बहुजन राष्ट्रपति,महान अर्थशास्त्री मां के.आर.नरायण परिनिर्वाण दिवस

    


9,नवंबर,2005
वो थे इसलिए आज हम है 
    इतिहास के पन्नों से
           — भारत के प्रथम बहुजन राष्ट्रपति,उपराष्ट्रपति, तत्कालीन सांसद,केंद्रीय मंत्री,महान अर्थशास्त्री,वरिष्ठ आईएफस,मां के.आर.नरायण जी के परिनिर्वाण दिवस पर शत् -शत् नमन एंव विनम्र श्रद्धांजलि —
―जब जरूरत थी चमन को तो लहू हमने दिया,अब बहार आई तो कहते हैं तेरा काम नहीं ―
             — क्या आप लोगों को पता है  मां के.आर.नरायण जी हर रोज 15 किमी पैदल चलकर स्कूल जाते थे. अकसर फीस न चुका पाने की वजह से उन्हें क्लासरूम के बाहर ही लेक्चर सुनना पड़ता था —
 — उन्होंने 1945 में इंग्लैंड के ‘लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स’ में राजनीति विज्ञान का अध्ययन किया. वे 3 बार केरल के ओट्टापलल से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे.उन्होंने द हिंदु और द टाइम्स ऑफ इंडिया में बातौर पत्रकार काम किया —
— मां के.आर नारायणन जी को टोलेडो विश्वविद्यालय,अमेरिका ने ‘डॉक्टर ऑफ साइंस’ की तथा ऑस्ट्रेलिया विश्वविद्यालय ने ‘डॉक्टर ऑफ लॉस’ की उपाधि दी —
— मां के. आर. नारायणन ने कुछ किताबें भी लिखीं, जिनमें ‘इण्डिया एण्ड अमेरिका एस्सेस इन अंडरस्टैडिंग’, ‘इमेजेस एण्ड इनसाइट्स’ और ‘नॉन अलाइमेंट इन कन्टैम्परेरी इंटरनेशनल रिलेशंस’ काफी महत्‍वपूर्ण हैं —
— उन्होंने बतौर मंत्री योजना, विदेश मामलों तथा विज्ञान व तकनीक विभागों में काम किया —
— वह बतौर राष्ट्राध्यक्ष के रूप में वोट देने वाले पहले राष्ट्रपति थे। उन्होंने वर्ष 1998 के लोकसभा चुनाव में पहला वोट डाला था। यही नहीं नारायणन पहले बहुजन समाज के व्यक्ति थे जो राष्ट्रपति बने –
   — वर्ष 1984,1989 और 1991 में केरल के ओट्टापल्लम संसदीय क्षेत्र से तीन बार चुनाव जीतकर संसद में अपनी जगह बनाई —
   — साथियों क्या आप लोगों को पता है बहुजन नायक के.आर.नारायण जी राष्ट्रपति रहते हुए जिन्होने ने सुप्रीम कोर्ट में दलितों के प्रवेश का रास्ता खोला —
— बहुजन नायक डॉ. के.आर. नारायणन का प्रारंभिक जीवन अनेक कठिनाइयों, निर्धनता और अभावों से भरा हुआ था. किंतु आपके धैर्य, विश्वास और संघर्ष के कारण उन्होंने हर बाधा पर जीत हासिल कर ली. उनके बचपन का नाम कोचिरिल राम नारायणन था. उनका जन्म केरल राज्य के पूर्व रियासत त्रावणकोर में कोट्यम जिले में स्थित उझाउर गांव में 27 अक्टूबर, 1920 को हुआ था —
— सन् 1945 में नारायणन ने त्रावणकोर विश्वविद्यालय के महाराजा कॉलेज, तिरुअनंतपुरम  से 60 प्रतिशत अंकों के साथ अंग्रेजी आनर्स में बी.ए की परीक्षा पास की. इसी कॉलेज से 1948 में उन्होंने प्रथम श्रेणी (फर्स्ट डिविजन) से अंग्रेजी साहित्य में एम.ए पास किया. एम.ए पास करने के बाद उन्होंने महाराजा कॉलेज में ही अंग्रेजी प्रवक्ता (लेक्चरार) पद के लिए आवेदन किया.लेकिन त्रावणकोर के दीवान सर सी.पी. रामास्वामी अय्यर ने नारायणन को प्रवक्ता की बजाय क्लर्क के पद पर काम करने को कहा गया. अय्यर के मन में तब जातीय दंभ था और यह विद्वेष की एक दलित आखिरकार प्रवक्ता कैसे हो सकता है—
— स्वाभिमानी नारायणन ने क्लर्क की नौकरी लेने से साफ मना कर दिया और इसके ठीक बाद विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में विरोधस्वरूप बी.ए की डिग्री लेने से मना कर दिया —
     — लेकिन चार दशक बाद सन् 1992 में भारत का उपराष्ट्रपति बनने पर उनके गृह राज्य केरल में केरल विश्वविद्यालय के उसी सीनेट में उनका जोरदार स्वागत किया गया, तब उऩ्होंने अपनी बी.ए की डिग्री ली. उस दौरान तात्कालिक जातिवादियों पर तंज कसते हुए के.आर.नारायणन ने कहा, “आज मुझे उन महापुरुषों के दर्शन नहीं हो रहे हैं, जिन्होंने दलित होने के कारण इस विश्वविद्यालय में मुझे प्रवक्ता बनने से वंचित कर दिया था. हालांकि उन्होंने मुझे प्रवक्ता पद पर नहीं चुन कर अच्छा ही किया क्योंकि तब शायद आज मुझे उप राष्ट्रपति बनने का सुनहरा अवसर नहीं मिलता. और न ही केरल राज्य को यह गौरव मिलता. मैं उन सभी के प्रति आभार प्रकट करता हूं.” 


   — आधुनिक भारत के निर्माता,विश्वरत्न,बाबा साहेब अम्बेडकर जी एवं बहुजन नायक मां के.आर.नारायण जी की भेंट —
— सन् 1948 में एम.ए करने और प्रवक्ता की नौकरी नहीं मिलने के बाद के. आर. नारायणन दिल्ली में बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर से मिलने गए. बाबासाहेब वायसराय की काउंसिल में श्रम विभाग के सदस्य थे. नारायणन की योग्यता को देखते हुए बाबासाहेब ने उन्हें दिल्ली में ही भारत ओवरसीज विभाग जिसे अब विदेश विभाग कहा जाता है में 250 रुपये प्रतिमाह पर सरकारी नौकरी दिलवा दी
    — नारायणन जी अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्ली चले गए और एक पत्रकार के रूप में नौकरी करने लगे। उन्होंने वर्ष 1944-45 में हिंदू और द टाइम्स ऑफ इंडिया जैसे समाचार पत्रों में काम किया। इस दौरान उन्होंने महात्मा गांधी का इंटरव्यू भी लिया था —
   — के.आर.नारायणन जी के मन में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैंड जाने की इच्छा थी। आर्थिक स्थिति कमजोर होने की वजह से उन्हें थोड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उन्होंने इसके लिए जे आर डी टाटा से मिले। टाटा ने उन्हें एक छात्रवृत्ति प्रदान की। इससे वह वर्ष 1945 में इंग्लैंड पढ़ने गए और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (एलएसई) में राजनीति विज्ञान का अध्ययन किया —
— राजनयिक के रूप में डॉ. नारायणन टोकियो, लंदन, आस्ट्रेलिया और हनोई में स्थित भारतीय उच्चायोग में प्रतिष्ठित पदों पर रहे. 1970 में वह चीन के राजदूत नियुक्त हुए. 1978 में रिटायर होने के बाद 3 जनवरी 1979 से 14 अक्टूबर 1980 तक वह देश के प्रतिष्ठित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में कुलपति के पद पर रहे. सन् 1980-84 तक वो अमेरिका में भारत के राजदूत रहें —
— सभी दलों की सर्वसम्मति से इस पद पर चुने जाने वाले वह शुरुआती उप राष्ट्रपतियों में से थे. 14 जुलाई 1997 को वह भारत के 10वें राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित हुए. 25 जुलाई 1997 से 25 जुलाई 2002 तक वो भारत के राष्ट्रपति पद पर रहे —
— मां के.नारायणन ही वह व्यक्ति थे जिन्होंने दलितों के लिए उच्चतम न्यायायल के न्यायाधीश बनने का रास्ता खोला. उच्चतम न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ए.एस. आनंद ने नियमानुसार उच्चतम न्यायालय के न्यायधीशों के लिए दस न्यायविद उच्च न्यायालयों के कानून विशेषज्ञों का एक पैनल बनाकर मंजूरी के लिए राष्ट्रपति को भेजा —
— आम तौर पर राष्ट्रपति ऐसी सूची पर अपनी मौन स्वीकृति दे देता है, लेकिन नारायणन जी ने ऐसा नहीं किया. उन्होंने देश के मुख्य न्यायाधीश को यह टिप्पणी लिखते हुए उस फाइल को लौटा दिया कि “क्या इन दस व्यक्तियों के पैनल में रखने के लिए उच्च न्यायालयों के न्यायधीशों में अनुसूचित जाति और जनजाति का कोई योग्य न्यायाधीश नहीं है?” —
— देश के राष्ट्रपति की इस टिप्पणी से सरकार से लेकर न्यायालय में हड़कंप मच गया. न्यायालय में दलितों और आदिवासियों के प्रतिनिधित्व पर बहस होने लगी. मामला गंभीर हो गया. राष्ट्रपति की इस टिप्पणी को नकारने या फिर हल्के में लेने की किसी को हिम्मत नहीं हुई. आखिरकार इस टिप्पणी ने सर्वोच्च न्यायालय में दलितों के प्रवेश का रास्ता खोला. यह डॉ. के.आर. नारायणन के जीवन की महत्वपूर्ण घटना थी, जिसके लिए बहुजन समाज हमेशा उनका ऋणी रहेगा —

— मां कोचेरिल रमण नारायण भारत के दसवे राष्ट्रपति थे।1992 में उनकी नियुक्ती देश के नौवे उपराष्ट्रपति के रूप में की गयी, फिर 1997 में नारायण देश के राष्ट्रपति बने थे। दलित समुदाय से राष्ट्रपति बनने वाले वे पहले और एकमात्र राजनेता थे। नारायण एक स्वतंत्र और मुखर राष्ट्रपति के नाम से प्रसिद्ध थे, जिन्होंने अपने कार्यो की बहुत सी मिसाल स्थापित कर रखी थी —

   — वे खुद को “कार्यकारी राष्ट्रपति” बताते थे जो “संविधान के चारो कोनो में काम करते थे”, उन्होंने “कार्यकारी राष्ट्रपति” जिनके पास पूरी ताकत होती है और “रबर स्टैम्प राष्ट्रपति” जो बिना की प्रश्न और विरोध के सरकार के निर्णयों का समर्थन करते थे, इन दोनों के बीच का रास्ता चुना। वे अपनी विवेकाधीन शक्तियों का उपयोग राष्ट्रपति के रूप में करते थे, अपने निर्णयों से उन्होंने देश के राजनीतिक इतिहास में बहुत सी मिसाले कायम की है —

— 1978 में IFS के रूप में जब उनका कार्यकाल समाप्त हुआ उसके बाद वे 1979 से 80 तक जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में उपकुलपति रहे —
— 1998 में इन्हें 'द अपील ऑफ़ कॉनसाइंस फ़ाउंडेशन', न्यूयार्क द्वारा 'वर्ल्ड स्टेट्समैन अवार्ड' दिया गया। 'टोलेडो विश्वविद्यालय', अमेरिका ने इन्हें 'डॉक्टर ऑफ़ साइंस' की तथा 'आस्ट्रेलिया विश्वविद्यालय' ने 'डॉक्टर ऑफ़ लॉस' की उपाधि दी। इसी प्रकार से राजनीति विज्ञान में इन्हें डॉक्टरेट की उपाधि तुर्की और सेन कार्लोस विश्वविद्यालय द्वारा प्रदान की गई —

— साथियों राष्ट्रपति नियुक्त होने के बाद के.आर. नरायणन जी ने एक नीति अथवा सिद्धान्त बना लिया था कि वह किसी भी पूजा स्थान या इबादतग़ाह पर नहीं जाएँगे-चाहे वह देवता का हो या देवी का। यह एकमात्र ऐसे राष्ट्रपति रहे जिन्होंने अपने कार्यकाल में किसी भी पूजा स्थल का दौरा नहीं किया —

— राष्ट्रपति के रूप में जब श्री नारायणन की पदावधि के अवसान का समय निकट आया तो विभिन्न जनसमुदायों की राय थी कि इन्हें दूसरे सत्र के लिए भी राष्ट्रपति बनाया जाना चाहिए। इस समय एन. डी. ए. के पास अपर्याप्त बहुमत था। लेकिन नारायणन ने स्पष्ट कर दिया कि वह सर्वसम्मति के आधार पर ही पुन: राष्ट्रपति बनना स्वीकार करेंगे —
— उस समय की विपक्षी पार्टियों- कांग्रेस, जनता दल, वाम मोर्चा तथा अन्य ने भी इनको दूसरी बार राष्ट्रपति बनाये जाने का समर्थन किया था। कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति श्री नारायणन से मुलाक़ात करके यह प्रार्थना की कि वह अगले सत्र हेतु भी राष्ट्रपति बनें। लेकिन वाजपेयी ने इनसे भेंट करके यह स्पष्ट कर दिया कि उनकी उम्मीदवारी को लेकर एन. डी. ए. में असहमति है —
— भारत के 10वें राष्ट्रपति के आर नारायणन का जन्म 27 अक्टूबर, 1920 को हुआ था. वो बतौर राष्ट्रध्यक्ष वोट देने वाले पहले राष्ट्रपति थे, जिन्होंने 1998 में लोकसभा चुनाव में पहला वोट डाला. वे एक गरीब व बहुजन परिवार से ताल्लुक रखते थे, काफी संघर्ष करते हुए वह राष्ट्रपति के पद पर पहुंचे थे.  नारायणन को उनके महान व्‍यक्तित्‍व व महत्‍वपूर्ण कृत्‍यों की वजह से याद किया जाता है —
— जानते हैं उनसे जुड़ी खास बातें —
1- के. आर. नारायणन का पूरा नाम कोच्चेरील रामन नारायणन था
2-उनका जन्म केरल के एक छोटे से गांव पेरुमथानम उझावूर, त्रावणकोर में हुआ था —
3- वे स्कूल हर रोज 15 किमी पैदल चलकर जाते थे. अकसर फीस न चुका पाने की वजह से उन्हें क्लासरूम के बाहर ही लेक्चर सुनना पड़ता था —
4-उन्होंने 1945 में इंग्लैंड के ‘लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स’ में राजनीति विज्ञान का अध्ययन किया —
5-वे 3 बार केरल के ओट्टापलल से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे
6-उन्होंने द हिंदु और द टाइम्स ऑफ इंडिया में बातौर पत्रकार काम किया —
7- के. आर. नारायणन ने कुछ किताबें भी लिखीं, जिनमें ‘इण्डिया एण्ड अमेरिका एस्सेस इन अंडरस्टैडिंग’, ‘इमेजेस एण्ड इनसाइट्स’ और ‘नॉन अलाइमेंट इन कन्टैम्परेरी इंटरनेशनल रिलेशंस’ काफी महत्‍वपूर्ण हैं —
8-नारायणन को टोलेडो विश्वविद्यालय, अमेरिका ने ‘डॉक्टर ऑफ साइंस’ की तथा ऑस्ट्रेलिया विश्वविद्यालय ने ‘डॉक्टर ऑफ लॉस’ की उपाधि दी —
9-उन्होंने बतौर मंत्री योजना, विदेश मामलों तथा विज्ञान व तकनीक विभागों में काम किया —
— जीवन के अंतिम दिनों में निमोनिया से पीड़ित हो गए थे। इलाज के लिए उन्हें आर्मी रिसर्च एंड रेफरल अस्पताल, नई दिल्ली मं भर्ती किया गया था जहां 9 नवंबर, 2005 को उन्होंने अंतिम सांस ली। 24 जनवरी 2008 को इनकी पत्नी उषा नारायणन का भी निधन हो गया सादगी की ऐसी मिसाल किसी भी भारतीय राजनीतिज्ञ मे ढूंढने से नहीं मिलेगी —
―ऐसे महान अर्थशास्त्री,महामानव,आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक के चरणों में शत्-शत् नमन―
―विशेष साभार-: बहुजन समाज और उसकी राजनीति,मेरे संघर्षमय जीवन एवं बहुजन समाज का मूवमेंट,दलित दस्तक,फारवर्ड प्रेस―
    — सच अक्सर कड़वा लगता है। इसी लिए सच बोलने वाले भी अप्रिय लगते हैं,सच बोलने वालों को इतिहास के पन्नों में दबाने का प्रयास किया जाता है,पर सच बोलने का सबसे बड़ा लाभ यही है,कि वह खुद पहचान कराता है और घोर अंधेरे में भी चमकते तारे की तरह दमका देता है। सच बोलने वाले से लोग भले ही घृणा करें, पर उसके तेज के सामने झुकना ही पड़ता है। इतिहास के पन्नों पर जमी धूल के नीचे ऐसे ही मां कांशीराम साहब जी का नाम दबा है !
     ―मां कांशीराम साहब जी ने एक एक बहुजन नायक को बहुजन से परिचय कराकर, बहुजन समाज के लिए किए गए कार्य से अवगत कराया सन 1980 से पहले भारत के  बहुजन नायक भारत के बहुजन की पहुँच से दूर थे,इसके हमें निश्चय ही मान्यवर कांशीराम साहब जी का शुक्रगुजार होना चाहिए जिन्होंने इतिहास की क्रब में दफन किए गए बहुजन नायक/नायिकाओं के व्यक्तित्व को सामने लाकर समाज में प्रेरणा स्रोत जगाया !
   ―इसका पूरा श्रेय मां कांशीराम साहब जी को ही जाता है कि उन्होंने जन जन तक गुमनाम बहुजन नायकों को पहुंचाया, मां कांशीराम साहब के बारे में जान कर मुझे भी लगा कि गुमनाम बहुजन नायकों के बारे में लिखा जाए !
          ―ऐ मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय ज्ञान,पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो !
 ― तुम्हारें अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए मैं दुबारा नहीं आऊंगा,ये क्रांति का रथ संघर्षो का कारवां ,जो मैं बड़े दुखों,कष्टों को सहकर यहाँ तक ले आया हूँ,अब आगे तुम्हे ही ले जाना है ―
      ―साथियों एक बात याद रखना आज करोड़ों लोग जो बाबासाहेब जी,माँ रमाई के संघर्षों की बदौलत कमाई गई रोटी को मुफ्त में बड़े चाव और मजे से खा रहे हैं ऐसे लोगों को इस बात का अंदाजा भी नहीं है जो उन्हें ताकत,पैसा,इज्जत,मान-सम्मान मिला है वो उनकी बुद्धि और होशियारी का नहीं है बाबासाहेब जी के संघर्षों की बदौलत है !
       ―साथियों आँधियाँ हसरत से अपना सर पटकती रहीं,बच गए वो पेड़ जिनमें हुनर लचकने का था !
       ―तमन्ना सच्ची है,तो रास्ते मिल जाते हैं,तमन्ना झूठी है,तो बहाने मिल जाते हैं,जिसकी जरूरत है रास्ते उसी को खोजने होंगें 
निर्धनों का धन उनका अपना संगठन है,ये मेरे बहुजन समाज के लोगों अपने संगठन अपने झंडे को मजबूत करों शिक्षित हो संगठित हो,संघर्ष करो !
      ―साथियों झुको नही,बिको नहीं,रुको नही, हौसला करो,तुम हुकमरान बन सकते हो,फैसला करो हुकमरान बनो"
       ―सम्मानित साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए !
        ―सभी अम्बेडकरवादी भाईयों, बहनो,को नमो बुद्धाय सप्रेम जयभीम! सप्रेम जयभीम !!
          ―बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर  जी ने कहा है जिस समाज का इतिहास नहीं होता, वह समाज कभी भी शासक नहीं बन पाता… क्योंकि इतिहास से प्रेरणा मिलती है, प्रेरणा से जागृति आती है, जागृति से सोच बनती है, सोच से ताकत बनती है, ताकत से शक्ति बनती है और शक्ति से शासक बनता है !”
        ― इसलिए मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर आप लोगो को इतिहास के उन पन्नों से रूबरू कराने की कोशिश कर रहा हूं जिन पन्नों से बहुजन समाज का सम्बन्ध है जो पन्ने गुमनामी के अंधेरों में खो गए और उन पन्नों पर धूल जम गई है, उन पन्नों से धूल हटाने की कोशिश कर रहा हूं इस मुहिम में आप लोगों मेरा साथ दे, सकते हैं —
           ―पता नहीं क्यूं बहुजन समाज के महापुरुषों के बारे कुछ भी लिखने या प्रकाशित करते समय “भारतीय जातिवादी मीडिया” की कलम से स्याही सूख जाती है !.इतिहासकारों की बड़ी विडम्बना ये रही है,कि उन्होंने बहुजन नायकों के योगदान को इतिहास में जगह नहीं दी इसका सबसे बड़ा कारण जातिगत भावना से ग्रस्त होना एक सबसे बड़ा कारण है इसी तरह के तमाम ऐसे बहुजन नायक हैं,जिनका योगदान कहीं दर्ज न हो पाने से वो इतिहास के पन्नों में गुम हो गए —
     ―उन तमाम बहुजन नायकों को मैं अमित गौतम जंनपद   रमाबाई नगर,कानपुर कोटि-कोटि नमन करता हूं !
जय रविदास
जय कबीर
जय भीम
जय नारायण गुरु
जय सावित्रीबाई फुले
जय माता रमाबाई अम्बेडकर जी
जय ऊदा देवी पासी जी
जय झलकारी बाई कोरी
जय बिरसा मुंडा
जय बाबा घासीदास
जय संत गाडगे बाबा
जय पेरियार रामास्वामी नायकर
जय छत्रपति शाहूजी महाराज
जय शिवाजी महाराज
जय काशीराम साहब
जय मातादीन भंगी जी
जय कर्पूरी ठाकुर 
जय पेरियार ललई सिंह यादव
जय मंडल
— जय हो उन सभी गुमनाम बहुजन महानायकों की जिंन्होने अपने संघर्षो से बहुजन समाज को एक नई पहचान दी,स्वाभिमान से जीना सिखाया —
              
              अमित गौतम
             युवा सामाजिक
                कार्यकर्ता         
              बहुजन समाज
  जंनपद-रमाबाई नगर कानपुर
           सम्पर्क सूत्र-9452963593

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