छत्तीसगढ़ के महान संत,सतनाम पंथ के प्रवर्तक,मानवता के प्रचारक सतगुरू संत गुरू घासीदास के परिनिर्वाण दिवस पर शत् शत् नमन एंव विनम्र श्रद्धांजलि

       
  20,फरवरी,1850
  वो थे इसलिए आज हम हैं 
         इतिहास के पन्नों से 
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— छत्तीसगढ़ के महान संत,सतनाम पंथ के प्रवर्तक,मानवता के प्रचारक सतगुरू संत गुरू घासीदास के परिनिर्वाण दिवस पर शत् शत् नमन एंव विनम्र श्रद्धांजलि —
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“मनखे-मनखे एक समान,कह गए बाबा गुरु घासीदास महान” समाज में आपसी सौहाद्र व समरसता का सन्देश देकर मानव जाती के कल्याण हेतु संघर्ष करने वाले सतनामी पंथ के
संस्थापक मानवता के प्रचारक सामाजिक क्रांति के अग्रदूत,सूर्यकोटि परमपूज्य गुरु घासीदास जी की जंयती पर उनके द्वारा किए गए ऐतिहासिक कार्यों उनके संघर्षो को शत्-शत् नमन एंव विनम्र श्रद्धांजलि—
— जब जरूरत थी चमन को तो लहू हमने दिया,अब बहार आई तो कहते हैं तेरा काम नहीं —
— साथियों शायद आप में कुछ लोगों न पता हो मानवता के प्रचारक,सामाजिक क्रांति के अग्रदूत संत सतगुरू गुरू घासीदास जी ने छत्तीसगढ़ की पावन भूमि पर मानव समाज के उत्थान के लिए आजीवन संघर्ष —
— जब हौसला बना लिया ऊंची उड़ान का फिर देखना  फिजूल है,कद आसमान का —                           
— जब जरूरत थी चमन को तो लहू हमने दिया अब बहार आई तो कहते हैं तेरा काम नहीं —
— दर्द सबके एक है,मगर हौंसले सबके अलग अलग है,कोई हताश हो के बिखर गया तो कोई संघर्ष करके निखर गया —
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 — जागो बहुजन समाज जागो अपने इतिहास को पढ़ो —
  — बहुजन समाज के सम्मानित साथियों एंव माता बहनों को सबसे पहले धम्म प्रभात,नमो बुद्धाय,जय भीम मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर, कानपुर आप लोगों को इतिहास के उन पन्नों से रूबरू करवाना चाहता हूँ ! जिससे आप लोग शायद अनिभिज्ञ हो —
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      — जय  संत गुरू घासीदास जी महाराज —
— आज हम बात कर रहें हैं मानवता के प्रचारक,सामाजिक क्रांति के अग्रदूत,संत सतगुरु घासीदास जी ने शोषितों,वंचितों,पिछड़ो को भेदभाव,पांखडवाद से मूक्ति दिलाने के आजीवन संघर्ष किया
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    — गुरु घासीदास ने वर्ण-जाति आधारित धर्म के ठेकेदारों को चुनौती दी और छत्तीसगढ़ में समता आधारित सतनामी समाज का निर्माण किया। सतनामी समाज में ओबीसी और दलित जातियों के लोग बड़ा संख्या में शामिल हुए थे इस समाज ने अपने को वर्ण-जाति के चंगुल से मुक्त कराया. 
— गुरु घासीदास जी ने न सिर्फ मध्यकाल की संत परंपरा को आधुनिक काल से जोड़ा बल्कि भगवान बुद्ध के सतनाम मानवीय दर्शन को भी आगे बढ़ाया। लेकिन उन्होंने संघर्ष को नहीं छोड़ा। इसलिए कि संघर्ष ही उनका जीवन था। और संघर्ष के साथ ही सृजन। इस बारे में उन्हें पहला संत, गुरु या पथ-प्रदर्शक ही कहा जाएगा, जिनके दर्शन से क्रांंति के बीज उभरे जिन्होंने अपने अनुयायियों को आत्मसम्मान का जीवन जीना सिखाया —
—संत सतगुरु घासीदास जी ने शोषितों,वंचितों,पिछड़ो को भेदभाव,पांखडवाद से मूक्ति दिलाने के आजीवन संघर्ष किया साथियों ऐसे महामानव मानवता के पुजारी को शत्-शत् नमन  —
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— गुरु घासीदास जी ने आजीवन समतामूलक समाज की स्थापना के लिए संघर्ष किया,छत्तीसगढ़ के लोगों के सामाजिक और आर्थिक उन्नति के यदि किसी महापुरुष का योगदान रहा है ,तो वो सामाजिक क्रांति के अग्रदूत,समता के संदेश वाहक एंव छत्तीसगढ़ के उद्धारक सदगुरु गुरु घासीदास जी का है —
« छत्तीसगढ़ में अगर शांति,प्रेम और सद्भावना का वातावरण है तो यह मानवता के प्रचारक गुरू बाबा घासीदास जी की प्रेरणा से ही संभव हुआ बाबा गुरु घासीदास के उपदेश सर्व समाज के लिए —
— बहुजन समाज पार्टी की राष्टीय अध्यक्ष,उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री,सांसद,द आयरलेडी बहन मायावती जी ने अपने शासनकाल में डा भीमराव अम्बेडकर सामाजिक परिवर्तन संग्रहालय में संत गुरु घासीदास जी की 18 फिट ऊंची संगमरमर की प्रतिमा स्थापित की है —
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— सतगुरू घासीदास जी के नाम पर विश्वविद्यालय —
— गुरु घासीदास विश्‍वविद्यालय भारत का एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय है ! इसकी स्‍थापना 16 जून 1983 को तत्‍कालीन मध्‍यप्रदेश के बिलासपुर में हुई थी ! मप्र के विभाजन के पश्‍चात बिलासपुर छत्तीसगढ़ में शामिल हो गया। जनवरी 2009 में केंद्र सरकार द्वारा संसद में पेश में केंद्रीय विश्‍वविद्यालय अधिनियम 2009 के माध्‍यम से इसे केंद्रीय विश्‍वविद्यालय का दर्जा दिया 
गया —
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— मानवता के प्रचारक सतगुरू गुरू घासीदास जी याद में बनी कुतुब मीनार से भी ऊंची इमारत —
— गुरू घासी दास की याद में उनके जन्म स्थान गिरौदपुरी में कुतुब मीनार से भी ऊंचे जैतखाम का निर्माण करवाया गया है ! करीब 52 करोड़ की लागत से बने इस जैतखाम की ऊंचाई 77 मीटर है जो कुतुब मीनार से पांच मीटर अधिक है। इस जैतखाम का डिजाइन आईआईटी के तकनीकी विशेषज्ञों द्वारा तैयार किया गया है —
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— मानवता के प्रचारक संत गुरू घासीदास का जीवन संघर्ष संक्षिप्त में —
— गुरु घासीदास का जन्म 18 दिसम्बर,1756 को
 (माघ मास की पूर्णिमा तिथि) बिलासपुर जिले के गीरोधा नामक गांव में किसान परिवार में हुआ था। अब यह गांव रायपुर जिले के अन्तर्गत सोनाखान जंगल के पास है। उनका आरंभिक जीवन गरीबी में बीता। वे दूसरों के खेतों में काम करते थे। उनके पिता का नाम महंगूदास तथा माता का नाम अमरौतीन था। गरीबी और सामाजिक भेदभाव, यह सब देखते और झेलते हुए वे जवान हुए। पिता का सपना था कि बेटा भी सवर्ण बच्चों की तरह स्कूल में जाकर पढ़े लिखे, लेकिन यह दलितों के लिए कहा संभव था। अंतत: घासीदास जी को खेती कार्य में ही आगे भी लगना पड़ा। खेती-बाड़ी ही जब घासीदास जी की जीविका उपार्जन बन गया तो महंगूदास ने उनका विवाह सिरपुर गांव निवासी देवदत्त की पुत्री सफूरा के साथ कर दिया। बाद में उनके चार बेटे अमरदास, बालकदास, आगरदास और अड़गड़िया के साथ बेटी सुभद्रा हुई —
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— कुछ वर्ष उनका जीवन गृहस्थ में बीता, लेकिन मन नहीं लगा। और वे तथागत की तरह लोगों के दुखों से द्रवित होने लगे। एक दिन निर्जन जंगल की ओर निकल पड़े। वहां ‘छाता’ नाम से पहाड़ था, जिसके औरा-घौरा व तेंदू वृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या की। जो अब दलितों का तीर्थस्थान भी बन गया है। वहीं एक सतनामी नाम से जगह बना दी गई। इस तरह सतनाम पंथ का प्रचार-प्रसार आगे बढ़ा।
— मानवता के प्रचारक सतगुरु घासीदास जी का जन्म ऐसे समय हुआ जब समाज में छुआछूत, ऊंचनीच, झूठ-कपट का बोलबाला थाऐसे समय में गुरू घासीदास ने सतनाम पंथ के माध्यम से जाति-आधारित अत्याचार, छुआछूत और वर्ण व्यवस्था पर करारा प्रहार किया, जिससे सिर्फ दलित वर्ग ही नहीं अपितु आदिवासी और पिछड़े तबके का एक बड़ा हिस्सा सतनामी बनने से स्वयं को रोक नही पाया —
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 — संत घासीदास के नैतिक दर्शन में भाग्य का कोई स्थान नहीं है। कर्म के सिद्धान्त को उन्होंने वरीयता दी है। सती, टोनही का बध, नरबलि,अंधविश्वास के खिलाफ उन्होंने ताउम्र आवाज बुलंद की —
— यह इस क्षेत्र का सबसे बड़ा जाति उन्मूलन आन्दोलन था, जिसने लोगों को सतनामी बनने के लिए प्रेरित किया एंव समाज में समाज को एकता, भाईचारे तथा समरसता का संदेश दिया सतगुरु घासीदास जी ने समाज के लोगों को सात्विक जीवन जीने की प्रेरणा दी। उन्होंने न सिर्फ सत्य की आराधना की, बल्कि समाज में नई जागृति पैदा की और अपनी तपस्या से प्राप्त ज्ञान और शक्ति का उपयोग मानवता की सेवा के कार्य में किया —
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— इतिहास की दृष्टि से देखें तो विश्व में तलवार और कलम, इन दोनों का महत्व रहा है। पर अतंर यह रहा कि एक ने ध्वंस किया और दूसरे ने सृजन। नेपोलियन बोनापार्ट ने हजार तलवारों से कहीं अधिक एक कलम की भूमिका को वरीयता दी है इस बारे मेें हमारे सामने सतनामी पंथ उभरता है —
— वे एक संत प्रकृति के महापुरुष थे घासीदास का संतत्व उनके क्रांतिकारी जीवन का स्रोत था। उनका क्रांतिकारी तथा साधुरुप मानवता के प्रति गहरी चिंता का विषय था इसीलिए एक संत का क्रांतिकारी होना, उसका अवमूल्यन नहीं है —
— निश्चित ही आधुनिक युग में घासीदास जी भारतीय समाज में एक सशक्त क्रांतिदर्शी और आध्यात्मिक गुरु के रूप में उभरे थे। भारत में उन्होंने राजाराम मोहनराय से बहुत पहले नवजागरण का संदेश दिया था। यह महत्वपूर्ण तथ्य बहुजन समाज के शोधार्थियों को गंभीरता सेे लेना चाहिए —
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— संगठन और संघर्ष इन दोनों का महत्व घासीदास जी ने सूर्य की तरह जाना था। यह सब उन्होंने अपने पुरखों से समझा था, जिन्होंने पंजाब के नारनौल मेें औरंगजेब की सेना को जबर्दस्त जवाब दिया था। उनके पास बल था पर छल से दूर रहे वे स्वाभिमानी थे —
— मानवता के प्रचारक गुरु घासीदास जी ने छत्तीसगढ़ के भूमिपुत्रों के बीच चेतना जगाई और समाज  में जातिभेद के खिलाफ समतावादी समाज की रचना के लिए आह्वान किया। कहना न होगा कि कबीर, रैदास, गुरुनानक, गुरु गोविंद सिंह और नाभादास आदि की क्रांतिकारी परंपरा को उन्होंने आगे बढ़ाया। इस तरह तथागत बुद्ध के द्वारा शुरू किये गये सतनाम दर्शन को पहले संत शिरोमणि कबीर ने स्वीकार किया और कबीर के बाद गुरु घासीदास के पुरखों ने अपनाया। फिर अपने पुरखों से इसी मानवीय पंथ को स्वयं गुरु घासीदास ने आगे बढ़ाया —
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— देखा जाए तो सतनाम पंथ पहले इतिहास से जुड़ा फिर राजनीति से और बाद में समाज सुधार से। इस तरह तीन चरणों से होते हुए गुरु घासीदास, उनके बेटे बालकदास तथा अनुयाईयों का आंदोलन आगे बढ़ा। संक्षेप में देखें तो उस समय दलितों पर दो तरफ का उत्पीड़न हो रहा था। एक ओर हिन्दू समाज में विषमता थी दूसरी तरफ मुस्लिम समाज के लोगों के द्वारा भी दलितों के साथ भेदभाव होता था —
— इतिहास में देखें तो 1656 ई. में शाहजहां की मृत्यु हो गई उसी वर्ष उसका पुत्र औरंगजेब गद्दी पर बैठा। जो 1656 से 1707 तक रहा। पंजाब में सिखों के साथ मुगलों के युद्ध होते रहे। जाटों ने भी विद्रोह किये। सतनामियों ने भी विद्रोह किये। पंजाब में औरंगजेब के अत्याचार बढ़ने लगे थे —
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— सतनामी भी बेचैनी अनुभव करने लगे थे। असल में तब तक सतनामी नाम से श्रमिक जातियों का ऐसा समाज बन गया था, जो जातियों के जाल से मुक्त होकर समता, स्वतंत्रता और बंधुता में विश्वास करने करने लगा था। वे हिंसक नहीं थे, लेकिन गुरु गोविन्द सिंह की तरह अपनी सुरक्षा के लिए तैयार भी रहते थे —
— इसी दौरान औरंगजेब की सेना से एक बार नहीं कई बार सतनामियों के साथ छिटपुट युद्ध हुए। उन्होंने मुगल फौजों से डट कर मुकाबला किया। मनोवैज्ञानिक रूप से दो-तीन बार तो मुगल सिपाही पस्त होते दिखाई दिये पर बाद में दिल्ली से भारी संख्या में सिपाहियों के साथ तोपें भी लाई गई —
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 — जिनका सामना अधिक दिनों तक सतनामी नहीं कर सके ऐसा भी कहा जाता है कि सतनामियों के बच्चे तोपों में घुस जाते थे और दुश्मन की सेना को परेशान करते थे पर अतंत सतनामियों को हारना पड़ा न सिर्फ हारना बल्कि उन्हें अपनी मातृभूमि से उजड़ना भी पड़ा —
— नारनौल से सतनामी मुगल सेना से बचते हुए बिहार, असम, दिल्ली, नागपुर, बम्बई गये। सबसे अधिक संख्या में महानदी के किनारे-किनारे जाते हुए सतनामी छत्तीसगढ़ पहुंचे जहां सघन वन थे। हालांकि मुगल सैनिकों ने उनका पीछा भी किया लेकिन वे जंगलों व वनों में अपने आपको छुपाते रहे। बाद के दिनों में सतनामियों ने न केवल मुगलों के खिलाफ विद्रोह किये बल्कि ब्रिटिश साम्राज्य से भी अपना सामना किया —
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— जिन दिनों बाराबंकी और छत्तीसगढ़ में सतनाम पंथ का जन-जन में प्रचार-प्रसार हो रहा था, उस समय पूरे देश में हाशिए के लोगों के बीत चेतना उभरने लगी थी वे अपने इतिहास और अस्मिता से रू-ब-रू हो रहे थेे और वर्तमान में समता तथा सम्मान के लिए संघर्ष कर रहे थे — 
   — गुरु घासीदास के अध्ययन का इतिहास 1862 ई. से प्रारंभ होता है, जब चीशोल्म ने उन पर एक विस्तृत आलेख लिखा था, जो जर्नल आॅफ एशियाटिक सोसाइटी आॅफ बंगाल में छपा था। इसी आलेख का संक्षिप्त रूप उन्होंने बाद में 1868 ई. के रिपोर्ट आॅन द लैंड रेवन्यू सेटेलमेंट आॅफ द बिलासपुर, डिस्ट्रिक्ट इन सेंट्रल प्राविन्सेज में 
प्रस्तुत किया था —
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— उक्त रिपोर्ट में भी चीशोल्स ने अपने पूर्ववर्ती आलेख का हवाला दिया है (1868, 45 पैरा, 97)। चीशाल्म के पश्चात हीवेट (1869) ग्रांट (1870) शेरिंग (1872) इब्नेत्सन (1881) क्रैडोक (1889) बोस (1890) भट्टाचार्य (1896) गोर्डोन (1902-1908) वाल्टोन (1903) नेल्सन (1909-1910) थर्स्टन तथा रंगाचारी (1909) ट्रेंच (1909) रोज (1911) रिजजे (1915) रसेल तथा हीरालाल (1916) ब्रिग्स (1920) और एल्विन (1946) आदि ने घासीदास के व्यक्तित्व पर संक्षिप्त प्रकाश डाला है —
— इनके अलावा 1920 में जी.डब्ल्यू बिग्स की पुस्तक द चमार्स और विलियम बाइजरकी बिहाइंड मड वाल्स (1932) से भी तत्कालीन परिस्थितियों का पता चलता है —
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— सतनामी पंथ,सतनामी समाज या फिर सतनामी दर्शन के मूलभूत तत्वों, परिस्थितियों, कार्यों, संघर्षों और इन सबको आगे बढ़ाने वाले सूत्राधारों के बारे में लिखने का उद्देश्य यह भी है कि संभवतः पूरे  देश में सतनामी पंथ पहला ऐसा क्रांतिकारी प्रयास रहा है जिसके माध्यम से अनुयाईयों ने जाति के जंजालों से मुक्त होकर सामाजिक बदलाव के कार्यक्रमों को अमली जामा पहनाया था। मानव-मानव के बीच भेदभाव की दीवारों को गिराकर एक ऐसे समाज की कल्पना की गई थी जिसमें किसी भी तरह का जुल्म और उत्पीड़न न हो। हर व्यक्ति को सम्मान मिले। हर महिला की अस्मिता की रक्षा हो और मेहनतकश वर्ग को जीविका उपार्जन करने के सम्मान सहित अवसर मिले —
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— उसका आर्थिक पक्ष मजबूत हो। समाज से विषमता दूर हो और लोगों के आध्यात्मिक जीवन में सुधार हो। प्रत्येक संत/महापुरुष और दार्शनिक अपने युग का प्रतिनिधित्व करता है। लेकिन अपने युग के बाद भी इस युग में भी उनके अनुयायी उनके कार्यों को जन-जन तक ले जाने में लगे हैं — 
— रायपुर के पास गिरोधपुरी में हर वर्ष उनके जन्म दिवस 18 दिसम्बर माह में मेला लगता है। जिसमें कई लाख सतनामी शामिल होते हैं। उनके अनुयाईयों में आज भी अधिकांश किसी भी  तरह के व्यसन से दूर रहते हुए सादगी का जीवन व्यतीत करते हैं। दूसरे न उनमें जाति के प्रति कट्टरता है और न धर्म के लिये। वे साम्प्रदायिक सोहार्द का प्रतीक हैं। और अन्य धर्मों के लोगों के लिए उदार हैं। वास्तव में आज के तनावग्रस्त जीवन में यह उनका सकारात्मक तत्व है। गुरु घासीदास की सतनामी विरासत को उनके बाद उनके बेटे बालकदास, बालकदास के बेट साहिबदास साथ ही बालकदास के भाई आगरदास, आगरदास के बेटे अजबदास आदि ने आगे बढ़ाया। निश्चित ही जीवन के सच के प्रचार-प्रसार के लिए यह चुनौती थी —
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— गुरु घासीदास ने अपने सामाजिक सुधार के मिशन में पहला लक्ष्य दलितों के उद्धार का बनाया था। घासीदास के प्रभाव से लगभग सभी जातियों के लोग  सतनामी बने थे। जिसमें चमार, सुनार, लुहार, गड़रिया, यादव, अहीर, तेली, कुम्हार, जाट, कुर्मी, बढ़ई आदि की विशेष रूप से भागीदारी थी। हीवेट के उक्त कथन की पुष्टि अधोलिखित सतनामी गीत से भी होती है —
— ब्राह्मण क्षत्री बनिया शूद्र चारों बरन के लोग,तब बनिन सतनामी, टोरिन भेद-भरम के रोग ला सफा मिटाइन गया घासीदास गुरु बाबा पंथ ला चलाइन गा गोंड कवंर कोरी घासी-चमरा महरा मोची राउत अउ रोहिदास तेली सतनाम ल सोचिन खुल गे हृदय कपाट गा —
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— मंदिर के भीतर रखी पत्थर की मूर्ति से अलग गुरु घासीदास जी ने अपने भीतर छिपी हुई शक्ति के बारे में कहा है —
— अपन घट ही के देव ला मनाबो,मंदिरवा में का करे जाबो,पथरा के देवता हालै नई तो डोले,पथरा के देवता सूधे नई तो जानै हो,ओमा का धूप अगरबत्ती चढ़ाबो मंदिरबा में का करे जाबो —
— क्रांति केवल कुर्बानी चाहती है, समझौता नहीं, यह पाठ गुरु घासीदास जी ने अपने अनुयाईयों को सिखाया। उनके बाद सतनाम पंथ को जिन्होंने ईमानदारी से आगे बढ‍़ाया, उन सभी को सवर्णों के अत्याचार सहने पड़े। गुरु घासीदास जी और सतनामियों के बारे में एक महत्वपूर्ण बात यहां दर्ज करनी जरूरी है। वह यह कि अधिकांश धर्म के ठेकेदारों को उस समय उनके पंथीगीतों के साथ मानवता के लिए दिये गये संदेश रास नहींं आते थे —
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 — बावजूद इसके कि सतनामियों से नैतिकता और स्वच्छता तथा चाल-चलन में ब्राहमण पीछे ही थे, लेेकिन सवर्णों को यह पसंद नहीं था कि दलित समाज का कोई संत या गुरु आगे आये। कहना न होगा कि मनुवाद पूरे देश में हावी था। लेकिन गुरु घासीदास भी अपनी प्रतिमा, चरित्रबल तथा साहस से इतिहास के उस गौरवशाली अध्याय से जुड़े, जिसे आज हम पढ़ते हैं —
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— इस काल की सामाजिक,आर्थिक, सांस्कृतिक तथा धार्मिक परिस्थितियां विषमता से परिपूर्ण थीं
 घासीदास कालीन छत्तीसगढ़ 10,000 वर्गमील केे क्षेत्र में फैला हुआ था। ब्रिटिश औपनिवेशिक शक्ति की नजरें छत्तीसगढ़ पर पहले से ही थी। सतनामी-विद्रोह (1820-30) छत्तीसगढ़ के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है। तत्कालीन समय में छत्तीसगढ़ में सूफियों, बैरागियों,शाक्तों, कबीरपंथियों, रैदासों तथा रामनामियों का प्रभाव था —
— संत धरमदास कबीरदास के पट्ट शिष्य थे। उनका जन्म कसौदा ग्राम के वैश्य परिवार में हुआ था। उन्होंने लोकगीतों को सहज-सरल शैली में आमजन को दिया। दूसरी आेर देखें तो घासीदास के अनुयायी पहले अपने आपको रैदास की परंपरा से जोड़ते थे। (रसेल तथा हीरालाल, प्रथम खण्ड, 1916:313) —
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— इसी नाम से एक दूसरा पंथ अठारहवीं शताब्दी में आया। इसके संस्थापक जगजीवनदास थे। गुरु घासीदास की कथा ‘अवरा’ तथा ‘धंवरा’ नामक वृक्षों के नीचे तपश्चरण के साथ प्रारंभ होती है–
— एक पेड़ अंवरा,दूसर पेड़ धंवरा साहब,चारो वरन नयै अयरित पियाये साहब —
—मानवता के प्रचारक संत घासीदास का जीवन इतिहास में शोषित और शोषक वर्ग के बीच के संघर्ष को उभारता है। कहना न होगा कि पंथीगीत मिथकीय फार्मेट (कथावस्तु) से जुड़े। यह वह युग था जब देवताओं और दैत्यों में युद्ध होता था। घासीदास स्वयं नवीं (रसूल) होना स्वीकार करते हैं —
हीवेट (1869:33), रिजले (ट्राइब्स एंड कास्ट्स ऑफ बंगाल), बोस (1890:2923), तथा रसेल व हीरालाल (प्रथम खण्ड 312-3) के अध्ययन क्रम के दौरान छत्तीसगढ़ के सतनामियों ने अपने को रैदास का वंशज माना था। डेंजिल इब्बेत्सन ने सतनामियों को छत्तीसगढ़ के मूल हिंदुओं के बीच घुसपैठिये के रूप में चित्रित किया है। इब्बेत्सन ने पंजाब में जनगणना का कार्य किया था। सतनामी मूल रूप से पंजाब से आए थे —
— मानवता के प्रचारक गुरु घासीदास की स्मृति में भारत सरकार द्वारा जारी डाक टिकट —
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— घासीदास जन्म से ब्राह्मण, क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र को नहीं मानते थे पंथीगीतों मेें वर्णित चारों बरन ला अमरित पिलाएं में उनका यही भाव था वे व्यक्तियों के टाइप को मानते हैं उनके अनुसार ब्राह्मणों में भी शूद्र पैदा होते हैं और शूद्रों में भी ब्राह्मण पैदा होते हैं क्षत्रियों में वैश्य पैदा हो जाते हैं और वैश्यों में क्षत्रिय पैदा हो जाते हैं वे वर्ण के इस मनोवेज्ञाानिक तथ्य को समझते थे और जातीय भेदभाव मिटाने का प्रयास करते थे —
—  डॉ. हीरालाल शुक्ल के मतानुसार वे केवल दलितों के ही मसीहा नहीं थे, अपितु संपूर्ण छत्तीसगढ़ के मसीहा बनकर उभरे थे। इसलिए उनके सामने छत्तीसगढ़ की अस्मिता का सवाल प्रमुखता से रहा। 1820 से 1830 के मध्य छत्तीसगढ़ एक सांस्कृतिक क्रांति के दौर से होकर गुजरा था —
सतनामियों के संगठन और संघर्ष ने प्रतीक के रूप में सफेद झंडे का चुनाव किया था। जिसे जेत खान पर लहराया जाता था। प्रत्येक प्रातः और सायं सूर्योपासना की विधि प्रचलित थी। गुरु घासीदास जी का परिनिर्वाण 20 फरवरी, 1850 को हुआ –
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— गोत्र समूह —
— सतनामियों के गोत्र संक्षेप में इस तरह थे– सोनी, जागड़ा, बंजारा, मंडल, राउत, सोनबरना, चैहान, पटेला और जहां तक धर्म की बात है, सतनामियों ने अपना धर्म अलग माना। न वे हिन्दू थे और न मुसलमान। गुरु ग्रंथ साहब की तरह गुरु घासीदास ने निर्माण ज्ञान की रचना की —
— गुरु घासीदास के वैभव से संबद्ध सैकड़ों नृत्यमय पंथीगीत सतनामियों में प्रचलित हैं। उनमें एक पंथीगीत धरती और किसान के महत्व को रेखांकित करता है –
— सत्यधारी बन के आए,जग म महान,तैं हलधर किसान, खेती-खार-नरवा बनाई के उपजाए तैं हर धान, खेती-खार-नरवा बनाई के —
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— नरवा-झोरकी-डोगरी-पहरी जंगल-झाड़ी पाए हस, जंगल झाड़ी पाए हस लाघन भुखन खून पसीना मेहनत पार बनाए हस, मेहनत पार बनाए हस तारे सत्या हे महाान, जग देहे अन्नदान धरती के सेवा ले बजाई के —
— तैं हलधर किसान खेती खार नरवा बनाई के अहरु बिछरु सांप सेरु, कांटी खुटी गड़ि के कांटी खुटी गड़ि के —
— सतनामी-विद्रोह में सतनामियों की यह चाह थी कि वे अपने खोये हुए आत्मसम्मान को पुन: प्राप्त कर लें। इसीलिए विपरीत स्थिति में उनका आक्रोश व्यक्त होना स्वाभाविक था
— वे अपने ऊपर सदियों से मढ़़े गये प्रतीकों को उखाड़ फेंकना चाहते थे। इस क्रम में जो उलटफेर हुए, वे बार-बार हुए। सरकारी अभिलेख इनसे भरे पड़े हैं। प्रत्येक बार पहले से भी अधिक संख्या में उलटफेर हुए। इसीलिए कहीं-कहीं हिंसा का भी प्रदर्शन हो गया। सम्मानजनक ऊंचाई के पारंपरिक नियम उस समय टूटे, जब सतनामी-विद्रोह के दरमियान कोई सतनामी वहां के सुविधाभोगी व्यक्ति के घर के सामने से हाथी या घोड़े पर चढ़कर निकला (बोस 1890)। उसने ऐसा इसलिए किया कि परंपरा से चले आ रहे निषेध का उल्लंघन करे —
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— उनके बेटे बालक दास की तो हत्या इसलिए ही कर दी गई थी कि हाथी पर चलते थे। यहां यह सवाल पाठकों के बीच से आ सकता है कि सतनामियों के पास हाथी,घोड़े कहां से आ गये। असल में छत्तीसगढ़ को समृद्ध बनाने में उनका बड़ा हाथ रहा है। हरियाणा से छत्तीसगढ़ आने पर सतनामियों ने सूनी पड़ी धरती में अन्न उगाने में बहुत मेहनत की। परिणाम स्वरुप उनके पास भी पैसा आया —
— इसी प्रभाव के चलते लाखों लोग बाबा के अनुयायी हो गए। फिर इसी तरह छत्तीसगढ़ में 'सतनाम पंथ' की स्थापना हुई इस संप्रदाय के लोग उन्हें अवतारी पुरुष के रूप में मानते हैं। गुरु घासीदास के मुख्य रचनाओं में उनके सात वचन सतनाम पंथ के 'सप्त सिद्धांत' के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इसलिए सतनाम पंथ का संस्थापक भी गुरु घासीदास को ही माना जाता है —
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 — सतगुरू घासीदास जी की सात शिक्षाएँ हैं —
(१) सतनाम् पर विश्वास रखना।
(२) जीव हत्या नहीं करना।
(३) मांसाहार नहीं करना।
(४) चोरी, जुआ से दूर रहना।
(५) नशा सेवन 
(६) जाति-पाति के प्रपंच में नहीं पड़ना।
(७) व्यभिचार नहीं करना !
 (1)सत्य एवं अहिंसा
(2)धैर्य
(3)लगन
(4)करूणा
(5)कर्म
(6)सरलता
(7)व्यवहार
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— समतामूलक समाज की स्थापना के लिए संघर्ष -:
 बाबा जी ने सभी मनुष्यों को एक सामान दर्जा दिलाने संघर्ष किया तथा " मनुष्य जाती " को सर्वोपरि प्राथमिकता दिया | उन्होंने मनुवादियों द्वारा बनाई जाति व्यवस्था को तोड़ने का आव्हान किया तथा ऊँच - नीच, जाती- पाती के भेद भाव को तोड़कर समाज में समता लाने का प्रयास किया —
— सतनामी बनो ,संगठन बनाओ ,सघर्ष करो" का नारा देना 
 — बाबाजी ने जाती एवं वर्ण व्यवस्था को बहुजन समाज के विरोध में पाया , उस समय भी  पाखंड वाद अपने चरम पर था जिसके विरोध में बौध्ध धर्म खड़ा था , जिसे समाप्त करने के लिए बाबा जी ने "सतनामी बनो ,संगठन बनाओ ,सघर्ष करो , का नारा दिया ! संगठन ही वह शक्ति है जिसके द्वारा अपना आत्म सम्मान हासिल किया जा  सकता है —
— जाति विहीन समाज के स्थापना हेतु संघर्ष —
— बाबा जी ने समता मूलक समाज की स्थापना किया जातियों में जकड़े दलितों के शोषण एवं जातीय अपमान को देखा था , जिसको तोड़ने के लिए ऐसे समाज की स्थापना किया जंहा ऊँच नीच छोटे बड़े का कोई भेद नहीं है —
— नारी सम्मान हेतु संघर्ष —
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"सबो जीव के आत्मा एकेच आय"बाबाजी नारी जाति का बड़ा आदर करते थे नारी पवित्रता की देवी है नारी ही स्त्री पुरुष की जननी है तथा संसार व मानव निर्माण का कार्य वे ही करते है | उन्होंने बाल विवाह ,सती प्रथा का विरोध किया तथा विधवा विवाह संपन्न कराया एवं स्त्री को हर क्षेत्र में समानता का अधिकार दिलाया —
       — बलि प्रथा का विरोध —
 —बाबा जी ने बलि प्रथा का विरोध किया अहिंसा  पर बल दिया और बताया की सभी प्राणियों में समान आत्मा होती है और उन्हें इस संसार में समान रूप से जीने का अधिकार है!*
गुरू घासीदास अपने संपूर्ण जीवनकाल में उंच-नींच, जात-पात व वर्ण व्यवस्था की मनुवादी व्यवस्था पर प्रहार करते रहे तथा लोगों को जागृत करते रहे। बाद में उनके दूसरे बेटे गुरू बालकदास ने पंथ को आगे बढ़ाया ऐसा माना जाता है कि बालकदास एक बलशाली और बहुत ही साहसी पुरूष थे —
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— उन्होंने होश सम्हालते ही अपने पिता के सतनाम आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए जगह-जगह ‘राउटी प्रथा’ का आरम्भ कर दिया और सतनाम धर्म को मानने वालों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती गई उस समय समाज में व्याप्त डोला प्रथा का भी कड़ा प्रतिरोध बालकदास ने किया, जिसमें संपूर्ण शूद्र समाज उनको भारी सहयोग दिया। जातिवादी मानसिकता से दूषित समाज बालकदास जी को खतरे के रूप में देखने लगे और यहाँ तक कि उन्होंने बालकदास की हत्या का षडय़ंत्र रच डाला —
— 28 मार्च 1860 को ग्राम औराबांधा में जब बालकदास अपने अनुयायी के घर भोजन कर रहे थे तभी वहॉ के दूषित मानसिकता के जातिवादियों ने उन पर हमला बोल दिया। चूॅकि वे निहत्थे थे और हमलावरों की संख्या सैकड़ों में थी इस कारण वे न खुद को और ना ही अपने दो अंगरक्षकों सरहा और जोधाई को बचा सके ! इस तरह उन्होंने सतनामी पन्थ के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। हालांकि आज भी गुरू के वंशजों द्वारा सतनाम आंदोलन चलाया जा रहा है लेकिन उसका तेज बालकदास के काल जैसा नहीं है —
 — इस तरह कहा जा सकता है की बाबा जी ने जिन आदर्शों के लिए संघर्ष किया उसे व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए हमें समझना होगा और देश तथा समाज की रक्षा के लिए तत्पर रहना होगा —
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— आइए हम सभी सतनामी पंथ के संस्थापक मानवता के प्रचारक सामाजिक क्रांति के अग्रदूत सूर्यकोटि,परमपूज्य गुरु घासीदास जी की विचारधारा तथा मिशन की किरणें जागृत करके मानवता को बचाने का प्रण करें –
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  विशेष साभार-मोहनदास नैमिशराय-फारवर्ड प्रेस —
डाॅ. जे. आर. सोनी, सतनाम पोथी, वैभव प्रकाशन, रायपुर, छत्तीसगढ, 2006,सूरज बड्त्या, बाबू मंगूराम और आदि धर्म मंडल आंदोलन, अनामिका पब्लिशर्स, 4697/3, 21-ए, 3. अंसारी रोड दरियागंज, नई दिल्ली-110002, 2013
मोहनदास नैमिशराय,भारतीय दलित आन्दोलन का इतिहास, भाग-1, राधाकृष्ण प्रकाशन प्रा. लि. दरियागंज, नई दिल्ली, 2013,बाबा साहेब डाॅ. अम्बेडकर संपूर्ण वांड्मय खंड-16
टी. आर. खुन्टे, सतनाम दर्शन, सतनाम  कल्याण एवं गुरु घासीदास चेतना संस्थान, डी. 134, कोण्डली, दिल्ली-110096,डाॅ. हीरालाल शुक्ल, ‘गुरु घासीदास संघर्ष समन्वय और सिद्धान्त’ सिद्धार्थ बुक्स, हरदेव पुरी, दिल्ली – 110093
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— एक बात हमेशा याद रखनी चाहिए ,बहुजन महापुरुषों, गुरूओं,संत,अमर शहीदों की कुर्बानी के कारण ही आज हम सभी आजाद हैं उनकी कुर्बानी को हमें कभी नहीं भूलना चाहिए लेकिन आज भी पिछड़े,शोषित,आदिवासी समाज गरीबी अशिक्षा के अभाव में गुलामी का जीवन जी रहे हैं !
इसके हम लोग दोषी है —
—— साथियों आज वे हमारे बीच नही है, पर उनके द्वारा किये गए कार्यों,संघर्षों और उनके उपदेशों से हमेशा वे हमारे बीच जीवंत है। संविधान के रचयिता और ऐसे अद्वितीय समाज सुधारक को हमारा कोटि-कोटि नमन ——
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 — आधुनिक भारत के महानतम समाज सुधारक और सच्चे
 महानायक, लेकिन”भारतीय जातिवादी-मानसिकता ने सदा ही इस महापुरुष की उपेक्षा ही की गई |भारत में शायद ही कोई दूसरा व्यक्ति ऐसा हो, जिसने देश के निर्माण,उत्थान और प्रगति के लिए थोड़े समय में इतना कुछ कार्य किया हो, जितना बाबासाहेब आंबेडकर जी ने किया है और शायद ही कोई दूसरा व्यक्ति हो, जो निंदा, आलोचनाओं आदि का उतना शिकार हुआ हो,जितना बाबासाहेब आंबेडकर जी हुए थे —
—— बाबासाहेब आंबेडकर जी ने भारतीय संविधान के तहत कमजोर तबके के लोगों को जो कानूनी हक दिलाये है। इसके लिए बाबा साहेब आंबेडकर जी को कदम-कदम पर काफी संघर्ष करना पड़ा था ——
—— आवो जानें पे बैक टू सोसायटी क्या ——
—— ऐ मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय,ज्ञान,बुद्धि, पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो ——
—— तुम्हारें अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए मैं दुबारा नहीं आऊंगा,ये क्रांति का रथ संघर्षो का कारवां ,जो मैं बड़े दुखों,कष्टों को सहकर यहाँ तक ले आया हूँ,अब आगे तुम्हे ही ले जाना है  ——
—— साथियों बाबा साहेब जी अपने अंतरिम दिनोँ में अकेले रोते हुऐ पाए गए। बाबा साहेब अम्बेडकर जी से जब काका कालेलकर कमीशन 1953 में मिलने के लिए गया ,तब कमीशन का सवाल था कि आपने पूरी जिन्दगी पिछड़े,शोषित,वंचित वर्ग समाज  के उत्थान के लिए लगा दी काका कालेकर कमीशन ने पूछा बाबा साहेब जी आपकी राय में क्या किया जाना चाहिए बाबा साहेब ने जवाब दिया कि पिछड़े,शोषित,वंचित समाज का उत्थान करना है तो इनके अंदर बड़े लोग पैदा करने होंगें ——
—— काका कालेलकर कमीशन के सदस्यों को यह बात समझ नहीं आई  तो उन्होने फिर सवाल किया “बड़े लोग से आपका क्या तात्पर्य है ? " बाबा साहेब जी ने जवाब दिया कि अगर किसी समाज में 10 डॉक्टर , 20 वकील और 30 इन्जिनियर पैदा हो जाऐ तो उस समाज की तरफ कोई आंख ऊठाकर भी देख नहीं सकता !"
—— इस वाकये के ठीक 3 वर्ष बाद 18 मार्च 1956 में आगरा के रामलीला मैदान में बोलते हुऐ बाबा साहेब ने कहा "मुझे पढे लिखे लोगों ने धोखा दिया। मैं समझता था कि ये लोग पढ लिखकर अपने समाज का नेतृत्व करेगें , मगर मैं देख रहा हुँ कि  मेरे आस-पास बाबुओं की भीड़ खड़ी हो रही है जो अपना ही पेट पालने में लगी है !" 
—— साथियों बाबा साहेब अपने अन्तिम दिनो में अकेले रोते हुए पाए गए ! जब वे सोने की कोशिश करते थे तो उन्हें नींद नहीं आती थी,अत्यधिक परेशान रहने वाले थे बाबा साहेब के निजी सचिव  नानकचंद रत्तु ने बाबा साहेब जी से सवाल पुछा कि , आप इतना परेशान क्यों रहते है बाबा साहेब जी ? ऊनका जवाब था , " ——
—— नानकचंद , ये जो तुम दिल्ली देख रहो हो अकेली दिल्ली में 10,000 कर्मचारी ,अधिकारी यह केवल अनुसूचित जाति के है  ! जो कुछ साल पहले शून्य थे मैँने अपनी जिन्दगी का सब कुछ दांव पर लगा दिया,अपने लोगों में पढ़े लिखे लोग पैदा करने के लिए क्योंकि  मैं जानता था कि जब मैं अकेल पढ लिख कर इतना काम कर सकता हुँ  अगर हमारे हजारों लोग पढ लिख जायेगें तो बहुजन समाज में कितना बड़ा परिवर्तन आयेगा लेकिन नानकचंद,मैं जब पुरे देश की तरफ निगाह दौड़ाता हूँ हूँ तो मुझे कोई ऐसा  नौजवान नजर नहीं आता है,जो मेरे कारवाँ को आगे ले जा सकता है नानकचंद,मेरा शरीर मेरा साथ नहीं दे रहा है ,जब मैं अपने मिशन के बारे में सोचता हुँ,तो मेरा सीना दर्द से फटने लगता है ——
—— जिस महापुरुष ने अपनी पुरी जिन्दगी,अपना परिवार ,बच्चे आन्दोलन की भेँट चढाए,जिसने पुरी जिन्दगी इस विश्वास में लगा दी  कि , पढा -लिखा वर्ग ही अपने शोषित वंचित भाइयों को आजाद करवा सकता हैं जिन्होंने अपने लोगों को आजाद कर पाने का मकसद अपना मकसद बनाया था,क्या उनका सपना पूरा हो गया ? आपके क्या फर्ज  बनते हैं समाज के लिए ?
—— सम्मानित साथियों जरा सोचो आज बाबा साहेब की वजह से हम ब्रांडेड कपड़े, ब्रांडेड जूते, ब्रांडेड मोबाइल, ब्रांडेड घड़ियां हर कुछ ब्रांडेड इस्तेमाल करने के लायक बन गए हैं बहुत सारे लोग बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू, शराब पर सैकड़ों रुपये बर्बाद करते हैं ! इस पर औसतन 500 रुपये खर्च आता है,चाउमीन, गोलगप्पे, सूप आदि पर हरोज 20 से 50 रुपये खर्च आता है। महिने में ओसतन 600 से 1500 रुपये तक खर्च हो सकते हैं ——
—— बाबा साहेब के अधिकारों,संघर्षो,प्रावधानों की वजह से जो लोग इस लायक हो गए हैं  हम लोगों पर बाबा साहेब ने विश्वास नहीं किया क्योंकि हमने बाबा साहेब के साथ विश्वासघात किया था ! उनके द्वारा दिखाए गए सपनों से हम दूर चले गए नौकरी आयी और आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक बाबा साहेब अम्बेडकर जी को भूल गए —— 
——"हमारे उपर बाबा साहेब का बहुत बड़ा कर्ज है, 
क्या आप उसे उतार सकते हैं,नहीं रत्तीभर भी नहीं हम जिस शख्स ने इस देश के शोषित,वंचित, पिछले, समाज,सर्वसमाज,महिलाओं भारतवर्ष के लिए अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी,अपने बच्चे,पत्नी अपने सुख चैन सब कुछ कुर्बान कर दिया जरा सोचो किसके लिए आप लोगों के लिए और हम लोग क्या कर रहें हैं टीवी,बीवी में मस्त है मिशन को भूल गये ——
—— लेकिन हमें फिर से पहले की तरह बाबा साहेब को धोखा नहीं देना चाहिए,पढ़े-लिखे लोगो अपने उपर से धोखेबाज का लेबल उतारो और बाबा साहेब के मिशन को आगे बढ़ाओ ——
——आपके बीड़ी, सिगरेट पर खर्च होने वाले 15 रुपये से न जाने कितने बच्चों को शिक्षा मिल सकती है,आपके फास्टफूड पर खर्च होने वाले 50 रुपये से न जाने कितने गरीब लोगों को दवाई मिल सकती है !आपके इन पैसों से न जाने कितने मिशनरी साथियों का खर्च चल रहा है जो पूरा जीवन समाज सेवा मे लगा रहे हैं ——
—— जरा अपने दिल पर हाथ रख कर कहो तुम क्या बाबा साहेब के पे बैक टू सोसाइटी सिद्धांत पर चल रहे हो ——
—— केवल भंडारे देना,चंदा देना,कार्यक्रम करना,ठंडे पानी की स्टाल लगाना पे बैक टू सोसाइटी नहीं है ——
——अपने जैसे सक्षम लोग पैदा करना पे बैक टू सोसाइटी है गरीब बच्चों को शिक्षित करना पे बैक टू सोसाइटी है,शिक्षित लोगों को नौकरियां दिलाना डाक्टर है ——
——बहुजनों को वैज्ञानिक,इंजिनियर,वकील,शिक्षक,डाक्टर इत्यादि बनाना पे बैक टू सोसाइटी है.बाबा साहेब के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए लगे हुए मिशनरियों को मदद देना असली पे बैक टू सोसाइटी है ——
—— आप जो पोजिशन पर है आपका फर्ज बनता है कि मेरे समाज का हर बच्चा उस पोजिशन पर पहुंचे यह पे बैक टू सोसाइटी है,अतः हम पढे-लिखे, नौकरीपेशा समाज से अपील करते हैं कि आप अपने उपर लगे धोखेबाज के लेबल को उतारने की कोशिश करें आपने ग़ैर-भाई बहनों के पास जाओ,उनकी ऊपर उठने में मदद करें,अपने उद्योग धंधे, व्यापार आदि शुरू करें, अपने आप को बेरोजगार बहुजनों के लिए रोजगार की व्यवस्था करें,अपना व्यवसाय शुरू करें, अपने समाज का पैसा अपने समाज में रोकें ——
 —— प्रयत्न करें,जब तक बाबा साहेब का पे बैक टू सोसाइटी  का सिद्धांत लागू नहीं होगा तब तक देश से गरीबी नहीं मिटेगी ——
——  साभार-: बहुजन समाज और उसकी राजनिति,मेरे संघर्षमय जीवन एवं बहुजन समाज का मूवमेंट {संदर्भ- सलेक्टेड ऑफ डाँ अम्बेडकर – लेखक डी.सी. अहीर पृष्ठ क्रमांक 110 से 112 तक के भाषण का हिन्दी अनुवाद), श्री गुरु रविदास जन-जागृति एवं शिक्षा समिति,(राजी),दलित दस्तक ,समय बुद्धा,,पुस्तक-'डॉ.बाबासाहेब अंबेडकर के महत्वपूर्ण संदेश एवं विद्वत्तापूर्ण कथन' के थर्ड कवर पृष्ठ से,लेखक-नानकचंद रत्तू-अनुवादक-गौरव कुमार रजक, अंकित कुमार गौतम,संपादन-अमोल वज्जी,प्रकाशक-डी के खापर्डे मेमोरियल ट्रस्ट (पब्लिकेशन डिवीजन)527ए, नेहरू कुटिया, निकट अंबेडकर पार्क, कबीर बस्ती, मलका गंज, नई दिल्ली -07, विकिपीडिया} ——
 ——"सामाजिक क्रांति के अग्रदूत,मानवता की प्रचारक महामानव बाबा साहेब अम्बेडकर जी के  चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं ——
— साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए आधुनिक भारत के निर्माता बाबासाहेब अम्बेडकर जी ने वह कर दिखाया जो उस दौर में सोच पाना भी मुश्किल था —  
— साथियों आज हमें अगर कहीं भी खड़े होकर अपने विचारों की अभिव्यक्ति करने की आजादी है,समानता का अधिकार है तो यह सिर्फ और सिर्फ परमपूज्य बाबासाहेब आंबेडकर जी के संघर्षों से मुमकिन हो सका है.भारत वर्ष का जनमानस सदैव बाबा साहेब डा भीमराव अंबेडकर जी का कृतज्ञ रहेगा.इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी बात खत्म करता हूं सामाजिक न्याय के पुरोधा तेजस्वी क्रांन्तिकारी शख्शियत परमपूज्य बोधिसत्व भारत रत्न बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं
      — जिसने देश को दी नई दिशा””…जिसने आपको नया जीवन दिया वह है आधुनिक भारत के निर्माता बाबा साहेब अम्बेडकर जी का संविधान —
  — सच  अक्सर कड़वा लगता है। इसी लिए सच बोलने वाले भी अप्रिय लगते हैं। सच बोलने वालों को इतिहास के पन्नों में दबाने का प्रयास किया जाता है, पर सच बोलने का सबसे बड़ा लाभ यही है, कि वह खुद पहचान कराता है और घोर अंधेरे में भी चमकते तारे की तरह दमका देता है। सच बोलने वाले से लोग भले ही घृणा करें, पर उसके तेज के सामने झुकना ही पड़ता है ! इतिहास के पन्नों पर जमी धूल के नीचे ऐसे ही बहुजन महापुरुषों का गौरवशाली इतिहास दबा है —
     ―मां कांशीराम साहब जी ने एक एक बहुजन नायक को बहुजन से परिचय कराकर, बहुजन समाज के लिए किए गए कार्य से अवगत कराया सन 1980 से पहले भारत के  बहुजन नायक भारत के बहुजन की पहुँच से दूर थे,इसके हमें निश्चय ही मान्यवर कांशीराम साहब जी का शुक्रगुजार होना चाहिए जिन्होंने इतिहास की क्रब में दफन किए गए बहुजन नायक/नायिकाओं के व्यक्तित्व को सामने लाकर समाज में प्रेरणा स्रोत जगाया ——
   ―इसका पूरा श्रेय मां कांशीराम साहब जी को ही जाता है कि उन्होंने जन जन तक गुमनाम बहुजन नायकों को पहुंचाया, मां कांशीराम साहब के बारे में जान कर मुझे भी लगा कि गुमनाम बहुजन नायकों के बारे में लिखा जाए !
   —— ऐ मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय ज्ञान,पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो ——
      —―साथियों एक बात याद रखना आज करोड़ों लोग जो बाबासाहेब जी,माँ रमाई के संघर्षों की बदौलत कमाई गई रोटी को मुफ्त में बड़े चाव और मजे से खा रहे हैं ऐसे लोगों को इस बात का अंदाजा भी नहीं है जो उन्हें ताकत,पैसा,इज्जत,मान-सम्मान मिला है वो उनकी बुद्धि और होशियारी का नहीं है बाबासाहेब जी के संघर्षों की बदौलत है ——
      —– साथियों आँधियाँ हसरत से अपना सर पटकती रहीं,बच गए वो पेड़ जिनमें हुनर लचकने का था ——
       ―तमन्ना सच्ची है,तो रास्ते मिल जाते हैं,तमन्ना झूठी है,तो बहाने मिल जाते हैं,जिसकी जरूरत है रास्ते उसी को खोजने होंगें निर्धनों का धन उनका अपना संगठन है,ये मेरे बहुजन समाज के लोगों अपने संगठन अपने झंडे को मजबूत करों शिक्षित हो संगठित हो,संघर्ष करो !
      ―साथियों झुको नही,बिको नहीं,रुको नही, हौसला करो,तुम हुकमरान बन सकते हो,फैसला करो हुकमरान बनो"
       ―सम्मानित साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए !
        ―सभी अम्बेडकरवादी भाईयों, बहनो,को नमो बुद्धाय सप्रेम जयभीम! सप्रेम जयभीम !!
             ―बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर  जी ने कहा है जिस समाज का इतिहास नहीं होता, वह समाज कभी भी शासक नहीं बन पाता… क्योंकि इतिहास से प्रेरणा मिलती है, प्रेरणा से जागृति आती है, जागृति से सोच बनती है, सोच से ताकत बनती है, ताकत से शक्ति बनती है और शक्ति से शासक बनता है !”
        ― इसलिए मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर आप लोगो को इतिहास के उन पन्नों से रूबरू कराने की कोशिश कर रहा हूं जिन पन्नों से बहुजन समाज का सम्बन्ध है जो पन्ने गुमनामी के अंधेरों में खो गए और उन पन्नों पर धूल जम गई है, उन पन्नों से धूल हटाने की कोशिश कर रहा हूं इस मुहिम में आप लोगों मेरा साथ दे, सकते हैं !
           ―पता नहीं क्यूं बहुजन समाज के महापुरुषों के बारे कुछ भी लिखने या प्रकाशित करते समय “भारतीय जातिवादी मीडिया” की कलम से स्याही सूख जाती है —
— इतिहासकारों की बड़ी विडम्बना ये रही है,कि उन्होंने बहुजन नायकों के योगदान को इतिहास में जगह नहीं दी इसका सबसे बड़ा कारण जातिगत भावना से ग्रस्त होना एक सबसे बड़ा कारण है इसी तरह के तमाम ऐसे बहुजन नायक हैं,जिनका योगदान कहीं दर्ज न हो पाने से वो इतिहास के पन्नों में गुम हो गए —
     ―उन तमाम बहुजन नायकों को मैं अमित गौतम जंनपद   रमाबाई नगर,कानपुर कोटि-कोटि नमन करता हूं !
जय रविदास
जय कबीर
जय भीम
जय नारायण गुरु
जय सावित्रीबाई फुले
जय माता रमाबाई अम्बेडकर जी
जय ऊदा देवी पासी जी
जय झलकारी बाई कोरी
जय बिरसा मुंडा
जय बाबा घासीदास
जय संत गाडगे बाबा
जय पेरियार रामास्वामी नायकर
जय छत्रपति शाहूजी महाराज
जय शिवाजी महाराज
जय काशीराम साहब
जय मातादीन भंगी जी
जय कर्पूरी ठाकुर 
जय पेरियार ललई सिंह यादव
जय मंडल
जय हो उन सभी गुमनाम बहुजन महानायकों की जिंन्होने अपने संघर्षो से बहुजन समाज को एक नई पहचान दी,स्वाभिमान से जीना सिखाया !    
              अमित गौतम
             युवा सामाजिक
                कार्यकर्ता         
              बहुजन समाज
  जंनपद-रमाबाई नगर कानपुर
           सम्पर्क सूत्र-9452963593




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