1857 की जंगे आजादी की प्रथम भारतीय बहुजन महानायिका वीरांगना,झलकारी बाई कोरी की संघर्षगाथा

      

22,नवंबर,1830
वो थे इसलिए आज हम है
     इतिहास के पन्नों से
   — 1857 की जंगे आजादी की प्रथम भारतीय बहुजन महानायिका महान देशभक्त वीरांगना,महान क्रांतिकारी झलकारी बाई कोरी जी की जंयती की हार्दिक बधाईयां एवं शत्-शत् नमन विनम्र श्रद्धांजलि —
         — जा कर रण में ललकारी थी,वह तो झाँसी की झलकारी थी,गोरों से लड़ना सिखा गई, है इतिहास में झलक रही,वह भारत की ही नारी थी —
      — सम्मानित साथियों सुनहरे अक्षरों में दर्ज है बहुजन समाज की वीरांगना,बहुजन नायिका-प्रथम स्वतंत्रता सेनानी झलकारी बाई कोरी का शौर्य —
         — जब जरूरत थी चमन को तो लहू हमने दिया,अब बहार आई तो कहते हैं तेरा काम नहीं —
      — झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को देश का बच्चा- बच्चा जानता है, लेकिन क्या आपने कभी झलकारी बाई का नाम सुना है? अगर नहीं सुना तो अब सुन भी लीजिए और उन्हें अच्छे से जान भी लीजिए। झलकारी बाई और रानी लक्ष्मीबाई का गहरा नाता रहा है
      — बहुजन नायिका वीरांगना झलकारी बाई: झांसी की सबसे बहादुर सैनिक, सूझबूझ और साहस से बचाई थी रानी लक्ष्मीबाई की जान —
  — जातिवाद का दंश झेलने वाले समाज में झलकारी बाई ने अपने पराक्रम के बूते अपनी सर्वश्रेष्ठता साबित की थी। हालांकि उनका साहस और शौर्य धर्म के ठेकेदारों,सामंतवादियो से सहन नहीं होता था। इसके बावजूद वह अपने मार्ग पर डटी रहीं —
        —  बहुजन नायिका महान क्रांतिकारी,वीरांगना झलकारी बाई कोरी पर बहुजन गायिका सीमा आजाद जी (फैजाबाद) ने एक गीत भी गाया मेरी झलकारी बाई आप इस सांग को यूट्यूब से डाउनलोड कर सकते है —
          — किस्सा एक गुमनाम बहुजन नायिका झलकारी बाई कोरी जी का —
          — साथियों झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के बारे में आप सभी ने पढ़ा होगा, लेकिन क्या कभी बहुजन महानायिका झलकारी बाई का इतिहास जानने की कोशिश की! खैर उनके बारे में सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि वो रानी लक्ष्मीबाई जी की हमशक्ल थीं, जिस कारण अंग्रेज सैनिक धोखा खा जाते थे। और तो और कई बार उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई के वेश में युद्ध किये और शत्रुओं को पराजित किया —
      — बुन्देलखण्ड में झलकारी बाई कोरी की महानता एवं वीरता के किस्से हमेशा सुने जातें है —
       — साथियों भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में वीरांगना झलकारी बाई कोरी जी का महत्त्वपूर्ण योगदान हमें सन 1857 के उन स्वतंत्रता सेनानियों की याद दिलाता है, जो इतिहास में गुमनाम हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि झलकारी बाई झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की प्रिय सहेलियों में से एक थी —
          — बहुजन वीरांगना झलकारी बाई कोरी का जन्म बुंदेलखंड के एक गांव में 22 नवंबर को एक निर्धन कोरी परिवार में हुआ था

      — ऐ मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय,ज्ञान,बुद्धि, पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो —
      — Biography Of Jhalkari Bai Kori —
              — बहुजन नायिका,वीरांगना झलकारी बाई कोरी का जीवन संघर्ष —
      — वीरांगना झलकारी बाई का जन्म 22 नवंबर 1830 ई० को झांसी के समीप भोजला नामक गांव में एक सामान्य कोरी परिवार में हुआ था. झलकारी बाई को औपचारिक शिक्षा ग्रहण करने का अवसर तो नहीं मिला किन्तु वीरता और साहस झलकारी में बचपन से मौजूद था —
       — पिता का नाम सदोवा (उर्फ मूलचंद कोरी) और माता जमुनाबाई (उर्फ धनिया) था, झलकारी बचपन से ही साहसी और दृढ़.प्रतिज्ञ बालिका थी —

       — साथियों बचपन से ही झलकारी बाई कोरी घर के काम के अलावा पशुओं की देखरेख और जंगल से लकड़ी इकट्ठा करने का काम भी करती थी —
           — एक बार जंगल में झलकारी मुठभेड़ एक बाघ से हो गई थी और उन्होंने अपनी कुल्हाड़ी से उस जानवर को मार डाला था,वह एक वीर साहसी महिला थी  —
     — डकैतों का अकेले किया सामना एक बार हथियारों से लैस डकैतों ने गाँव के एक व्यवसायी पर हमला किया,साहसी झलकारी ने उनको गांव से बाहर खदेड़ दिया  
      — बहुजन नायिका झलकारीबाई कोरी जी का विवाह झांसी की सेना में सिपाही रहे पूरन कोरी नामक युवक के साथ हुआ,पूरे गांव वालों ने झलकारी बाई के विवाह में भरपूर सहयोग दिया —
        — वीरांगना झलकारी बाई कोरी  के जीवन में आई कठिनाइयों के दौरान उनकी वीरता और निखर कर सामने आई. इसकी भनक धीरे – धीरे रानी लक्ष्मीबाई को भी मालूम हुई,रानी झांसी ने झलकारी बाई को बुलावा भेजा. और जब झलकारी बाई रानी लक्ष्मीबाई के सामने आईं, तो वो दोनों एक-दूसरे को देखते रह गए.दोनों की शक्लें एक-दूसरे से काफी मिलती थी. रानी ने झलकारी बाई को पहले अपनी महिला सेना में शामिल कर लिया और बाद से उनकी वीरता और साहस को देखते हुए उन्हें महिला सेना का सेनापति बना दिया —
      — जब रानी लक्ष्मीबाई का अग्रेंजों के विरूद्ध निर्णायक युद्ध हुआ उस समय रानी की ही सेना का एक विश्वासघाती सैनिक अंग्रेजी सेना से मिल गया और धोखे से झांसी के किले के ओरछा गेट का फाटक खोल दिया. फिर क्या था, अंग्रेजी सेना झांसी के किले में घुस पड़ी उस समय रानी लक्ष्मीबाई को अंग्रेजों की सेना से घिरता हुआ देख वीरांगना झलकारी बाई ने बलिदान और राष्ट्रभक्ति की अदभुत मिशाल पेश की थी —
             — जैसा कि हमने बताया की झलकारी बाई की शक्ल रानी लक्ष्मीबाई से मिलती थी. रानी लक्ष्मीबाई को बचाने के लिए झलकारी बाई ने एक उपाय सोचा,अपनी सूझ बुझ और रण कौशल का परिचय देते हुए वह स्वयं रानी लक्ष्मीबाई बन गयी और असली झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को सकुशल किले से बाहर निकाल दिया और खुद अंग्रेजी सेना से संघर्ष करती हुई शहीद हो गईं. अंग्रेजों को लगा कि रानी लक्ष्मीबाई को मारकर उन्होंने युद्ध जीत लिया —
        — साथियों यहां गौर करने वाली सबसे जरूरी बात ये है कि झांसी को बचाते वक्त झलकारी बाई के पति पूरण सिंह शहीद हो गए। लेकिन, अपने पति की मौत पर आंसू बहाने की बजाए झलकारी बाई ने अंग्रेजों को धोखा देने की ठान ली। झलकारी देवी और कुछ सलाहकारों ने रानी लक्ष्मीबाई को विश्वस्त सैनिकों की मदद से किले से बाहर सुरक्षित निकाल दिया —
      — लेकिन उस धोखेबाज सैनिक के बताने पर पता चला कि यह रानी लक्ष्मीबाई नहीं बल्कि महिला सेना की सेनापति झलकारी बाई है जो अंग्रेजी सेना को धोखा देने के लिए रानी लक्ष्मीबाई बन कर लड़ रही है ,वीरांगना झलकारी बाई के इस बलिदान को शत्-शत् नमन एंव विनम्र श्रद्धांजलि —
       — साथियों बहुजन वीरांगना झलकारीबाई कोरी वह किले के बाहर निकल ब्रिटिश जनरल ह्यूग रोज़ के शिविर में उससे मिलने पहँची। ब्रिटिश शिविर में पहुँचने पर उसने चिल्लाकर कहा कि वो जनरल ह्यूग रोज़ से मिलना चाहती है। रोज़ और उसके सैनिक प्रसन्न थे कि न सिर्फ उन्होने झांसी पर कब्जा कर लिया है बल्कि जीवित रानी भी उनके कब्ज़े में है —
      — जनरल ह्यूग रोज़ जो उसे रानी ही समझ रहा था, ने झलकारी बाई से पूछा कि उसके साथ क्या किया जाना चाहिए? तो उसने दृढ़ता के साथ कहा,मुझे फाँसी दो. जनरल ह्यूग रोज़ झलकारी का साहस और उसकी नेतृत्व क्षमता से बहुत प्रभावित हुआ  बहुजन नायिका वीरांगना झलकारीबाई कोरी इस युद्ध के दौरान वीरगति को प्राप्त हुई —

     —साथियों अंग्रेज बलिदान की इस मिसाल को देख चकित रह गए. वीरांगना झलकारी बाई के इस बलिदान को बुन्देलखण्ड तो क्या भारत का स्वतन्त्रता संग्राम कभी भुला नहीं सकता —
      — एक बुंदेलखंड किंवदंती है कि झलकारी के इस उत्तर से जनरल ह्यूग रोज़ दंग रह गया और उसने कहा कि "यदि भारत की 1% महिलायें भी उसके जैसी हो जायें तो ब्रिटिशों को जल्दी ही भारत छोड़ना होगा" —
      — मुख्यधारा के इतिहासकारों द्वारा, वीरांगना झलकारी बाई के योगदान को बहुत विस्तार नहीं दिया गया है, लेकिन आधुनिक स्थानीय बहुजन लेखकों ने उन्हें गुमनामी से उभारा है —
     — अरुणाचल प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल श्री माता प्रसाद ने झलकारी बाई की जीवनी की रचना की है
   — एक और उपन्यास में हमे झलकारीबाई कोरी जी का उल्लेख दिखाई देता है, जो रामचन्द्र हेरन द्वारा लिखा 
गया था,उस उपन्यास का नाम,माटी था,हेरन ने झलकारीबाई के उदात्त और वीर शहीद” कहा है — 
      — राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने झलकारी की बहादुरी को निम्न प्रकार पंक्तिबद्ध किया है —
      — जा कर रण में ललकारी थी,वह तो झाँसी की झलकारी थी,गोरों से लड़ना सिखा गई, है इतिहास में झलक रही,वह भारत की ही नारी थी —
       — वीरागंना झलकारी बाई की गाथा आज भी बुंदेलखंड की लोकगाथाओं और लोकगीतों में सुनी जाती है 
      — भारत सरकार ने 22 जुलाई 2001 में झलकारी बाई के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया।उनकी प्रतिमा और एक स्मारक अजमेर, राजस्थान में निर्माणाधीन है —
          — उत्तर प्रदेश सरकार ने उनकी एक प्रतिमा आगरा में स्थापित की।लखनऊ में सिविल अस्पताल की महिला शाखा झलकारी बाई के नाम से ही है —
   — भारतीय पुरातात्विक सर्वे ने पंच महल के म्यूजियम में झाँसी के किले में झलकारीबाई कोरी का भी उल्लेख किया है। कानपुर नानाराव पार्क में एक बड़ी मूर्ति स्थापित की गई है —
  — उत्तरप्रदेश के झांसी जिले में भी मऊरानीपुर में बहुजन समाज की वीरांगना झलकारी बाई की प्रतिमा —
— प्रकाशित लोकप्रिय पुस्तिकाओं में झलकारीबाई कोरी जी 
       — विष्णु राव गोडसे माझा प्रवास 1907 —
       — वृंदावनलाल वर्मा झाँसी की रानी 1950 —
       — रामचंद्र हैरन माटी 1951—
       — भवानीशंकर विशारद —
        —वीरांगना झलकारीबाई 1964 —
       — पीयूष झलकारी (नाटक) 1972 —
       — डी.सी. दिनकर स्वतंत्रता संग्राम में —
       — अछूतों का योगदान 1990 —
       — माता प्रसाद झलकारीबाई  (नाटक) 1990 —
       — चोखेलाल वर्मा वीरांगना झलकारी (काव्य) 1993 
       — बिहारीलाल हरित वीरांगना झलकारीबाई 1995 —
      — इन पुस्तिकाओं के लेखक प्रायः बहुजन समुदाय के हैं 
     — भारत के आज़ादी के बाद जब भारतीय सिनेमा की शुरुआत हुई तो स्वतंत्रता संग्राम से सम्बंधित कई फिल्में बनी और लोगों ने बड़ी सराहना की। लेकिन बड़े दुःख की बात है कि भारत के प्रथम बहुजन वीरांगना झलकारी बाई कोरी जी  पर बॉलीवुड ने आज तक कोई फिल्म नहीं बनाई जिससे भारत के लोग जान पाते कि बहुजन समाज के क्षेत्रों में भी वीर साहसी और योद्धा पाये जाते हैं !
  — बहुजन नायिका झलकारी बाई कोरी जी के इस बलिदान को इतिहासकारों ने भले ही नजरअंदाज़ कर दिया हो, लेकिन बुंदेलखंड लोगों जहन में आज भी उनकी याद में लोकगीत गुनगुनाते है — 
    — साथियों उनके साहस की कथाएं सुनाते है। झलकारी बाई कोरी जी उनके दिलो में ज़िन्दा हैं। झलकारी बाई कोरी का नाम भले ही इतिहास में दर्ज़ नहीं, लेकिन उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड, महोबा ज़िले में पिछली दो सदी से उनका नाम याद किया जाता रहा है — 
— इंन्ही शब्दों के साथ मैं अपने लेख को अंतिम रूप देता हूं 
    — संदर्भ:- वीरांगना झलकारी बाई मोहनदास नैमिशराय,
बिहारीलाल हरित वीरांगना झलकारीबाई 1995,
अछूतों का योगदान 1990 माता प्रसाद झलकारीबाई-नाटक 1990 ,लेख के कुछ अंश विकिपीडिया से भी लिए गये हैं—
     — साथियों ऐसी शूरवीर बहुजन नायिका वीरांगना झलकारी बाई कोरी जी के चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करतें हुए मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर शत्-शत् नमन करता हूं —
— बाबासाहेब आंबेडकर जी ने भारतीय संविधान के तहत कमजोर तबके के लोगों को जो कानूनी हक दिलाये है। इसके लिए बाबा साहेब आंबेडकर जी को कदम-कदम पर काफी संघर्ष करना पड़ा था —
      — साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए बहुजन नायिका,वीरांगना झलकारी बाई कोरी ने वह कर दिखाया जो उस दौर में सोच पाना भी मुश्किल था —
    ―साथियों बहुजन नायिका,वीरांगना झलकारीबाई कोरी का भारत वर्ष के लिए किए गया अथक योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता,धन्य है वो भारत भूमि और वो माई जिसने ऐसे महान वीरांगना को जन्म दिया —
        — जिसने देश को दी नई दिशा””…जिसने आपको नया जीवन दिया वह है आधुनिक भारत के निर्माता बाबा साहेब अम्बेडकर जी का संविधान —
  — सच  अक्सर कड़वा लगता है। इसी लिए सच बोलने वाले भी अप्रिय लगते हैं। सच बोलने वालों को इतिहास के पन्नों में दबाने का प्रयास किया जाता है, पर सच बोलने का सबसे बड़ा लाभ यही है, कि वह खुद पहचान कराता है और घोर अंधेरे में भी चमकते तारे की तरह दमका देता है। सच बोलने वाले से लोग भले ही घृणा करें, पर उसके तेज के सामने झुकना ही पड़ता है ! इतिहास के पन्नों पर जमी धूल के नीचे ऐसे ही बहुजन महापुरुषों का गौरवशाली इतिहास दबा है —
     — साभार-बहुजन समाज और उसकी राजनीति,मेरे संघर्षमय जीवन एवं बहुजन समाज का मूवमेंट,दलित दस्तक,विकिपीडिया—
―मां कांशीराम साहब जी ने एक एक बहुजन नायक को बहुजन से परिचय कराकर, बहुजन समाज के लिए किए गए कार्य से अवगत कराया सन 1980 से पहले भारत के  बहुजन नायक भारत के बहुजन की पहुँच से दूर थे,इसके हमें निश्चय ही मान्यवर कांशीराम साहब जी का शुक्रगुजार होना चाहिए जिन्होंने इतिहास की क्रब में दफन किए गए बहुजन नायक/नायिकाओं के व्यक्तित्व को सामने लाकर समाज में प्रेरणा स्रोत जगाया !
   ―इसका पूरा श्रेय मां कांशीराम साहब जी को ही जाता है कि उन्होंने जन जन तक गुमनाम बहुजन नायकों को पहुंचाया, मां कांशीराम साहब के बारे में जान कर मुझे भी लगा कि गुमनाम बहुजन नायकों के बारे में लिखा जाए !
          ―ऐ मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय ज्ञान,पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो !
      ―साथियों एक बात याद रखना आज करोड़ों लोग जो बाबासाहेब जी,माँ रमाई के संघर्षों की बदौलत कमाई गई रोटी को मुफ्त में बड़े चाव और मजे से खा रहे हैं ऐसे लोगों को इस बात का अंदाजा भी नहीं है जो उन्हें ताकत,पैसा,इज्जत,मान-सम्मान मिला है वो उनकी बुद्धि और होशियारी का नहीं है बाबासाहेब जी के संघर्षों की बदौलत है !
       ―साथियों आँधियाँ हसरत से अपना सर पटकती रहीं,बच गए वो पेड़ जिनमें हुनर लचकने का था !
       ―तमन्ना सच्ची है,तो रास्ते मिल जाते हैं,तमन्ना झूठी है,तो बहाने मिल जाते हैं,जिसकी जरूरत है रास्ते उसी को खोजने होंगें निर्धनों का धन उनका अपना संगठन है,ये मेरे बहुजन समाज के लोगों अपने संगठन अपने झंडे को मजबूत करों शिक्षित हो संगठित हो,संघर्ष करो !
      ―साथियों झुको नही,बिको नहीं,रुको नही, हौसला करो,तुम हुकमरान बन सकते हो,फैसला करो हुकमरान बनो"
       ―सम्मानित साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए !
        ―सभी अम्बेडकरवादी भाईयों, बहनो,को नमो बुद्धाय सप्रेम जयभीम! सप्रेम जयभीम !!
             ―बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर  जी ने कहा है जिस समाज का इतिहास नहीं होता, वह समाज कभी भी शासक नहीं बन पाता… क्योंकि इतिहास से प्रेरणा मिलती है, प्रेरणा से जागृति आती है, जागृति से सोच बनती है, सोच से ताकत बनती है, ताकत से शक्ति बनती है और शक्ति से शासक बनता है !”
        ― इसलिए मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर आप लोगो को इतिहास के उन पन्नों से रूबरू कराने की कोशिश कर रहा हूं जिन पन्नों से बहुजन समाज का सम्बन्ध है जो पन्ने गुमनामी के अंधेरों में खो गए और उन पन्नों पर धूल जम गई है, उन पन्नों से धूल हटाने की कोशिश कर रहा हूं इस मुहिम में आप लोगों मेरा साथ दे, सकते हैं !
           ―पता नहीं क्यूं बहुजन समाज के महापुरुषों के बारे कुछ भी लिखने या प्रकाशित करते समय “भारतीय जातिवादी मीडिया” की कलम से स्याही सूख जाती है !.इतिहासकारों की बड़ी विडम्बना ये रही है,कि उन्होंने बहुजन नायकों के योगदान को इतिहास में जगह नहीं दी इसका सबसे बड़ा कारण जातिगत भावना से ग्रस्त होना एक सबसे बड़ा कारण है इसी तरह के तमाम ऐसे बहुजन नायक हैं,जिनका योगदान कहीं दर्ज न हो पाने से वो इतिहास के पन्नों में गुम हो गए !
     ―उन तमाम बहुजन नायकों को मैं अमित गौतम जंनपद   रमाबाई नगर,कानपुर कोटि-कोटि नमन करता हूं !
जय रविदास
जय कबीर
जय भीम
जय नारायण गुरु
जय सावित्रीबाई फुले
जय माता रमाबाई अम्बेडकर जी
जय ऊदा देवी पासी जी
जय झलकारी बाई कोरी
जय बिरसा मुंडा
जय बाबा घासीदास
जय संत गाडगे बाबा
जय पेरियार रामास्वामी नायकर
जय छत्रपति शाहूजी महाराज
जय शिवाजी महाराज
जय काशीराम साहब
जय मातादीन भंगी जी
जय कर्पूरी ठाकुर 
जय पेरियार ललई सिंह यादव
जय मंडल
जय हो उन सभी गुमनाम बहुजन महानायकों की जिंन्होने अपने संघर्षो से बहुजन समाज को एक नई पहचान दी,स्वाभिमान से जीना सिखाया !    
              अमित गौतम
             युवा सामाजिक
                कार्यकर्ता         
              बहुजन समाज
  जंनपद-रमाबाई नगर कानपुर
           सम्पर्क सूत्र-9452963593


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