3,जनवरी,1831
      वो थे इसलिए आज हम हैं 
          इतिहास के पन्नों से 
     — भारतीय शिक्षिका दिवस —
— भारत के शोषितों वंचितों पिछड़ों,बहुजन क्रांति के  ध्वजवाहक,सत्यशोधक समाज की संस्थापक,मानवता की प्रचारक महिलाओं में शिक्षा अलख जगाने वाली,सामाजिक,शैक्षणिक क्रांति की अग्रदूत,क्रांति ज्योति,प्रथम शिक्षिका,राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले की जंयती की हार्दिक बधाईयां एवं मंगलकामनाएं —
— साथियों जब कभी भी भारतवर्ष के बहुजनों की महिलाओं के सशक्तिकरण का इतिहास लिखा जाएगा तो इसकी शुरुआत आई साहेब क्रांति ज्योति सावित्रीबाई से शुरू होगी —
— प्रथम बार महिलाओं के लिए शिक्षा का द्वार खोलने वाली मदर इंडिया सावित्री बाई फुले के चरणों में शत्-शत् नमन एंव विनम्र श्रद्धांजलि —
― ब्रिटिश सरकार के शिक्षा विभाग ने शिक्षा के क्षेत्र में मदर इंडिया सावित्रीबाई फुले और महात्मा ज्योतिबा फुले के योगदान को देखते हुए 16 नवम्बर 1852  को उन्हें शॉल भेंटकर सम्मानित किया —
— जब जरूरत थी चमन को तो लहू हमने दिया,अब बहार आई तो कहते हैं तेरा काम नहीं —

— जब वो चलती थीं तो लोग उनपर गोबर फेंकते.कूड़ा फेंकते। पत्थर फेंकते। वो बगल में एक अदद दूसरी साड़ी दबाए आगे बढ़ जाती। उनकी उम्मीद और मेहनत इन पत्थरों के ज़ख्म, कूड़े और गोबर की गंदगी से कहीं ज्यादा बड़ी थी. 
— उन्होंने लड़कियों का पहला स्कूल खोला और खुद पहली महिला शिक्षिका होने का जिम्मा भी उठाया। उन्होंने कलम उठाकर मराठा ज़मीन पर कविता उकेरी और हिम्मत देकर लड़कियों को कलम पकड़ाई। यह वो पहली औरत हैं जिसके सामने हाथ में पत्थर लिए मर्द औरते झुकती चली गईं —
—जातिवाद, मनुवाद की बेड़ियों को तोड़कर महिला सशक्तिकरण की मशाल बनीं आई ‘सावित्रीबाई फुले’
लोग सावित्रीबाई के पैरों में कांटे बो रहे थे, और वो उनकी नस्लों के पांव के कांटे चुन रही थीं। कम से कम आज हमसब को उनपर फेंकी गई गंदगी को महसूस करना चाहिए। सावित्री बाई का आंचल हमसब को महका देगा। आज उनको रोज़ से ज़्यादा याद करें —
— जिस देश में एकलव्य का अंगूठा गुरु दक्षिणा में मांगने वाले के नाम पर पुरस्कार दिए जाते हो, जिस देश में शम्बूक जैसे विद्वान के वध की परंपरा हो, जिस देश में शूद्रों-अतिशूद्रों और स्त्रियों को शिक्षा ग्रहण करने पर यहां के धर्मग्रंथों द्वारा उनके कान में पिघला शीशा डालने का फरमान जारी किया गया हो —
— जिस देश के जातिवादी सोच के कवि द्वारा यहां की दलित शोषित-वंचित जनता को “ढोल गंवार शूद्र अरु नारी यह सब ताड़न के अधिकारी” माना गया हो ऐसे देश में किसी दलित समाज की स्त्री द्वारा इन सारे अपमानों, बाधाओं, सड़े-गले धार्मिक अंधविश्वास व रुढियां तोड़कर निर्भयता और बहादुरी से घर-घर, गली-गली घूमकर सम्पूर्ण स्त्री व दलित समाज के लिए शिक्षा की क्रांतिज्योति जला देना अपने आप में विश्व के किसी सातवें आश्चर्य से कम नहीं था.
— गूगल ने डूडल के माता सावित्रीबाई फुले को उनकी 186 वीं जयंती पर श्रद्धांजलि दी थी डूडल ने माता सावित्रीबाई जी को अपने आंचल में महिलाओं को समेटते दिखाया है —
— भारतीय शिक्षिका दिवस:-सावित्री बाई फुले जिन्होंने दिलाया देश की हर महिला को पढ़ने का हक"
— आई साहेब सावित्रीबाई फुले ने हजारों-हजार साल से शिक्षा से वंचित कर दिए शुद्र-अतिशुद्र समाज और स्त्रियों के लिए बंद कर दिए गए दरवाजों को एक ही धक्के में खोल दिया। इन बंद दरवाजों के खुलने की आवाज इतनी ऊंची और कानफोडू थी कि उसकी आवाज से पुणे के धर्म के ठेकेदारों के तो जैसे कान के पर्दे फट गए हों। वे अचकचाकर सामंती नींद से जाग उठे —
— राष्ट्रमाता सावित्रीबाई ने समय के उस दौर में काम शुरु किया जब धार्मिक अंधविश्वास,रुढ़िवाद,अस्पृश्यता,शोषितो, वंचितों, पिछड़ो और स्त्रियों पर मानसिक और शारीरिक अत्याचार अपने चरम पर था। बाल-विवाह, सती प्रथा, बेटियों के जन्म देते ही मार देना,विधवा स्त्री के साथ तरह-तरह के अमानुषिक व्यवहार,अनमेल विवाह, बहुपत्नी विवाह आदि प्रथाएं समाज का खून चूस रही थीं। समाज में ब्राम्हणवाद और जातिवाद का बोलबाला था। ऐसे समय आई साहेब सावित्रीबाई फुले और फादर आफ इंडिया ज्योतिबा फुले का इस अन्यायी समाज और उसके अत्याचारों के खिलाफ खड़े हो जाने से सदियों से ठहरे और सड़ रहे गंदे तालाब में एक हलचल पैदा हो गई थी — 
— महान शिक्षिका सावित्रीबाई फुले ना केवल शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व काम किया अपितु भारतीय स्त्री की दशा सुधारने के लिए उन्होने 1852 में ”महिला मंडल“ का गठन कर भारतीय महिला आंदोलन की प्रथम अगुआ भी बनीं। इस महिला मंडल ने बाल विवाह,विधवा होने के कारण स्त्रियों पर किए जा रहे जुल्मों के खिलाफ स्त्रियों को तथा अन्य समाज को मोर्चाबन्द कर समाजिक बदलाव के लिए संघर्ष किया —
— पहले हिन्दू स्त्री के विधवा होने पर उसका सिर मूंड दिया जाता था। विधवाओं के सिर मूंडने जैसी कुरीतियों के खिलाफ लड़ने के लिए सावित्री बाई फूले ने नाईयों से विधवाओं के ‘बाल न काटने’ का अनुरोध करते हुए आन्दोलन चलाया जिसमें काफी संख्या में नाईयों ने भाग लिया तथा विधवा स्त्रियों के बाल न काटने की प्रतिज्ञा ली —
— अंतर्जातीय विवाह का समर्थन करने पर जब सावित्रीबाई फुले के भाई ने उसे भला बुरा कहते हुए लिखा- ‘तुम और तुम्हारा पति बहिष्कृत हो गए हो। महार मांगो के लिए तुम जो काम करते हो वह कुल भ्रष्ट करने वाला है। इसलिए कहता हूं कि जाति रुढ़ि के अनुसार भट्ट जो कहें तुम्हे उसी प्रकार आचरण करना चाहिए।’
— भाई की पुरातनपंथी बातों का जबाब सावित्रीबाई फुले ने अच्छी तरह देते हुए कहा कि- ‘भाई तुम्हारी बुद्धि कम है और भट्ट लोगों की शिक्षा से वह दुर्बल बनी हुई है।’
— राष्ट्रमाता सावित्रीबाई अपने विद्यार्थियों से कहा करती थी कि “कड़ी मेहनत करो, अच्छे से पढ़ाई करो और अच्छा काम करो” ! 
"आज हमारे समाज को इन पंक्तियों को अपने जीवन शैली में उतारने की जरूरत है —
— जाओ जाकर पढ़ो-लिखो,बनो आत्मनिर्भर, बनो मेहनती काम करो-ज्ञान और धन इकट्ठा करो ज्ञान के बिना सब खो जाता है ज्ञान के बिना हम जानवर बन जाते है इसलिए, खाली ना बैठो,जाओ, जाकर शिक्षा लो दमितों और त्याग दिए गए के दुखों का अंत करो, तुम्हारे पास सीखने का सुनहरा मौका है,इसलिए सीखो और जाति के बंधन तोड़ दो, जातिगत मानसिकता से ग्रस्त ग्रंथों को जल्दी से जल्दी फेंक दो —
— उनकी एक बहुत ही प्रसिद्ध कविता है जिसमें वह सबको पढ़ने लिखने की प्रेरणा देकर जाति तोड़ने और जातिगत मानसिकता से ग्रस्त ग्रंथों को फेंकने की बात करती हैं,माता सावित्रीबाई फुले जी ने अपना पूरा जीवन समाज में वंचित तबके खासकर स्त्री और दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष में बीता दिया.लेकिन माता सावित्रीबाई के काम और संघर्ष सामने नही आ पाते हैं, उन्हें ज्योतिबा के सहयोगी के तौर पर ज्यादा देखा जाता है, जबकि इनका अपना एक स्वतंत्रत अस्तित्व था, उन्होंने ज्योतिबा फुले जी के सपने को आगे बढ़ाने में जी जान लगा दिया माता सावित्री बाई फुले और ज्योतिबा फुले दोनों सही मायनों में एक दूसरे के पूरक थे
— आज हम आप लोगों को शिक्षका दिवस पर उस शख्सियत से रूबरू करायेगें ,हम भारत की उस महानायिका नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेता,कवित्रीप्रथम शिक्षिका,राष्ट्रमाता सावित्रबाई फुले की बात कर रहे हैं —
— राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिबा फुले को महाराष्ट्र और भारत में सामाजिक सुधार आंदोलन में एक सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में माना जाता है। उनको महिलाओं और दलित जातियों को शिक्षित करने के प्रयासों के लिए जाना जाता है। ज्योतिराव, जो बाद में ज्योतिबा के नाम से जाने गए सावित्रीबाई के संरक्षक, गुरु और समर्थक थे —
— मदर इंडिया सावित्रीबाई ने अपने जीवन को एक मिशन की तरह से जिया जिसका उद्देश्य था विधवा विवाह करवाना, छुआछात मिटाना, महिलाओं की मुक्ति दिलाना और शिक्षित बनाना —
— आई साहेब, क्रांति ज्योति सावित्रीबाई एक कवियत्री भी थीं उन्हें मराठी की आदिकवियत्री के रूप में भी जाना जाता था। सावित्रीबाई फुले ना केवल भारत की पहली अध्यापिका और पहली प्रधानाचार्या थी अपितु वे सम्पूर्ण समाज के लिए एक आदर्श प्रेरणा स्त्रोत, प्रख्यात समाज सुधारक, जागरुक और प्रतिबद्ध कवयित्री, विचारशील चितंक,भारत के स्त्री आंदोलन की अगुआ भी थी —
 — जिसने लगभग डेढ़ सौ साल पहले.समाज के भारी विरोध के बाद भी देश की महिलाओं में शिक्षा की अलख जगाई — 
"वो महानायिका थी भारत की प्रथम महिला शिक्षक सावित्री बाई फुले.महिला शिक्षा के क्षेत्र में आज भी हमारा देश काफी पिछड़ा है
— देश के कई हिस्से ऐसे है जहाँ आज भी बालिकाओं को पढ़ाया लिखाया नहीं जाता.ज़रा सोचिये आज से करीब 150 साल पहले क्या हाल होगा? और कल्पना कीजिये एक औरत उस समय में लोगों को प्रेरित करे महिला शिक्षा के लिए. क्या कहेंगे उस महिला को आप ? महानायिका या शिक्षा की देवी मेरा सोचना ये है कि वो महानायिका और शिक्षा की देवी थी आई साहेब,क्रांति ज्योति सावित्रीबाई फुले —
— अगर आई सावित्री फुले को प्रथम महिला शिक्षिका,प्रथम शिक्षाविद् और महिलाओं की मुक्तिदाता कहें तो कोई भी अतिशयोक्ति नही होगी, वो कवयित्री, अध्यापिका,समाजसेविका थीं —
— राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले बाधाओं के बावजूद स्त्रियों को शिक्षा दिलाने के अपने संघर्ष में बिना धैर्य खोये और आत्मविश्वास के साथ डटी रहीं —
 — आई सावित्री ने अपने पति महात्मा ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर उन्नीसवीं सदी में स्त्रियों के अधिकारों, शिक्षा छुआछूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह तथा विधवा-विवाह जैसी कुरीतियां और समाज में व्याप्त अंधविश्वास, रूढ़ियों के विरुद्ध संघर्ष किया। ज्योतिबा उनके मार्गदर्शन, संरक्षक, गुरु, प्रेरणा स्रोत तो थे, ही पर जब तक वो जीवित रहे सावित्रीबाई का होसला बढ़ाते रहे और किसी की परवाह ना करते हुए आगे बढने की प्रेरणा देते रहे —
— 1 जनवरी 1848 से लेकर 15 मार्च 1852 के दौरान आई सावित्रीबाई फुले और राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिबा फुले ने बिना किसी आर्थिक मदद और सहारे के लड़कियों के लिए 18 विद्यालय खोले —
— उस दौर में ऐसा सामाजिक क्रांतिकारी की पहल पहले किसी ने नही की थी। इन शिक्षा केन्द्र में से एक 1849 में पूना में ही उस्मान शेख के घर पर मुस्लिम स्त्रियों व बच्चों के लिए खोला था —
— ब्रिटिश सरकार के शिक्षा विभाग ने शिक्षा के क्षेत्र में सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले के योगदान को देखते हुए 16 नवम्बर 1852  को उन्हें शॉल भेंटकर सम्मानित किया 
— माता सावित्रीबाई फुले ने केवल शिक्षा के क्षेत्र में ही नही बल्कि स्त्री की दशा सुधारने के लिए भी महत्वपूर्ण काम किया —
— 1848 में राष्ट्रमाता सावित्रीबाई ने भारी विरोध के बाद भी देश का पहला कन्या विद्यालय खोला. उस समय उस स्कूल में मात्र 9 बालिकाओं ने दाखिला लिया था —
 — राष्ट्रमाता सावित्री बाई उन बालिकाओं की मुश्किलें समझती थी क्योंकि जब सावित्री बाई स्वयं पढने जाती थी तो लोग उन पर भी पत्थर फेंकते थे और तरह तरह से परेशान करते थे देखते ही देखते मात्र एक वर्ष में ही एक विद्यालय से बढ़कर ये संख्या पांच कन्या विद्यालय की हो गयी —
 — देश की पहली महिला प्रधानाध्यापक होने का भी गौरव भी माता सावित्रीबाई फुले को हासिल हुआ —
    "जरा सोचिये उस दौर में सावित्री बाई के लिए लड़कियों की पढाई.के लिए लड़ना कितना मुश्किल रहा होगा,लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और भारत में महिला शिक्षा की शुरुआत करके ही मानी — 
— साथियों माता सावित्रीबाई फुले ने अपने पति क्रांतिकारी नेता महात्मा ज्योतिराव फुले जी के साथ मिलकर लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोले. उन्‍होंने पहला और अठारहवां स्कूल भी पुणे में ही खोला —
 — सही मायने में देखा जाये तो महिलाओं में शिक्षा की अलख जगाने वाली माता सावित्रीबाई फुले ही थी, जिन्होंने अनेक बाधाएं पार कर के लड़कियों को शिक्षा का अधिकार दिलाया लेकिन हमारे इतिहासकारो ने जातिगत मानसिकता से ग्रस्त होने के कारण वो सम्मान नहीं दिया —
  "जिसकी  आई सावित्री फुले हकदार थी,फिर भी कोई बात नहीं आज हमारा सामाज माता सावित्रीबाई फुले के द्वारा नारी शिक्षा अधिकारों के लिए किए गए संघर्षों का जान रहा है —
— सम्मानित साथियों राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले जी जिन्होंने दिलाया देश की हर महिला को पढ़ने का हक़ आज हम शिक्षिका दिवस पर आई साहेब सावित्री फुले  को शत् - शत् नमन करतें — 
— साथियों महात्मा ज्योतिबा फुले जी के संघर्षों में सबसे बड़ा योगदान माता सावित्रीबाई फुले जी का रहा है। प्रत्येक महापुरुष की सफलता के पीछे उसकी जीवनसंगिनी का बहुत बड़ा हाथ होता है —
— जीवनसंगिनी का त्याग और सहयोग अगर न हो तो शायद,वह व्यक्ति, महापुरुष ही नहीं बन पाता माता सावित्रीबाई फुले जी इसी तरह के त्याग और समर्पण की प्रतिमूर्ति थी —
— अक्सर महापुरुष की दमक के सामने उसका घर-परिवार और जीवनसंगिनी सब पीछे छूट जाते हैं क्योंकि, इतिहास लिखने वालों की नजर महापुरुष पर केन्द्रित होती है.यही कारण है कि माता सावित्रीबाई फुले जी के बारे में ज्यादा कुछ नहीं लिखा गया है —
— राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले ऐसी शख्सियत का नाम है, जिन्होंने शोषण के विरुद्ध आवाज बुलंद की उपेक्षितों को उनका हक दिलाने के लिए जीवन समर्पित कर दिया —
— साथियों भारत के शोषितों वंचितों पिछड़ों,महिलाओं में शिक्षा अलख जगाने वाले सामाजिक क्रांति की पुरोधा शिक्षा की कभी न बुझने वाली क्रांतिकारी मशाल थी क्रांति ज्योति आई सावित्री फुले —
 — राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिबा फुले-आई साहेब,क्रांति ज्योति सावित्री फुले ने शोषितों वंचितों,पिछड़ो,महिलाओं को भेदभाव,पांखडवाद से मूक्ति दिलाने के आजीवन संघर्ष किया और शिक्षा की ज्योति जलाई —
—  जातिगत भेदभाव पांखडवाद को बढाने वालों  के खिलाफ वास्तविक और ठोस लड़ाई छेड़ने वालों में आई साहेब,क्रांति ज्योति सावित्री फुले का उल्लेखनीय नाम है.शोषित समाज को जागृत करने में उनके योगदान को हमेशा सम्मान के साथ याद किया जाएगा —
— ऐसी महामानव मानवता के पुजारी आई साहेब,क्रांति ज्योति सावित्री फुले को  शत्-शत् नमन —
— प्रथम शिक्षिका राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले,फातिमा शेख जी के सघर्षों को शिक्षिका दिवस पर कोटि-कोटि नमन —
— शिक्षा के असली प्रचारक राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले जी ने प्रथम महिला शिक्षा का विद्यालय की स्थापना की —
— प्रथम शिक्षिका आई साहेब क्रांति ज्योति सावित्रीबाई फुले का जीवन परिचय —
  — राष्ट्रमाता सावित्रीबाई का जन्म 3,जनवरी,1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के नायगांव नामक छोटे से गांव में हुआ था, 9 साल की अल्पआयु में उनकी शादी पूना के ज्योतिबा फुले के साथ किया गया। विवाह के समय सावित्री बाई फुले की कोई स्कूली शिक्षा नहीं हुई थी वहीं ज्योतिबा फुले तीसरी कक्षा तक शिक्षा प्राप्त किए थे —
— सावित्री जब छोटी थी तब एक बार अंग्रेजी की एक किताब के पन्ने पलट रही थी, तभी उनके पिताजी ने यह देख लिया और तुरंत किताब को छीनकर खिड़की से बाहर फेंक दिया, क्योंकि उस समय शिक्षा का हक़ केवल उच्च जाति के पुरुषों को ही था, दलित और महिलाओं को शिक्षा ग्रहण करना पाप था —
— थोड़ी देर में माता सावित्रीबाई उस किताब को चुपचाप वापस ले आई और उस दिन उन्होंने निश्चय किया कि वह एक न एक दिन पढ़ना ज़रूर सीखेगी और यह सपना पूरा हुआ ज्योतिबा फुले से शादी करने के बाद —
— मदर इंडिया सावित्रीबाई फुले एक बहुजन परिवार से थी, जब ज्योतिबा फुले ने उनसे शादी की तो ऊंची जाति के लोगों ने विवाह संस्कार के समय उनका अपमान किया तब ज्योतिबा फुले ने दलित वर्ग को गरिमा दिलाने का प्रण लिया। वो मानते थे कि दलित और महिलाओं की आत्मनिर्भरता, शोषण से मुक्ति और विकास के लिए सबसे जरूरी है शिक्षा और इसकी शुरुआत उन्होंने सावित्रीबाई फुले को शिक्षित करने से की —
— महात्मा ज्योतिबा फुले जी को खाना देने जब सावित्रीबाई खेत में आती थीं,उस दौरान वे सावित्रीबाई को पढ़ाते थे,लेकिन इसकी भनक उनके पिता को लग गई और उन्होंने रूढ़िवादीता और समाज के डर से ज्योतिबा को घर से निकाल दिया फिर भी ज्योतिबा ने सावित्रीबाई को पढ़ाना जारी रखा और उनका दाखिला एक प्रशिक्षण विद्यालय में कराया —
— समाज द्वारा इसका बहुत विरोध होने के बावजूद सावित्रीबाई ने अपना अध्ययन पूरा किया.अध्ययन पूरा करने के बाद सावित्री बाई ने सोचा कि प्राप्त शिक्षा का उपयोग अन्य महिलाओं को भी शिक्षित करने में किया जाना चाहिए, लेकिन यह एक बहुत बड़ी चुनौती थी क्योंकि उस समय समाज लड़कियों को पढ़ाने के खिलाफ था —
— फिर भी उन्होंने ज्योतिबा के साथ मिलकर 1848 में पुणे में बालिका विद्यालय की स्थापना की, जिसमें कुल नौ लड़कियों ने दाखिला लिया और राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जी इस स्कूल की प्रधानाध्यापिका बनीं.कुछ ही दिनों में उनके विद्यालय में दबी-पिछड़ी जातियों के बच्चे, विशेषकर लड़कियाँ की संख्या बढ़ती गई, लेकिन सावित्रीबाई का रोज घर से विद्यालय जाने का सफ़र सबसे कष्टदायक होता था, जब वो घर से निकलती तो लोग उन्हें अभद्र गालियां, जान से मारने की लगातार धमकियां देते, उनके ऊपर सड़े टमाटर, अंडे, कचरा, गोबर और पत्थर फेंकते थे, जिससे विद्यालय पहुंचते पहुंचते उनके कपड़े और चेहरा गन्दा हो जाया करते थे —
— सावित्रीबाई इसे लेकर बहुत परेशांन हो गईं थीं,  तब ज्योतिबा ने इस समस्या का हल निकला और उन्हें 2 साड़ियां दी, मोटी साड़ी घर से विद्यालय जाते और वापस आते समय के लिए थी,वहीं दूसरी साड़ी को विद्यालय में पहुंच कर पहनना होता था —
— एक घटना के बाद इन अत्याचारों का अंत हो गया, घटना यू हैं कि एक बदमाश रोज सावित्रीबाई का पीछा करता था और उनके लिए रास्ते-भर अभद्र भाषा का प्रयोग करता था. एक दिन वह अचानक सावित्रीबाई का रास्ता रोककर खड़ा हो गया और उन पर हमला करने की कोशिश की, सावित्रीबाई फुले ने बहादुरी से उसका मुकाबला किया और उसे दो-तीन थप्पड़ जड़ दिए उसके बाद से किसी ने भी उनके साथ दुर्व्यवहार करने की कोशिश नही की —
  — सम्मानित साथियों मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जी के चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं —
    — आज देश की पहली महिला शिक्षक,समाज सेविका, कवि और वंचितों की आवाज उठाने वाली आई साहेब, क्रांति ज्योति,सावित्रीबाई ज्‍योतिराव फुले जी उनके बारे में दस खास बातें —
— इनका जन्‍म 3 जनवरी,1831 में बहुजन परिवार में हुआ था.1840 में 9 साल की उम्र में सावित्रीबाई की शादी 13 साल के ज्‍योतिराव फुले से हुई —
— माता सावित्रीबाई फुले ने अपने पति क्रांतिकारी नेता ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोले. उन्‍होंने पहला और अठारहवां स्कूल भी पुणे में ही खोला —
— माता सावित्रीबाई फुले देश की पहली महिला अध्यापक-नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेता थीं —
— उन्‍होंने 28 जनवरी 1853 को गर्भवती बलात्‍कार पीडि़तों के लिए बाल हत्‍या प्रतिबंधक गृह की स्‍थापना की —
 — मदर इंडिया सावित्रीबाई फुले ने उन्नीसवीं सदी में छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह और विधवा विवाह निषेध जैसी कुरीतियां के विरुद्ध अपने पति के साथ मिलकर काम किया —
— आई साहेब सावित्रीबाई फुले ने आत्महत्या करने जाती हुई एक विधवा ब्राह्मण महिला काशीबाई की अपने घर में डिलवरी करवा उसके बच्चे यशंवत को अपने दत्तक पुत्र के रूप में गोद लिया. दत्तक पुत्र यशवंत राव को पाल-पोसकर इन्होंने डॉक्टर बनाया —
— महात्मा ज्योतिबा फुले की मृत्यु सन् 1890 में हुई. तब सावित्रीबाई ने उनके अधूरे कार्यों को पूरा करने के लिये संकल्प लिया —
आई सावित्रीबाई की मृत्यु 10 मार्च 1897 को प्लेग के मरीजों की देखभाल करने के दौरान हुई —
 ― सत्यशोधक समाज की स्थापना 24 सितम्बर,1873 को राष्ट्रमाता माता सावित्रीबाई फुले और महात्मा ज्योतिबा फुले जी ने की फुले जी  सत्यशोधक समाज प्रथम अध्यक्ष व कोषाध्यक्ष बने―
    ―इसका संगठन का मुख्य उद्देश्य समाज में व्याप्त जातिवाद,भेदभाव पांखडवाद और उसकी कुरीतियों के विरुद्ध आवाज़ उठाना था {सत्यशोधक समाज का मुख्य उद्देश्य शूद्रों और अतिशूद्रों को धर्म के ठेकेदारों के शोषण से मुक्ति दिलाना था}―
―1893 में सास्वाड़ में आयोजित सत्यशोधक सम्मेलन की अध्यक्षता माता सावित्रीबाई फुले जी ने ही की थी, वहां उन्होंने ऐसा भाषण दिया कि दलितों, महिलाओं और पिछड़े-दबे लोगों में आत्म-सम्मान की भावना का संचार हुआ हमारी धरोहर हमारा इतिहास―
— उनका पूरा जीवन समाज में वंचित तबके खासकर महिलाओं और दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष में बीता. उनकी एक बहुत ही प्रसिद्ध कविता है जिसमें वह सबको पढ़ने लिखने की प्रेरणा देकर जाति तोड़ने और जातिगत मानसिकता से ग्रस्त ग्रंथों को फेंकने की बात करती हैं —
— जाओ जाकर पढ़ो-लिखो, बनो आत्मनिर्भर, बनो मेहनती काम करो-ज्ञान और धन इकट्ठा करो.ज्ञान के बिना सब खो जाता है, ज्ञान के बिना हम जानवर बन जाते है.इसलिए, खाली ना बैठो,जाओ, जाकर शिक्षा लो.दमितों और त्याग दिए गयों के दुखों का अंत करो, तुम्हारे पास सीखने का सुनहरा मौका है.इसलिए सीखो और जाति के बंधन तोड़ दो, जो ग्रंथ तुम्हें गुलामी के लिए बाध्य करते हों उन्हें जल्दी से जल्दी फेंक दो —
  — क्रांति ज्योति राष्ट्रमाता सावित्रीबाई ने उन्नीसवीं सदी में छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह और विधवा विवाह निषेध जैसी कुरीतियां के विरुद्ध अपने पति के साथ मिलकर काम किया —
— क्रांति ज्योति,आई साहेब सावित्रीबाई फुले अपने कार्यों से सदा समाज में अमर रहेगी। जिस वंचित शोषित समाज के मानवीय अधिकारों के लिए उन्होंने जीवन पर्यन्त संघर्ष किया वही समाज उनके प्रति अपना आभार, सम्मान, और उनके योगदान को चिन्हित करने के लिए पिछले दो-तीन दशकों से दिल्ली से लेकर पूरे भारत में सावित्रीबाई फुले के जन्मदिन 3 जनवरी को ‘भारतीय शिक्षा दिवस’ और उनके परिनिर्वाण 10 मार्च को ‘भारतीय महिला दिवस’ के रुप में मनाता आ रहा है —
— परंतु अफसोस तो यह है कि इस ‘जाति ना पूछो साधु की पूछ लीजिए ज्ञान’ वाले देश में जाति के आधार पर ही ज्ञान की पूछ होती है और प्रतिभाओं का सम्मान होता है। हमेशा जाति के आधार पर यह पुरस्कार, सम्मान और मौके ऊंची जाति के लोगों को आराम से मिलते रहे हैं और यदि ऐसा नहीं है तो सवाल यह कि भारत में आज भी ‘शिक्षक दिवस’ सावित्रीबाई फुले के नाम पर ना मनाकर अन्य के नाम पर क्यों मनाया जाता है? जबकि सावित्रीबाई फुले द्वारा स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में देश को दिया गया योगदान अतुलनीय है —
— राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले पूरे देश की महानायिका थी, माता सावित्रीबाई फुले जी के चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं,मै अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर — "इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपने लेख को अंतिम रूप देता हूं —
— शिक्षा की ज्योति जलाने वाली मदर इंडिया सावित्री फुले को शत्-शत् नमन एंव विनम्र श्रद्धांजलि —
{विशेष साभार-: बोलता हिंदुस्तान-By BH -January 3, 2019-boltahindustan.in,बहुजन समाज और उसकी राजनिति,मेरे संघर्षमय जीवन एवं बहुजन समाज का मूवमेंट,दलित दस्तक,लेखक विकिपीडिया,फारवर्ड प्रेस,बीबीसी न्यूज}
 —— वो थे इसलिए आज हम है ——
—— यारों अगर भीम न होते तो बहुजन समाज और महिलाओं का मान सम्मान न होता अगर भीम न होते तो इस देश की मुखिया कोई महिला न होती,ये सूट बूट वाले साहब न होते शोषितों वंचित समाज में ये ऐसो आराम के समान न होते ये आलिशान महल न होते ——
   —— अगर इस भारत भूमि पर भीम न होते तो ये बड़ी बड़ी गाडियां, ये शोहरत ये इज्जत, ये अफसरशाही, सत्ता का स्वाद,न होता,ये उस सूर्य कोटि महापुरुष परमपूज्य 
बाबा साहेब की देन है जिन्होंने अपने समाज को गुलामी से आजाद कराने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर
 कर दिया ——
—— ऐसे महान शख्सियत के चरणों में शत शत नमन करता हूं, मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर वो बाबा थे जिन्होंने अपने समाज के बेटों को बचाने के लिए अपने बच्चों, पत्नी की कुर्बानी दे दी थी समाज के लिए ——
—— जरा हम लोग सोचे कि हमने क्या किया बाबा साहेब के लिए बाबा साहेब की पूजा तो हम बड़ी शिद्दत से करते हैं
ले उनकी बातों को नहीं मानते हैं ऐसे महान शख्सियत,आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक के चरणों में शत शत प्रणाम करता हूं ——
—  तो ऐसे थे हमारे आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर — 
—— साथियों आज वे हमारे बीच नही है, पर उनके द्वारा किये गए कार्यों,संघर्षों और उनके उपदेशों से हमेशा वे हमारे बीच जीवंत है। संविधान के रचयिता और ऐसे अद्वितीय समाज सुधारक को हमारा कोटि-कोटि नमन ——
 — आधुनिक भारत के महानतम समाज सुधारक और सच्चे
 महानायक, लेकिन”भारतीय जातिवादी-मानसिकता ने सदा ही इस महापुरुष की उपेक्षा ही की गई |भारत में शायद ही कोई दूसरा व्यक्ति ऐसा हो, जिसने देश के निर्माण,उत्थान और प्रगति के लिए थोड़े समय में इतना कुछ कार्य किया हो, जितना बाबासाहेब आंबेडकर जी ने किया है और शायद ही कोई दूसरा व्यक्ति हो, जो निंदा, आलोचनाओं आदि का उतना शिकार हुआ हो,जितना बाबासाहेब आंबेडकर जी हुए थे —
—— बाबासाहेब आंबेडकर जी ने भारतीय संविधान के तहत कमजोर तबके के लोगों को जो कानूनी हक दिलाये है। इसके लिए बाबा साहेब आंबेडकर जी को कदम-कदम पर काफी संघर्ष करना पड़ा था ——
—— आवो जानें पे बैक टू सोसायटी क्या ——
—— ऐ मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय,ज्ञान,बुद्धि, पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो ——
—— तुम्हारें अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए मैं दुबारा नहीं आऊंगा,ये क्रांति का रथ संघर्षो का कारवां ,जो मैं बड़े दुखों,कष्टों को सहकर यहाँ तक ले आया हूँ,अब आगे तुम्हे ही ले जाना है  ——
—— साथियों बाबा साहेब जी अपने अंतरिम दिनोँ में अकेले रोते हुऐ पाए गए। बाबा साहेब अम्बेडकर जी से जब काका कालेलकर कमीशन 1953 में मिलने के लिए गया ,तब कमीशन का सवाल था कि आपने पूरी जिन्दगी पिछड़े,शोषित,वंचित वर्ग समाज  के उत्थान के लिए लगा दी काका कालेकर कमीशन ने पूछा बाबा साहेब जी आपकी राय में क्या किया जाना चाहिए बाबा साहेब ने जवाब दिया कि पिछड़े,शोषित,वंचित समाज का उत्थान करना है तो इनके अंदर बड़े लोग पैदा करने होंगें ——
—— काका कालेलकर कमीशन के सदस्यों को यह बात समझ नहीं आई  तो उन्होने फिर सवाल किया “बड़े लोग से आपका क्या तात्पर्य है ? " बाबा साहेब जी ने जवाब दिया कि अगर किसी समाज में 10 डॉक्टर , 20 वकील और 30 इन्जिनियर पैदा हो जाऐ तो उस समाज की तरफ कोई आंख ऊठाकर भी देख नहीं सकता !"
—— इस वाकये के ठीक 3 वर्ष बाद 18 मार्च 1956 में आगरा के रामलीला मैदान में बोलते हुऐ बाबा साहेब ने कहा "मुझे पढे लिखे लोगों ने धोखा दिया। मैं समझता था कि ये लोग पढ लिखकर अपने समाज का नेतृत्व करेगें , मगर मैं देख रहा हुँ कि  मेरे आस-पास बाबुओं की भीड़ खड़ी हो रही है जो अपना ही पेट पालने में लगी है !" 
—— साथियों बाबा साहेब अपने अन्तिम दिनो में अकेले रोते हुए पाए गए ! जब वे सोने की कोशिश करते थे तो उन्हें नींद नहीं आती थी,अत्यधिक परेशान रहने वाले थे बाबा साहेब के निजी सचिव  नानकचंद रत्तु ने बाबा साहेब जी से सवाल पुछा कि , आप इतना परेशान क्यों रहते है बाबा साहेब जी ? ऊनका जवाब था , " ——
—— नानकचंद , ये जो तुम दिल्ली देख रहो हो अकेली दिल्ली में 10,000 कर्मचारी ,अधिकारी यह केवल अनुसूचित जाति के है  ! जो कुछ साल पहले शून्य थे मैँने अपनी जिन्दगी का सब कुछ दांव पर लगा दिया,अपने लोगों में पढ़े लिखे लोग पैदा करने के लिए क्योंकि  मैं जानता था कि जब मैं अकेल पढ लिख कर इतना काम कर सकता हुँ  अगर हमारे हजारों लोग पढ लिख जायेगें तो बहुजन समाज में कितना बड़ा परिवर्तन आयेगा लेकिन नानकचंद,मैं जब पुरे देश की तरफ निगाह दौड़ाता हूँ हूँ तो मुझे कोई ऐसा  नौजवान नजर नहीं आता है,जो मेरे कारवाँ को आगे ले जा सकता है नानकचंद,मेरा शरीर मेरा साथ नहीं दे रहा है ,जब मैं अपने मिशन के बारे में सोचता हुँ,तो मेरा सीना दर्द से फटने लगता है ——
—— जिस महापुरुष ने अपनी पुरी जिन्दगी,अपना परिवार ,बच्चे आन्दोलन की भेँट चढाए,जिसने पुरी जिन्दगी इस विश्वास में लगा दी  कि , पढा -लिखा वर्ग ही अपने शोषित वंचित भाइयों को आजाद करवा सकता हैं जिन्होंने अपने लोगों को आजाद कर पाने का मकसद अपना मकसद बनाया था,क्या उनका सपना पूरा हो गया ? आपके क्या फर्ज  बनते हैं समाज के लिए ?
—— सम्मानित साथियों जरा सोचो आज बाबा साहेब की वजह से हम ब्रांडेड कपड़े, ब्रांडेड जूते, ब्रांडेड मोबाइल, ब्रांडेड घड़ियां हर कुछ ब्रांडेड इस्तेमाल करने के लायक बन गए हैं बहुत सारे लोग बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू, शराब पर सैकड़ों रुपये बर्बाद करते हैं ! इस पर औसतन 500 रुपये खर्च आता है,चाउमीन, गोलगप्पे, सूप आदि पर हरोज 20 से 50 रुपये खर्च आता है। महिने में ओसतन 600 से 1500 रुपये तक खर्च हो सकते हैं ——
—— बाबा साहेब के अधिकारों,संघर्षो,प्रावधानों की वजह से जो लोग इस लायक हो गए हैं  हम लोगों पर बाबा साहेब ने विश्वास नहीं किया क्योंकि हमने बाबा साहेब के साथ विश्वासघात किया था ! उनके द्वारा दिखाए गए सपनों से हम दूर चले गए नौकरी आयी और आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक बाबा साहेब अम्बेडकर जी को भूल गए —— 
——"हमारे उपर बाबा साहेब का बहुत बड़ा कर्ज है, 
क्या आप उसे उतार सकते हैं,नहीं रत्तीभर भी नहीं हम जिस शख्स ने इस देश के शोषित,वंचित, पिछले, समाज,सर्वसमाज,महिलाओं भारतवर्ष के लिए अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी,अपने बच्चे,पत्नी अपने सुख चैन सब कुछ कुर्बान कर दिया जरा सोचो किसके लिए आप लोगों के लिए और हम लोग क्या कर रहें हैं टीवी,बीवी में मस्त है मिशन को भूल गये ——
—— लेकिन हमें फिर से पहले की तरह बाबा साहेब को धोखा नहीं देना चाहिए,पढ़े-लिखे लोगो अपने उपर से धोखेबाज का लेबल उतारो और बाबा साहेब के मिशन को आगे बढ़ाओ ——
——आपके बीड़ी, सिगरेट पर खर्च होने वाले 15 रुपये से न जाने कितने बच्चों को शिक्षा मिल सकती है,आपके फास्टफूड पर खर्च होने वाले 50 रुपये से न जाने कितने गरीब लोगों को दवाई मिल सकती है !आपके इन पैसों से न जाने कितने मिशनरी साथियों का खर्च चल रहा है जो पूरा जीवन समाज सेवा मे लगा रहे हैं ——
—— जरा अपने दिल पर हाथ रख कर कहो तुम क्या बाबा साहेब के पे बैक टू सोसाइटी सिद्धांत पर चल रहे हो ——
—— केवल भंडारे देना,चंदा देना,कार्यक्रम करना,ठंडे पानी की स्टाल लगाना पे बैक टू सोसाइटी नहीं है ——
——अपने जैसे सक्षम लोग पैदा करना पे बैक टू सोसाइटी है गरीब बच्चों को शिक्षित करना पे बैक टू सोसाइटी है,शिक्षित लोगों को नौकरियां दिलाना डाक्टर है ——
——बहुजनों को वैज्ञानिक,इंजिनियर,वकील,शिक्षक,डाक्टर इत्यादि बनाना पे बैक टू सोसाइटी है.बाबा साहेब के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए लगे हुए मिशनरियों को मदद देना असली पे बैक टू सोसाइटी है ——
—— आप जो पोजिशन पर है आपका फर्ज बनता है कि मेरे समाज का हर बच्चा उस पोजिशन पर पहुंचे यह पे बैक टू सोसाइटी है,अतः हम पढे-लिखे, नौकरीपेशा समाज से अपील करते हैं कि आप अपने उपर लगे धोखेबाज के लेबल को उतारने की कोशिश करें आपने ग़ैर-भाई बहनों के पास जाओ,उनकी ऊपर उठने में मदद करें,अपने उद्योग धंधे, व्यापार आदि शुरू करें, अपने आप को बेरोजगार बहुजनों के लिए रोजगार की व्यवस्था करें,अपना व्यवसाय शुरू करें, अपने समाज का पैसा अपने समाज में रोकें ——
 —— प्रयत्न करें,जब तक बाबा साहेब का पे बैक टू सोसाइटी  का सिद्धांत लागू नहीं होगा तब तक देश से गरीबी नहीं मिटेगी ——
——  साभार-: बहुजन समाज और उसकी राजनिति,मेरे संघर्षमय जीवन एवं बहुजन समाज का मूवमेंट {संदर्भ- सलेक्टेड ऑफ डाँ अम्बेडकर – लेखक डी.सी. अहीर पृष्ठ क्रमांक 110 से 112 तक के भाषण का हिन्दी अनुवाद), श्री गुरु रविदास जन-जागृति एवं शिक्षा समिति,(राजी),दलित दस्तक ,समय बुद्धा,,पुस्तक-'डॉ.बाबासाहेब अंबेडकर के महत्वपूर्ण संदेश एवं विद्वत्तापूर्ण कथन' के थर्ड कवर पृष्ठ से,लेखक-नानकचंद रत्तू-अनुवादक-गौरव कुमार रजक, अंकित कुमार गौतम,संपादन-अमोल वज्जी,प्रकाशक-डी के खापर्डे मेमोरियल ट्रस्ट (पब्लिकेशन डिवीजन)527ए, नेहरू कुटिया, निकट अंबेडकर पार्क, कबीर बस्ती, मलका गंज, नई दिल्ली -07, विकिपीडिया} ——
 ——"सामाजिक क्रांति के अग्रदूत,मानवता की प्रचारक महामानव बाबा साहेब अम्बेडकर जी के  चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं ——
— साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए आधुनिक भारत के निर्माता बाबासाहेब अम्बेडकर जी ने वह कर दिखाया जो उस दौर में सोच पाना भी मुश्किल था —  
— साथियों आज हमें अगर कहीं भी खड़े होकर अपने विचारों की अभिव्यक्ति करने की आजादी है,समानता का अधिकार है तो यह सिर्फ और सिर्फ परमपूज्य बाबासाहेब आंबेडकर जी के संघर्षों से मुमकिन हो सका है.भारत वर्ष का जनमानस सदैव बाबा साहेब डा भीमराव अंबेडकर जी का कृतज्ञ रहेगा.इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी बात खत्म करता हूं। सामाजिक न्याय के पुरोधा तेजस्वी क्रांन्तिकारी शख्शियत परमपूज्य बोधिसत्व भारत रत्न बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं 
      — जिसने देश को दी नई दिशा””…जिसने आपको नया जीवन दिया वह है आधुनिक भारत के निर्माता बाबा साहेब अम्बेडकर जी का संविधान —
  — सच  अक्सर कड़वा लगता है। इसी लिए सच बोलने वाले भी अप्रिय लगते हैं। सच बोलने वालों को इतिहास के पन्नों में दबाने का प्रयास किया जाता है, पर सच बोलने का सबसे बड़ा लाभ यही है, कि वह खुद पहचान कराता है और घोर अंधेरे में भी चमकते तारे की तरह दमका देता है। सच बोलने वाले से लोग भले ही घृणा करें, पर उसके तेज के सामने झुकना ही पड़ता है ! इतिहास के पन्नों पर जमी धूल के नीचे ऐसे ही बहुजन महापुरुषों का गौरवशाली इतिहास दबा है —
     ―मां कांशीराम साहब जी ने एक एक बहुजन नायक को बहुजन से परिचय कराकर, बहुजन समाज के लिए किए गए कार्य से अवगत कराया सन 1980 से पहले भारत के  बहुजन नायक भारत के बहुजन की पहुँच से दूर थे,इसके हमें निश्चय ही मान्यवर कांशीराम साहब जी का शुक्रगुजार होना चाहिए जिन्होंने इतिहास की क्रब में दफन किए गए बहुजन नायक/नायिकाओं के व्यक्तित्व को सामने लाकर समाज में प्रेरणा स्रोत जगाया ——
   ―इसका पूरा श्रेय मां कांशीराम साहब जी को ही जाता है कि उन्होंने जन जन तक गुमनाम बहुजन नायकों को पहुंचाया, मां कांशीराम साहब के बारे में जान कर मुझे भी लगा कि गुमनाम बहुजन नायकों के बारे में लिखा जाए !
   —— ऐ मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय ज्ञान,पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो ——
      —―साथियों एक बात याद रखना आज करोड़ों लोग जो बाबासाहेब जी,माँ रमाई के संघर्षों की बदौलत कमाई गई रोटी को मुफ्त में बड़े चाव और मजे से खा रहे हैं ऐसे लोगों को इस बात का अंदाजा भी नहीं है जो उन्हें ताकत,पैसा,इज्जत,मान-सम्मान मिला है वो उनकी बुद्धि और होशियारी का नहीं है बाबासाहेब जी के संघर्षों की बदौलत है ——
      —– साथियों आँधियाँ हसरत से अपना सर पटकती रहीं,बच गए वो पेड़ जिनमें हुनर लचकने का था ——
       ―तमन्ना सच्ची है,तो रास्ते मिल जाते हैं,तमन्ना झूठी है,तो बहाने मिल जाते हैं,जिसकी जरूरत है रास्ते उसी को खोजने होंगें निर्धनों का धन उनका अपना संगठन है,ये मेरे बहुजन समाज के लोगों अपने संगठन अपने झंडे को मजबूत करों शिक्षित हो संगठित हो,संघर्ष करो !
      ―साथियों झुको नही,बिको नहीं,रुको नही, हौसला करो,तुम हुकमरान बन सकते हो,फैसला करो हुकमरान बनो"
       ―सम्मानित साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए !
        ―सभी अम्बेडकरवादी भाईयों, बहनो,को नमो बुद्धाय सप्रेम जयभीम! सप्रेम जयभीम !!
             ―बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर  जी ने कहा है जिस समाज का इतिहास नहीं होता, वह समाज कभी भी शासक नहीं बन पाता… क्योंकि इतिहास से प्रेरणा मिलती है, प्रेरणा से जागृति आती है, जागृति से सोच बनती है, सोच से ताकत बनती है, ताकत से शक्ति बनती है और शक्ति से शासक बनता है !”
        ― इसलिए मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर आप लोगो को इतिहास के उन पन्नों से रूबरू कराने की कोशिश कर रहा हूं जिन पन्नों से बहुजन समाज का सम्बन्ध है जो पन्ने गुमनामी के अंधेरों में खो गए और उन पन्नों पर धूल जम गई है, उन पन्नों से धूल हटाने की कोशिश कर रहा हूं इस मुहिम में आप लोगों मेरा साथ दे, सकते हैं !
           ―पता नहीं क्यूं बहुजन समाज के महापुरुषों के बारे कुछ भी लिखने या प्रकाशित करते समय “भारतीय जातिवादी मीडिया” की कलम से स्याही सूख जाती है —
— इतिहासकारों की बड़ी विडम्बना ये रही है,कि उन्होंने बहुजन नायकों के योगदान को इतिहास में जगह नहीं दी इसका सबसे बड़ा कारण जातिगत भावना से ग्रस्त होना एक सबसे बड़ा कारण है इसी तरह के तमाम ऐसे बहुजन नायक हैं,जिनका योगदान कहीं दर्ज न हो पाने से वो इतिहास के पन्नों में गुम हो गए —
     ―उन तमाम बहुजन नायकों को मैं अमित गौतम जंनपद   रमाबाई नगर,कानपुर कोटि-कोटि नमन करता हूं !
जय रविदास
जय कबीर
जय भीम
जय नारायण गुरु
जय सावित्रीबाई फुले
जय माता रमाबाई अम्बेडकर जी
जय ऊदा देवी पासी जी
जय झलकारी बाई कोरी
जय बिरसा मुंडा
जय बाबा घासीदास
जय संत गाडगे बाबा
जय पेरियार रामास्वामी नायकर
जय छत्रपति शाहूजी महाराज
जय शिवाजी महाराज
जय काशीराम साहब
जय मातादीन भंगी जी
जय कर्पूरी ठाकुर 
जय पेरियार ललई सिंह यादव
जय मंडल
जय हो उन सभी गुमनाम बहुजन महानायकों की जिंन्होने अपने संघर्षो से बहुजन समाज को एक नई पहचान दी,स्वाभिमान से जीना सिखाया !    
              अमित गौतम
             युवा सामाजिक
                कार्यकर्ता         
              बहुजन समाज
  जंनपद-रमाबाई नगर कानपुर
           सम्पर्क सूत्र-9452963593













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