आदिवासी जननायक,अमर शहीद बिरसा मुंडा जंयती

             
   15,नवंबर,1875
             वो थे इसलिए आज हम है !
                इतिहास के पन्नों से
   — 19 वीं सदी के बहुजन नायक महान क्रांतिकारी,धरती आबा समग्र सामाजिक क्रांति के अग्रदूत,उलगुलान आंदोलन के जनक,प्रेणता,आदिवासी समाज के मशीहा,जननायक,सामाजिक क्रांति के अग्रदूत,क्रांति सूर्य अमर शहीद बिरसा मुंडा की जंयती की हार्दिक बधाईयां एवं शत्-शत् नमन-विनम्र श्रद्धांजलि —
―जब जरूरत थी चमन को तो लहू हमने दिया,अब बहार आई तो कहते हैं तेरा काम नहीं ―
   — आदिवासी जननायक बिरसा मुंडा: वह आदिवासी जिसने ब्रिटिश सरकार से लड़ी जल, जंगल और ज़मीन की दावेदारी की लड़ा —
      ―साथियों जब जरूरत थी चमन को तो लहू हमने दिया,अब बहार आई तो कहते हैं तेरा काम नहीं —
— ऐसे में आदिवासी साहित्यकार हरीराम मीणा की पंक्तियां याद आती हैं —
‘‘मैं केवल देह नहीं
मैं जंगल का पुश्तैनी दावेदार हूँ
पुश्तें और उनके दावे मरते नहीं
मैं भी मर नहीं सकता
मुझे कोई भी जंगलों से बेदखल नहीं कर सकता
उलगुलान!
उलगुलान!!
उलगुलान —’’

    — साथियों बहुजन,आदिवासी जननायक बिरसा मुंडा शोषण के खिलाफ विद्रोह की चिंगारी फूंकी बिरसा ने अपने लोगों को गुलामी से आजादी दिलाने के लिए बिरसा ने ‘उलगुलान’ (जल-जंगल-जमीन पर दावेदारी ) की अलख जगाई थी —
      — धरती आबा आदिवासी जननायक बिरसा मुंडा ने ‘अबुआ दिशुम अबुआ राज’ यानि ‘हमारा देश, हमारा राज’ का नारा दिया —
— साथियों हर तीर कमान पर बिरसा कि कहानी_है, तभी_तो दुनिया बिरसा मुंडा की दिवानी है —
       — ऐ मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय ज्ञान,पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो —
         — अमर शहीद बिरसा मुंडा पर फिल्म बनाएंगे पा. रंजीत, प्रेरणास्रोत बन रहे बहुजन नायक अामतौर पर पीरियड फिल्में यानी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर बनाई जाने वाली फिल्मों में बहुजन खलनायक होते हैं। लेकिन, अब एक नए दौर की शुरुआत हो चुकी है। हाल ही में ‘काला’ फिल्म बनाकर बहुजनों के संघर्ष को बड़े पर्दे पर दिखाने वाले पा. रंजीत अब धरती आबा बिरसा मुंडा पर फिल्म बनाएंगे —
     — धरती आबा बिरसा मुंडा की जीवनी पर फिल्म के जरिये बॉलीवुड में प्रवेश करेंगे दक्षिण भारत के सुप्रसिद्ध फिल्मकार पा रंजीत. इस आशय की घोषणा उन्होंने बीते 15 नवंबर 2018 को बिरसा मुंडा के 143वीं जयंती के मौके पर की थी  —
      — बहुजन समाज के सम्मानित साथियों एंव माता बहनों को सबसे पहले धम्म प्रभात,नमो बुद्धाय,सादर जय भीम —
     — मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर,कानपुर आप लोगों को इतिहास के उन पन्नों से रूबरू करवाना चाहता हूँ ! जिससे आप लोग शायद अनिभिज्ञ हो आज हम बात कर रहें हैं अमर शहीद बिरसा मुंडा के संघर्षो उनके त्याग की —
       — सम्मानित साथियों यदि एक कोई नाम है जिसे भारतवर्ष के सभी आदिवासी समुदायों ने आदर्श और प्रेरणा के रूप में स्वीकारा है, तो वह हैं ‘भगवान बिरसा मुंडा’. ब्रिटिश राज, जमींदारों, दिकुओं के खिलाफ बिरसा के विद्रोह ने स्वायत्ता और स्वशासन की मांग की. बिरसा मुंडा के संघर्ष के फलस्वरूप ही छोटा नागपुर टेनेंसी एक्ट, 1908 (CNT) इस क्षेत्र में लागू हुआ जो आज तक कायम है. यह एक्ट आदिवासी जमीन को गैर आदिवासी में हस्तांतरित करने में प्रतिबन्ध लगाता है और साथ ही आदिवासियों के मूल अधिकारों की रक्षा करता है  —
— आदिवासी जननायक बिरसा मुंडा की महानता और उपलब्धियों के कारण सभी उन्हें “धरती आबा” यानि ‘पृथ्वी के पिता’ के नाम से जानते थे —
               — 1894 में बारिश न होने से छोटा नागपुर में भयंकर अकाल और महामारी फैली हुई थी। बिरसा ने पूरे समर्पण से अपने लोगों की सेवा की। उन्होंने लोगों को अन्धविश्वास से बाहर निकल बिमारियों का इलाज करने के प्रति जागरूक किया,सभी आदिवासियों के लिए वे ‘धरती आबा’ यानि ‘धरती पिता’ हो गये —
 — उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री,बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष बहन मायावती जी ने अपने शासनकाल में नवाबों के शहर लखनऊ में डा.भीमराव अम्बेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल के दूसरे भवन में अमर शहीद आदिवासी जननायक बिरसा मुंडा जी की 18 फिट ऊँची संगमरमर की प्रतिमा स्थापित की —
    — भारतीय संसद में एकमात्र आदिवासी नेता है बिरसा मुंडा जी जिनका चित्र टंगा हुआ है —
      — आदिवासी जननायक बिरसा मुंडा स्मृति में रांची में बिरसा मुण्डा केन्द्रीय कारागार तथा बिरसा मुंडा हवाई-अड्डा भी है —
    — बहुजन नायक,अमर शहीद, आदिवासी जननायक बिरसा मुंडा जी ऐसे योद्धा, महामानव का नाम है, जिन्होंने शोषण के विरुद्ध आवाज बुलंद की उपेक्षितों को उनका हक दिलाने के लिए जीवन समर्पित कर दिया —
     — साथियों सिर्फ आदिवासियों के नहीं बल्कि सभी भारतीयों के नायक हैं बिरसा मुंडा —
       — आदिवासी जननायक बिरसा मुडां ने लोगों की सेवा की उनका इलाज किया। उनके पास लोगों की भीड़ लगने लगी, सभी को उनमें अपने भगवान दिखने लगे और बिरसा की सेवा से लोग ठीक भी होते गए। यहीं से बिरसा धरती के आबा यानी भगवान कहलाए जाने लगे —
 — महान उपन्यासकार महाश्वेता देवी के उपन्यास ‘जंगल के दावेदार’ का एक अंश —
     — साथियों सवेरे आठ बजे बीरसा मुंडा खून की उलटी कर, अचेत हो गया. बीरसा मुंडा- सुगना मुंडा का बेटा; उम्र पच्चीस वर्ष-विचाराधीन बंदी. तीसरी फ़रवरी को बीरसा पकड़ा गया था, किन्तु उस मास के अंतिम सप्ताह तक बीरसा और अन्य मुंडाओं के विरुद्ध केस तैयार नहीं हुआ था....क्रिमिनल प्रोसीजर कोड की बहुत सी धाराओं में मुंडा पकड़ा गया था, लेकिन बीरसा जानता था उसे सज़ा नहीं होगी,’ डॉक्टर को बुलाया गया उसने मुंडा की नाड़ी देखी. वो बंद हो चुकी थी. बीरसा मुंडा नहीं मरा था, आदिवासी मुंडाओं का ‘भगवान’ मर चुका था —
– धरती आबा, अमर शहीद बिरसा मुंडा के चरणों में कोटि-कोटि नमन —
     — साहस की स्याही से शौर्य की शब्दावली रचने वाले  आदिवासी जननायक बिरसा मुंडा जी की गणना महान देशभक्तों में की जाती है। भारतीय इतिहास में बिरसा मुंडा एक ऐसे नायक थे जिन्होंने भारत के झारखंड में अपने क्रांतिकारी चिंतन से उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में आदिवासी समाज की दशा और दिशा बदलकर नवीन सामाजिक और राजनीतिक युग का सूत्रपात किया। काले कानूनों को चुनौती देकर बर्बर ब्रिटिश साम्राज्य को सांसत में डाल दिया —
    — शोषित समाज को जागृत करने में उनके योगदान को हमेशा सम्मान के साथ याद किया जाएगा —
          —संक्षिप्त में अमर शहीद बिरसा मुंडा जी का जीवन परिचय —
    — सम्मानित साथियों शायद आदिवासी समाज से होने कारण अमर शहीद बिरसा मुंडा को वो सम्मान नहीं मिला जिसके वो हकदार थे —
       —साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए बहुजन नायक अमर शहीद बिरसा मुंडा जी ने वह कर दिखाया जो उस दौर में सोच पाना भी मुश्किल था !
      — आज हम बात कर रहें हैं आदिवासी जननायक,महान देशभक्त,क्रांतिकारी,अमर शहीद बिरसा मुंडा के बारें आवो जाने इस लेख के माध्यम से उनके संघर्षो,त्याग, समर्पण को —
       — यदि एक कोई नाम है जिसे भारत के सभी आदिवासी समुदायों ने आदर्श और प्रेरणा के रूप में स्वीकारा है तो वह सिर्फ और सिर्फ अमर शहीद महान क्रांतिकारी  बिरसा मुंडा जी हैं! अमर शहीद बिरसा मुंडा जी का जन्म 15 नवंबर,1875 को रांची जिले के उलिहतु गांव में हुआ था ! बिरसा मुंडा जी के पिताजी का नाम सुगना मुंडा और माता का नाम करमी हटू था —
      — साथियों उस समय भारत में अंग्रेजी शासन था आदिवासियों को अपने इलाकों में किसी भी  प्रकार का दखल मंजूर नहीं था,यही कारण रहा कि आदिवासी इलाके हमेशा स्वतंत्र रहे अंग्रेज भी शुरू में वहां नहीं जा पाए थे,लेकिन तमाम षडयंत्रों  के तहत घुसपैठ करने में कामयाब हो गए —
        — अंग्रेजी हुकूमत ने इंडियन फॉरेस्ट एक्ट 1882 में पारित कर आदिवासियों को जंगल के अधिकार से वंचित कर दिया अंग्रेजी सरकार ने आदिवासियों पर अपनी व्यवस्थाएं तो अपने लगी —
   — अमर शहीद बिरसा मुंडा ने बिहार और झारखंड के विकास और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अहम रोल निभाया समाज में व्याप्त भेदभाव पाखंड वाद के खिलाफ आवाज बुलंद की अमर शहीद बिरसा मुंडा और उनके शिष्यों ने क्षेत्र की अकाल पीड़ित जनता की सहायता करने की ठान रखी थी और यही कारण रहा कि अपने जीवन काल में उन्हें एक महापुरुष का दर्जा मिला उन्हें उस इलाके के लोग धरती बाबा के नाम से पुकारते और पूजा करते थे उनके प्रभाव की वृद्धि के बाद पूरे इलाके के मुंडा में संगठित होने की चेतना जागी — 
       — अमर शहीद बिरसा मुंडा एक ऐसे महायोद्धा का नाम है जिसने अपने तीर कमान से अंग्रेजी  हुकूमत की गोलियों का सामना किया जंगे आजादी की लड़ाई में कई बहुजन आदिवासी क्रांतिकारियों ने भी अहम भूमिका निभाई. इनमें से ही एक थे  अमर शहीद बिरसा मुंडा जी आदिवासी नेता और जन नायक थे जो कि मुंडा जाति से संबंधित थे — 
        — सम्मानित साथियों मुंडा समाज को ऐसे ही मसीहा का इंतजार था. उनकी महानता और उपलब्धियों के कारण सभी उन्हें “धरती आबा” यानि ‘पृथ्वी के पिता’ के नाम से जानते थे. लोगों का यह भी मानना था कि बिरसा के पास अद्भुत शक्तियां हैं जिनसे वे लोगों की परेशानियों का समाधान कर सकते हैं. अपनी बीमारियों के निवारण के लिए मुंडा, उरांव, खरिया समाज के लोग बिरसा के दर्शन के लिए ‘चलकड़’ आने लगे. पलामू जिले के बरवारी और छेछारी तक आदिवासी बिरसाइट – यानि बिरसा के अनुयायी बन गए. लोक गीतों में लोगों पर बिरसा के गहरे प्रभाव का वर्णन मिलता है और लोग ‘धरती आबा’ के नाम से उनका स्मरण करते हैं —
     — आज के समय में अमर शहीद आदिवासी जननायक बिरसा मुंडा आदिवासी आन्दोलनों के लिए एक प्रेरणा हैं —
    — अंग्रेजो के खिलाफ आन्दोलन —
      — आदिवासी जननायक बिरसा मुंडा ने कहा कि “हम ब्रिटिश शासन तंत्र के विरुद्ध विद्रोह की घोषणा करते हैं और हम कभी नियमों का पालन नही करेंगे.’ उन्होंने कहा ‘ओ गोरी चमड़ी वाले अंग्रेजों, तुम्हारा हमारे देश में क्या काम? छोटा नागपुर सदियों से हमारा है और तुम इसे हमसे छीन नहीं सकते इसलिए बेहतर है कि वापस अपने देश लौट जाओ वरना लाशों के ढेर लगा दिए जायेंगे’ एक वक्त ऐसा आया जब बिरसा मुंडा अंग्रेजों के सबसे बड़े दुश्मन बन गए 
      — ब्रिटिश काल में सरकार की नीतियों के कारण आदिवासी कृषि व्यवस्था, सामंती व्यवस्था में बदल रही थी. चूंकि आदिवासी कृषि प्रणाली अतिरिक्त या ‘सरप्लस’ उत्पादन करने के काबिल नहीं थी, सरकार ने गैर आदिवासियों को कृषि के लिए आमंत्रित करना शुरू कर दिया. इस प्रकार आदिवासियों की जमीन छीनने लगी. यह गैर आदिवासी वर्ग, लोगों का शोषण कर केवल अपनी संपत्ति बनाए में उत्सुक थे —
      — मुंडा जनजाति छोटा नागपुर क्षेत्र में आदिकाल से रह रहे थे और वहां के मूल निवासी थे. इसके बावजूद अंग्रेजी सरकार के आने पर आदिवासियों पर अनेक प्रकार के टैक्स लागू किये जाते थे. इस बीच जमीनदार आदिवासियों और ब्रिटिश सरकार के बीच मध्यस्त का काम करने लगे और आदिवासिओं पर शोषण बढ़ने लगा. जैसे ही ब्रिटिश सरकार आदिवासी इलाकों में अपनी पकड़ बनाने लगी, साथ ही हिन्दू धर्म के लोगों का प्रभाव इन क्षेत्रों में बढ़ने लगा. न्याय नहीं मिल पाने के कारण आदिवासियों के पास केवल खुद से संघर्ष करने का रास्ता मिला —
 — बिरसा ने नारा दिया कि “महारानी राज तुंदु जाना ओरो अबुआ राज एते जाना” अर्थात ‘(ब्रिटिश) महारानी का राज खत्म हो और हमारा राज स्थापित हो’. इस तरह बिरसा ने आदिवासी स्वायत्ता, स्वशासन पर बल दिया. आदिवासी समाज भूमिहीन होता जा रहा था और मजदूरी करने पर विवश हो चुका था. इस कारण बिरसा के आन्दोलन ने ब्रिटिश सरकार को आदिवासी हित के लिए कानून लाने पर मजबूर किया और साथ ही आदिवासियों का विश्वास जगाया की ‘दिकुओं’ के खिलाफ वे खुद अपनी लड़ाई लड़ने के काबिल हैं. बिरसा ने लोगों को एकजुट करने के लिए चयनित एवं गुप्त स्थानों में सभा करवाई, प्रार्थनाओं को रचा और अंग्रेजी शासन के अंत के लिए अनुष्ठान कराए —
    — बिरसा के विद्रोह को रोकने के लिए ब्रिटिश सरकार ने उनकी गिरफ़्तारी के लिए 500 रुपये का इनाम भी घोषित किया. 1900 में जब ब्रिटिश सेना और मुंडा सैनिकों के बीच ‘दुम्बरी पहाड़ियों’ में संघर्ष हुआ जिसमें अनेक आदिवासी सैनिक शहीद हुए. हालाँकि बिरसा वहां से बच निकलने में सफल हुए और सिंघभूम की पहाड़ियों की ओर चले गए. मार्च 3, 1900 को बिरसा जम्कोपाई जंगल, चक्रधरपुर में ठहरे हुए थे जहाँ सोते वक्त उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया —
          — इस घटना में 460 अन्य आदिवासीयों को भी गिरफ्तार किया गया, जिसमें एक को मौत की सजा सुनाई गयी और 39 लोगों को आजीवन कारावास मिला,अंग्रेजों के खिलाफ बिरसा का संघर्ष 6 वर्षों से अधिक चला. उनकी मृत्यु के बाद सरकार ने लोगों को आश्रय दिया और छोटा नागपुर टेनेंसी एक्ट पारित हुआ —
      — साथियों आदिवासी जननायक बिरसा मुंडा एक प्रभावशाली व्यक्तित्व के थे. हालाँकि उनका अनुसरण छोटा था, वह बहुत संगठित था. साथ ही मुंडा समाज में उनका प्रभाव असाधारण था. स्थानीय अधिकारी बिरसा के अनुयायियों को दण्डित करते थे और उन पर अत्याचार बढ़ने लगा था. इन कारणों से बिरसा के अनुयायीयों ने अंग्रेजों और जमींदारों के खिलाफ हथियार उठाने का निश्चय किया —
      — आदिवासी जननायक बिरसा मुंडा एक दूरदर्शी थे, जिनका इतिहास आने वाले समय में आज़ादी और स्वायत्ता की कहानी के रूप में जाना जायेगा. ब्रिटिश सरकार के दौरान गैर आदिवासी (दिकु), आदिवासियों की जमीन हड़प रहे थे और आदिवासियों को खुद की जमीन पर बेगारी मजदूर बनने पर मजबूर होना पड रहा था. 1895 के दौरान अकाल की स्थिति में उन्होंने बकाया वन राशि को लेकर अपना पहला आन्दोलन शुरू किया. अपने 25 साल के छोटे जीवन में बिरसा ने न सिर्फ आदिवासी चेतना को जागृत किया बल्कि सभी आदिवासियों को एक छत के नीचे एकजुट करने में कामयाब हुए  —
      — बहुजन महानायक शहीद बिरसा मुंडा ने भारतीय जमींदारों और जागीरदारों तथा ब्रिटिश शासकों के शोषण की भट्टी में आदिवासी समाज झुलस रहा था उससे बहुजन महानायक बिरसा मुंडा ने आदिवासियों को शोषण की नाटकीय यातना से मुक्ति दिलाने के लिए उन्हें तीन स्तरों पर संगठित करना आवश्यक समझा —
      — साथियों सामाजिक स्तर पर आदिवासियों के इस जागरूकता से जमींदार-जागीरदार और तत्कालीन अंग्रेजी शासन तो बौखलाया ही, पाखंडी झाड़-फूंक करने वालों की दुकानदारी भी ठप हो गई। ये सब बिरसा मुंडा के खिलाफ हो गए —
       —दूसरा था आर्थिक स्तर पर सुधार ताकि आदिवासी समाज को जमींदारों और जागीरदारों के आर्थिक शोषण से मुक्त किया जा सके —
      — आदिवासियों ने 'बेगारी प्रथा' के विरुद्ध जबर्दस्त आंदोलन किया। परिणामस्वरूप जमींदारों और जागीरदारों के घरों तथा खेतों और वन की भूमि पर कार्य रूक गया —
           — तीसरा था राजनीतिक स्तर पर आदिवासियों को संगठित करना। मुंडा जी ने सामाजिक और आर्थिक स्तर पर आदिवासियों में चेतना की चिंगारी सुलगा दी थी,अतः राजनीतिक स्तर पर इसे आग बनने में देर नहीं लगी आदिवासी अपने राजनीतिक अधिकारों के प्रति सजग हुए—
     — ब्रिटिश हुकूमत ने इसे खतरे का संकेत समझकर बिरसा मुंडा को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया। वहां अंग्रेजों ने उन्हें धीमा जहर दिया था। जिस कारण वे 9 जून 1900 को शहीद हो गए —
— साथियों उलगुलान' का ही असर है सीएनपीटी एक्ट —
      — 1 अक्टूबर 1894 को सभी मुंडाओं को एकत्र कर इन्होंने अंग्रेजों से लगान माफी के लिए आंदोलन शुरू किया. 1895 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और हजारीबाग केंद्रीय कारागार में दो साल तक जेल में रहे. लेकिन इस दौरान भी बिरसा मुंडा जी के अनुयायियों ने उनके आंदोलन को जीवित रखा. जेल से छूटने के बाद बिरसा मुंडा जी ने अंग्रेजों और जमींदारों के खिलाफ अपने आंदोलन को तेज कर दिया — 
        — सम्मानित साथियों 1897 से 1900 के बीच मुंडाओं और अंग्रेज सिपाहियों के बीच युद्ध होते रहे और बिरसा मुंडा जी  और उसके चाहने वाले लोगों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था.अगस्त 1897 में बिरसा मुंडा.जी और उसके चार सौ सिपाहियों ने तीर कमानों से लैस होकर खूंटी थाने पर धावा बोला —
1898 में तांगा नदी के किनारे मुंडाओं की भिड़ंत अंग्रेज सेनाओं से हुई जिसमें पहले तो अंग्रेजी सेना हार गई लेकिन बाद में इसके बदले उस इलाके के बहुत से आदिवासी नेताओं की गिरफ्तारियां हुईं  —
     — अमर शहीद बिरसा मुंडा जी ने साफ-साफ अंग्रेजों से कहा कि छोटानागपुर पर आदिवासियों का हक है. बिरसा ने नारा दिया कि ‘महारानी राज तुंदु जाना ओरो अबुआ राज एते जाना’ अर्थात ‘(ब्रिटिश) महारानी का राज खत्म हो और हमारा राज स्थापित हो.’ इस हक की लड़ाई के लिए अंत में 24 दिसंबर 1899 को बिरसा के अनुयायियों ने अंग्रेजों के खिलाफ निर्णायक युद्ध छेड़ दिया. 5 जनवरी 1900 तक पूरे छोटानागपुर में विद्रोह की चिंगारियां फैल गई. ब्रिटिश फौज ने आंदोलन का दमन शुरू कर दिया — 
      — 9 जनवरी 1900 के ऐतिहासिक दिन डोमबाड़ी पहा‍ड़ी पर अंग्रेजों से लड़ते हुए सैकड़ों मुंडाओं ने शहादत दी. बिरसा मुंडा काफी समय तक तो अंग्रेजों की पकड़ में नहीं आए थे, लेकिन एक स्थानीय गद्दार की वजह से 3 मार्च 1900 को गिरफ्तार हो गए. 9 जून 1900 को रांची जेल में बिरसा मुंडा का निधन हो गया. इसे बिरसा मुंडा शहादत दिवस भी कहते हैं. अंग्रेजों के खिलाफ बिरसा का संघर्ष 6 वर्षों से अधिक चला. भले बिरसा मुंडा जी का निधन हो गया था लेकिन बिरसा के ‘उलगुलान’ से अंग्रेज़ी हुकूमत इतनी डर गई थी कि उसने मजबूर होकर आदिवासियों के हक की रक्षा करने वाला छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट पारित किया — 
             — आदिवासियों को इस आन्दोलन से तत्काल कोई लाभ प्राप्त नहीं हुआ परन्तु सरकार को उनकी गंभीर स्थिति पर विचार करने के लिए बाध्य होना पड़ा. आदिवासियों की जमीन का सर्वे करवाया गया. 1908 ई. में  ही छोटानागपुर काश्तकारी कानून (Chotanagpur Tenancy Act, 1908) पारित हुआ. मुंडाओं को जमीन सम्बंधित कई अधिकार मिले और बेकारी से उन्हें मुक्ति मिली. मुंडा समुदाय आज भी बिरसा को अपना भगवान् मानता है —
      —भारतीय इतिहास में बिरसा मुंडा एक ऐसे नायक थे जिन्होंने भारत के झारखंड में अपने क्रांतिकारी संघर्ष से आदिवासी समाज की दशा औऱ दिशा बदल. अमर शहीद बिरसा मुंडा ने अबुआ दिशुम अबुआ राज यानि हमारा देश,हमारा राज का नारा दिया —
       — अमर शहीद बिरसा मुंडा जी के नेतृत्व में 19 वीं सदी के आखिरी दशक में किया गया मुंडा विद्रोह 19 वीं सदी के सर्वाधिक महत्वपूर्ण जनजातीय आंदोलनों में से एक है  —
       — इसे उलगुलान नाम से भी जाना जाता है मुंडा विद्रोह झारखंड का सबसे बड़ा और अंतिम   जनजाति विद्रोह था जिसमें हजारों की संख्या में मुंडा आदिवासी शहीद हुए —
          — मशहूर समाजशास्त्री और मानव विज्ञानी कुमार सुरेश सिंह ने बिरसा मुंडा के नेतृत्व में हुए इस आंदोलन पर बिरसा मुंडा और उनका आंदोलन नाम से बड़ी महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी है —
 — 9 जून 1920 में रांची के कारागार में आखिरी सांस ली 25 साल की उम्र में ही बिरसा मुंडा ने जिस क्रांति का आगाज किया वह आदिवासियों के लिए हमेशा प्रेरणादायी रहा अमर शहीद बिरसा मुंडा जी की शहादत उनकी कुर्बानी उनके संघर्षों ने आदिवासी समाज को जीने की एक नई राह दी —
— ऐसे में कवि भुजंग मेश्राम की पंक्तियां याद आती हैं —
‘बिरसा तुम्हें कहीं से भी आना होगा
घास काटती दराती हो या लकड़ी काटती कुल्हाड़ी
यहां-वहां से, पूरब-पश्चिम, उत्तर दक्षिण से
कहीं से भी आ मेरे बिरसा
खेतों की बयार बनकर
लोग तेरी बाट जोहते.’
     — साथियों महायोद्धा बिरसा मुंडा : जिनके उलगुलान और बलिदान ने उन्हें 'भगवान' बना दिया —
 — केवल 25 वर्ष की उम्र में उन्होंने ऐसा काम कर दिया कि आज भी बिहार ,झारखंड और उडीसा की आदिवासी जनता उनको याद करती है और उनके नाम पर कई शिक्षण संस्थानों के नाम रखे गये है —
     — जातिगत भेदभाव पांखडवाद को बढाने वालों  के खिलाफ वास्तविक और ठोस लड़ाई छेड़ने वालों में अमर शहीद आदिवासी जननायक बिरसा मुंडा जी का उल्लेखनीय नाम है —
―साथियों आदिवासी जननायक अमर शहीद बिरसा मुंडा का भारत वर्ष के लिए किए गया अथक योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता ,धन्य है वो भारत भूमि और वो माई जिसने ऐसे महान सपूत को जन्म दिया —
 — साभार-: बहुजन समाज और उसकी राजनिति,मेरे संघर्षमय जीवन एवं बहुजन समाज का मूवमेंट, Munda – The Great Hero of the Tribal’, Orissa Review, August 2004,दलित दस्तक,विकिपीडिया,‘गोंडवाना दर्शन‘, जून 2017,महान उपन्यासकार महाश्वेता देवी के उपन्यास ‘जंगल के दावेदार —
   — सच अक्सर कड़वा लगता है। इसी लिए सच बोलने वाले भी अप्रिय लगते हैं। सच बोलने वालों को इतिहास के पन्नों में दबाने का प्रयास किया जाता है, पर सच बोलने का सबसे बड़ा लाभ यही है कि वह खुद पहचान कराता है और घोर अंधेरे में भी चमकते तारे की तरह दमका देता है। सच बोलने वाले से लोग भले ही घृणा करें, पर उसके तेज के सामने झुकना ही पड़ता है। इतिहास के पन्नों पर जमी धूल के नीचेे ऐसे ही एक तेजस्वी क्रांन्तिकारी शख्शियत  बहुजन नायक अमर शहीद, आदिवासी जननायक बिरसा मुंडा जी है 
        — इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी बात खत्म करता हूं 
 ―मां कांशीराम साहब जी ने एक एक बहुजन नायक को बहुजन से परिचय कराकर, बहुजन समाज के लिए किए गए कार्य से अवगत कराया सन 1980 से पहले भारत के  बहुजन नायक भारत के बहुजन की पहुँच से दूर थे,इसके हमें निश्चय ही मान्यवर कांशीराम साहब जी का शुक्रगुजार होना चाहिए जिन्होंने इतिहास की क्रब में दफन किए गए बहुजन नायक/नायिकाओं के व्यक्तित्व को सामने लाकर समाज में प्रेरणा स्रोत जगाया —
   ―इसका पूरा श्रेय मां कांशीराम साहब जी को ही जाता है कि उन्होंने जन जन तक गुमनाम बहुजन नायकों को पहुंचाया, मां कांशीराम साहब के बारे में जान कर मुझे भी लगा कि गुमनाम बहुजन नायकों के बारे में लिखा जाए !
          ―ऐ मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय ज्ञान,पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो —
      ―साथियों एक बात याद रखना आज करोड़ों लोग जो बाबासाहेब जी,माँ रमाई के संघर्षों की बदौलत कमाई गई रोटी को मुफ्त में बड़े चाव और मजे से खा रहे हैं ऐसे लोगों को इस बात का अंदाजा भी नहीं है जो उन्हें ताकत,पैसा,इज्जत,मान-सम्मान मिला है वो उनकी बुद्धि और होशियारी का नहीं है बाबासाहेब जी के संघर्षों की बदौलत है !
       ―साथियों आँधियाँ हसरत से अपना सर पटकती रहीं,बच गए वो पेड़ जिनमें हुनर लचकने का था —
       ―तमन्ना सच्ची है,तो रास्ते मिल जाते हैं,तमन्ना झूठी है,तो बहाने मिल जाते हैं,जिसकी जरूरत है रास्ते उसी को खोजने होंगें निर्धनों का धन उनका अपना संगठन है,ये मेरे बहुजन समाज के लोगों अपने संगठन अपने झंडे को मजबूत करों शिक्षित हो संगठित हो,संघर्ष करो !
      ―साथियों झुको नही,बिको नहीं,रुको नही, हौसला करो,तुम हुकमरान बन सकते हो,फैसला करो हुकमरान बनो"
       ―सम्मानित साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए —
        ―सभी अम्बेडकरवादी भाईयों, बहनो,को नमो बुद्धाय सप्रेम जयभीम! सप्रेम जयभीम —
            ―बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर  जी ने कहा है जिस समाज का इतिहास नहीं होता, वह समाज कभी भी शासक नहीं बन पाता… क्योंकि इतिहास से प्रेरणा मिलती है, प्रेरणा से जागृति आती है, जागृति से सोच बनती है, सोच से ताकत बनती है, ताकत से शक्ति बनती है और शक्ति से शासक बनता है !”
        ― इसलिए मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर आप लोगो को इतिहास के उन पन्नों से रूबरू कराने की कोशिश कर रहा हूं जिन पन्नों से बहुजन समाज का सम्बन्ध है जो पन्ने गुमनामी के अंधेरों में खो गए और उन पन्नों पर धूल जम गई है, उन पन्नों से धूल हटाने की कोशिश कर रहा हूं इस मुहिम में आप लोगों मेरा साथ दे, सकते हैं !
           ―पता नहीं क्यूं बहुजन समाज के महापुरुषों के बारे कुछ भी लिखने या प्रकाशित करते समय “भारतीय जातिवादी मीडिया” की कलम से स्याही सूख जाती है !.इतिहासकारों की बड़ी विडम्बना ये रही है,कि उन्होंने बहुजन नायकों के योगदान को इतिहास में जगह नहीं दी इसका सबसे बड़ा कारण जातिगत भावना से ग्रस्त होना एक सबसे बड़ा कारण है इसी तरह के तमाम ऐसे बहुजन नायक हैं,जिनका योगदान कहीं दर्ज न हो पाने से वो इतिहास के पन्नों में गुम हो गए !
     ―उन तमाम बहुजन नायकों को मैं अमित गौतम जंनपद   रमाबाई नगर,कानपुर कोटि-कोटि नमन करता हूं !
जय रविदास
जय कबीर
जय भीम
जय नारायण गुरु
जय सावित्रीबाई फुले
जय माता रमाबाई अम्बेडकर जी
जय ऊदा देवी पासी जी
जय झलकारी बाई कोरी
जय बिरसा मुंडा
जय बाबा घासीदास
जय संत गाडगे बाबा
जय पेरियार रामास्वामी नायकर
जय छत्रपति शाहूजी महाराज
जय शिवाजी महाराज
जय काशीराम साहब
जय मातादीन भंगी जी
जय कर्पूरी ठाकुर 
जय पेरियार ललई सिंह यादव
जय मंडल
जय हो उन सभी गुमनाम बहुजन महानायकों की जिंन्होने अपने संघर्षो से बहुजन समाज को एक नई पहचान दी,स्वाभिमान से जीना सिखाया —
             अमित गौतम
             युवा सामाजिक
                कार्यकर्ता         
              बहुजन समाज
  जंनपद-रमाबाई नगर कानपुर
           सम्पर्क सूत्र-9452963593

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