पुरोधा तेजस्वी क्रांन्तिकारी शख्शियत परमपूज्य बोधिसत्व भारत रत्न बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं
— जिसने देश को दी नई दिशा””…जिसने आपको नया जीवन दिया वह है आधुनिक भारत के निर्माता बाबा साहेब अम्बेडकर जी का संविधान —
— सच अक्सर कड़वा लगता है। इसी लिए सच बोलने वाले भी अप्रिय लगते हैं। सच बोलने वालों को इतिहास के पन्नों में दबाने का प्रयास किया जाता है, पर सच बोलने का सबसे बड़ा लाभ यही है, कि वह खुद पहचान कराता है और घोर अंधेरे में भी चमकते तारे की तरह दमका देता है। सच बोलने वाले से लोग भले ही घृणा करें, पर उसके तेज के सामने झुकना ही पड़ता है ! इतिहास के पन्नों पर जमी धूल के नीचे ऐसे ही बहुजन महापुरुषों का गौरवशाली इतिहास दबा है —
―मां कांशीराम साहब जी ने एक एक बहुजन नायक को बहुजन से परिचय कराकर, बहुजन समाज के लिए किए गए कार्य से अवगत कराया सन 1980 से पहले भारत के बहुजन नायक भारत के बहुजन की पहुँच से दूर थे,इसके हमें निश्चय ही मान्यवर कांशीराम साहब जी का शुक्रगुजार होना चाहिए जिन्होंने इतिहास की क्रब में दफन किए गए बहुजन नायक/नायिकाओं के व्यक्तित्व को सामने लाकर समाज में प्रेरणा स्रोत जगाया ——
―इसका पूरा श्रेय मां कांशीराम साहब जी को ही जाता है कि उन्होंने जन जन तक गुमनाम बहुजन नायकों को पहुंचाया, मां कांशीराम साहब के बारे में जान कर मुझे भी लगा कि गुमनाम बहुजन नायकों के बारे में लिखा जाए !
—— ऐ मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय ज्ञान,पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो ——
—―साथियों एक बात याद रखना आज करोड़ों लोग जो बाबासाहेब जी,माँ रमाई के संघर्षों की बदौलत कमाई गई रोटी को मुफ्त में बड़े चाव और मजे से खा रहे हैं ऐसे लोगों को इस बात का अंदाजा भी नहीं है जो उन्हें ताकत,पैसा,इज्जत,मान-सम्मान मिला है वो उनकी बुद्धि और होशियारी का नहीं है बाबासाहेब जी के संघर्षों की बदौलत है ——
—– साथियों आँधियाँ हसरत से अपना सर पटकती रहीं,बच गए वो पेड़ जिनमें हुनर लचकने का था ——
―तमन्ना सच्ची है,तो रास्ते मिल जाते हैं,तमन्ना झूठी है,तो बहाने मिल जाते हैं,जिसकी जरूरत है रास्ते उसी को खोजने होंगें निर्धनों का धन उनका अपना संगठन है,ये मेरे बहुजन समाज के लोगों अपने संगठन अपने झंडे को मजबूत करों शिक्षित हो संगठित हो,संघर्ष करो !
―साथियों झुको नही,बिको नहीं,रुको नही, हौसला करो,तुम हुकमरान बन सकते हो,फैसला करो हुकमरान बनो"
―सम्मानित साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए !
―सभी अम्बेडकरवादी भाईयों, बहनो,को नमो बुद्धाय सप्रेम जयभीम! सप्रेम जयभीम !!
―बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी ने कहा है जिस समाज का इतिहास नहीं होता, वह समाज कभी भी शासक नहीं बन पाता… क्योंकि इतिहास से प्रेरणा मिलती है, प्रेरणा से जागृति आती है, जागृति से सोच बनती है, सोच से ताकत बनती है, ताकत से शक्ति बनती है और शक्ति से शासक बनता है !”
― इसलिए मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर आप लोगो को इतिहास के उन पन्नों से रूबरू कराने की कोशिश कर रहा हूं जिन पन्नों से बहुजन समाज का सम्बन्ध है जो पन्ने गुमनामी के अंधेरों में खो गए और उन पन्नों पर धूल जम गई है, उन पन्नों से धूल हटाने की कोशिश कर रहा हूं इस मुहिम में आप लोगों मेरा साथ दे, सकते हैं !
―पता नहीं क्यूं बहुजन समाज के महापुरुषों के बारे कुछ भी लिखने या प्रकाशित करते समय “भारतीय जातिवादी मीडिया” की कलम से स्याही सूख जाती है —
— इतिहासकारों की बड़ी विडम्बना ये रही है,कि उन्होंने बहुजन नायकों के योगदान को इतिहास में जगह नहीं दी इसका सबसे बड़ा कारण जातिगत भावना से ग्रस्त होना एक सबसे बड़ा कारण है इसी तरह के तमाम ऐसे बहुजन नायक हैं,जिनका योगदान कहीं दर्ज न हो पाने से वो इतिहास के पन्नों में गुम हो गए —
―उन तमाम बहुजन नायकों को मैं अमित गौतम जंनपद रमाबाई नगर,कानपुर कोटि-कोटि नमन करता हूं !
जय रविदास
जय कबीर
जय भीम
जय नारायण गुरु
जय ज्योतिबा फुले
जय सावित्रीबाई फुले
जय माता रमाबाई अम्बेडकर जी
जय ऊदा देवी पासी जी
जय झलकारी बाई कोरी
जय बिरसा मुंडा
जय बाबा घासीदास
जय संत गाडगे बाबा
जय पेरियार रामास्वामी नायकर
जय छत्रपति शाहूजी महाराज
जय शिवाजी महाराज
जय काशीराम साहब
जय मातादीन भंगी जी
जय कर्पूरी ठाकुर
जय पेरियार ललई सिंह यादव
जय मंडल
जय हो उन सभी गुमनाम बहुजन महानायकों की जिंन्होने अपने संघर्षो से बहुजन समाज को एक नई पहचान दी,स्वाभिमान से जीना सिखाया !
अमित गौतम
युवा सामाजिक
कार्यकर्ता
बहुजन समाज
जंनपद-रमाबाई नगर कानपुर
सम्पर्क सूत्र-9452963593
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