बाबा साहेब अम्बेडकर को युगपुरूष बनाने वाली राष्ट्रमाता,आई साहेब रमाई अम्बेडकर की जंयती की हार्दिक बधाईयां एवं शत्-शत् नमन

            
07,फरवरी,1898 
     वो थी इसलिए आज हम हैं
           इतिहास के पन्नों से
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—  परमपूज्य बोधिसत्व भारत रत्न बाबासाहेब अम्बेडकर जी को महापुरुष,युग प्रवर्तक बनाने वाली,त्याग समर्पण महान शख्सियत की प्रतीक महिलाओं के संघर्षो की मिशाल महानायिका राष्ट्रमाता,आई साहेब रमाई अम्बेडकर की जंयती की हार्दिक बधाईयां एवं शत्-शत् नमन —
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‘मातोश्री’ रमाबाई : वह महिला, जिसके त्याग ने ‘भीमा’ को बनाया ‘डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर ’!
— जब जरूरत थी चमन को तो लहू हमने दिया अब बहार आई तो कहते हैं तेरा काम नहीं —
— धम्म प्रेमियों बहुजन समाज के इतिहास को एक शेर में बताया जा सकता है,शेर इस प्रकार है —
— जब हम संगठित हुए तो सारी दुनिया पे छा गए जब हम बिखरे तो ठोकरों पे आ गए —
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 — जागो बहुजन समाज जागो अपने इतिहास को पढ़ो —
  — बहुजन समाज के सम्मानित साथियों एंव माता बहनों को सबसे पहले धम्म प्रभात,नमो बुद्धाय,जय भीम मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर, कानपुर आप लोगों को इतिहास के उन पन्नों से रूबरू करवाना चाहता हूँ ! जिससे आप लोग शायद अनिभिज्ञ हो —
— दर्द सबके एक है,मगर हौंसले सबके अलग अलग है,कोई हताश हो के बिखर गया तो कोई संघर्ष करके निखर गया —
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    — जय राष्ट्रमाता,आई साहेब रमाई अम्बेडकर   की—
— आज हम बात कर रहें हैं आज परमपूज्य बोधिसत्व भारत रत्न बाबासाहेब अम्बेडकर जी को महापुरुष,युग प्रवर्तक बनाने वाली,परमपूज्यनीय त्याग समर्पण महान शख्सियत की प्रतीक महिलाओं के संघर्षो की मिशाल महानायिका राष्ट्रमाता,आई साहेब रमाई अम्बेडकर की —
— साधारणतः महापुरुषों के जीवन में यह एक सुखद बात होती रही है कि उन्हें जीवन साथी बहुत ही साधारण और अच्छे मिलते रहे । बाबासाहब भी ऐसे ही महापुरुषों में से एक थे, जिन्हें आई साहेब रमाबाई जैसी बहुत ही नेक और आज्ञाकारी जीवन साथी मिली —
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      — जालिमों से लड़ती भीम की रमाई थी,मजलूमों को बढ़ के जो,आँचल उढ़ाई थी,जाति धर्म चक्की में पिसते अवाम को दलदल में डूबते समाज को बचाई थी,एक-एक पैसे से,भीम को पढ़ाई थी मेहनत मजदूरी से जो भी जुटाई थींगोबर इकट्ठा बना कण्डी के उपले,बज़ारों में बेच कैसे घर को चलाई थी —
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 — अमेरिका से लंदन,बैरिस्टर से डाक्टर,हौसला हर मोड़ पर रमाई बढ़ाई थी,भूखे पेट बच्चे कुपोषित ही मर गये,जब रोटी न पैसा न घर में दवाई थी,तड़पते मरते गये गोद में यूं लाल, सभी खुशी की उम्मीदों संग कैसी जुदाई थी,भूखी प्यासी वो बीमार कई रात रही,माँ ने लोगों के लिये खुद को मिटाई थी 
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— रमा की आँसू में भीम विदेशों में बहते थे,मगर इस तूफान में भी कश्ती चलाई थी,विद्वान हो महान भीम रामू न भूल सके,तन और मन से जो उनकी सगाई थी,खून व पसीने से सींचती थी क्यारियाँ,हँसते चमन की कली जो मुरझाई थी
एक तरफ फूले सावित्री थे साथ लड़े “बागी” भीम साथ वैसे मेरी रमाई थी —

— सम्मानित साथियों परमपूज्यनीय त्याग समर्पण महान शख्सियत की प्रतीक महिलाओं के संघर्षो की मिशाल राष्ट्रमाता, आई साहेब रमाबाई अंबेडकर की जंयती के पावन अवसर पर शत्-शत् नमन एंव विनम्र श्रद्धांजलि —
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— साथियों जब कभी भी भारतवर्ष के बहुजनों की महिलाओं के सशक्तिकरण का इतिहास लिखा जाएगा तो इसकी शुरुआत बाबा साहेब अम्बेडकर और राष्ट्रमाता,आई साहेब रमाई से शुरू होगी —
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 —  जागो बहुजन समाज जागोअपने इतिहास को पढ़ो —
— बहुजन समाज के सम्मानित साथियों एंव माता बहनों को सबसे पहले धम्म प्रभात,नमो बुद्धाय,जय भीम मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर, कानपुर आप लोगों को इतिहास के उन पन्नों से रूबरू करवाना चाहता हूँ ! जिससे आप लोग शायद अनिभिज्ञ हो —
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‘भारतीय संविधान के निर्माता’ और भारत के पहले कानून मंत्री, डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने अपने जीवन में हर कदम पर चुनौतियों का सामना किया। लेकिन वे कभी रुके नहीं। उनके इस सफ़र में बहुत-से लोगों ने उनका साथ दिया। कभी उनके स्कूल में एक शिक्षक ने उनसे प्रभावित होकर उनको अपना उपनाम दे दिया, तो बड़ौदा के शाहू महाराज ने उन्हें उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड भेज दिया था —
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— इन सब लोगों के बीच एक और नाम था,जिसके ज़िक्र के बगैर बाबासाहेब की सफलता की कहानी अधूरी है.वह नाम है आई साहेब रमाई अम्बेडकर — 
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       — जय राष्ट्रमाता रमाबाई अम्बेडकर —
— आज हम बात कर रहें हैं परमपूज्यनीय त्याग समर्पण की प्रतीक,महान शख्सियत,महिलाओं के संघर्षो की मिशाल राष्ट्रमाता रमाबाई अम्बेडकर
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— आवो जाने ऐसी नारी शक्ति को जिनके त्याग समर्पण समाज के प्रति निष्ठा की बदौलत बहुजन समाज, सर्व समाज की नारी शक्ति को भारत वर्ष में सम्मान से जीने का अधिकार मिला वो है परमपूज्यनीय त्याग भावना की मूर्ति माता रमाबाई अम्बेडकर —
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— हमारा फ़र्ज़ है उनको जानने का सम्मानित साथियों आवो इस लेख के माध्यम जाने —
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— साथियों माता रमाबाई अंबेडकर जी आज इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनके विचार और संघर्षों की गाथा आज भी जिंदा है,उनको मानने और जानने वालों की तादाद बहुत तेजी से बढ़ रही है —
— साथियों माता रमाबाई अंबेडकर जी त्याग समर्पण साक्षात इंसानियत की मुर्ति थी —
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— जालिमों से लड़ती भीम की रमाबाई थी
मजलूमों को बढ़ के जो,आँचल उढ़ाई थी
एक तरफ फूले सावित्री थे साथ लड़े” 
         भीम साथ वैसे मेरी रमाई थी —
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— परम पूज्य बोधिसत्व भारत रत्न बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी को महापुरुष,युग प्रवर्तक बनाने वाली,परम पूज्यनीय त्याग समर्पण महान शख्सियत की प्रतीक महिलाओं के संघर्षो की मिशाल महानायिका माता रमाबाई अम्बेडकर थी —
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— परमपूज्य बोधिसत्व बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी को विश्वविख्यात महापुरुष बनाने में रमाबाई का ही साथ था —
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— आज हमारी महिलाओ (चाहे वे किसी भी धर्म या जाति समुदाय से हो) को माता रमाबाई अंबेडकर जी पर गर्व होना चाहिए कि किन परिस्थितियों में उन्होंने बाबा साहेब का मनोबल बढ़ाये रखा और उनके हर फैसले में उनका साथ देती रही। खुद अपना जीवन घोर कष्ट में बिताया  और बाबा साहेब की मदद करती रही —
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— जिसको जवानी में चमाचागिरी की लत लग जाये तो उसकी सारी उम्र दलाली में गुजर जाती है —
 —बहुजन नायक मां कांशीराम साहब —   
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— आज अगर भारत की महिलाएं आज़ाद है समता समानता के अधिकार मिले हुए हैं, तो उसका श्रेय सिर्फ और सिर्फ माता रमाबाई अम्बेडकर जी  को जाता है. 
हमारा फ़र्ज़ है उनको जानने का उनके त्याग समर्पण की भावना को पहचानने का माता रमाबाई अंबेडकर जी योगदान को झुठला नहीं सकता है समाज लोग आज भी उन्हें ऐसे मुक्तिदाता के रूप में याद करते है जो शोषित समाज के आत्मसम्मान तथा हित के लिए अंतिम साँस तक लड़ीं और हर कदम पर बाबासाहेब अम्बेडकर का साथ दिया —
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 — आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक बाबासाहेब आंबेडकर और माता रमाबाई अंबेडकर को हम केवल इसी बात से जान सकते हैं कि,वे एक महान वकील होने के बाद भी अपने पुत्र गंगाधर की मृत्यु पर उनके जेब में इतने पैसे नहीं थे । कि अपने बेटे के लिए कफन खरीद सके, कफन के लिए माता रमाबाई अम्बेडकर जी ने अपने साड़ी में से एक टुकड़ा फाड़ कर दिया —
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             —  शत्-शत् नमन माँ रमाई को —
 — धन्य है वो माँ जिसने माँ रमाई जैसी बेटी को जन्म दिया
जिसने अपने त्याग समर्पण से बाबासाहेब अम्बेडकर जी को महान बना दिया ! सम्मानित साथियों इतने बड़े संघर्षों की बदौलत सर्व समाज की महिलाएं और बहुजन समाज सम्मान के साथ जी रहे हैं — ------------------------------------------------------------   
— आज भी करोड़ों ऐसे लोग जो बाबासाहेब अम्बेडकर जी,माँ रमाई अंबेडकर  के संघर्षों की बदौलत कमाई गई रोटी को मुफ्त में बड़े चाव और मजे से खा रहे हैं। ऐसे लोगों को इस बात का अंदाजा भी नहीं है।जो उन्हें ताकत,पैसा, इज्जत, मान-सम्मान मिला है ।वो उनकी बुद्धि और होशियारी का नहीं है। परम पूज्य डा भीम राव अंबेडकर और मां रमाई के संघर्षों की बदौलत है —
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— हमारे मशीहा बाबा साहेब अम्बेडकर जी और माता रमाबाई अम्बेडकर जी को  जो करना था समाज के प्रति वो कर गये,लेकिन जो हमें और हमारे समाज के लोगों को करना है वो हम नहीं कर रहें हैं —
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— प्रत्येक महापुरुष की सफलता के पीछे उसकी जीवनसंगिनी का बहुत बड़ा हाथ होता है जीवनसंगिनी का त्याग और सहयोग अगर न हो तो शायद,वह व्यक्ति,महापुरुष ही नहीं बन पाता ! आई साहेब रमाबाई अम्बेडकर इसी तरह के त्याग और समर्पण की प्रतिमूर्ति थी —
— अक्सर महापुरुष की दमक के सामने उसका घर-परिवार और जीवनसंगिनी सब पीछे छूट जाते हैं क्योंकि, इतिहास लिखने वालों की नजर महापुरुष पर केन्द्रित होती है !
यही कारण है कि माता रमाबाई अंबेडकर जी के बारे में ज्यादा कुछ नहीं लिखा गया है  —
— ऐसे महान क्रांतिकारी वीरांगना आई साहेब रमाई को    मेरा नीला सलाम —
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— आई साहेब रमाई का जीवन परिचय — 
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— माता रमाबाई जी का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था। उनके पिता भिकु धुत्रे (वलंगकर) व माता रुक्मिणी इनके साथ रमाबाई दाभोल के पास वंणदगांव में नदी किनारे महारपुरा बस्ती में रहती थी। उन्हे ३ बहन व एक भाई - शंकर था.रमाई की बडी बहन दापोली में रहती थी.रमाई के बचपन का नाम रामी था —
— रामी के माता-पिता का देहांत बचपन में ही
हो गया था. रामी की दो बहने और एक भाई था.भाई का नाम शंकर था. बचपन में ही माता-पिता की मृत्यु हो जाने के कारण रामी और उसके भाई-बहन अपने मामा और चाचा के साथ मुंबई में रहने लगे थे —
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— रामी का विवाह 9 वर्ष की उम्र में सुभेदार रामजी सकपाल  के सुपुत्र डा भीमराव अम्बेडकर से सन 1906 में हुआ था. डॉ भीमराव अम्बेडकर जी की उम्र उस समय 14 वर्ष थी. तब,वह 5 वी कक्षा में पढ़ रहे थे.शादी के बाद रामी का नाम रमाबाई अम्बेडकर हो गया था ! आई साहेब रमाई अम्बेडकर ने यह कठिन समय भी बिना किसी गिला शिकवा-शिकायत के बड़ी आसानी से हंसते हंसते बीता लिया —
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— शादी के तुरंत बाद से ही आई साहेब रमाई को समझ में आ गया था कि पिछड़े तबकों का उत्थान ही बाबा साहेब के जीवन का लक्ष्य है। और यह तभी संभव था, जब वे खुद इतने शिक्षित हों कि पूरे देश में शिक्षा की मशाल जला सके 
— बाबा साहेब के इस संघर्ष में रमाबाई ने अपनी आख़िरी सांस तक उनका साथ दिया। बाबा साहेब ने भी अपने जीवन में रमाबाई के योगदान को बहुत महत्वपूर्ण माना है —
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— बाबासाहेब अम्बेडकर जी प्रेम से माता रमाबाई को "रमो" कहकर पुकारा करते थे और वो उन्हें ‘साहेब’ कहकर पुकारतीं थीं,दिसंबर 1940 में बाबा साहेब अम्बेडकर जी ने  "थॉट्स ऑफ पाकिस्तान" पुस्तक लिखी यह पुस्तक उन्होंने अपनी पत्नी "रमो" को ही भेंट की — 
— भेंट के शब्द इस प्रकार थे —
    — मै यह पुस्तक "रमो को उसके मन की सात्विकता, मानसिक सदवृत्ति,त्याग समर्पण की भावना ,सदाचार की पवित्रता और मेरे साथ दुःख झेलने में, अभाव व परेशानी के दिनों में जब कि हमारा कोई सहायक न था,  सहनशीलता और सहमति दिखाने की प्रशंसा स्वरुप भेंट करता हूं —
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— पुस्तक समर्पित करते हुए लिखा,कि उन्हें मामूली-से भीमा से बाबासाहेब अम्बेडकर बनाने का श्रेय रमाबाई को जाता है 
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— हर एक परिस्थिति में रमाबाई बाबा साहेब का साथ देती रहीं। बाबा साहेब वर्षों अपनी शिक्षा के लिए बाहर रहे और इस समय में लोगों की बातें सुनते हुए भी रमाबाई ने घर को सम्भाले रखा। कभी वे घर-घर जाकर उपले बेचतीं थी.वे हर छोटा-बड़ा काम कर, आजीविका कमाती थीं और साथ ही,बाबासाहेब की शिक्षा का खर्च जुटाने में भी मदद करती रही —
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— उपरोक्त शब्दों से स्पष्ट है कि माता रमाई ने बाबा साहेब जी का किस प्रकार संकटों के दिनों में साथ दिया और बाबासाहेब के दिल में उनके लिए कितना सत्कार और प्रेम था बाबा साहेब भी ऐसे ही महापुरुषों में से एक थे,जिन्हें रमाबाई जैसी बहुत ही नेक जीवन साथी मिली — 
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—  राष्ट्रमाता रमाई अपने पति के प्रयत्न से कुछ लिखना पढ़ना भी सीख गई थी. साधारणतः महापुरुषों
के जीवन में यह एक सुखद बात होती रही है कि उन्हें जीवन साथी बहुत ही साधारण और अच्छे मिलते रहे.माता रमाबाई कर्मठता की मूर्ति थीं.वह अपने पति के जनहितकारी कार्यों में यथायोग्य उनका साथ देती थी —
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— 20,मार्च,1927 में महाड़ सत्याग्रह की जो योजना बनी थी, जिसका नेतृत्व बाबा साहेब अम्बेडकर जी को करना था इस सत्याग्रह आंदोलन में महिलाएं भी जाने को थी ! बाबा साहेब  ने हंस रमाबाई से कहा "उन महिलाओं का नेतृत्व तुम्हें करना चाहिए.तब माता रमाबाई अम्बेडकर ने कहा "मैं आऊंगी,लेकिन सत्याग्रहियों के लिए भोजन की व्यवस्था करूंगी —
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— बाबा साहेब जी ने हंस कर कहा ,"कम से कम दस हजार लोग होगें,जिनकी भोजन व्यवस्था करनी होगी —
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— रमाबाई का यह उत्तर था,"चाहे जितने लोग हो इसकी चिंता नहीं.दिन-रात पाकशाला में रहूंगी और सबको रोटी बनाकर खिलाउंगी. माता रमाबाई अम्बेडकर जी का यह साहसिक उत्तर सुनकर बाबा साहेब जी को बहुत
 संतोष हुआ —
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— माता रमाबाई ने 5 संतानों को जन्म दिया नाम थे —
1-यशवंतराव
2- गंगाधर 
3-रमेश
4- इंदू 
5- राज रत्न
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— गरीबी किसी को ना सताए,धन अभाव के कारण जब  भोजन ही भरपेट नहीं मिलता था,तब दवा के लिए पैसे कहाँ से आते इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि यशवंतराव के अलावा सभी बच्चे अकाल ही काल कलवित हो गए —
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— दूसरे पुत्र गंगाधर के निधन की दर्द भरी कहानी डॉक्टर अंबेडकर ने इस प्रकार बतलाई थी —
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— दूसरा लड़का गंगाधर हुआ,जो देखने में बहुत सुंदर था.वह अचानक बीमार हो गया दवा दारू के लिए पैसा ना था. उसकी बीमारी से तो एक बार मेरा मन भी डावांडोल हो गया कि मैं सरकारी नौकरी लूं —
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— फिर मुझे विचार आया कि अगर मैंने नौकरी कर ली तो उन करोड़ो अछूतों का क्या होगा जो गंगाधर से ज्यादा बीमार है ठीक प्रकार से इलाज ना होने के कारण वह नन्ना सा बच्चा ढाई साल की आयु में चल बसा ! गमी में लोग आए बच्चे के मृत शरीर को ढकने के लिए नया कपड़ा लाने के लिए पैसे मांगे लेकिन मेरे पास इतने पैसे नहीं थे कि मैं कफन खरीद सकूँ —
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— 😰😰 अंत में मेरी प्यारी पत्नी रामू ने अपनी साड़ी में से एक टुकड़ा फाड़ कर दिया उसी में ढंक कर उसे श्मशान पर लोग लेकर गए हैं और दफना आये,ऐसी थी मेरी आर्थिक स्थिति पांचवा बच्चा राज रत्न बहुत प्यारा था रमाबाई ने उसकी देखरेख में कोई कमी नहीं आने दी —
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— अचानक जुलाई 1926 में उसे डबल निमोनिया हो गया काफी इलाज करने पर भी 19 जुलाई 1926 को दोनों को बिलखते छोड़ वह भी चल बसा माता रमाबाई को इससे बहुत सदमा पहुंचा और वह बीमार रहने लगे धीरे-धीर पुत्र शोक कम हुआ तो बाबा साहब भीमराव अंबेडकर महाड सत्याग्रह में जुट गये.महाड में विरोधियों ने षडयंत्र कर उन्हें मार डालने की योजना बनाई यह सुनकर माता रमाबाई ने महाड़ सत्याग्रह में अपने पति के साथ रहने की अभिलाषा व्यक्त की —
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— जहाँ इतनी गरीबी का जीवन जी रही थी वहीं आत्मसम्मान भी उनमें में कूट-कूट कर भरा था.                एक दिन बाबासाहेब अम्बेडकर कॉलेज में पढ़ाने के लिए जाते समय रमाबाई को खर्च के लिए पैसा देना भूल गए !रात को जब वापस लौटे तो देखा कि कमरे में दिया नहीं जल रहा है कमरे में अंधेरा देख बाबा साहब ने पूछा रामू आज दिया क्यों नहीं जलाया" ?
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  — जाते समय आप पैसा देना भूल गए थे,रमाबाई ने धीरे से कहा.बाबा साहब ने पुनः कहा पड़ोस में किसी से मिट्टी का तेल और दियासलाई की तीली  मांगकर कमरे में कम से कम दिया तो जला देती.माता रमाबाई ने उत्तर दिया किसी से मांग कर गुजारा करना मैं अच्छा नहीं मानती !अगर ऐसा होता तो आप भी सरकारी नौकरी करके हम सबको सुखी बना सकते थे —
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— मेरा भी दृढ़ निश्चय कुछ और है मैं पड़ोसियों से मांग कर जीने की बजाय भूखी रहना ज्यादा पसंद करती हूं —
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— मेरा भी स्वाभिमानपूर्ण जीवन है ! बाबासाहेब अंबेडकर जी ने अपनी लेखनी से दर्जनों ग्रंथों की रचना की ! अपने  कठिन परिश्रम और दृढ़ संकल्प से समृद्धि संपन्न महापुरूष बने.बंबई के दादर मोहल्ले में उन्होंने राजगृह नामक विशाल भवन का निर्माण करवाया.अब माता रमाबाई परेल से राजगृह आ गई.लेकिन चिंता और शोक से उनका जो शरीर जर्जर हो गया था वह  कभी ठीक न हो सका —
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—उनके ऊपर ‘रमाई,’ ‘त्यागवंती रमामाऊली,’ और ‘प्रिय रामू’ जैसे शीर्षकों से किताबें लिखी गयीं हैं। पूरे 29 वर्ष तक बाबासाहेब का साथ निभाने के बाद 27 मई 1935 को उन पर शोक और दुःख का पर्वत ही टूट पड़ा ! उस दिन नृशंस मृत्यु ने उनसे उनकी पत्नी रमाबाई को छीन लिया। बीस हजार से अधिक लोग माता रमाबाई के परिनिर्वाण में शामिल हुए थे
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— अक्सर कहते हैं कि एक सफल और कामयाब पुरुष के पीछे एक स्त्री का हाथ होता है और ‘मातोश्री’ रमाबाई ने इस कहावत को सच कर दिखलाया था —
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— लखु नाटक-रमाबाई और आंबेडकर की कुर्बानी —
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— पहला दृश्य- जब बड़ौदा के महाराज ने बाबा साहब को वजीफा दिया और बाबा साहब विदेश जा कर पढ़ना चाहते थे तब उनके परिवार में पत्नी रमाबाई और पांच बच्चे थे। आर्थिक तंगहाली से जुझ रहे बाबा साहब के लिए वह मुश्किल का दौर था। उनके सामने बड़ी समस्या थी कि आखिर वे अपने परिजनों को इस हालत में छोड़कर कैसे जाएं। इसी दुविधा में उन्होंने रमाई से सहयोग मांगा —
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— बाबा साहब-रमा, बड़ौदा के महाराज ने मुझे वजीफा दिया है और मैं विदेश जा कर पढ़ना चाहता हूं। लेकिन जब मैं तुम्हारी तरफ मुड़कर देखता हूं तब तेरे पास 5 बच्चे हैं। आमदनी का कोई साधन नहीं है और मैं भी तुम्हें कोई पैसा देकर नहीं जा रहा हूं। क्या ऐसी परिस्थिति में तुम मुझे विदेश जाकर पढ़ने की अनुमति दोगी?
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— रमाबाई : बाबा साहब,यह बात सच है कि मेरे पास 5 बच्चे हैं और आमदनी का भी कोई साधन नहीं है। उपर से आप भी मुझे कोई पैसा देकर नहीं जा रहे हैं। लेकिन, मैं आपको भरोसा दिलाती हूं कि आप अपनी इच्छा को पूरी करके आयें। आप अपनी पढ़ाई को पूरी करके वापस लौटें। मैं इन बच्चों का और अपना पेट मैं खुद पाल लूंगी —
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— दूसरा दृश्य-माता रमाबाई मुंबई की गलियों से गोबर उठा कर लाती हैं। उसके बाद उपले बनाकर मुंबई की गलियों में उपले बेचती हैं उससे जो पैसा वह कमातीं, उसी से अपना और बच्चों का पेट पालती हैं। तब इस काम से इतना पैसा नहीं आता था कि वह अपने बच्चों की परवरिश कर पातीं। देखते ही देखते उनका बड़ा बेटा दामोदर बीमार हो गया। इलाज के पैसे नहीं थे। इस कारण इलाज नहीं करवाया और दामोदर इस दुनिया को छोड़ कर चला गया। यह बात माता रमाबाई ने बाबा साहब को नहीं बताई। इस बीच बाबा साहब का एक खत उन्हें प्राप्त होता है —
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— नानकचंद रत्तू (खत पढ़ते हुए) : बाबा साहब कहते हैं कि रमा मैं यहां अगर एक वक्त का खाना खाता हूं तब भी मेरा काम नहीं चल पा रहा है। मैं अपना जीवन बड़ी मुश्किल में व्यतीत कर रहा हूं। में अपना सुबह का नाश्ता दोपहर में करता हूं और शाम को मैं पानी पीकर अपना काम चला रहा हूं। मैं जानता हूं कि तुम्हारे सामने भी बहुत विकल परिस्थितियां हैं। तुम्हारे पास पांच बच्चे हैं और आमदनी का भी कोई साधन नहीं है। फिर भी अगर हो सके तो कुछ पैसा भिजवा देना —
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— इधर माता रमाबाई ने बड़ी मुश्किल से कुछ पैसा इकट्ठा किया था लेकिन उनकी बेटी इंदु बीमार हो जाती है अब माता रमाबाई के सामने एक बहुत बड़ा सवाल था कि वे उस पैसे से अपनी बेटी का इलाज कराएं या अपने पति को दिए गए वचन को निभाएं। फिर सोचने-विचारने के बाद उन्होंने वह पैसा बाबा साहब को भेज दिया और इधर उनकी बेटी इंदू ने भी इलाज नहीं होने के कारण दम तोड़ दिया —
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— यह बात भी माता रमाबाई ने बाबा साहब को नहीं बताई और बाबा साहब पढ़ते रहे। कुछ समय के बाद बाबा साहब अपनी पढ़ाई छोड़कर बड़ौदा के महाराज की रियासत में नौकरी करने के लिए आते हैं तो रमाबाई खुश होती हैं —
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— आई साहेब रमाई सोचती है अब तो मेरा पति डॉक्टर बन के आ रहा है। अब मेरा पति नौकरी करेगा। तनख्वाह कमा कर लाएगा। अब तो अपने बच्चों को मैं भरपेट खाना खिलाऊंगी। अब तो मेरे दिन बदल जाएंगे –
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— बाबा साहब अम्बेडकर दफ्तर में प्रवेश करते हैं। चपरासी टाट को खींच लेता है और पानी के घड़े को उठाकर अलग रख देता है —
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— बाबा साहब चपरासी,जरा मुझे फाइल तो लाकर देना
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— चपरासी फाइल को भी डंडे से उठा कर देता है —
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— बाबा साहब  क्या बदतमीजी है? यह क्या हो रहा है? तुम एक चपरासी होकर मेरे साथ ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे हो?
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— चपरासी : आंबेडकर,तुम पढ़-लिख जरूर गए हो,लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि तुम हमारी बराबरी पर आ गए हो। तुम आज भी नीच हो और तुम्हारे साथ काम करके मैं अपना धर्म नष्ट नहीं कर सकता —
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— बाबा साहब क्या मतलब ? मेरे साथ काम करने से तुम्हारा धर्म कैसे नष्ट हो सकता है? तुम जानते हो कि मैं तुम्हें नौकरी से निकाल सकता हूं —
— चपरासी बोलता है आंबेडकर,यह बात में अच्छे से जानता हूं। तुम मुझे नौकरी से भले ही निकाल दो लेकिन मैं तुम्हारे साथ रहकर इस दफ्तर में काम नहीं कर सकता —
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— बाबा साहब कहते हैं मैं ऐसे अपमानजनक स्थान पर और अधिक नौकरी नहीं कर सकता —
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— बाबा साहब ने 11वें ही दिन अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और अपने घर के लिए निकलते हैं और बड़ौदा के रेलवे स्टेशन पर पहुंच जाते हैं वहां उनकी ट्रेन 4 घंटे लेट होती है. बाबा साहब एक पेड़ के नीचे बैठ जाते हैं और विचारते हैं —
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— बाबा साहब मैं पहले यह सोचता था कि हमारे लोग मरे पशुओं को उठाते हैं.उनकी खाल खींचते हैं और उनका मांस खाते हैं। हमारे लोग दूसरों की टट्टी को अपने सर ऊपर उठाकर फेंकने का काम करते हैं। मेरे लोग गंदे रहते हैं। उनके पास पहनने के लिए अच्छे कपड़े नहीं है और उनके पास पैसा भी नहीं है। हो सकता है यह लोग हमारे लोगों से इसलिए ऐसा व्यवहार करते हैं —
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— हो सकता है कि ये लोग हमारे लोगों को इसीलिए नीच कहते हैं। लेकिन, आज तो मैंने यूरोप के कपड़े पहने हैं। अमेरिका और इंग्लैंड की यूनिवर्सिटियों से शिक्षा प्राप्त की है और एक अधिकारी बनकर मैं यहां आया हूं। जब ये मेरे साथ ऐसा व्यवहार कर रहे हैं तो जो मेरे समाज के अशिक्षित और अनपढ़ लोग हैं तो ये लोग उनके साथ कैसा व्यवहार करते होंगे। (पिघलती हुई आंखों में आक्रोश लिए हुए ) अगर मैं अपने समाज को इस ग़ुरबत और गुलामी से आजाद नहीं करा पाया तो मैं वापस बड़ौदा लौट कर नहीं आऊंगा और मैं खुद को गोली मार लूंगा —
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— बाबा साहब जब नौकरी छोड़कर अपने घर पहुंचते हैं और यह बात रमाबाई को पता चलती है तो रमाबाई को बहुत दुख होता है —
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— बाबा साहब रमा,मैं नौकरी तो करना चाहता था लेकिन वहां का चपरासी मुझे फाइल डंडे में बांध कर देता था.पानी के घड़े को उठाकर अलग रख लेता और वहां के लोगों ने भी मुझे मारने की योजना बनाई। मैं ऐसे अपमानजनक स्थान पर नौकरी नहीं कर सकता था। इसीलिए मैं नौकरी छोड़ कर चला आया —
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— रमाबाई – बाबा साहब,आपको जैसा अच्छा लगे,आप वैसा काम करें,मैं आपके साथ हूं —
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 बाबा साहब को अपनी अधूरी पढ़ाई और बड़ौदा रेलवे स्टेशन पर लिए गए संकल्प का ख्याल आता है तो बाबा साहब फिर से विदेश जाकर हम सब की गुलामी का कारण जो हिंदू धर्म के ग्रंथों में लिखा हुआ है उसे खोजते हैं। इधर उनका तीसरा बेटा रमेश भी इस दुनिया को छोड़ कर चला जाता है। इस प्रकार से बाबा साहब के तीन बच्चे कुर्बान हो जाते हैं और जब बाबा साहब विदेश से लौट कर आते हैं और हमारी गुलामी व नीचता का कारण हमें बताते हैं —
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— बाबा साहब मुंबई की कोर्ट में वकालत कर रहे होतें हैं तो उनका जो चौथा बेटा राजरतन वह बीमार हो जाता है। रमाबाई नानकचंद रत्तू को बाबा साहब को बुलाने के लिए भेजती हैं। बाबा साहब दौड़कर घर पहुंचते हैं और जैसे ही राजरतन को गोदी में लेते हैं वह दम तोड़ देता है —
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— रमाबाई (रोते हुए) : बाबा साहब,बस करिए.आपके समाज सुधार की लालसा ने और ज्ञान पाने की लालसा ने मेरा पूरा घर उजाड़ के रख दिया है। मैंने एक-एक करके अपने 4 बच्चों को दफन कर दिया है। अब तो बस करिए –
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— बाबा साहब रमा,तुम तो मुझे रो करके बता पा रही है। मैं तो रो भी नहीं पा रहा हूं। मैं तो रोज ऐसे सैकड़ों बच्चों को मरते हुए देखता हूं। रमा, चुप हो जा। चुप हो जा —
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— रमाबाई : बाबा साहब, मैंने आज तक आपकी हर बात को माना है और इस बात को भी मान लेती हूं और चुप हो जाती हूं। लेकिन,आप मुझे इतना बता दें कि आप बड़े फख्र से कहते थे कि तेरा बेटा राज रतन देश पर राज करेगा. लेकिन,अब यह इस दुनिया में नहीं रहा.आप बताएं,यह कैसे इस देश पर राज करेगा? बाबा साहब मुझे बता दें कि यह कैसे देश पर राज करेगा
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— बाबा साहब रमा यह सच है कि तेरा यह पुत्र अब इस दुनिया में नहीं रहा.लेकिन मैं तुम्हें भरोसा दिलाता हूं और राजरतन के पार्थिव शरीर की सौगंध खाकर कहता हूं कि मैं अपने जीवन में ऐसा काम करके जाऊंगा कि हर रमा की कोख से पैदा हुआ राजरतन इस देश पर राज करेगा मैं तुम्हें भरोसा दिलाता हूं —
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— इतना कहने के बाद बाबा साहब अपनी जेबों में हाथ डालते हैं और राजरतन के कफन के लिए उनके पास एक पैसा तक नहीं होता है –
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— इस बात को माता रमाबाई जानती हैं और रमाबाई अपनी साड़ी का एक हिस्सा फाड़कर राजरतन के ऊपर डाल देती हैं। इस बीच बाबा साहब को ख्याल आता है कि उन्हें गोलमेज सम्मेलन के लिए लंदन जाना है। वे राज रतन के पार्थिव शरीर को छोड़ घर पर ही छोड़ कर लंदन के लिए निकलते हैं। तभी पीछे से उनका भाई दौड़कर आते हैं और कहते हैं —
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— भाई  भीम, तुम पागल हो गए हो। यहां तेरा पुत्र मरा पड़ा है और तुम्हें विदेश जाने की सूझ रही है। तुम कैसे पिता हो जो अपने पुत्र को इस अवस्था में छोड़कर विदेश जा रहा है? यह समाज क्या कहेगा? अपने पुत्र को कंधा देकर उसकी अंतिम क्रिया-कर्म तो कर लो —
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— बाबा साहब भाई,मैं जानता हूं कि मेरा पुत्र मरा पड़ा है.लेकिन मैं यह भी जानता हूं कि अगर आज मैं गोलमेज सम्मेलन के लिए लंदन नहीं गया, तो गांधी एंड कंपनी के लोग मेरे करोड़ों करोड़ लोगों को मार डालेंगे। उनके सारे हक-अधिकार छीन लेंगे। इसलिए मैं एक पुत्र की खातिर अपने करोड़ों लोगों को बलि चढ़ते हुए नहीं देख सकता। यहां तुम सब लोग हो। तुम सब संभाल लोगे —
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(प्रस्तुति : कुमार समीर,कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)
विशेष साभार फारवर्ड प्रेस 
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—— वो थे इसलिए आज हम है ——
—— यारों अगर भीम न होते तो बहुजन समाज और महिलाओं का मान सम्मान न होता अगर भीम और आई साहेब रमाई न होते तो इस देश की मुखिया कोई महिला न होती,ये सूट बूट वाले साहब न होते शोषितों वंचित समाज में ये ऐसो आराम के समान न होते ये आलिशान महल न होते ——
   —— अगर इस भारत भूमि पर भीम न होते तो ये बड़ी बड़ी गाडियां, ये शोहरत ये इज्जत, ये अफसरशाही, सत्ता का स्वाद,न होता,ये उस सूर्य कोटि महापुरुष परमपूज्य 
बाबा साहेब की देन है जिन्होंने अपने समाज को गुलामी से आजाद कराने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर
 कर दिया ——
—— ऐसे महान शख्सियत के चरणों में शत शत नमन करता हूं, मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर वो बाबा थे जिन्होंने अपने समाज के बेटों को बचाने के लिए अपने बच्चों, पत्नी की कुर्बानी दे दी थी समाज के लिए ——
—— जरा हम लोग सोचे कि हमने क्या किया बाबा साहेब के लिए बाबा साहेब की पूजा तो हम बड़ी शिद्दत से करते हैं
ले उनकी बातों को नहीं मानते हैं ऐसे महान शख्सियत,आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक के चरणों में शत शत प्रणाम करता हूं ——
—  तो ऐसे थे हमारे आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर — 
—— साथियों आज वे हमारे बीच नही है, पर उनके द्वारा किये गए कार्यों,संघर्षों और उनके उपदेशों से हमेशा वे हमारे बीच जीवंत है। संविधान के रचयिता और ऐसे अद्वितीय समाज सुधारक को हमारा कोटि-कोटि नमन ——
 — आधुनिक भारत के महानतम समाज सुधारक और सच्चे
 महानायक, लेकिन”भारतीय जातिवादी-मानसिकता ने सदा ही इस महापुरुष की उपेक्षा ही की गई |भारत में शायद ही कोई दूसरा व्यक्ति ऐसा हो, जिसने देश के निर्माण,उत्थान और प्रगति के लिए थोड़े समय में इतना कुछ कार्य किया हो, जितना बाबासाहेब आंबेडकर जी ने किया है और शायद ही कोई दूसरा व्यक्ति हो, जो निंदा, आलोचनाओं आदि का उतना शिकार हुआ हो,जितना बाबासाहेब आंबेडकर जी हुए थे —
—— बाबासाहेब आंबेडकर जी ने भारतीय संविधान के तहत कमजोर तबके के लोगों को जो कानूनी हक दिलाये है। इसके लिए बाबा साहेब आंबेडकर जी को कदम-कदम पर काफी संघर्ष करना पड़ा था ——
—— आवो जानें पे बैक टू सोसायटी क्या ——
—— ऐ मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय,ज्ञान,बुद्धि, पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो ——
—— तुम्हारें अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए मैं दुबारा नहीं आऊंगा,ये क्रांति का रथ संघर्षो का कारवां ,जो मैं बड़े दुखों,कष्टों को सहकर यहाँ तक ले आया हूँ,अब आगे तुम्हे ही ले जाना है  ——
—— साथियों बाबा साहेब जी अपने अंतरिम दिनोँ में अकेले रोते हुऐ पाए गए। बाबा साहेब अम्बेडकर जी से जब काका कालेलकर कमीशन 1953 में मिलने के लिए गया ,तब कमीशन का सवाल था कि आपने पूरी जिन्दगी पिछड़े,शोषित,वंचित वर्ग समाज  के उत्थान के लिए लगा दी काका कालेकर कमीशन ने पूछा बाबा साहेब जी आपकी राय में क्या किया जाना चाहिए बाबा साहेब ने जवाब दिया कि पिछड़े,शोषित,वंचित समाज का उत्थान करना है तो इनके अंदर बड़े लोग पैदा करने होंगें ——
—— काका कालेलकर कमीशन के सदस्यों को यह बात समझ नहीं आई  तो उन्होने फिर सवाल किया “बड़े लोग से आपका क्या तात्पर्य है ? " बाबा साहेब जी ने जवाब दिया कि अगर किसी समाज में 10 डॉक्टर , 20 वकील और 30 इन्जिनियर पैदा हो जाऐ तो उस समाज की तरफ कोई आंख ऊठाकर भी देख नहीं सकता !"
—— इस वाकये के ठीक 3 वर्ष बाद 18 मार्च 1956 में आगरा के रामलीला मैदान में बोलते हुऐ बाबा साहेब ने कहा "मुझे पढे लिखे लोगों ने धोखा दिया। मैं समझता था कि ये लोग पढ लिखकर अपने समाज का नेतृत्व करेगें , मगर मैं देख रहा हुँ कि  मेरे आस-पास बाबुओं की भीड़ खड़ी हो रही है जो अपना ही पेट पालने में लगी है !" 
—— साथियों बाबा साहेब अपने अन्तिम दिनो में अकेले रोते हुए पाए गए ! जब वे सोने की कोशिश करते थे तो उन्हें नींद नहीं आती थी,अत्यधिक परेशान रहने वाले थे बाबा साहेब के निजी सचिव  नानकचंद रत्तु ने बाबा साहेब जी से सवाल पुछा कि , आप इतना परेशान क्यों रहते है बाबा साहेब जी ? ऊनका जवाब था , " ——
—— नानकचंद , ये जो तुम दिल्ली देख रहो हो अकेली दिल्ली में 10,000 कर्मचारी ,अधिकारी यह केवल अनुसूचित जाति के है  ! जो कुछ साल पहले शून्य थे मैँने अपनी जिन्दगी का सब कुछ दांव पर लगा दिया,अपने लोगों में पढ़े लिखे लोग पैदा करने के लिए क्योंकि  मैं जानता था कि जब मैं अकेल पढ लिख कर इतना काम कर सकता हुँ  अगर हमारे हजारों लोग पढ लिख जायेगें तो बहुजन समाज में कितना बड़ा परिवर्तन आयेगा लेकिन नानकचंद,मैं जब पुरे देश की तरफ निगाह दौड़ाता हूँ हूँ तो मुझे कोई ऐसा  नौजवान नजर नहीं आता है,जो मेरे कारवाँ को आगे ले जा सकता है नानकचंद,मेरा शरीर मेरा साथ नहीं दे रहा है ,जब मैं अपने मिशन के बारे में सोचता हुँ,तो मेरा सीना दर्द से फटने लगता है ——
—— जिस महापुरुष ने अपनी पुरी जिन्दगी,अपना परिवार ,बच्चे आन्दोलन की भेँट चढाए,जिसने पुरी जिन्दगी इस विश्वास में लगा दी  कि , पढा -लिखा वर्ग ही अपने शोषित वंचित भाइयों को आजाद करवा सकता हैं जिन्होंने अपने लोगों को आजाद कर पाने का मकसद अपना मकसद बनाया था,क्या उनका सपना पूरा हो गया ? आपके क्या फर्ज  बनते हैं समाज के लिए ?
—— सम्मानित साथियों जरा सोचो आज बाबा साहेब की वजह से हम ब्रांडेड कपड़े, ब्रांडेड जूते, ब्रांडेड मोबाइल, ब्रांडेड घड़ियां हर कुछ ब्रांडेड इस्तेमाल करने के लायक बन गए हैं बहुत सारे लोग बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू, शराब पर सैकड़ों रुपये बर्बाद करते हैं ! इस पर औसतन 500 रुपये खर्च आता है,चाउमीन, गोलगप्पे, सूप आदि पर हरोज 20 से 50 रुपये खर्च आता है। महिने में ओसतन 600 से 1500 रुपये तक खर्च हो सकते हैं ——
—— बाबा साहेब के अधिकारों,संघर्षो,प्रावधानों की वजह से जो लोग इस लायक हो गए हैं  हम लोगों पर बाबा साहेब ने विश्वास नहीं किया क्योंकि हमने बाबा साहेब के साथ विश्वासघात किया था ! उनके द्वारा दिखाए गए सपनों से हम दूर चले गए नौकरी आयी और आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक बाबा साहेब अम्बेडकर जी को भूल गए —— 
——"हमारे उपर बाबा साहेब का बहुत बड़ा कर्ज है, 
क्या आप उसे उतार सकते हैं,नहीं रत्तीभर भी नहीं हम जिस शख्स ने इस देश के शोषित,वंचित, पिछले, समाज,सर्वसमाज,महिलाओं भारतवर्ष के लिए अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी,अपने बच्चे,पत्नी अपने सुख चैन सब कुछ कुर्बान कर दिया जरा सोचो किसके लिए आप लोगों के लिए और हम लोग क्या कर रहें हैं टीवी,बीवी में मस्त है मिशन को भूल गये ——
—— लेकिन हमें फिर से पहले की तरह बाबा साहेब को धोखा नहीं देना चाहिए,पढ़े-लिखे लोगो अपने उपर से धोखेबाज का लेबल उतारो और बाबा साहेब के मिशन को आगे बढ़ाओ ——
——आपके बीड़ी, सिगरेट पर खर्च होने वाले 15 रुपये से न जाने कितने बच्चों को शिक्षा मिल सकती है,आपके फास्टफूड पर खर्च होने वाले 50 रुपये से न जाने कितने गरीब लोगों को दवाई मिल सकती है !आपके इन पैसों से न जाने कितने मिशनरी साथियों का खर्च चल रहा है जो पूरा जीवन समाज सेवा मे लगा रहे हैं ——
—— जरा अपने दिल पर हाथ रख कर कहो तुम क्या बाबा साहेब के पे बैक टू सोसाइटी सिद्धांत पर चल रहे हो ——
—— केवल भंडारे देना,चंदा देना,कार्यक्रम करना,ठंडे पानी की स्टाल लगाना पे बैक टू सोसाइटी नहीं है ——
——अपने जैसे सक्षम लोग पैदा करना पे बैक टू सोसाइटी है गरीब बच्चों को शिक्षित करना पे बैक टू सोसाइटी है,शिक्षित लोगों को नौकरियां दिलाना डाक्टर है ——
——बहुजनों को वैज्ञानिक,इंजिनियर,वकील,शिक्षक,डाक्टर इत्यादि बनाना पे बैक टू सोसाइटी है.बाबा साहेब के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए लगे हुए मिशनरियों को मदद देना असली पे बैक टू सोसाइटी है ——
—— आप जो पोजिशन पर है आपका फर्ज बनता है कि मेरे समाज का हर बच्चा उस पोजिशन पर पहुंचे यह पे बैक टू सोसाइटी है,अतः हम पढे-लिखे, नौकरीपेशा समाज से अपील करते हैं कि आप अपने उपर लगे धोखेबाज के लेबल को उतारने की कोशिश करें आपने ग़ैर-भाई बहनों के पास जाओ,उनकी ऊपर उठने में मदद करें,अपने उद्योग धंधे, व्यापार आदि शुरू करें, अपने आप को बेरोजगार बहुजनों के लिए रोजगार की व्यवस्था करें,अपना व्यवसाय शुरू करें, अपने समाज का पैसा अपने समाज में रोकें ——
 —— प्रयत्न करें,जब तक बाबा साहेब का पे बैक टू सोसाइटी  का सिद्धांत लागू नहीं होगा तब तक देश से गरीबी नहीं मिटेगी ——
——  साभार-: बहुजन समाज और उसकी राजनिति,मेरे संघर्षमय जीवन एवं बहुजन समाज का मूवमेंट {संदर्भ- सलेक्टेड ऑफ डाँ अम्बेडकर – लेखक डी.सी. अहीर पृष्ठ क्रमांक 110 से 112 तक के भाषण का हिन्दी अनुवाद), श्री गुरु रविदास जन-जागृति एवं शिक्षा समिति,(राजी),दलित दस्तक ,समय बुद्धा,,पुस्तक-'डॉ.बाबासाहेब अंबेडकर के महत्वपूर्ण संदेश एवं विद्वत्तापूर्ण कथन' के थर्ड कवर पृष्ठ से,लेखक-नानकचंद रत्तू-अनुवादक-गौरव कुमार रजक, अंकित कुमार गौतम,संपादन-अमोल वज्जी,प्रकाशक-डी के खापर्डे मेमोरियल ट्रस्ट (पब्लिकेशन डिवीजन)527ए, नेहरू कुटिया, निकट अंबेडकर पार्क, कबीर बस्ती, मलका गंज, नई दिल्ली -07, विकिपीडिया} ——
 ——"सामाजिक क्रांति के अग्रदूत,मानवता की प्रचारक महामानव बाबा साहेब अम्बेडकर जी के  चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं ——
— साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए आधुनिक भारत के निर्माता बाबासाहेब अम्बेडकर जी ने वह कर दिखाया जो उस दौर में सोच पाना भी मुश्किल था —  
— साथियों आज हमें अगर कहीं भी खड़े होकर अपने विचारों की अभिव्यक्ति करने की आजादी है,समानता का अधिकार है तो यह सिर्फ और सिर्फ परमपूज्य बाबासाहेब आंबेडकर जी के संघर्षों से मुमकिन हो सका है.भारत वर्ष का जनमानस सदैव बाबा साहेब डा भीमराव अंबेडकर जी का कृतज्ञ रहेगा.इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी बात खत्म करता हूं। सामाजिक न्याय के पुरोधा तेजस्वी क्रांन्तिकारी शख्शियत परमपूज्य बोधिसत्व भारत रत्न बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं 
      — जिसने देश को दी नई दिशा””…जिसने आपको नया जीवन दिया वह है आधुनिक भारत के निर्माता बाबा साहेब अम्बेडकर जी का संविधान —
  — सच  अक्सर कड़वा लगता है। इसी लिए सच बोलने वाले भी अप्रिय लगते हैं। सच बोलने वालों को इतिहास के पन्नों में दबाने का प्रयास किया जाता है, पर सच बोलने का सबसे बड़ा लाभ यही है, कि वह खुद पहचान कराता है और घोर अंधेरे में भी चमकते तारे की तरह दमका देता है। सच बोलने वाले से लोग भले ही घृणा करें, पर उसके तेज के सामने झुकना ही पड़ता है ! इतिहास के पन्नों पर जमी धूल के नीचे ऐसे ही बहुजन महापुरुषों का गौरवशाली इतिहास दबा है —
     ―मां कांशीराम साहब जी ने एक एक बहुजन नायक को बहुजन से परिचय कराकर, बहुजन समाज के लिए किए गए कार्य से अवगत कराया सन 1980 से पहले भारत के  बहुजन नायक भारत के बहुजन की पहुँच से दूर थे,इसके हमें निश्चय ही मान्यवर कांशीराम साहब जी का शुक्रगुजार होना चाहिए जिन्होंने इतिहास की क्रब में दफन किए गए बहुजन नायक/नायिकाओं के व्यक्तित्व को सामने लाकर समाज में प्रेरणा स्रोत जगाया ——
   ―इसका पूरा श्रेय मां कांशीराम साहब जी को ही जाता है कि उन्होंने जन जन तक गुमनाम बहुजन नायकों को पहुंचाया, मां कांशीराम साहब के बारे में जान कर मुझे भी लगा कि गुमनाम बहुजन नायकों के बारे में लिखा जाए !
   —— ऐ मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय ज्ञान,पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो ——
      —―साथियों एक बात याद रखना आज करोड़ों लोग जो बाबासाहेब जी,माँ रमाई के संघर्षों की बदौलत कमाई गई रोटी को मुफ्त में बड़े चाव और मजे से खा रहे हैं ऐसे लोगों को इस बात का अंदाजा भी नहीं है जो उन्हें ताकत,पैसा,इज्जत,मान-सम्मान मिला है वो उनकी बुद्धि और होशियारी का नहीं है बाबासाहेब जी के संघर्षों की बदौलत है ——
      —– साथियों आँधियाँ हसरत से अपना सर पटकती रहीं,बच गए वो पेड़ जिनमें हुनर लचकने का था ——
       ―तमन्ना सच्ची है,तो रास्ते मिल जाते हैं,तमन्ना झूठी है,तो बहाने मिल जाते हैं,जिसकी जरूरत है रास्ते उसी को खोजने होंगें निर्धनों का धन उनका अपना संगठन है,ये मेरे बहुजन समाज के लोगों अपने संगठन अपने झंडे को मजबूत करों शिक्षित हो संगठित हो,संघर्ष करो !
      ―साथियों झुको नही,बिको नहीं,रुको नही, हौसला करो,तुम हुकमरान बन सकते हो,फैसला करो हुकमरान बनो"
       ―सम्मानित साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए !
        ―सभी अम्बेडकरवादी भाईयों, बहनो,को नमो बुद्धाय सप्रेम जयभीम! सप्रेम जयभीम !!
             ―बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर  जी ने कहा है जिस समाज का इतिहास नहीं होता, वह समाज कभी भी शासक नहीं बन पाता… क्योंकि इतिहास से प्रेरणा मिलती है, प्रेरणा से जागृति आती है, जागृति से सोच बनती है, सोच से ताकत बनती है, ताकत से शक्ति बनती है और शक्ति से शासक बनता है !”
        ― इसलिए मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर आप लोगो को इतिहास के उन पन्नों से रूबरू कराने की कोशिश कर रहा हूं जिन पन्नों से बहुजन समाज का सम्बन्ध है जो पन्ने गुमनामी के अंधेरों में खो गए और उन पन्नों पर धूल जम गई है, उन पन्नों से धूल हटाने की कोशिश कर रहा हूं इस मुहिम में आप लोगों मेरा साथ दे, सकते हैं !
           ―पता नहीं क्यूं बहुजन समाज के महापुरुषों के बारे कुछ भी लिखने या प्रकाशित करते समय “भारतीय जातिवादी मीडिया” की कलम से स्याही सूख जाती है —
— इतिहासकारों की बड़ी विडम्बना ये रही है,कि उन्होंने बहुजन नायकों के योगदान को इतिहास में जगह नहीं दी इसका सबसे बड़ा कारण जातिगत भावना से ग्रस्त होना एक सबसे बड़ा कारण है इसी तरह के तमाम ऐसे बहुजन नायक हैं,जिनका योगदान कहीं दर्ज न हो पाने से वो इतिहास के पन्नों में गुम हो गए —
     ―उन तमाम बहुजन नायकों को मैं अमित गौतम जंनपद   रमाबाई नगर,कानपुर कोटि-कोटि नमन करता हूं !
जय रविदास
जय कबीर
जय भीम
जय नारायण गुरु
जय ज्योतिबा फुले 
जय सावित्रीबाई फुले
जय माता रमाबाई अम्बेडकर जी
जय ऊदा देवी पासी जी
जय झलकारी बाई कोरी
जय बिरसा मुंडा
जय बाबा घासीदास
जय संत गाडगे बाबा
जय संत चोखामल
जय पेरियार रामास्वामी नायकर
जय छत्रपति शाहूजी महाराज
जय शिवाजी महाराज
जय काशीराम साहब
जय मातादीन भंगी जी
जय कर्पूरी ठाकुर 
जय पेरियार ललई सिंह यादव
जय मंडल
जय हो उन सभी गुमनाम बहुजन महानायकों की जिंन्होने अपने संघर्षो से बहुजन समाज को एक नई पहचान दी,स्वाभिमान से जीना सिखाया !    
              अमित गौतम
             युवा सामाजिक
                कार्यकर्ता         
              बहुजन समाज
  जंनपद-रमाबाई नगर कानपुर
           सम्पर्क सूत्र-9452963593






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