बहुजन क्रांति के ध्वजवाहक,बहुजनों के अप्रितम योद्धा,क्रांतिकारी लेखक,प्रकाशक और जातिवाद के विरुद्ध विद्रोही चेतना के प्रखर नायक, उत्तर भारत के पेरियार,स्वतंत्रता सेनानी,मानवता के प्रचारक ललई सिंह यादव के परिनिर्वाण दिवस पर शत्-शत् नमन एंव विनम्र श्रद्धांजलि

       

  7,फरवरी,1993 
   वो थे इसलिए आज हम हैं 
       इतिहास के पन्नों से 
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— बहुजन क्रांति के ध्वजवाहक,बहुजनों के अप्रितम योद्धा, क्रांतिकारी लेखक,प्रकाशक और जातिवाद के विरुद्ध विद्रोही चेतना के प्रखर नायक,बहुजन नायक उत्तर भारत के पेरियार,स्वतंत्रता सेनानी,बहुजन नायक,मानवता के प्रचारक ललई सिंह यादव के परिनिर्वाण दिवस पर शत्-शत् नमन एंव विनम्र श्रद्धांजलि —
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— चलो जी,ये तो कट्टेबाजी है,मैने तोपों की गड़गड़ाहट में जीवन बिताया है — ललई यादव 
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— शायद आप लोगों न पता हो आज बहुजन क्रांति के ध्वजवाहक,बहुजनों के अप्रितम योद्धा,क्रांतिकारी लेखक, प्रकाशक और जातिवाद के विरुद्ध विद्रोही चेतना के प्रखर नायक,बहुजन नायक उत्तर भारत के पेरियार,स्वतंत्रता सेनानी,बहुजन नायक,मानवता के प्रचारक ललई सिंह यादव  है —
— जब हौसला बना लिया ऊंची उड़ान का फिर देखना  फिजूल है,कद आसमान का —                           
— जब जरूरत थी चमन को तो लहू हमने दिया अब बहार आई तो कहते हैं तेरा काम नहीं —
— दर्द सबके एक है,मगर हौंसले सबके अलग अलग है,कोई हताश हो के बिखर गया तो कोई संघर्ष करके निखर गया —
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  — जागो बहुजन समाज जागो अपने इतिहास को पढ़ो —
  — बहुजन समाज के सम्मानित साथियों एंव माता बहनों को सबसे पहले धम्म प्रभात,नमो बुद्धाय,जय भीम मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर, कानपुर आप लोगों को इतिहास के उन पन्नों से रूबरू करवाना चाहता हूँ.जिससे आप लोग शायद अनिभिज्ञ हो
       — जय पेरियार ललई सिंह यादव  —
— आज हम बात कर रहें हैं बहुजन क्रांति के ध्वजवाहक,बहुजनों के इस अप्रितम योद्धा,क्रांतिकारी लेखक, प्रकाशक और जातिवाद के विरुद्ध विद्रोही चेतना के प्रखर नायक,बहुजन नायक उत्तर भारत के पेरियार,स्वतंत्रता सेनानी,बहुजन नायक,मानवता के प्रचारक ललई सिंह यादव की —
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— सम्मानित साथियों आज परमपूज्य बोधिसत्व,विश्वरत्न,बाबासाहेब डॉ.भीमराव अम्बेडकर के मिशन को आजीवन बढ़ाने वाले बहुजनों के इस अप्रितम योद्धा,क्रांतिकारी लेखक,प्रकाशक और जातिवाद के विरुद्ध विद्रोही चेतना के प्रखर नायक,बहुजन नायक उत्तर भारत के पेरियार,स्वतंत्रता सेनानी,बहुजन नायक,मानवता के प्रचारक ललई सिंह यादव के परिनिर्वाण दिवस पर उनके संघर्षो को शत् शत् नमन एंव विनम्र श्रद्धांजलि —
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— सन् 1911 में सितंबर महीने की पहली तारीख को भारत की धरती पर एक ऐसे शख्स का जन्म हुआ जिसने उत्तर भारत में धर्म के ठेकेदारों की चूलें हिला कर रख दी. जी हाँ,बात कर रहा हूँ उत्तर भारत के पेरियार महामना ललई सिंह यादव की —
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— मैं अमित गौतम बहुजन क्रांति के ध्वजवाहक,उत्तर भारत के पेरियार ललई सिंह यादव जी के चरणों में शत्-शत् नमन करता हूँ —
— साथियों मेरे लिए गर्व की बात है जिस क्षेत्र से पेरियार ललई सिंह जी आते हैं उसी क्षेत्र का मैं भी निवासी हूँ —
— बड़े ही दुर्भाग्य की बात पिछड़ो के नायक का परिनिर्वाण दिवस हैं लेकिन ओबीसी समाज के लोगों ने श्रद्धांजलि देना मुनासिब न समझा —
— जागो बहुजन समाज के सम्मानित साथियों जागो अपने पूर्वजों के संघर्षों से कुछ तो सीखों —
"जागो यादव समाज जागो अपने इतिहास को पढ़ो"
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— शोषित समाज को जागृत करने में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा,सामाजिक क्रांति के महानायक दलितों पिछड़ों के सच्चे मशीहा पेरियार ललई सिंह यादव अमर रहें —
— पेरियार ललई सिंह यादव ऐसे योद्धा का नाम है, जिसने शोषण के विरुद्ध आवाज बुलंद की और उपेक्षितों को उनका हक दिलाने के लिए जीवन समर्पित कर दिया —
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— जातिगत भेदभाव पांखडवाद को बढाने वालों  के खिलाफ वास्तविक और ठोस लड़ाई छेड़ने वालों में ललई सिंह यादव (पेरियार) का उल्लेखनीय नाम है —
— बहुजनों के इस अप्रितम योद्धा,क्रांतिकारी लेखक, प्रकाशक और मनुवाद के विरुद्ध विद्रोही चेतना के प्रखर नायक ललई सिंह यादव का जन्म 1,सितम्बर,1911 को कानपुर के रूरा,(झींझक),रमाबाई नगर कानपुर रेलवे स्टेशन के निकट कठारा गाँव में हुआ था पिता गुज्जू सिंह यादव एक कर्मठ  व्यक्ति थे। इनकी माता का नाम मूलादेवी था.मूलादेवी उस क्षेत्र के मकर दादुर गाँव के जनप्रिय नेता साधौ सिंह यादव बेटी थीं —
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 — पेरियार ललई सिंह यादव जी का परिवार अंधविश्वास और रूढ़ीवाद के पीछे दौड़ने वाला नहीं था —
 — साथियों ललई सिंह यादव ने साल 1928 में हिन्दी के साथ उर्दू लेकर मिडिल पास किया. साल 1929 से 1931 तक फॉरेस्ट गार्ड रहे. 1931 में ही का ललई सिंह यादव का विवाह कानपुर के गांव जौला का पुरवा रूरा निवासी सरदार सिंह यादव की पुत्री श्रीमती दुलारी देवी के साथ हुआ विवाह के बाद उन्होंने 1933 में सशस्त्र पुलिस बल की नौकरी के लिए आवेदन किया तो चुन लिये गये। सिपाहियों की हालत उनसे नहीं देखी गयी और यहां भी उन्होंने पुलिस के रहन-सहन को लेकर आवाज बुलंद करनी शुरु कर दी —
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— विद्रोह के चलते 1935 में ललई सिंह यादव को बर्खास्त कर दिया गया. बाद में अपील पर सुनवाई हुई और एचजी वाटर फील्ड डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस ने बहाल कर दिये —
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— 29 मार्च 1947 को ललई यादव को पुलिस व आर्मी में हड़ताल कराने के आरोप में धारा 131 भारतीय दण्ड विधान 
(सैनिक विद्रोह) के अंतर्गत साथियों के साथ राज-बन्दी बनाया गया,6 नवम्बर 1947 को स्पेशल क्रिमिनल सेशन जज ग्वालियर ने 5 साल सश्रम कारावास और पाँच रूपये अर्थ दण्ड का सर्वाधिक दण्ड ग्वालियर नेशनल आर्मी के अध्यक्ष हाई कमाण्डर होने के कारण दी.12 जनवरी 1948 को सिविल साथियों के साथ वो बाहर आए —
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— 1936 में चीफ प्रोसीक्यूटिव इंस्पेक्टर पुलिस हाईकोर्ट एंड अपील डिपार्टमेंट में उनका तबादला कर दिया गया। एक वर्ष बाद वह हेड कांस्टेबिल के पद पर प्रोन्नत कर दिये गये !
1946 में पुलिस एण्ड आर्मी संघ ग्वालियर कायम करके उसके अध्यक्ष चुने गए —
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— उन्होंने हिन्दी में ‘सिपाही की तबाही’ किताब लिखी, जिसने कर्मचारियों को क्रांति के पथ पर विशेष अग्रसर किया। उन्होंने ग्वालियर राज्य की आजादी के लिए जनता तथा सरकारी मुलाजिमान को संगठित करके पुलिस और फौज में हड़ताल कराई —
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—पेरियार ललई सिंह यादव ने जवानों से कहा कि बलिदान न सिंह का होते सुना,बकरे बलि बेदी पर लाए गए,विषधारी को दूध पिलाया गया,केंचुए कटिया में फंसाए गए,न काटे टेढ़े पादप गए,सीधों पर आरे चलाए गए.बलवान का बाल न बांका भया,बलहीन सदा तड़पाए गए, हमें रोटी कपड़ा मकान चाहिए —
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— उपेक्षित व शोषित लोगों के अधिकारों की लड़ाई लड़ते हुए कई साल बीत गये —
— साथियों क्या आपको पता है रामस्वरूप वर्मा जी के साथ मिल कर लड़ी लड़ाई पेरियार ललई सिंह यादव ने अर्जक संघ के संस्थापक महामना रामस्वरूप वर्मा के साथ मिलकर सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव के आन्दोलन में संघर्ष किया. उन्हीं के सहयोग से डॉ. आंबेडकर की किताब ‘सम्मान के लिए धर्म परिवर्तन’ पर से बैन हटाने के लिए कोर्ट में केस दर्ज किया और किताब पर से प्रतिबंध हटवाया —
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— पेरियार ललई सिंह यादव ने हिंदी में पाँच नाटक लिखे —
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1.अंगुलीमाल नाटक,
2.शम्बूक वध,
3.सन्त माया बलिदान,
4.एकलव्य, और 
5.नाग यज्ञ नाटक.
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— इसके अतिरिक्त 1926 में लिखित स्वामी अछूतानन्द के अनुपलब्ध नाटक ‘सन्त माया बलिदान’ का पुनर्लेखन भी उन्होंने किया. नाटकों के अलावा पेरियार ललई सिंह यादव ने तीन वैचारिक पुस्तकें लिखीं —
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1. शोषितों पर धार्मिक डकैती,
2. शोषितों पर राजनीतिक डकैती, और
3. सामाजिक विषमता कैसे समाप्त हो?
— दक्षिण भारत के महान क्रान्तिकारी पेरियार ई. वी. रामस्वामी नायकर के उस समय उत्तर भारत में कई दौरे किए थे। ललई यादव इनके सम्पर्क में आए —
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— साथियों पेरियार रामास्वामी नायकर के सम्पर्क के बाद उन्होंने उनकी लिखित ‘रामायण ए टू रीडिंग’ में विशेष अभिरूचि दिखाई। साथ ही उन्होंने इस किताब का खूब प्रचार-प्रसार किया —
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— 1 जुलाई 1968 में पेरियार रामास्वामी नायकर की अनुमति के बाद ललई यादव ने उनकी किताब को हिंदी में छापने की साची —
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— ‘सच्ची रामायण’ का मामला अभी चल ही रहा था कि 10 मार्च 1970 में एक और किताब सम्मान के लिए ‘धर्म परिवर्तन करें’ (जिसमें डाॅ. अम्बेडकर के कुछ भाषण थे) और ‘जाति भेद का उच्छेद’ 12 सितम्बर 1970 को सरकार ने जब्त कर लिया —
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— इसके लिए भी ललई सिंह यादव ने एडवोकेट बनवारी लाल यादव के सहयोग से मुकदमें की पैरवी की। मुकदमे की जीत के बाद 14 मई 1971 को यूपी सरकार ने इन किताबों के जब्त के आदेश को निरस्त किया —
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— इसके बाद ललई सिंह यादव की किताब ‘आर्यो का नैतिक पोल प्रकाश’ के खिलाफ 1973 में मुकदमा चला। यह मुकदमा उनके जीवन पर्यन्त चलता रहा —
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— साहित्य प्रकाशन के लिए उन्होंने एक के बाद एक तीन प्रेस खरीदे। शोषित पिछड़े समाज में स्वाभिमान व सम्मान को जगाने और उनमें व्याप्त अज्ञान, अंधविश्वास, जातिवाद तथा ब्राह्मणवादी परम्पराओं को ध्वस्त करने के उद्देश्य से सारा जीवन लघु साहित्य के प्रकाशन की धुन में लगा दिया !
हाईकोर्ट में हारने के बाद यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट दिल्ली में अपील दायर कर दी। यहाँ भी ललई सिंह यादव की सच्ची रामायण की जीत हुई —
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— इसके लगभग दो दशक बाद उत्तर भारत में बहुजन समाज पार्टी के उदय के साथ 'सच्ची रामायण' ही नहीं, पेरियार के विचारों वाली तमाम और पुस्तिकाएं भी गांव-गांव पहुंचीं —
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— बाबा साहेब डॉ.भीमराव अम्बेडकर से पेरियार ललई सिंह यादव बहुत प्रभावित थे पेरियार ललई यादव बौद्ध धर्म में जाने के इच्छुक थे पर उनका प्रण था कि जिस गुरु से बाबा साहब अंबेडकर ने दीक्षा ली है उसी गुरु से वह दीक्षा लेंगे। उनके इस प्रण के चलते ही दीक्षा कार्यक्रम काफी दिनों तक टलता रहा। 21 जुलाई 1967 को उन्होंने कुशीनगर जाकर भदन्त चन्द्रमणि महास्थिविर से दीक्षा लेकर बौद्ध धम्म भी स्वीकार कर लिया —
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— बौद्ध धम्म अपनाने के बाद यह घोषण कि- “आज से मैं मनुष्य हूँ, मानवतावादी हूँ, आज से मैं सिर्फ ललई हूँ ।”
उस दिन से उन्होंने अपने नाम के आगे लगने वाले सामंतवादी व्यवस्था-सूचक  शब्द (सिंह,यादव) सदा के लिए तोड़ दिए —
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— सत्तर के दशक में,बहुजन नेता और विचारक रामस्वरूप वर्मा ने दलित-पिछड़ों में ब्राह्मणवाद के उन्मूलन के लिए अर्जक विचारधारा चलाई थी। उस समय वर्मा जी उत्तर प्रदेश सरकार में वित्त मन्त्री थे। उन्होंने लखनऊ से ‘अर्जक’ अखबार निकाला था, जो साप्ताहिक था और बाद में इसी नाम से राजनीतिक पार्टी भी बनाई थी। इसी अर्जक आन्दोलन से ललई सिंह जी भी जुड़ गए थे। समान वैचारिकी ने उन्हें और वर्मा जी, दोनों को एक-दूसरे का घनिष्ठ साथी बना दिया था। वर्मा जी ने ललई सिंह जी के निधन पर एक मार्मिक संस्मरण उनके अभिन्न सहयोगी जगन्नाथ आदित्य को सुनाया था, जिसका उल्लेख उन्होंने अपनी किताब में इस प्रकार किया है —
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— ‘वह हमारे चुनाव प्रचार में भूखे-प्यासे एक स्थान से दूसरे स्थान भागते। बोलने में कोई कसर नहीं रखते। उनके जैसा निर्भीक भी मैंने दूसरा नहीं देखा —
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 — एक बार चुनाव प्रचार से लौटे पैरियर ललई सिंह जी को मेरे साथी ट्रैक्टर ट्राली से लिए जा रहे थे। जैसे ही खटकर गाँव के समीप से ट्रैक्टर निकला, उन पर गोली चला दी गई। संकट का आभास पाते ही वह कुछ झुक गए, गोली कान के पास से निकल गई। लोगों ने गाँव में चलकर रुकने का दबाव डाला. किन्तु वह नहीं माने निर्भीकता से उन्होंने कहा,  ‘चलो जी, यह तो कट्टेबाजी है,मैंने तो तोपों की गड़गड़ाहट में रोटियां सेकीं हैं।’
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— 24,दिसम्बर,1973 ई. को पेरियार ई.वी. रामास्वामी के निर्वाण हुआ। उनके निर्वाण के बाद 30,दिसम्बर,1974 को उनकी याद में महान स्मृति सभा हुई। जिसमें दुनिया के महान चिंतक-बुद्धिजीवी आए और अपने विचार रखे —
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— ललई यादव ने भी अपना मत रखा। ये मिथक धर्म और संस्कृति पर उसी तरह प्रहार कर रहे थे जैसे पेरियार ईवी रामास्वामी करते थे। इस पर उस स्मृति सभा में उपस्थित कई लाख लोगों ने कहा- हमें हमारे पेरियार मिल गए —
— पेरियार रामास्वामी की ही तरह ललई भी कड़क आवाज में मिथक और धर्म पर तार्किक-तथ्यात्मक प्रहार कर रहे थे . लोगों को लगा कि जैसे पेरियार रामास्वामी ही हम सभी को संबोधित कर रहे हों . वहां उपस्थित जनता हैरत में थी.इनके इस व्यक्तित्व से प्रभावित होने के कारण उपस्थित जनता ने कहा – ‘ये तो हमारे नए पेरियार हैं l.आज हमें पेरियार मिल गये.अब हमारे नए पेरियार यही होंगे —
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— इस तरह ‘ललई’ से ‘पेरियार ललई’ हो गए l वहीं से इन्हें जनता ने ‘उत्तर भारत का पेरियार’ कहना शुरू किया l इस प्रकार ‘उत्तर भारत के पेरियार’ ‘पेरियार ललई’ हुए —
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— 7,फरवरी,1993 को पेरियार ललई यादव का परिनिर्वाण हो गया। शोषित समाज को जागृत करने में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा —
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— साथियों पेरियार ललई सिंह यादव जैसे योद्धा के लिए किसी स्थान या सम्मान की जरूरत नहीं है क्यों कि पेरियार ललई सिंह यादव तो खुद एक सम्मान का नाम है —
— पेरियार ललई सिंह यादव के कार्यों ने उन्हें जाति-धर्म से ऊपर उठा दिया है.इस लिए वह हमेशा याद रखे जायेंगे —
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— सम्मानित साथियों ऐसे महामानव,क्रांतिकारी को एक क्रांतिकारी को मेरा नीला सलाम. कोटि-कोटि नमन करता हूं मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी बात खत्म करता हूं —
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— सामाजिक न्याय के पुरोधा तेजस्वी क्रांन्तिकारी शख्शियत,बहुजन क्रांति के ध्वजवाहक पेरियार ललई सिंह यादव चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं —
— साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए —
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— साभार-: बहुजन समाज और उसकी राजनीति,मेरे संघर्षमय जीवन एवं बहुजन समाज का मूवमेंट,नेशनल जनमत,दलित दस्तक,विकिपीडिया —
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—— वो थे इसलिए आज हम है ——
—— यारों अगर भीम न होते तो बहुजन समाज और महिलाओं का मान सम्मान न होता अगर भीम न होते तो इस देश की मुखिया कोई महिला न होती,ये सूट बूट वाले साहब न होते शोषितों वंचित समाज में ये ऐसो आराम के समान न होते ये आलिशान महल न होते ——
   —— अगर इस भारत भूमि पर भीम न होते तो ये बड़ी बड़ी गाडियां, ये शोहरत ये इज्जत, ये अफसरशाही, सत्ता का स्वाद,न होता,ये उस सूर्य कोटि महापुरुष परमपूज्य 
बाबा साहेब की देन है जिन्होंने अपने समाज को गुलामी से आजाद कराने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर
 कर दिया ——
—— ऐसे महान शख्सियत के चरणों में शत शत नमन करता हूं, मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर वो बाबा थे जिन्होंने अपने समाज के बेटों को बचाने के लिए अपने बच्चों, पत्नी की कुर्बानी दे दी थी समाज के लिए ——
—— जरा हम लोग सोचे कि हमने क्या किया बाबा साहेब के लिए बाबा साहेब की पूजा तो हम बड़ी शिद्दत से करते हैं
ले उनकी बातों को नहीं मानते हैं ऐसे महान शख्सियत,आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक के चरणों में शत शत प्रणाम करता हूं ——
—  तो ऐसे थे हमारे आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर — 
—— साथियों आज वे हमारे बीच नही है, पर उनके द्वारा किये गए कार्यों,संघर्षों और उनके उपदेशों से हमेशा वे हमारे बीच जीवंत है। संविधान के रचयिता और ऐसे अद्वितीय समाज सुधारक को हमारा कोटि-कोटि नमन ——
 — आधुनिक भारत के महानतम समाज सुधारक और सच्चे
 महानायक, लेकिन”भारतीय जातिवादी-मानसिकता ने सदा ही इस महापुरुष की उपेक्षा ही की गई |भारत में शायद ही कोई दूसरा व्यक्ति ऐसा हो, जिसने देश के निर्माण,उत्थान और प्रगति के लिए थोड़े समय में इतना कुछ कार्य किया हो, जितना बाबासाहेब आंबेडकर जी ने किया है और शायद ही कोई दूसरा व्यक्ति हो, जो निंदा, आलोचनाओं आदि का उतना शिकार हुआ हो,जितना बाबासाहेब आंबेडकर जी हुए थे —
—— बाबासाहेब आंबेडकर जी ने भारतीय संविधान के तहत कमजोर तबके के लोगों को जो कानूनी हक दिलाये है। इसके लिए बाबा साहेब आंबेडकर जी को कदम-कदम पर काफी संघर्ष करना पड़ा था ——
—— आवो जानें पे बैक टू सोसायटी क्या ——
—— ऐ मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय,ज्ञान,बुद्धि, पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो ——
—— तुम्हारें अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए मैं दुबारा नहीं आऊंगा,ये क्रांति का रथ संघर्षो का कारवां ,जो मैं बड़े दुखों,कष्टों को सहकर यहाँ तक ले आया हूँ,अब आगे तुम्हे ही ले जाना है  ——
—— साथियों बाबा साहेब जी अपने अंतरिम दिनोँ में अकेले रोते हुऐ पाए गए। बाबा साहेब अम्बेडकर जी से जब काका कालेलकर कमीशन 1953 में मिलने के लिए गया ,तब कमीशन का सवाल था कि आपने पूरी जिन्दगी पिछड़े,शोषित,वंचित वर्ग समाज  के उत्थान के लिए लगा दी काका कालेकर कमीशन ने पूछा बाबा साहेब जी आपकी राय में क्या किया जाना चाहिए बाबा साहेब ने जवाब दिया कि पिछड़े,शोषित,वंचित समाज का उत्थान करना है तो इनके अंदर बड़े लोग पैदा करने होंगें ——
—— काका कालेलकर कमीशन के सदस्यों को यह बात समझ नहीं आई  तो उन्होने फिर सवाल किया “बड़े लोग से आपका क्या तात्पर्य है ? " बाबा साहेब जी ने जवाब दिया कि अगर किसी समाज में 10 डॉक्टर , 20 वकील और 30 इन्जिनियर पैदा हो जाऐ तो उस समाज की तरफ कोई आंख ऊठाकर भी देख नहीं सकता !"
—— इस वाकये के ठीक 3 वर्ष बाद 18 मार्च 1956 में आगरा के रामलीला मैदान में बोलते हुऐ बाबा साहेब ने कहा "मुझे पढे लिखे लोगों ने धोखा दिया। मैं समझता था कि ये लोग पढ लिखकर अपने समाज का नेतृत्व करेगें , मगर मैं देख रहा हुँ कि  मेरे आस-पास बाबुओं की भीड़ खड़ी हो रही है जो अपना ही पेट पालने में लगी है !" 
—— साथियों बाबा साहेब अपने अन्तिम दिनो में अकेले रोते हुए पाए गए ! जब वे सोने की कोशिश करते थे तो उन्हें नींद नहीं आती थी,अत्यधिक परेशान रहने वाले थे बाबा साहेब के निजी सचिव  नानकचंद रत्तु ने बाबा साहेब जी से सवाल पुछा कि , आप इतना परेशान क्यों रहते है बाबा साहेब जी ? ऊनका जवाब था , " ——
—— नानकचंद , ये जो तुम दिल्ली देख रहो हो अकेली दिल्ली में 10,000 कर्मचारी ,अधिकारी यह केवल अनुसूचित जाति के है  ! जो कुछ साल पहले शून्य थे मैँने अपनी जिन्दगी का सब कुछ दांव पर लगा दिया,अपने लोगों में पढ़े लिखे लोग पैदा करने के लिए क्योंकि  मैं जानता था कि जब मैं अकेल पढ लिख कर इतना काम कर सकता हुँ  अगर हमारे हजारों लोग पढ लिख जायेगें तो बहुजन समाज में कितना बड़ा परिवर्तन आयेगा लेकिन नानकचंद,मैं जब पुरे देश की तरफ निगाह दौड़ाता हूँ हूँ तो मुझे कोई ऐसा  नौजवान नजर नहीं आता है,जो मेरे कारवाँ को आगे ले जा सकता है नानकचंद,मेरा शरीर मेरा साथ नहीं दे रहा है ,जब मैं अपने मिशन के बारे में सोचता हुँ,तो मेरा सीना दर्द से फटने लगता है ——
—— जिस महापुरुष ने अपनी पुरी जिन्दगी,अपना परिवार ,बच्चे आन्दोलन की भेँट चढाए,जिसने पुरी जिन्दगी इस विश्वास में लगा दी  कि , पढा -लिखा वर्ग ही अपने शोषित वंचित भाइयों को आजाद करवा सकता हैं जिन्होंने अपने लोगों को आजाद कर पाने का मकसद अपना मकसद बनाया था,क्या उनका सपना पूरा हो गया ? आपके क्या फर्ज  बनते हैं समाज के लिए ?
—— सम्मानित साथियों जरा सोचो आज बाबा साहेब की वजह से हम ब्रांडेड कपड़े, ब्रांडेड जूते, ब्रांडेड मोबाइल, ब्रांडेड घड़ियां हर कुछ ब्रांडेड इस्तेमाल करने के लायक बन गए हैं बहुत सारे लोग बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू, शराब पर सैकड़ों रुपये बर्बाद करते हैं ! इस पर औसतन 500 रुपये खर्च आता है,चाउमीन, गोलगप्पे, सूप आदि पर हरोज 20 से 50 रुपये खर्च आता है। महिने में ओसतन 600 से 1500 रुपये तक खर्च हो सकते हैं ——
—— बाबा साहेब के अधिकारों,संघर्षो,प्रावधानों की वजह से जो लोग इस लायक हो गए हैं  हम लोगों पर बाबा साहेब ने विश्वास नहीं किया क्योंकि हमने बाबा साहेब के साथ विश्वासघात किया था ! उनके द्वारा दिखाए गए सपनों से हम दूर चले गए नौकरी आयी और आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक बाबा साहेब अम्बेडकर जी को भूल गए —— 
——"हमारे उपर बाबा साहेब का बहुत बड़ा कर्ज है, 
क्या आप उसे उतार सकते हैं,नहीं रत्तीभर भी नहीं हम जिस शख्स ने इस देश के शोषित,वंचित, पिछले, समाज,सर्वसमाज,महिलाओं भारतवर्ष के लिए अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी,अपने बच्चे,पत्नी अपने सुख चैन सब कुछ कुर्बान कर दिया जरा सोचो किसके लिए आप लोगों के लिए और हम लोग क्या कर रहें हैं टीवी,बीवी में मस्त है मिशन को भूल गये ——
—— लेकिन हमें फिर से पहले की तरह बाबा साहेब को धोखा नहीं देना चाहिए,पढ़े-लिखे लोगो अपने उपर से धोखेबाज का लेबल उतारो और बाबा साहेब के मिशन को आगे बढ़ाओ ——
——आपके बीड़ी, सिगरेट पर खर्च होने वाले 15 रुपये से न जाने कितने बच्चों को शिक्षा मिल सकती है,आपके फास्टफूड पर खर्च होने वाले 50 रुपये से न जाने कितने गरीब लोगों को दवाई मिल सकती है !आपके इन पैसों से न जाने कितने मिशनरी साथियों का खर्च चल रहा है जो पूरा जीवन समाज सेवा मे लगा रहे हैं ——
—— जरा अपने दिल पर हाथ रख कर कहो तुम क्या बाबा साहेब के पे बैक टू सोसाइटी सिद्धांत पर चल रहे हो ——
—— केवल भंडारे देना,चंदा देना,कार्यक्रम करना,ठंडे पानी की स्टाल लगाना पे बैक टू सोसाइटी नहीं है ——
——अपने जैसे सक्षम लोग पैदा करना पे बैक टू सोसाइटी है गरीब बच्चों को शिक्षित करना पे बैक टू सोसाइटी है,शिक्षित लोगों को नौकरियां दिलाना डाक्टर है ——
——बहुजनों को वैज्ञानिक,इंजिनियर,वकील,शिक्षक,डाक्टर इत्यादि बनाना पे बैक टू सोसाइटी है.बाबा साहेब के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए लगे हुए मिशनरियों को मदद देना असली पे बैक टू सोसाइटी है ——
—— आप जो पोजिशन पर है आपका फर्ज बनता है कि मेरे समाज का हर बच्चा उस पोजिशन पर पहुंचे यह पे बैक टू सोसाइटी है,अतः हम पढे-लिखे, नौकरीपेशा समाज से अपील करते हैं कि आप अपने उपर लगे धोखेबाज के लेबल को उतारने की कोशिश करें आपने ग़ैर-भाई बहनों के पास जाओ,उनकी ऊपर उठने में मदद करें,अपने उद्योग धंधे, व्यापार आदि शुरू करें, अपने आप को बेरोजगार बहुजनों के लिए रोजगार की व्यवस्था करें,अपना व्यवसाय शुरू करें, अपने समाज का पैसा अपने समाज में रोकें ——
 —— प्रयत्न करें,जब तक बाबा साहेब का पे बैक टू सोसाइटी  का सिद्धांत लागू नहीं होगा तब तक देश से गरीबी नहीं मिटेगी ——
——  साभार-: बहुजन समाज और उसकी राजनिति,मेरे संघर्षमय जीवन एवं बहुजन समाज का मूवमेंट {संदर्भ- सलेक्टेड ऑफ डाँ अम्बेडकर – लेखक डी.सी. अहीर पृष्ठ क्रमांक 110 से 112 तक के भाषण का हिन्दी अनुवाद), श्री गुरु रविदास जन-जागृति एवं शिक्षा समिति,(राजी),दलित दस्तक ,समय बुद्धा,,पुस्तक-'डॉ.बाबासाहेब अंबेडकर के महत्वपूर्ण संदेश एवं विद्वत्तापूर्ण कथन' के थर्ड कवर पृष्ठ से,लेखक-नानकचंद रत्तू-अनुवादक-गौरव कुमार रजक, अंकित कुमार गौतम,संपादन-अमोल वज्जी,प्रकाशक-डी के खापर्डे मेमोरियल ट्रस्ट (पब्लिकेशन डिवीजन)527ए, नेहरू कुटिया, निकट अंबेडकर पार्क, कबीर बस्ती, मलका गंज, नई दिल्ली -07, विकिपीडिया} ——
 ——"सामाजिक क्रांति के अग्रदूत,मानवता की प्रचारक महामानव बाबा साहेब अम्बेडकर जी के  चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं ——
— साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए आधुनिक भारत के निर्माता बाबासाहेब अम्बेडकर जी ने वह कर दिखाया जो उस दौर में सोच पाना भी मुश्किल था —  
— साथियों आज हमें अगर कहीं भी खड़े होकर अपने विचारों की अभिव्यक्ति करने की आजादी है,समानता का अधिकार है तो यह सिर्फ और सिर्फ परमपूज्य बाबासाहेब आंबेडकर जी के संघर्षों से मुमकिन हो सका है.भारत वर्ष का जनमानस सदैव बाबा साहेब डा भीमराव अंबेडकर जी का कृतज्ञ रहेगा.इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी बात खत्म करता हूं। सामाजिक न्याय के पुरोधा तेजस्वी क्रांन्तिकारी शख्शियत परमपूज्य बोधिसत्व भारत रत्न बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं 
      — जिसने देश को दी नई दिशा””…जिसने आपको नया जीवन दिया वह है आधुनिक भारत के निर्माता बाबा साहेब अम्बेडकर जी का संविधान —
  — सच  अक्सर कड़वा लगता है। इसी लिए सच बोलने वाले भी अप्रिय लगते हैं। सच बोलने वालों को इतिहास के पन्नों में दबाने का प्रयास किया जाता है, पर सच बोलने का सबसे बड़ा लाभ यही है, कि वह खुद पहचान कराता है और घोर अंधेरे में भी चमकते तारे की तरह दमका देता है। सच बोलने वाले से लोग भले ही घृणा करें, पर उसके तेज के सामने झुकना ही पड़ता है ! इतिहास के पन्नों पर जमी धूल के नीचे ऐसे ही बहुजन महापुरुषों का गौरवशाली इतिहास दबा है —
     ―मां कांशीराम साहब जी ने एक एक बहुजन नायक को बहुजन से परिचय कराकर, बहुजन समाज के लिए किए गए कार्य से अवगत कराया सन 1980 से पहले भारत के  बहुजन नायक भारत के बहुजन की पहुँच से दूर थे,इसके हमें निश्चय ही मान्यवर कांशीराम साहब जी का शुक्रगुजार होना चाहिए जिन्होंने इतिहास की क्रब में दफन किए गए बहुजन नायक/नायिकाओं के व्यक्तित्व को सामने लाकर समाज में प्रेरणा स्रोत जगाया ——
   ―इसका पूरा श्रेय मां कांशीराम साहब जी को ही जाता है कि उन्होंने जन जन तक गुमनाम बहुजन नायकों को पहुंचाया, मां कांशीराम साहब के बारे में जान कर मुझे भी लगा कि गुमनाम बहुजन नायकों के बारे में लिखा जाए !
   —— ऐ मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय ज्ञान,पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो ——
      —―साथियों एक बात याद रखना आज करोड़ों लोग जो बाबासाहेब जी,माँ रमाई के संघर्षों की बदौलत कमाई गई रोटी को मुफ्त में बड़े चाव और मजे से खा रहे हैं ऐसे लोगों को इस बात का अंदाजा भी नहीं है जो उन्हें ताकत,पैसा,इज्जत,मान-सम्मान मिला है वो उनकी बुद्धि और होशियारी का नहीं है बाबासाहेब जी के संघर्षों की बदौलत है ——
      —– साथियों आँधियाँ हसरत से अपना सर पटकती रहीं,बच गए वो पेड़ जिनमें हुनर लचकने का था ——
       ―तमन्ना सच्ची है,तो रास्ते मिल जाते हैं,तमन्ना झूठी है,तो बहाने मिल जाते हैं,जिसकी जरूरत है रास्ते उसी को खोजने होंगें निर्धनों का धन उनका अपना संगठन है,ये मेरे बहुजन समाज के लोगों अपने संगठन अपने झंडे को मजबूत करों शिक्षित हो संगठित हो,संघर्ष करो !
      ―साथियों झुको नही,बिको नहीं,रुको नही, हौसला करो,तुम हुकमरान बन सकते हो,फैसला करो हुकमरान बनो"
       ―सम्मानित साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए !
        ―सभी अम्बेडकरवादी भाईयों, बहनो,को नमो बुद्धाय सप्रेम जयभीम! सप्रेम जयभीम !!
             ―बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर  जी ने कहा है जिस समाज का इतिहास नहीं होता, वह समाज कभी भी शासक नहीं बन पाता… क्योंकि इतिहास से प्रेरणा मिलती है, प्रेरणा से जागृति आती है, जागृति से सोच बनती है, सोच से ताकत बनती है, ताकत से शक्ति बनती है और शक्ति से शासक बनता है !”
        ― इसलिए मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर आप लोगो को इतिहास के उन पन्नों से रूबरू कराने की कोशिश कर रहा हूं जिन पन्नों से बहुजन समाज का सम्बन्ध है जो पन्ने गुमनामी के अंधेरों में खो गए और उन पन्नों पर धूल जम गई है, उन पन्नों से धूल हटाने की कोशिश कर रहा हूं इस मुहिम में आप लोगों मेरा साथ दे, सकते हैं !
           ―पता नहीं क्यूं बहुजन समाज के महापुरुषों के बारे कुछ भी लिखने या प्रकाशित करते समय “भारतीय जातिवादी मीडिया” की कलम से स्याही सूख जाती है —
— इतिहासकारों की बड़ी विडम्बना ये रही है,कि उन्होंने बहुजन नायकों के योगदान को इतिहास में जगह नहीं दी इसका सबसे बड़ा कारण जातिगत भावना से ग्रस्त होना एक सबसे बड़ा कारण है इसी तरह के तमाम ऐसे बहुजन नायक हैं,जिनका योगदान कहीं दर्ज न हो पाने से वो इतिहास के पन्नों में गुम हो गए —
     ―उन तमाम बहुजन नायकों को मैं अमित गौतम जंनपद   रमाबाई नगर,कानपुर कोटि-कोटि नमन करता हूं !
जय रविदास
जय कबीर
जय भीम
जय नारायण गुरु
जय ज्योतिबा फुले 
जय सावित्रीबाई फुले
जय माता रमाबाई अम्बेडकर जी
जय ऊदा देवी पासी जी
जय झलकारी बाई कोरी
जय बिरसा मुंडा
जय बाबा घासीदास
जय संत गाडगे बाबा
जय पेरियार रामास्वामी नायकर
जय छत्रपति शाहूजी महाराज
जय शिवाजी महाराज
जय काशीराम साहब
जय मातादीन भंगी जी
जय कर्पूरी ठाकुर 
जय पेरियार ललई सिंह यादव
जय मंडल
जय हो उन सभी गुमनाम बहुजन महानायकों की जिंन्होने अपने संघर्षो से बहुजन समाज को एक नई पहचान दी,स्वाभिमान से जीना सिखाया !    
              अमित गौतम
             युवा सामाजिक
                कार्यकर्ता         
              बहुजन समाज
  जंनपद-रमाबाई नगर कानपुर
           सम्पर्क सूत्र-9452963593












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