Father of the Indian Social Revolution,महिलाओं में शिक्षा अलख जगाने वाले सामाजिक,शैक्षणिक क्रांति के पुरोधा राष्ट्रपिता,महात्मा ज्योतिवाराव फुले जी के परिनिर्वाण दिवस पर शत्-शत् नमन एंव विनम्र श्रद्धांजलि

        
28,नवंबर,1890
    वो थे इसलिए आज हम हैं !
        इतिहास के पन्नों से
    — भारत के शोषितों वंचितों पिछड़ों,बहुजन क्रांति के  ध्वजवाहक,भारत में सामाजिक क्रांति के पितामह Father of the Indian Social Revolution,मानवता के प्रचारक महिलाओं में शिक्षा अलख जगाने वाले सामाजिक,शैक्षणिक क्रांति के पुरोधा राष्ट्रपिता,बहुजन नायक,शिक्षा के अग्रदूत राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिवाराव फुले जी के परिनिर्वाण दिवस पर शत्-शत् नमन एंव विनम्र श्रद्धांजलि —
— जब जरूरत थी चमन को तो लहू हमने दिया,अब बहार आई तो कहते हैं तेरा काम नहीं —
        — राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिबा फुले (Jyotirao Govindrao Phule ) ऐसे योद्धा,महामानव का नाम है,जिन्होंने शोषण के विरुद्ध आवाज बुलंद की उपेक्षितों को उनका हक दिलाने के लिए जीवन समर्पित कर दिया —
     — राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिबा फुले ने अपना पूरा जीवन समाज में वंचित तबके खासकर स्त्री और दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष में बीता दिया —
    — राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिबा फुले जी ने कहा है —
   — विद्या बिना मति गयी, मति बिना नीति गयी,नीति बिना गति गयी, गति बिना वित्त गया,वित्त बिना शूद गये, इतने अनर्थ, एक अविद्या ने किये —
    — राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिबा फुले जी ने वह कर दिखाया जो उस दौर में सोच पाना भी मुश्किल था —
        — भारत के शोषितों वंचितों पिछड़ों,महिलाओं में शिक्षा अलख जगाने वाले सामाजिक क्रांति की पुरोधा शिक्षा की कभी न बुझने वाली क्रांतिकारी मशाल थे राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिबा फुले जी — 
     — राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिबा फुले जी ने शोषितों वंचितों,पिछड़ो,महिलाओं को भेदभाव,पांखडवाद से मूक्ति दिलाने के आजीवन संघर्ष किया और शिक्षा की ज्योति जलाई  —
      — साथियों जातिगत भेदभाव पांखडवाद को बढाने वालों  के खिलाफ वास्तविक और ठोस लड़ाई छेड़ने वालों में महात्मा ज्योतिबा फुले जी का उल्लेखनीय नाम है —
    — शोषित समाज को जागृत करने में उनके योगदान को हमेशा सम्मान के साथ याद किया जाएगा —
 — ऐसे महामानव मानवता के पुजारी को शत्-शत् नमन —
       — शिक्षा के असली प्रचारक ज्योतिराव फूले जी थे। और प्रथम महिला शिक्षा का विद्यालय की स्थापना फुले साहब की ही देन है —
  — राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिबा फुले जी का जीवन परिचय  
 — महात्मा ज्योतिबा फुले जी ने 100 साल पहले ही खोल दिए थे 18 महिला स्‍कूल —
                — बहुजनों के इस अप्रितम योद्धा,क्रांतिकारी लेखक, प्रकाशकऔर जातिवाद के विरुद्ध विद्रोही चेतना के प्रखर नायक महामानव महात्मा ज्योतिबा फुले जी का जन्म 11 अप्रैल 1827 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के माली जाति के परिवार में हुआ था —
       —  महात्मा ज्योतिबा फुले जी के पिता का नाम गोविन्द राव और माता का नाम चिमनबाई था —
      — महात्मा ज्योतिबा जी के बड़े भाई का नाम राजाराम था पूना के आस-पास माली जाति के लोगों को फुले (फूल वाले) कहा जाता है| ज्योतिराव फुले जी की माता चिमनाबाई का निधन उस समय हो गया जब वे मात्र एक वर्ष के थे —
     — अब उनके पिता जी के सामने ज्योतिबा के पालन-पोषण की चिंता थी  उन्होंने उनके लिए एक धाय को नौकर रखा लेकिन दूसरी शादी नहीं की उस धाय ने भी एक माता के समान ज्योतिबा का पालन-पोषण किया महात्मा ज्योतिबा जी बहुत बुद्धिमान थे उन्होंने मराठी में अध्ययन किया,वे महान क्रांतिकारी, भारतीय विचारक, समाजसेवी, लेखक एवं दार्शनिक थे। 1840 में ज्योतिबा का विवाह माता सावित्रीबाई से हुआ था —
     — 19वीं सदी के एक महान भारतीय विचारक, समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे। इन्हें 'महात्मा फुले' एवं 'ज्‍योतिबा फुले' के नाम से भी जाना जाता है। ज्योतिबा जी महाराष्ट्र के पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने शिवाजी के पराक्रम, साहस और कुशलता पर गीत लिखे | उन्होंने शिवाजी के महान आदर्शों का वर्णन किया — 
     — महाराष्ट्र के समाज सुधारकों महात्मा ज्योतिबा फुले में सर्वाधिक आक्रामक, प्रतिभा संपन्न और विद्रोही व्यक्तित्व महात्मा ज्योतिबा फुले भारतीय सामाजिक क्रांति के जनक कहलाते हैं —
     — महात्मा ज्योतिबा फुले जी ने अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले जी के साथ मिलकर उन्नीसवीं सदी में स्त्रियों के अधिकारों, शिक्षा छुआछूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह तथा विधवा-विवाह जैसी कुरीतियां और समाज में व्याप्त अंधविश्वास, रूढ़ियों के विरुद्ध संघर्ष किया —
      — महात्मा ज्योतिबा फुले जी माता सावित्री बाई फुले जी के मार्गदर्शन,संरक्षक,गुरु,प्रेरणा स्रोत तो थे ही पर जब तक वो जीवित रहे सावित्रीबाई का होसला बढ़ाते रहे और किसी की परवाह ना करते हुए आगे बढने की प्रेरणा देते रहे शिक्षा के असली प्रचारक राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिराव फूले जी थे और प्रथम महिला शिक्षा का विद्यालय की स्थापना फुले साहब की ही देन है — 
      — महात्मा ज्योतिबा फुले जी ने 1848 मेँ भारत का प्रथम स्कूल खोला तब तक तो बॉम्बे हाई स्कूल भी नहीँ खुला था। उन्होंने लड़कियोँ को पढाने के लिये कुल तीन स्कूल खोले महात्मा ज्योतिबा फुले जी को अपने स्कूल में जब लड़कियोँ को पढाने के लिये महिला टीचर (शिक्षिका) तक नहीँ मिली, तब उन्होनेँ अपनी पत्नी सावित्री बाई को शिक्षण के लिये तैयार किया —
   — 1853 में महात्मा ज्योतिराव फुले जी और उनकी पत्नी सावित्री बाई ने अपने मकान में प्रौढ़ों के लिए रात्रि पाठशाला खोली महात्मा ज्योतिबा फुले जी ने आज से 150 साल पहले ‘कृषि विद्यालय’ की बात उठायी। ये वो समय था,जबकि किसानों की दुर्दशा पर कोई समाज सुधारक बोलते नहीं थे 
 — क्या आप लोगों को पता है महात्मा ज्योतिबा व उनके संगठन के संघर्ष के कारण सरकार ने ‘एग्रीकल्चर एक्ट’ पास किया —
     — 1 जनवरी 1848 से लेकर 15 मार्च 1852 के दौरान सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले ने बिना किसी आर्थिक मदद और सहारे के लड़कियों के लिए 18 विद्यालय खोले उस दौर में ऐसा सामाजिक क्रांतिकारी की पहल पहले किसी ने नही की थी। इन शिक्षा केन्द्र में से एक 1849 में पूना में ही उस्मान शेख के घर पर मुस्लिम स्त्रियों व बच्चों के लिए खोला था —
 — महात्मा ज्योतिबा फुले एवं माता सावित्रीबाई अपने विद्यार्थियों से कहा करतें थे कि “कड़ी मेहनत करो, अच्छे से पढ़ाई करो और अच्छा काम करो”—
   — ब्रिटिश सरकार के शिक्षा विभाग ने शिक्षा के क्षेत्र में सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले के योगदान को देखते हुए 16 नवम्बर 1852  को उन्हें शॉल भेंटकर सम्मानित किया 
— माता सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा ने अपने घर के भीतर पानी के भंडार को दलित समुदाय के लिए खोल दिया। सावित्रीबाई फुले के भाई ने इन सब के लिए ज्योतिबा की घोर निंदा की, इस पर सावित्रीबाई ने उन्हें पत्र लिख कर अपने पति के कार्यो पर गर्व किया और उन्हें महान कहा — 
      — माता सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा ने 24 सितम्बर,1873 को सत्यशोधक समाज की स्थापना की,सावित्रीबाई फुले ने विधवा विवाह की परंपरा शुरू की और सत्यशोधक समाज द्वारा पहला विधवा पुनर्विवाह 25 दिसम्बर 1873 को संपन्न किया गया था और यह शादी बाजूबाई निम्बंकर की पुत्री राधा और सीताराम जबाजी आल्हट की शादी थी। 1876 व 1879 में पूना में अकाल पड़ा था तब ‘सत्यशोधक समाज‘ ने आश्रम में रहने वाले 2000 बच्चों और गरीब जरूरतमंद लोगों के लिये मुफ्त भोजन की व्यवस्था की —
 — अपने जीवन काल में महात्मा ज्योतिबा फुले जी ने कई पुस्तकें भी लिखीं —
                      — तृतीय रत्न,छत्रपति शिवाजी,राजा भोसला का पखड़ा,ब्राह्मणों का चातुर्य,किसान का कोड़ा,अछूतों की कैफियत —
— महात्मा ज्योतिबा फुले जी व उनके संगठन के संघर्ष के कारण सरकार ने ‘एग्रीकल्चर एक्ट’ पास किया. धर्म, समाज और परम्पराओं के सत्य को सामने लाने हेतु उन्होंने अनेक पुस्तकें भी लिखी — 
    — अपने जीवन काल में सबसे महत्वपूर्ण क्रांतिकारी पुस्तक गुलामगिरी लिखी,गुलामगिरी कोई मामूली किताब नहीं है,ये एक क्रांतिकारी दस्तावेज है —

    — साथियों 28 नवम्बर 1890 को बीमारी के के चलते ज्योतिबा की मृत्यु हो गई, ज्योतिबा के निधन के बाद सत्यशोधक समाज की जिम्मेदारी सावित्रीबाई फुले ने अपने जीवन के अंत तक किया —
    — 1893 में सास्वाड़ में आयोजित सत्यशोधक सम्मेलन की अध्यक्षता माता सावित्रीबाई फुले जी ने ही की थी, वहां उन्होंने ऐसा भाषण दिया कि दलितों, महिलाओं और पिछड़े-दबे लोगों में आत्म-सम्मान की भावना का संचार हुआ —
      — महात्मा ज्योतिबा फुले जी ने उन्नीसवीं सदी में छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह और विधवा विवाह निषेध जैसी कुरीतियां के विरुद्ध अपने पत्नी माता सावित्री बाई फुले जी के साथ मिलकर काम किया —
       — साथियों महात्मा ज्योतिबा फुले जी के संघर्षों में सबसे बड़ा योगदान माता सावित्रीबाई फुले जी का रहा है। प्रत्येक महापुरुष की सफलता के पीछे उसकी जीवनसंगिनी का बहुत बड़ा हाथ होता है जीवनसंगिनी का त्याग और सहयोग अगर न हो तो शायद,वह व्यक्ति, महापुरुष ही नहीं बन पाता माता सावित्रीबाई फुले जी इसी तरह के त्याग और समर्पण की प्रतिमूर्ति थी —
       — अक्सर महापुरुष की दमक के सामने उसका घर-परिवार और जीवनसंगिनी सब पीछे छूट जाते हैं क्योंकि, इतिहास लिखने वालों की नजर महापुरुष पर केन्द्रित होती है यही कारण है कि माता सावित्रीबाई फुले जी के बारे में ज्यादा कुछ नहीं लिखा गया है —
   — राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जी & राष्ट्रपिता ज्योतिबाफुले जी के संघर्षो के बारे में विस्तार से जाने इस लेख के माध्यम से —
     —अगर सावित्रीबाई फुले को प्रथम महिला शिक्षिका, प्रथम शिक्षाविद् और महिलाओं की मुक्तिदाता कहें तो कोई भी अतिशयोक्ति नही होगी, वो कवयित्री,अध्यापिका,समाजसेविका थीं — 
 — माता सावित्रीबाई फुले बाधाओं के बावजूद स्त्रियों को शिक्षा दिलाने के अपने संघर्ष में बिना धैर्य खोये और आत्मविश्वास के साथ डटी रहीं —
 — माता सावित्रीबाई फुले ने अपने पति ज्योतिबा के साथ मिलकर उन्नीसवीं सदी में स्त्रियों के अधिकारों, शिक्षा छुआछूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह तथा विधवा-विवाह जैसी कुरीतियां और समाज में व्याप्त अंधविश्वास, रूढ़ियों के विरुद्ध संघर्ष किया। ज्योतिबा उनके मार्गदर्शन, संरक्षक, गुरु, प्रेरणा स्रोत तो थे, ही पर जब तक वो जीवित रहे सावित्रीबाई का होसला बढ़ाते रहे और किसी की परवाह ना करते हुए आगे बढने की प्रेरणा देते रहे !
 — माता सावित्रीबाई का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के नायगांव नामक छोटे से गांव में हुआ था, 9 साल की अल्पआयु में उनकी शादी पूना के ज्योतिबा फुले के साथ किया गया। विवाह के समय सावित्री बाई फुले की कोई स्कूली शिक्षा नहीं हुई थी वहीं ज्योतिबा फुले तीसरी कक्षा तक शिक्षा प्राप्त किए थे। सावित्री जब छोटी थी तब एक बार अंग्रेजी की एक किताब के पन्ने पलट रही थी, तभी उनके पिताजी ने यह देख लिया और तुरंत किताब को छीनकर खिड़की से बाहर फेंक दिया, क्योंकि उस समय शिक्षा का हक़ केवल उच्च जाति के पुरुषों को ही था, दलित और महिलाओं को शिक्षा ग्रहण करना पाप था —
— थोड़ी देर में माता सावित्रीबाई उस किताब को चुपचाप वापस ले आई और उस दिन उन्होंने निश्चय किया कि वह एक न एक दिन पढ़ना ज़रूर सीखेगी और यह सपना पूरा हुआ ज्योतिबा फुले से शादी करने के बाद —
—सावित्रीबाई फुले एक बहुजन परिवार से थी, जब ज्योतिबा फुले ने उनसे शादी की तो ऊंची जाति के लोगों ने विवाह संस्कार के समय उनका अपमान किया तब ज्योतिबा फुले ने दलित वर्ग को गरिमा दिलाने का प्रण लिया। वो मानते थे कि दलित और महिलाओं की आत्मनिर्भरता, शोषण से मुक्ति और विकास के लिए सबसे जरूरी है शिक्षा और इसकी शुरुआत उन्होंने सावित्रीबाई फुले को शिक्षित करने से की —
— महात्मा ज्योतिबा फुले जी को खाना देने जब सावित्रीबाई खेत में आती थीं, उस दौरान वे सावित्रीबाई को पढ़ाते थे,लेकिन इसकी भनक उनके पिता को लग गई और उन्होंने रूढ़िवादीता और समाज के डर से ज्योतिबा को घर से निकाल दिया फिर भी ज्योतिबा ने सावित्रीबाई को पढ़ाना जारी रखा और उनका दाखिला एक प्रशिक्षण विद्यालय में कराया —
— समाज द्वारा इसका बहुत विरोध होने के बावजूद सावित्रीबाई ने अपना अध्ययन पूरा किया —
  — अध्ययन पूरा करने के बाद सावित्री बाई ने सोचा कि प्राप्त शिक्षा का उपयोग अन्य महिलाओं को भी शिक्षित करने में किया जाना चाहिए, लेकिन यह एक बहुत बड़ी चुनौती थी क्योंकि उस समय समाज लड़कियों को पढ़ाने के खिलाफ था —
  — फिर भी उन्होंने ज्योतिबा के साथ मिलकर 1848 में पुणे में बालिका विद्यालय की स्थापना की, जिसमें कुल नौ लड़कियों ने दाखिला लिया और राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जी इस स्कूल की प्रधानाध्यापिका बनीं —
कुछ ही दिनों में उनके विद्यालय में दबी-पिछड़ी जातियों के बच्चे, विशेषकर लड़कियाँ की संख्या बढ़ती गई, लेकिन सावित्रीबाई का रोज घर से विद्यालय जाने का सफ़र सबसे कष्टदायक होता था, जब वो घर से निकलती तो लोग उन्हें अभद्र गालियां, जान से मारने की लगातार धमकियां देते, उनके ऊपर सड़े टमाटर, अंडे, कचरा, गोबर और पत्थर फेंकते थे, जिससे विद्यालय पहुंचते पहुंचते उनके कपड़े और चेहरा गन्दा हो जाया करते थे —
      — राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले इसे लेकर बहुत परेशांन हो गईं थीं,  तब ज्योतिबा ने इस समस्या का हल निकला और उन्हें 2 साड़ियां दी, मोटी साड़ी घर से विद्यालय जाते और वापस आते समय के लिए थी, वहीं दूसरी साड़ी को विद्यालय में पहुंच कर पहनना होता था —
  — एक घटना के बाद इन अत्याचारों का अंत हो गया, घटना यू हैं कि एक बदमाश रोज सावित्रीबाई का पीछा करता था और उनके लिए रस्ते भर अभद्र भाषा का प्रयोग करता था एक दिन वह अचानक सावित्रीबाई का रास्ता रोककर खड़ा हो गया और उन पर हमला करने की कोशिश की, सावित्रीबाई फुले ने बहादुरी से उसका मुकाबला किया और उसे दो-तीन थप्पड़ जड़ दिए उसके बाद से किसी ने भी उनके साथ दुर्व्यवहार करने की कोशिश नही की —
— 1 जनवरी 1848 से लेकर 15 मार्च 1852 के दौरान सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले ने बिना किसी आर्थिक मदद और सहारे के लड़कियों के लिए 18 विद्यालय खोले — — उस दौर में ऐसा सामाजिक क्रांतिकारी की पहल पहले किसी ने नही की थी। इन शिक्षा केन्द्र में से एक 1849 में पूना में ही उस्मान शेख के घर पर मुस्लिम स्त्रियों व बच्चों के लिए खोला था — 
   — माता सावित्रीबाई अपने विद्यार्थियों से कहा करती थी कि “कड़ी मेहनत करो, अच्छे से पढ़ाई करो और अच्छा काम करो” —
  — ब्रिटिश सरकार के शिक्षा विभाग ने शिक्षा के क्षेत्र में सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले के योगदान को देखते हुए 16 नवम्बर 1852  को उन्हें शॉल भेंटकर सम्मानित किया,राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले ने केवल शिक्षा के क्षेत्र में ही नही बल्कि स्त्री की दशा सुधारने के लिए भी महत्वपूर्ण काम किया उन्होनें 1852 में ”महिला मंडल“ का गठन किया और भारतीय महिला आंदोलन की प्रथम अगुआ भी बनीं —
— राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा ने बाल-विधवा और बाल-हत्या पर भी काम किया था, उन्होंने 1853 में ‘बाल-हत्या प्रतिबंधक-गृह’ की स्थापना की, जहां विधवाएं अपने बच्चों को जन्म दे सकती थीं और यदि वो उन्हें अपने साथ रखने में असमर्थ हैं तो बच्चों को इस गृह में रखकर जा सकती थीं —
— इस गृह की पूरी देखभाल और बच्चों का पालन पोषण माता सावित्रीबाई फुले करती थीं। 1855 में मजदूरों को शिक्षित करने के उद्देश्य से फुले दंपत्ति ने ‘रात्रि पाठशाला’ खोली थी —
— उस समय विधवाओं के सिर को जबरदस्ती मुंडवा दिया जाता था, सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा ने इस अत्याचार का विरोध किया और नाइयों के साथ काम कर उन्हें तैयार किया कि वो विधवाओं के सिर का मुंडन करने से इंकार कर दे इसी के चलते 1860 में नाइयों से हड़ताल कर दी कि वे किसी भी विधवा का सर मुंडन नही करेगें, ये हड़ताल सफल रही —
— राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा ने अपने घर के भीतर पानी के भंडार को दलित समुदाय के लिए खोल दिया। सावित्रीबाई फुले के भाई ने इन सब के लिए ज्योतिबा की घोर निंदा की, इस पर सावित्रीबाई ने उन्हें पत्र लिख कर अपने पति के कार्यो पर गर्व किया और उन्हें महान कहा —
"साथियों माता सावित्रीबाई फुले और महात्मा ज्योतिबा ने 24 सितम्बर,1873 को सत्यशोधक समाज की स्थापना की 
— राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले ने विधवा विवाह की परंपरा शुरू की और सत्यशोधक समाज द्वारा पहला विधवा पुनर्विवाह 25 दिसम्बर 1873 को संपन्न किया गया था और यह शादी बाजूबाई निम्बंकर की पुत्री राधा और सीताराम जबाजी आल्हट की शादी थी —
  —1876 व 1879 में पूना में अकाल पड़ा था तब ‘सत्यशोधक समाज‘ ने आश्रम में रहने वाले 2000 बच्चों और गरीब जरूरतमंद लोगों के लिये मुफ्त भोजन की व्यवस्था की,28 नवम्बर 1890 को बीमारी के के चलते ज्योतिबा की मृत्यु हो गई, ज्योतिबा के निधन के बाद सत्यशोधक समाज की जिम्मेदारी सावित्रीबाई फुले ने अपने जीवन के अंत तक किया —
— 1893 में सास्वाड़ में आयोजित सत्यशोधक सम्मेलन की अध्यक्षता सावित्रीबाई फुले ने ही की थी, वहां उन्होंने ऐसा भाषण दिया कि दलितों, महिलाओं और पिछड़े-दबे लोगों में आत्म-सम्मान की भावना का संचार हुआ —
— 1897 में पुणे में प्लेग की भयंकर महामारी फ़ैल गयी, प्रतिदिन सैकड़ों लोगों की मौत हो रही थी। उस समय सावित्रीबाई ने अपने दत्तक पुत्र यशवंत की मदद से एक हॉस्पिटल खोला,वे बीमार लोगों के पास जाती और खुद ही उनको हॉस्पिटल तक लेकर आतीं थीं। हालांकि वो जानती थीं कि ये एक संक्रामक बीमारी है फिर भी उन्होंने बीमार लोगों की सेवा और देख-भाल करना जारी रखा। किसी ने उन्हें प्लेग से ग्रसित एक बच्चे के बारे में बताया, वो उस गंभीर बीमार बच्चे को पीठ पर लादकर हॉस्पिटल लेकर गईं इस प्रक्रिया में यह महामारी उनको भी लग गई और 10 मार्च 1897 को सावित्रीबाई फुले की इस बीमारी के चलते निधन हो गया —
— माता सावित्रीबाई फुले जी प्रतिभाशाली कवियित्री भी थीं। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य की अग्रदूत भी माना जाता है। वे अपनी कविताओं और लेखों में सामाजिक चेतना की हमेशा बात करती थीं। इनकी कुछ प्रमुख रचना इस प्रकार हैं 1854 में पहला कविता-संग्रह 'काव्य फुले', 1882 में पुस्तक 'बावनकशी सुबोध रत्नाकर',1892 ‘मातोश्री के भाषण’,ज्योतिबा फुले की मृत्यु के बाद 1891 में कविता-संग्रह ‘बावनकाशी सुबोध रत्नाकर’ आदि —
— माता सावित्रीबाई फुले जी ने अपना पूरा जीवन समाज में वंचित तबके खासकर स्त्री और दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष में बीता दिया —लेकिन माता सावित्रीबाई के काम और संघर्ष सामने नही आ पाते हैं,उन्हें ज्योतिबा के सहयोगी के तौर पर ज्यादा देखा जाता है, जबकि इनका अपना एक स्वतंत्रत अस्तित्व था, उन्होंने ज्योतिबा फुले के सपने को आगे बढ़ाने में जी जान लगा दिया सावित्री बाई फुले और ज्योतिबा फुले दोनों सही मायनों में एक दूसरे के पूरक थे —
—  साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए,माता सावित्रीबाई फुले जी ने वह कर दिखाया जो उस दौर में सोच पाना भी मुश्किल था —
— आज देश की पहली महिला शिक्षक, समाज सेविका, कवि और वंचितों की आवाज उठाने वाली सावित्रीबाई ज्‍योतिराव फुले जी उनके बारे में दस खास बातें —

— इनका जन्‍म 3 जनवरी, 1831 में बहुजन परिवार में हुआ था,1840 में 9 साल की उम्र में सावित्रीबाई की शादी 13 साल के ज्‍योतिराव फुले से हुई —
— माता सावित्रीबाई फुले ने अपने पति क्रांतिकारी नेता ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोले. उन्‍होंने पहला और अठारहवां स्कूल भी पुणे में ही खोला माता सावित्रीबाई फुले देश की पहली महिला अध्यापक-नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेता थीं —
— उन्‍होंने 28 जनवरी 1853 को गर्भवती बलात्‍कार पीडि़तों के लिए बाल हत्‍या प्रतिबंधक गृह की स्‍थापना की, माता राष्ट्रमाता सावित्रीबाई ने उन्नीसवीं सदी में छुआ-छूत,सतीप्रथा, बाल-विवाह और विधवा विवाह निषेध जैसी कुरीतियां के विरुद्ध अपने पति के साथ मिलकर काम किया —
— राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले ने आत्महत्या करने जाती हुई एक विधवा ब्राह्मण महिला काशीबाई की अपने घर में डिलवरी करवा उसके बच्चे यशंवत को अपने दत्तक पुत्र के रूप में गोद लिया. दत्तक पुत्र यशवंत राव को पाल-पोसकर इन्होंने डॉक्टर बनाया —
 — महात्मा ज्योतिबा फुले की मृत्यु सन् 1890 में हुई. तब सावित्रीबाई ने उनके अधूरे कार्यों को पूरा करने के लिये संकल्प लिया माता सावित्रीबाई की मृत्यु 10 मार्च 1897 को प्लेग के मरीजों की देखभाल करने के दौरान हुई —
 — उनका पूरा जीवन समाज में वंचित तबके खासकर महिलाओं और दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष में बीता. उनकी एक बहुत ही प्रसिद्ध कविता है जिसमें वह सबको पढ़ने लिखने की प्रेरणा देकर जाति तोड़ने और जातिगत मानसिकता से ग्रस्त ग्रंथों को फेंकने की बात करती हैं !
— जाओ जाकर पढ़ो-लिखो, बनो आत्मनिर्भर, बनो मेहनती,काम करो-ज्ञान और धन इकट्ठा करो,ज्ञान के बिना सब खो जाता है, ज्ञान के बिना हम जानवर बन जाते है इसलिए, खाली ना बैठो,जाओ, जाकर शिक्षा लो,दमितों और त्याग दिए गयों के दुखों का अंत करो, तुम्हारे पास सीखने का सुनहरा मौका है,इसलिए सीखो और जाति के बंधन तोड़ दो, जो ग्रंथ तुम्हें गुलामी के लिए बाध्य करते हों उन्हें जल्दी से जल्दी फेंक दो —
— क्या आप लोगों को पता है राष्ट्रमाता सावित्रीबाई जी ने उन्नीसवीं सदी में छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह और विधवा विवाह निषेध जैसी कुरीतियां के विरुद्ध अपने पति के साथ मिलकर काम किया —
 — सच अक्सर कड़वा लगता है। इसी लिए सच बोलने वाले भी अप्रिय लगते हैं,साथियों सच बोलने वालों को इतिहास के पन्नों में दबाने का प्रयास किया जाता है, पर सच बोलने का सबसे बड़ा लाभ यही है कि वह खुद पहचान कराता है और घोर अंधेरे में भी चमकते तारे की तरह दमका देता है —
  सच बोलने वाले से लोग भले ही घृणा करें, पर उसके तेज के सामने झुकना ही पड़ता है। इतिहास के पन्नों पर जमी धूल के नीचेे ऐसे ही एक तेजस्वी क्रांन्तिकारी शख्शियत क्रांतिकारी माता सावित्रीबाई फुले जी & राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिबा फुले जी का —
— एक बात हमेशा याद रखनी चाहिए ,बहुजन महापुरुषों, गुरूओं,संत,अमर शहीदों की कुर्बानी के कारण ही आज हम सभी आजाद हैं ! उनकी कुर्बानी को हमें कभी नहीं भूलना चाहिए,लेकिन आज भी पिछड़े,शोषित, आदिवासी समाज गरीबी अशिक्षा के अभाव में गुलामी का जीवन जी रहे हैं,इसके हम लोग दोषी है,बाबा साहेब आंबेडकर जी ने हमें वोट का अधिकार दिलाया क्यूं नहीं हम लोग अपने वोट की ताकत से ऐसी सरकार बनाये जो हमारे बारे में सोचें समनता समानता की बात करें —
  — सामाजिक क्रांति की अग्रदूत,मानवता की प्रचारक राष्ट्रमाता प्रथम शिक्षिका सावित्रीबाई फुले जी & राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिबा फुले जी  के चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं —
      — साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए सामाजिक क्रांति की अग्रदूत,मानवता की प्रचारक राष्ट्रमाता प्रथम शिक्षिका सावित्रीबाई फुले जी & राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिबा फुले जी ने वह कर दिखाया जो उस दौर में सोच पाना भी मुश्किल था —      
    — सच  अक्सर कड़वा लगता है। इसी लिए सच बोलने वाले भी अप्रिय लगते हैं। सच बोलने वालों को इतिहास के पन्नों में दबाने का प्रयास किया जाता है, पर सच बोलने का सबसे बड़ा लाभ यही है, कि वह खुद पहचान कराता है और घोर अंधेरे में भी चमकते तारे की तरह दमका देता है। सच बोलने वाले से लोग भले ही घृणा करें, पर उसके तेज के सामने झुकना ही पड़ता है ! इतिहास के पन्नों पर जमी धूल के नीचे ऐसे ही बहुजन महापुरुषों का गौरवशाली इतिहास दबा है —
     — साभार-बहुजन समाज और उसकी राजनीति,मेरे संघर्षमय जीवन एवं बहुजन समाज का मूवमेंट,दलित दस्तक,विकिपीडिया—
―मां कांशीराम साहब जी ने एक एक बहुजन नायक को बहुजन से परिचय कराकर, बहुजन समाज के लिए किए गए कार्य से अवगत कराया सन 1980 से पहले भारत के  बहुजन नायक भारत के बहुजन की पहुँच से दूर थे,इसके हमें निश्चय ही मान्यवर कांशीराम साहब जी का शुक्रगुजार होना चाहिए जिन्होंने इतिहास की क्रब में दफन किए गए बहुजन नायक/नायिकाओं के व्यक्तित्व को सामने लाकर समाज में प्रेरणा स्रोत जगाया !
   ―इसका पूरा श्रेय मां कांशीराम साहब जी को ही जाता है कि उन्होंने जन जन तक गुमनाम बहुजन नायकों को पहुंचाया, मां कांशीराम साहब के बारे में जान कर मुझे भी लगा कि गुमनाम बहुजन नायकों के बारे में लिखा जाए !
          ―ऐ मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय ज्ञान,पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो !
      ―साथियों एक बात याद रखना आज करोड़ों लोग जो बाबासाहेब जी,माँ रमाई के संघर्षों की बदौलत कमाई गई रोटी को मुफ्त में बड़े चाव और मजे से खा रहे हैं ऐसे लोगों को इस बात का अंदाजा भी नहीं है जो उन्हें ताकत,पैसा,इज्जत,मान-सम्मान मिला है वो उनकी बुद्धि और होशियारी का नहीं है बाबासाहेब जी के संघर्षों की बदौलत है !
       ―साथियों आँधियाँ हसरत से अपना सर पटकती रहीं,बच गए वो पेड़ जिनमें हुनर लचकने का था !
       ―तमन्ना सच्ची है,तो रास्ते मिल जाते हैं,तमन्ना झूठी है,तो बहाने मिल जाते हैं,जिसकी जरूरत है रास्ते उसी को खोजने होंगें निर्धनों का धन उनका अपना संगठन है,ये मेरे बहुजन समाज के लोगों अपने संगठन अपने झंडे को मजबूत करों शिक्षित हो संगठित हो,संघर्ष करो !
      ―साथियों झुको नही,बिको नहीं,रुको नही, हौसला करो,तुम हुकमरान बन सकते हो,फैसला करो हुकमरान बनो"
       ―सम्मानित साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए !
        ―सभी अम्बेडकरवादी भाईयों, बहनो,को नमो बुद्धाय सप्रेम जयभीम! सप्रेम जयभीम !!
             ―बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर  जी ने कहा है जिस समाज का इतिहास नहीं होता, वह समाज कभी भी शासक नहीं बन पाता… क्योंकि इतिहास से प्रेरणा मिलती है, प्रेरणा से जागृति आती है, जागृति से सोच बनती है, सोच से ताकत बनती है, ताकत से शक्ति बनती है और शक्ति से शासक बनता है !”
        ― इसलिए मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर आप लोगो को इतिहास के उन पन्नों से रूबरू कराने की कोशिश कर रहा हूं जिन पन्नों से बहुजन समाज का सम्बन्ध है जो पन्ने गुमनामी के अंधेरों में खो गए और उन पन्नों पर धूल जम गई है, उन पन्नों से धूल हटाने की कोशिश कर रहा हूं इस मुहिम में आप लोगों मेरा साथ दे, सकते हैं !
           ―पता नहीं क्यूं बहुजन समाज के महापुरुषों के बारे कुछ भी लिखने या प्रकाशित करते समय “भारतीय जातिवादी मीडिया” की कलम से स्याही सूख जाती है —
— इतिहासकारों की बड़ी विडम्बना ये रही है,कि उन्होंने बहुजन नायकों के योगदान को इतिहास में जगह नहीं दी इसका सबसे बड़ा कारण जातिगत भावना से ग्रस्त होना एक सबसे बड़ा कारण है इसी तरह के तमाम ऐसे बहुजन नायक हैं,जिनका योगदान कहीं दर्ज न हो पाने से वो इतिहास के पन्नों में गुम हो गए —
     ―उन तमाम बहुजन नायकों को मैं अमित गौतम जंनपद   रमाबाई नगर,कानपुर कोटि-कोटि नमन करता हूं !
जय रविदास
जय कबीर
जय भीम
जय नारायण गुरु
जय सावित्रीबाई फुले
जय माता रमाबाई अम्बेडकर जी
जय ऊदा देवी पासी जी
जय झलकारी बाई कोरी
जय बिरसा मुंडा
जय बाबा घासीदास
जय संत गाडगे बाबा
जय पेरियार रामास्वामी नायकर
जय छत्रपति शाहूजी महाराज
जय शिवाजी महाराज
जय काशीराम साहब
जय मातादीन भंगी जी
जय कर्पूरी ठाकुर 
जय पेरियार ललई सिंह यादव
जय मंडल
जय हो उन सभी गुमनाम बहुजन महानायकों की जिंन्होने अपने संघर्षो से बहुजन समाज को एक नई पहचान दी,स्वाभिमान से जीना सिखाया !    
              अमित गौतम
             युवा सामाजिक
                कार्यकर्ता         
              बहुजन समाज
  जंनपद-रमाबाई नगर कानपुर
           सम्पर्क सूत्र-9452963593



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