— “हेट्स ऑफ ब्लैक टाइग्रैस - बहुजन नायिका उदा देवी पासी की अद्भुत और स्तब्ध कर देने वाली वीरता से अभिभूत होकर जनरल कॉल्विन केम्बैल ने अपना हेट उतारकर उनके सम्मान में श्रद्धांजलि देते हुए ये शब्द कहे थे।”

       
  16,नवंबर,1857
वो थे इसलिए आज हम है
          इतिहास के पन्नों से
— 1857 की जंगे आजादी के महासंग्राम की बहुजन महानायिका,महान देशभक्त,क्रांतिकारी,32 ब्रिटिश सैनिकों को मार गिराने वाली,बेगम हज़रत महल की महिला सेना की टुकड़ी का कमांडरवीरांगना,ऊदा देवी पासी के शहादत दिवस पर भावभिनी श्रद्धांजलि —
— लखनऊ के सिकंदर बाग में ऊदा देवी पासी की प्रतिमा 
―साथियों जब जरूरत थी चमन को तो लहू हमने दिया,अब बहार आई तो कहते हैं तेरा काम नहीं —

— बहुजन जननायिका,वीरांगना ऊदा देवी पासी—वह योद्धा जिसने ब्रिटिश सरकार से लड़ी स्वाधीनता की लडाई  —
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की महानायिका बहुजन वीरांगना उदा देवी: अंग्रेजों ने भी जिसे माना ‘ब्लैक टाइग्रैस’
        — “हेट्स ऑफ ब्लैक टाइग्रैस -—
— बहुजन नायिका उदा देवी पासी की अद्भुत और स्तब्ध कर देने वाली वीरता से अभिभूत होकर जनरल कॉल्विन केम्बैल ने अपना हेट उतारकर उनके सम्मान में श्रद्धांजलि देते हुए ये शब्द कहे थे।”
— साथियों बहुजन जननायिकाम महान वीरांगना ऊदा देवी पासी को भारतीयों से अधिक अंग्रेजों ने दिया सम्मान — 
— क्या आप लोगों को पता है बहुजन वीरांगना ऊदा देवी पासी के बारे में भारतीय इतिहासकारों ने बहुत कम, अंग्रेज अधिकारियों और पत्रकारों ने ज्यादा लिखा। 
— लंदन के अखबारों में खबरें और रिपोर्ट आदि प्रकाशित हुए। यहां तक कि कार्ल मार्क्स ने भी उनकी वीरता के बारे में चर्चा की —
— महिला दस्ते के कमांडर के रूप में ऊदा देवी ने देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जिस अदम्य साहस, दूरदर्शिता और शौर्य का परिचय दिया था, उससे खुद अंग्रेज सेना भी चकित रह गई थी — 
—  साथियों भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं ने भी उसी तरह की भूमिका निभाई है, जैसा कि पुरुषों ने, लेकिन पुरूषवादी समाजिक मानसिकता ने इसे छिटपुट तरीके से ऐसे पेश किया जैसे महिलाओं का योगदान नाम मात्र का वो भी पुरुषों की कृपा से रहा है. इतिहास के पन्ने  कुरेदकर कुछ वैसी महिलाओं के योगदान की चर्चा नारी उत्कर्ष में की जा रही है, जिनके योगदान को अपेक्षित जगह नहीं मिल पाई. इस बार पेश है इतिहास के पन्नों से बहुजन वीरांगना उदा देवी पासी के संघर्षगाथा  — 

— बहुजन वीरांगना झलकारी बाई कोरी की तरह 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाली एक और भी वीरांगना थी जिसे दुर्भाग्य से वह यश और सम्मान नहीं मिला जिसकी वह हक़दार थी. शायद इसलिए कि वह किसी राजघराने या सामंती परिवार में नहीं, एक गरीब बहुजन परिवार में पैदा हुई एक  सैनिक थी. जातिगत भावना से ग्रस्त मानसिकता की वजह से इतिहास के पन्नों में ऐसे बहुजन समाज के वीरों को जगह देने की परंपरा हमारे देश में कम ही रही है —
— साथियों क्या आप लोगों को पता है भारतीय स्वाधीनता संग्राम की वह नायिका थी ऊदा देवी पासी जिसे 1857 के स्वाधीनता संग्राम के कुछ लेखकों द्वारा दिए गए विवरणों में ” black tigress” कहा गया था —
— लखनऊ के पास उजिरियाँव गाँव की ऊदा देवी उस बहुजन पासी जाति से थी जिसे अछूत माना जाता था, लेकिन जो अन्याय और अश्पृश्यता के प्रतिरोध में अपने जुझारू स्वभाव के लिए हमेशा से जानी जाती रही है. उनके पति मक्का पासी वाजिद अली शाह की पलटन में एक सैनिक थे. देशी रियासतों पर अंग्रेजों के बढ़ते हस्तक्षेप के मद्देनज़र जब वाजिद अली शाह ने महल की रक्षा के उद्धेश्य से स्त्रियों का एक सुरक्षा दस्ता बनाया तो उसके एक सदस्य के रूप में ऊदा देवी नियुक्त हुई. अपनी बहादुरी और तुरंत निर्णय लेने की उसकी क्षमता से नबाब की बेगम और देश के प्रथम स्वाधीनता संग्राम की नायिकाओं में एक बेगम हज़रत महल बहुत प्रभावित हुई. नियुक्ति के कुछ ही अरसे के बाद ऊदा देवी को बेगम हज़रत महल की महिला सेना की टुकड़ी का कमांडर बना दिया गया — 
— महिला दस्ते के कमांडर के रूप में ऊदा ने देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जिस अदम्य साहस, दूरदर्शिता और शौर्य का परिचय दिया था उससे खुद अँगरेज़ सेना भी चकित रह गयी थी — 
 — बहुजन वीरांगना ऊदा देवी पासी जी की वीरता पर उस दौर में कई गीत लिखे और गाये जाते थे. उन गीतों की कुछ पंक्तियाँ आज भी उपलब्ध हैं —
— कोई उसको हब्शी कहता,कोई कहता नीच अछूत,अबला कोई उसे बताये,कोई कहे उसको मज़बूत —
— वीरांगना ऊदा देवी पासी  को शौर्य और बलिदान की प्रेरणा अपने पति मक्का पासी की शहादत से मिली थी. यह वह समय था जब 10 मई 1857 को मेरठ के सिपाहियों द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध छेड़ा गया संघर्ष तेजी से पुरे उत्तर भारत में फैलने लगा था. 10 जून 1857 को लखनऊ के कस्बा चिनहट के निकट इस्माईलगंज में हेनरी लौरेंस के नेत्रित्व में ईस्ट इंडिया कंपनी की फ़ौज की मौलवी अहमदुल्लाह शाह की अगुवाई में संगठित विद्रोही सेना से ऐतिहासिक लड़ाई हुई थी — 
— चिनहट की इस लड़ाई में विद्रोही सेना की जीत और हेनरी लौरेंस की फ़ौज का मैदान छोड़ कर भाग खडा होना प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की सबसे बड़ी उप्लाधियों में एक थी. देश को गौरवान्वित करने वाली और स्वाधीनता सेनानियों का मनोबल बढाने वाली उस लड़ाई में सैकड़ों दुसरे सैनिकों के साथ मक्का पासी की भी शहादत हुई थी. 
— बहुजन नायिका ऊदा देवी पासी ने अपने पति की लाश पर उसकी शहादत का बदला लेने की कसम खायी थी. मक्का पासी के बलिदान का प्रतिशोध लेने का वह अवसर ऊदा देवी को मिला चिनहट के महासंग्राम की अगली कड़ी सिकंदर बाग़ की लड़ाई में अंग्रेजों की सेना चिनहट की पराजय का बदला लेने की तैयारी कर रही थी. उन्हें पता चला कि लगभग दो हज़ार विद्रोही सैनिकों ने लखनऊ के सिकंदर बाग़ में शरण ले रखी है —
— 16 नवम्बर 1857 को कोलिन कैम्पबेल के नेतृत्व में अँगरेज़ सैनिकों ने एक सोची समझी रणनीति के तहत सिकंदर बाग़ की उस समय घेराबंदी की जब विद्रोही सैनिक या तो सो रहे थे या बिलकुल ही असावधान थे. ऊदा के नेतृत्व में वाजिद अली शाह की स्त्री सेना की टुकड़ी भी हमले के वक़्त उसी बाग़ में थी —
— असावधान सैनिकों की बेरहमी से ह्त्या करते हुए अँगरेज़ सैनिक तेजी से आगे बढ़ रहे थे. हज़ारों विद्रोही सैनिक मारे जा चुके थे और पराजय सामने नज़र आ रही थी. मैदान के एक हिस्से में महिला टुकड़ी के साथ मौजूद ऊदा ने पराजय निकट देखकर पुरुषों के कपडे पहन लिए. हाथों में बन्दूक और कन्धों पर भरपूर गोला बारूद लेकर वह पीपल के एक ऊँचे पेड़ पर चढ़ गयी ! ब्रिटिश सैनिकों को मैदान के उस हिस्से में आता देख ऊदा ने उन पर निशाना लेकर फायरिंग शुरू कर दिया. पेड़ की पत्तियों और डालियों के पीछे छिपकर उसने हमलावर ब्रिटिश सैनिकों को सिकंदर बाग़ के उस हिस्से में तब तक प्रवेश नहीं करने दिया था जब तक उसका गोला बारूद ख़त्म नहीं हो गया — 
— बहुजन नायिका ऊदा देवी ने अपनी उस अकेली लड़ाई में ब्रिटिश सेना के दो बड़े अफसरों कूपर और लैम्सदेन सहित 32 अँगरेज़ सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था. गोलियां ख़त्म होने के बाद ब्रिटिश सैनिकों ने पेड़ को घेरकर अंधाधुंध फायरिंग की. कोई उपाय न देखकर जब वह पेड़ से उतरने लगी तो उसे गोलियों से छलनी कर दिया गया. ब्रिटिश सेना के हाथ पड़ने से पहले ही वह वीरगति को प्राप्त हो गयी —
 — लाल रंग की कसी जैकेट और पैंट पहने ऊदा की लाश जब पेड़ से जमीन पर गिरी, तो उसका जैकेट खुल गया. कैम्पबेल ये देख कर हैरान रह गया कि वीरगति प्राप्त वह बहादुर सैनिक कोई पुरुष नहीं, बल्कि एक महिला थी. कहा जाता है कि ऊदा देवी की स्तब्ध कर देने वाली वीरता से अभिभूत होकर कैम्पबेल ने हैट उतारकर उसे सलामी और श्रद्धांजली दी. ऊदा के शौर्य, साहस और शहादत पर देशी इतिहासकारों ने बहुत कम, अँगरेज़ अधिकारीयों और पत्रकारों ने ज्यादा लिखा —
 — ब्रिटिश सार्जेंट फोर्बेस मिशेल ने अपने एक संस्मरण में बिना नाम लिए सिकंदर बाग़ में पीपल के एक बड़े पेड़ के ऊपर बैठी एक ऐसी स्त्री का उल्लेख किया है जो अंग्रेजी सेना के 32 से ज्यादा सिपाहियों और अफसरों को मार गिराने के बाद शहीद हुई थी. लन्दन टाइम्स के तत्कालीन संवाददाता विलियम हावर्ड रसेल ने लड़ाई का जो डिस्पैच लन्दन भेजा, उसमे उसने पुरुष भेष में एक स्त्री द्वारा पीपल के पेड़ से फायरिंग कर अंग्रेजी सेना को भारी क्षति पहुचाने का उल्लेख प्रमुखता से किया है. लन्दन के कई दुसरे अखबारों ने भी ऊदा की बहादुरी पर लेख प्रकाशित किये थे 
–  संभवतः लंदन टाइम्स में छपी खबरों के आधार पर ही कार्ल मार्क्स ने भी अपनी टिप्पणी में इस घटना को समुचित स्थान दिया —
— सम्मानित साथियों इसके साथ-साथ इंग्लैंड के प्रसिद्ध हिस्टोरियन क्रिस्टोफर हिब्बाट ने अपनी बुक ‘The Great Mutiny India,1857 में इस घटना का बहुत बारीकी से विवरण दिया है। उस समय ‘लंदन टाइम्स’ ने भी एक स्त्री द्वारा इतनी दिलेरी से लड़ने और ब्रिटिश सेना को नुकसान पहुंचाने की ख़बर छापी थी। उन दिनों उदा देवी कई दिनों तक अख़बारों में छाई रहीं —
— लखनऊ का पतन,1857 —
— वीरांगना ऊदा देवी पासी जी हमारे राष्ट्रीय गौरव और स्वाभिमान की जीवंत प्रतीक है. जातिगत भावना से ग्रस्त इतिहास लेखन ने उसके साथ न्याय नहीं किया. अंग्रेजों से  अपनी रियासत बचाने की लड़ाई लड़ रहे कई लोग देश के पहले स्वाधीनता संग्राम के नायक और नायिका घोषित किये गए, मगर बिना किसी स्वार्थ के देश की आज़ादी के लिए लड़ने और मर मिटने वाले सैकड़ों आमलोग इतिहास के अँधेरे तहखानों में गम कर दिए गये —
बहुजन वीरांगना ऊदा देवी उनमे से एक थीं. कुछ साल पहले उत्तर प्रदेश की सरकार ने ऊदा देवी की एक मूर्ति सिकंदर बाग़ परिसर में स्थापित की है. उसकी तरह सैकड़ों दुसरे लोग भी हैं जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्राणों की आहूति दी थी, लेकिन न इतिहास को उनकी याद है और न जनमानस को —
— इंन्ही शब्दों के साथ मैं अपने लेख को अंतिम रूप देता हूं 
— साभार-मेरे संघर्षमय जीवन एंव बहुजन मूवमेंट का सफरनामा,एक थी ऊदा देवी: ध्रुव गुप्त की नयी किताब “हाशिये पर रौशनी” से ,दलित दस्तक,फारवर्ड प्रेस,लेख के कुछ अंश विकिपीडिया से भी लिए गये हैं —
     ―साथियों आदिवासी जननायक अमर शहीद बिरसा मुंडा का भारत वर्ष के लिए किए गया अथक योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता ,धन्य है वो भारत भूमि और वो माई जिसने ऐसे महान सपूत को जन्म दिया —
    — सच अक्सर कड़वा लगता है। इसी लिए सच बोलने वाले भी अप्रिय लगते हैं। सच बोलने वालों को इतिहास के पन्नों में दबाने का प्रयास किया जाता है, पर सच बोलने का सबसे बड़ा लाभ यही है कि वह खुद पहचान कराता है और घोर अंधेरे में भी चमकते तारे की तरह दमका देता है। सच बोलने वाले से लोग भले ही घृणा करें, पर उसके तेज के सामने झुकना ही पड़ता है। इतिहास के पन्नों पर जमी धूल के नीचेे ऐसे ही एक तेजस्वी क्रांन्तिकारी शख्शियत  बहुजन नायिका ऊदा देवी पासी जी है 
        — इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी बात खत्म करता हूं 
 ―मां कांशीराम साहब जी ने एक एक बहुजन नायक को बहुजन से परिचय कराकर, बहुजन समाज के लिए किए गए कार्य से अवगत कराया सन 1980 से पहले भारत के  बहुजन नायक भारत के बहुजन की पहुँच से दूर थे,इसके हमें निश्चय ही मान्यवर कांशीराम साहब जी का शुक्रगुजार होना चाहिए जिन्होंने इतिहास की क्रब में दफन किए गए बहुजन नायक/नायिकाओं के व्यक्तित्व को सामने लाकर समाज में प्रेरणा स्रोत जगाया —
   ―इसका पूरा श्रेय मां कांशीराम साहब जी को ही जाता है कि उन्होंने जन जन तक गुमनाम बहुजन नायकों को पहुंचाया, मां कांशीराम साहब के बारे में जान कर मुझे भी लगा कि गुमनाम बहुजन नायकों के बारे में लिखा जाए !
          ―ऐ मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय ज्ञान,पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो —
      ―साथियों एक बात याद रखना आज करोड़ों लोग जो बाबासाहेब जी,माँ रमाई के संघर्षों की बदौलत कमाई गई रोटी को मुफ्त में बड़े चाव और मजे से खा रहे हैं ऐसे लोगों को इस बात का अंदाजा भी नहीं है जो उन्हें ताकत,पैसा,इज्जत,मान-सम्मान मिला है वो उनकी बुद्धि और होशियारी का नहीं है बाबासाहेब जी के संघर्षों की बदौलत है !
       ―साथियों आँधियाँ हसरत से अपना सर पटकती रहीं,बच गए वो पेड़ जिनमें हुनर लचकने का था —
       ―तमन्ना सच्ची है,तो रास्ते मिल जाते हैं,तमन्ना झूठी है,तो बहाने मिल जाते हैं,जिसकी जरूरत है रास्ते उसी को खोजने होंगें निर्धनों का धन उनका अपना संगठन है,ये मेरे बहुजन समाज के लोगों अपने संगठन अपने झंडे को मजबूत करों शिक्षित हो संगठित हो,संघर्ष करो !
      ―साथियों झुको नही,बिको नहीं,रुको नही, हौसला करो,तुम हुकमरान बन सकते हो,फैसला करो हुकमरान बनो"
       ―सम्मानित साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए —
        ―सभी अम्बेडकरवादी भाईयों, बहनो,को नमो बुद्धाय सप्रेम जयभीम! सप्रेम जयभीम —
            ―बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर  जी ने कहा है जिस समाज का इतिहास नहीं होता, वह समाज कभी भी शासक नहीं बन पाता… क्योंकि इतिहास से प्रेरणा मिलती है, प्रेरणा से जागृति आती है, जागृति से सोच बनती है, सोच से ताकत बनती है, ताकत से शक्ति बनती है और शक्ति से शासक बनता है !”
        ― इसलिए मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर आप लोगो को इतिहास के उन पन्नों से रूबरू कराने की कोशिश कर रहा हूं जिन पन्नों से बहुजन समाज का सम्बन्ध है जो पन्ने गुमनामी के अंधेरों में खो गए और उन पन्नों पर धूल जम गई है, उन पन्नों से धूल हटाने की कोशिश कर रहा हूं इस मुहिम में आप लोगों मेरा साथ दे, सकते हैं !
           ―पता नहीं क्यूं बहुजन समाज के महापुरुषों के बारे कुछ भी लिखने या प्रकाशित करते समय “भारतीय जातिवादी मीडिया” की कलम से स्याही सूख जाती है !.इतिहासकारों की बड़ी विडम्बना ये रही है,कि उन्होंने बहुजन नायकों के योगदान को इतिहास में जगह नहीं दी इसका सबसे बड़ा कारण जातिगत भावना से ग्रस्त होना एक सबसे बड़ा कारण है इसी तरह के तमाम ऐसे बहुजन नायक हैं,जिनका योगदान कहीं दर्ज न हो पाने से वो इतिहास के पन्नों में गुम हो गए !
     ―उन तमाम बहुजन नायकों को मैं अमित गौतम जंनपद   रमाबाई नगर,कानपुर कोटि-कोटि नमन करता हूं !
जय रविदास
जय कबीर
जय भीम
जय नारायण गुरु
जय सावित्रीबाई फुले
जय माता रमाबाई अम्बेडकर जी
जय ऊदा देवी पासी जी
जय झलकारी बाई कोरी
जय बिरसा मुंडा
जय बाबा घासीदास
जय संत गाडगे बाबा
जय पेरियार रामास्वामी नायकर
जय छत्रपति शाहूजी महाराज
जय शिवाजी महाराज
जय काशीराम साहब
जय मातादीन भंगी जी
जय कर्पूरी ठाकुर 
जय पेरियार ललई सिंह यादव
जय मंडल
जय हो उन सभी गुमनाम बहुजन महानायकों की जिंन्होने अपने संघर्षो से बहुजन समाज को एक नई पहचान दी,स्वाभिमान से जीना सिखाया —
             अमित गौतम
             युवा सामाजिक
                कार्यकर्ता         
              बहुजन समाज
  जंनपद-रमाबाई नगर कानपुर
           सम्पर्क सूत्र-9452963593

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