प्रथम स्वतंत्रता सेनानी,आदिवासी जननायक अमर शहीद,शहादत की कभी न बुझने वाली मशाल,बहुजन महायोद्धा बाबा तिलका मांझी के शहादत दिवस पर शत्-शत् नमन एंव विनम्र श्रद्धांजलि

     
   

13,जनवरी,1785
   वो थे इसलिए आज हम हैं 
       इतिहास के पन्नों से 
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—  प्रथम स्वतंत्रता सेनानी,आदिवासी जननायक अमर शहीद,शहादत की कभी न बुझने वाली मशाल,बहुजन महायोद्धा बाबा तिलका मांझी के शहादत दिवस पर शत्-शत् नमन एंव विनम्र श्रद्धांजलि —
— बाबा तिलका मांझी ने आदिवासियों द्वारा किये गए प्रसिद्ध ‘आदिवासी विद्रोह’ का नेतृत्त्व करते हुए 1771 से 1784 तक अंग्रेजों से लम्बी लड़ाई लड़ी तथा 1778 ई.में पहाडिय़ा सरदारों से मिलकर रामगढ़ कैंप को अंग्रेजों से मुक्त कराया.
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— शायद आप लोगों न पता हो आज भारत के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी अमर शहीद, आदिवासी जननायक,बहुजन महायोद्धा बाबा तिलका मांझी का शहादत दिवस है—
— जब हौसला बना लिया ऊंची उड़ान का फिर देखना  फिजूल है,कद आसमान का —                           
— जब जरूरत थी चमन को तो लहू हमने दिया अब बहार आई तो कहते हैं तेरा काम नहीं —
— दर्द सबके एक है,मगर हौंसले सबके अलग अलग है,कोई हताश हो के बिखर गया तो कोई संघर्ष करके निखर गया —
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— बाबा तिलका मांझी ऐसे प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने भारत को ग़ुलामी से मुक्त कराने के लिए अंग्रेज़ों के विरुद्ध सबसे पहले आवाज़ उठाई थी। बाबा तिलका मांझी भारतवर्ष के सच्चे अमर सपूत के रूप में सदा याद किये जाते रहेंगे —
 — जागो बहुजन समाज जागो अपने इतिहास को पढ़ो —
  — बहुजन समाज के सम्मानित साथियों एंव माता बहनों को सबसे पहले धम्म प्रभात,नमो बुद्धाय,जय भीम मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर, कानपुर आप लोगों को इतिहास के उन पन्नों से रूबरू करवाना चाहता हूँ ! जिससे आप लोग शायद अनिभिज्ञ हो —
       — जय बाबा अमर शहीद तिलका मांझी —
— आज हम बात कर रहें हैं अमर शहीद,आदिवासी,बहुजन महायोद्धा,महान देशभक्त, प्रथम स्वतंत्रता सेनानी बाबा तिलका मांझी जी की जिन्होंने 1857 की क्रांति से 100 वर्ष पहले ही अंग्रेजों,सामंतवादी,सूदखोरो के खिलाफ हथियार उठा लिए थे —
— बांग्ला की सुप्रसिद्ध लेखिका महाश्वेता देवी ने बाबा तिलका मांझी के जीवन और विद्रोह पर बांग्ला भाषा में एक उपन्यास 'शालगिरर डाके' की रचना की है ! अपने इस उपन्यास में महाश्वेता देवी ने तिलका मांझी को मुर्मू गोत्र का संथांल आदिवासी बताया है ! यह उपन्यास हिंदी में 'शालगिरह की पुकार पर' नाम से अनुवादित और प्रकाशित हुआ है —
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— हिंदी के उपन्यासकार राकेश कुमार सिंह ने  अपने उपन्यास ‘हूल पहाड़िया’ में तिलका मांझी को जबरा पहाड़िया के रूप में चित्रित किया है। ‘हूल पहाड़िया’ उपन्यास 2012 में प्रकाशित हुआ है —
— अमर शहीद, आदिवासी जननायक,महान स्वतंत्रता सेनानी तिलका मांझी के इस बलिदान को इतिहासकारों ने भले ही नजरअंदाज़ कर दिया हो,लेकिन राजमहल के आदिवासी आज भी उनकी याद में लोकगीत गुनगुनाते है, उनके साहस की कथाएं सुनाते है —
— पसीने की स्याही से जो लिखते हैं इरादें को, उसके मुकद्दर के सफ़ेद पन्ने कभी कोरे नही होते —
— अमर शहीद, प्रथम स्वतंत्रता सेनानी आदिवासी,जननायक,बहुजन महायोद्धा बाबा तिलका मांझी उनके दिलो में ज़िन्दा हैं  —
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— बाबा तिलका मांझी का नाम भले ही इतिहास में दर्ज़ नहीं, लेकिन बिहार के भागलपुर ज़िले में पिछली दो सदी से उनका नाम याद किया जाता रहा है। आज झारखण्ड और बिहार राज्यों में उनके नाम पर हाट, मुहल्लों और चौक का नामकरण किया गया है
— बिहार के भागलपुर में तिलका मांझी के नाम पर 12 जुलाई 1960 में तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय नामकरण किया गया था —
— अमर शहीद बाबा तिलका मांझी जी ने गरीबों,मजलूमों शोषितों, वंचितों को जालिम जमींदारों एंव अंग्रेजी हुकूमत से भारतवर्ष की पावन भूमि को गुलामी से मुक्त कराने के लिए आजीवन संघर्ष किया और 13,जनवरी,1785 को देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी —
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— आज उनका शहादत दिवस है,आवो हम सभी मिलकर उन्हें याद करें और विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करें —
— बहुजन समाज के सम्मानित साथियों जब भी देश की जंगे आजादी उसके संघर्ष की बात की बात होती है, तो अक्सर उच्च वर्ग के लोगों के नाम सामने आते हैं.इतिहास के पन्ने पलटने पर भी शोषित,वंचित,समाज को मायूसी ही लगती है —
 — असल में एक सोची-समझी साजिश के तहत इतिहासकारों ने जंगे आजादी की लड़ाई के इतिहास से बहुजनों का नाम और उनके द्वारा किए गये संघर्षो को मिटा दिया या फिर उनकी पहचान जाहिर नहीं की —
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— शिक्षा के प्रसार के बाद अब इस समाज के लोग आजादी के अपने नायकों को ढूंढ़-ढूंढ़ कर सामने लाने लगे हैं ,अंग्रेजों की गुलामी से देश को आजाद कराने में न जाने कितने शोषित, वंचित,पिछड़ो और आदिवासियों ने जान की बाजी लगा दी.अपना लहू बहाया और शहीद हो गए —
— ऐसे वीर योद्धाओं को शत्-शत् नमन —
— भारत के औपनिवेशिक युद्धों के इतिहास में जबकि पहला आदिविद्रोही होने का श्रेय पहाड़िया आदिम आदिवासी समुदाय के लड़ाकों को माना जाता हैं जिन्होंने राजमहल,झारखंड की पहाड़ियों पर ब्रितानी हुकूमत से लोहा लिया इन पहाड़िया लड़ाकों में सबसे लोकप्रिय आदिविद्रोही जबरा या जौराह पहाड़िया उर्फ तिलका मांझी हैं —
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— अमर शहीद बाबा तिलका मांझी जी एक ऐसे योद्धा का नाम है जिंन्होने शोषण के विरूद्ध आवाज बुलंद की और उपेक्षितों को उनका हक दिलाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया —
— स्वतंत्रता दिवस के दिन इन आदिवासी वीर सपूतों और वीरांगनाओं को भी याद किया जाए, इनके अदम्य साहस और वीरता को श्रद्धांजलि दी जाए और उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान दिया जाए —
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— अमर शहीद, बाबा तिलका मांझी का जीवन संघर्ष विस्तार से —
— 1750 में तिलकपुर गावं में जन्मे बाबा तिलका मांझी को, भारतीय इतिहासकारों की जातिवादी मानसिकता के कारण इतिहास में कहीं जगह नहीं मिली.बाबा तिलका मांझी 'भारतीय स्वाधीनता संग्राम' के पहले शहीद थे। इन्होंने अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध एक लम्बी लड़ाई छेड़ी थी —
—  संथालों द्वारा किये गए प्रसिद्ध 'संथाल विद्रोह' का नेतृत्त्व भी तिलका माँझी ने किया था ! तिलका माँझी का नाम देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्रामी और शहीद के रूप में लिया जाता है ! अंग्रेज़ी शासन की बर्बरता के जघन्य कार्यों के विरुद्ध उन्होंने जोरदार तरीके से आवाज़ उठायी थी। किशोर जीवन से ही अपने परिवार तथा जाति पर उन्होंने अंग्रेज़ी सत्ता का अत्याचार देखा था —
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— गरीब आदिवासियों की भूमि, खेती, जंगली वृक्षों पर अंग्रेज़ी शासक अपना अधिकार किये हुए थे.आदिवासियों और पर्वतीय सरदारों की लड़ाई रह-रहकर अंग्रेज़ी सत्ता से हो जाती थी लेकिन पर्वतीय जमींदार वर्ग अंग्रेज़ी सत्ता का खुलकर साथ देता था.बचपन से ही वह तीर चलाने, जंगली जानवरों का शिकार करने ,नदियों को पार करने और ऊँचे ऊँचे पेड़ो पर चढ़ने में कुशल हो गया था ! वह अंग्रेजो द्वारा अपनी जाति,अपने समाज का शोषण सहन नही कर पा रहे थे.उसने संकल्प कर लिया था कि वह अपनी जाति को अंग्रेजो के अत्याचार से मुक्त करेगा | उसके सामने एक ही विकल्प था और वह था अंग्रेजो के साथ युद्ध —
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— एक दिन तिलका मांझी ने 'बनैचारी जोर' नामक स्थान से अंग्रेज़ों के विरुद्ध विद्रोह शुरू कर दिया.साथियों बाबा तिलका मांझी ने किसी धार्मिक भावना को ठेस लगने के कारण अंग्रेज़ों के खिलाफ जंग की शुरुआत नहीं की थी.उन्होंने अन्याय और गुलामी के खिलाफ जंग छेड़ी थी। तिलका मांझी राष्ट्रीय भावना जगाने के लिए भागलपुर में स्थानीय लोगों को सभाओं में संबोधित करते थे। जाति और धर्म से ऊपर उठकर लोगों को राष्ट्र के लिए एकत्रित होने का आह्वान करते थे —
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— अमर शहीद तिलका मांझी ने राजमहल की पहाड़ियों में अंग्रेज़ों के खिलाफ कई लड़ाईयां लड़ी। सन 1770 में पड़े अकाल के दौरान तिलका मांझी के नेतृत्व में संतालों ने सरकारी खज़ाने को लूट कर गरीबो में बांट दिया ! जिससे गरीब तबके के लोग तिलका मांझी से प्रभावित हुए 
और उनके साथ जुड़ गए इसके बाद तिलका मांझी ने अंग्रेज़ों और सामंतो पर हमले तेज़ कर दिए। हर जगह तिलका मांझी की जीत हुई —
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— अंग्रेज़ों और साहूकारों के खिलाफ जंग शुरू करने वाले ‘बाबा तिलका मांझी’ —
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—1784 की वह सुबह जब लालिमा ने अभी धरती को स्पर्श ही किया था। घोड़े की टापों की आवाज़ धीरे-धीरे बढ़ने लगी थी। उन दिनों झारखंड का क्षेत्र ‘साहेबगंज’ बंगाल प्रांत का हिस्सा हुआ करता था। आज राजमहल की पहाड़ियों में कोई हलचल नहीं थी। राजमहल की पहाड़ी आज ‘हिल रेंजर बटालियन’ के कदमताल से गूंज रहा था —
— उनके कदमों से धूल का अंबार उड़ता हुआ नज़र आ रहा था। कुछ घंटे चलने के बाद ‘हिल रेंजर बटालियन’ की टुकड़ी ‘भागलपुर बैरक’ की ओर बढ़ रही थी। साहेबगंज के संताल लोगों को यह जानकारी नहीं थी कि कल रात अंग्रेज़ टुकड़ी पहाड़ी की ओर गई थी। उन्हें अंदाज़ा नहीं था कि कुछ तो गड़बड़ होने वाला है —
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— सुबह-सुबह लोग सड़कों पर निकल कर आ गए थे आस-पास के संताल गांवों से हज़ारों गरीब असहाय संताल स्त्री-पुरुष निकल कर भागलपुर बैरक पहुंच गए थे। रुदन नाद और कोलाहल बढ़ गई थी.चार घोड़े से बांधकर ‘हिल रेंजर बटालियन’ के जवान उस व्यक्ति को जानवरों की तरह घसीटते हुए ले जा रहे थे। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे समय थम सा गया हो। पसीने और रक्त से सना उस व्यक्ति का काला देह, ललाट पर दर्द और पीड़ा साफ दिखाई पड़ रहा था.उसकी विवशता और लाचारी की वेदना सहन से बाहर थी। उसके देह की हड्डियां और पसलियां उस काले खाल से बाहर दिख रही थी। रक्त से सना और असीम तकलीफों को चरम सीमा तक सहने वाला वह व्यक्ति ‘हिल रेंजर बटालियन’ और ‘अंग्रेज़ सरकार’ की नज़र में एक ‘विद्रोही’ था —
— अंग्रेज़ों, साहूकारों और दुष्ट जागीदारों की नज़रो में सिर्फ एक खतरनाक बागी था क्योंकि इस व्यक्ति ने उनके खिलाफ बगावत करने की हिमाकत की थी —
— आज उस ‘विद्रोही बागी’ की आवाज़ को खत्म कर दिया जाना था। उस पर आरोप था कि उसने एक अंग्रेज़ कमांडर को अपने घातक तीर से मार डाला था और साहूकरों-जमींदारों के माल को लूट कर भूखे, गरीब आदिवासियों और स्थानीय लोगों को बांट दिया करता था — — शायद वह उन गरीब मजलूमों का ‘रॉबिन हुड’ था। गरीब जनता के बीच वह व्यक्ति बहुत मशहुर था —
— हिल रेंजर बटालियन की यह ‘टुकड़ी’ छावनी में आकर रुकी। लोगों का हुजूम उस व्यक्ति को देखने के लिए उमड़ पड़ा और अचानक भीड़ से आवाज़ आई, तिलका….तिलका…… —
— बहरहाल,भीड़ नियंत्रण से बाहर हो रही थी और फौज़ निरीह जनता को नियंत्रण में करने के लिए उन पर डंडे चला रही थी। माहौल बिल्कुल अफरा-तफरी का हो चुका था —
— कड़कती धूप मे ‘तिलका’ का निस्तेज देह पड़ा हुआ था। धूल-मिट्टी और लहू से सना वह काया ने ज़ुल्म और अन्याय के खिलाफ प्रथम चिंगारी लगा दी थी.आज़ादी के उस दीवाने के अंदर गज़ब की इच्छा शक्ति थीउसकी लाल पड़ी आंखे मानो कुछ कह रही थींउसने दुष्ट साहूकारों, जमींदारो और क्रूर अंग्रेज़ी शासन के खिलाफ जंग का खुलेआम ऐलान कर दिया था। उसकी इच्छा शक्ति इतनी थी कि वह निर्भय और दृढ़ संकल्पित था। उसके चेहरे पर मौत का ज़रा सा भी भय नहीं दिख रहा था —
— 1770 के महा अकाल ने बंगाल को जैसे हिला कर रख दिया था.प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में वहां के गरीब किसानों एवं मज़दूरो के पास खाने के लिए एक दाना तक नही था 1772 में ‘वारेन हेस्टिंग्स’ की रिपोर्ट में कहा गया था कि प्रभावित क्षेत्रों के एक तिहाई लोग इस अकाल में मारे गए थे. 
— दूसरी तरफ अंग्रेज़ सरकार का फरमान था कि लगान देना ही पड़ेगा। आखिर क्या करता तिलका? विद्रोह के अलावा उसके पास कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा था। इधर जमींदारो एवं साहूकारों का कर्ज़ दोगुना-चौगुना होता जा रहा था —
— बाबा तिलका मांझी जब बचपन की दहलीज़ को पार करते हुए यौवन में कदम रख रहा था तब कई दफा भुखमरी से उसका सामना हुआ था। जवानी की जोश ने उसे अपने चारों ओर हो रहे अन्याय और अत्याचार के खिलाफ ‘विद्रोही’ बना दिया था —
— हां, उसे एक आशा और विश्वास ज़रूर था कि उसकी मौत के बाद लोग आज़ादी की सांस ज़रूर लेंगे। अब कोई साहूकार या जागीदारी उससे दोगुना लगान नहीं मांगेगा। उसके लोग अपने खेतों में मेहनत करके उगाए अनाजों के बदले किसी साहूकार या जागीदार को लगान नहीं देंगे। उनके माँ-बहनों के साथ कोई अत्याचार और बलात्कार नहीं करेगा। उसे विश्वास था कि ज़ुल्म और अत्याचार का खात्मा होगा। उनके जल, जंगल और ज़मीन सुरक्षित रहेंगे। उनके पुरखों ने जंगलों और पहाड़ों को काट-काट कर खेती योग्य ज़मीन बनाई थी जिसे अब कोई छीन नहीं सकता था —
— ज़मीन पर पड़े निस्तेज देह में थोड़ी सुगबुगाहट हुई ही थी तभी एक आवाज़ आई “फायर” और गोलियां चलनी शुरू हो गई। इतने ही में ‘हिल रेंजर बटालियन’ की गोलियां आज़ादी के उस वीर दीवाने के देह को छलनी कर दिया। उसका रक्त भागलपुर की उस धरती को अभिषेक कर गया. 
— जनजाति विद्रोह —
— सन् 1784 में भारत के प्रथम ‘जनजाति विद्रोह’ का आगाज़ हो चुका था। बाबा तिलका मांझी ने विदेशी शासकों एवं उसके बेरहम रहनुमाओं, साहूकारों और ज़मींदारों के खिलाफ जंग शुरू कर दिया था लेकिन एक मुखबिर के कारण आज़ादी के इस दीवाने को धोखे से पकड़ लिया गया.उस समय भय और आतंक के माहौल में उन क्रूर शासकों को दया तक नहीं आई। मृत देह को बरगद के वृक्ष मे टांग दिया गया। चार दिनों तक उसका शव उसी वृक्ष मे टंगा रहा। ऐसा साहसी निडर आदिवासी अगुआ का नाम ‘तिलक मांझी’ था —
— एक ‘तिलका’ की मौत ने आने वाले युगों में कई ‘जनजाति विद्रोह’ को अंग्रेज़ों, साहूकारों और जागीदारों के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया। कोल विद्रोह, नागा विद्रोह, मुंडा विद्रोह, संताल विद्रोह और भील विद्रोह के ज़रिए जनजातियों ने क्रूर अंग्रेज़ी शासन,साहूकारों और जागीदारों के खिलाफ जंग छेड़ दिया.असंख्य आदिवासी वीरों ने अपनी जान की आहुती दी —
— भारतीय स्वाधीनता का प्रथम बलिदान —
— बिहार और झारखंड राज्य के आदिवासी समुदाय आज भी 1784 के वर्ष को भारतीय स्वाधीनता के प्रथम बलिदान के तौर पर भारत के अपने वीर शहीद ‘बाबा तिलका मांझी’ को हमेशा स्मरण करते हैं। उनका बलिदान हर पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि अन्याय जब आत्म-सम्मान और वजूद से जुड़ जाता है, तब सामाजिक-राजनीतिक विद्रोह का आगाज़ होता है –
— हमारा भारत देश हज़ारों लाखों कुर्बानियों और शहादतों के बाद गुलामी की जंज़ीरों से आज़ाद हुआ लेकिन आज आज़ादी के 70 वर्ष बाद भी नए भारत मे आदिवासी वीरों के शहादत और कुर्बानी को भुला दिया गया है। भारत के विभिन्न राज्यों में जहां-जहां आदिवासी समुदाय रहते हैं वे जल, ज़मीन और जंगल को बचाने के लिए सदियों से आहुति देते आए हैं और आज भी संघर्षरत हैं —
— नोट: लेख में प्रयोग किए गए तथ्य महाश्वेता देवी की किताब ‘सालगिरह की पुकार’ से लिए गए हैं —
— विशेष साभार-Youth Ki Awaaz —
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— भारतीय स्वाधीनता संग्राम के पहले विद्रोह शहीद तिलका माँझी ( मुर्मू )थे —
—  तिलका माँझी का जन्म 1750 ई. में हुआ था!
—  तिलका मँझी का जन्म तिलकपुर गाँव में हुआ था !
—  तिलका माँझी का जन्म संथाल परिवार में हुआ था !
— तिलका माँझी को अन्य जाबरा पहाड़िया नाम से जाना जाता है !
— तिलका माँझी के पिता का नाम सुंदरा मुर्मू था !
—  तिलका अंदोलन का नेतृत्व तिलका माँझी ने किया!
— तिलका माँझी के विद्रोह का मुख्य केंद्र था वनचरीजोर (भागलपुर) !
— तिलका आंदोलन 1783-85 ई. को तिलका मांझी ( मुर्मू ) के नेतृत्व में प्रारम्भ हुआ था !
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—  तिलका मांझी जी के आंदोलन से प्रभावित क्षेत्र संथाल परगना था !
— तिलका माँझी द्वारा गांव में विद्रोह का संदेश सखुवा पत्ता के माध्यम से भेजा जाता था !
— तिलका माँझी को पकड़वाने वाला पहाड़िया सरदार जउराह था !
—  तिलका माँझी को 1785 ई. में गिरफ्तार किया गया !
—  तिलका माँझी को 1785 ई. कोभागलपुर में फाँसी दी गई.तिलका माँझी को भागलपुर में बरगद के पेड़ पर लटकाकर फाँसी दी गई थी !
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— भागलपुर विश्वविद्यालय का नाम तिलका मांझी के नाम पर रखा गया है.देश की आजादी का पहला स्वतंत्रता संग्राम 1857 का माना जाता है.लेकिन अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल 1780-84 में ही बिहार के संथाल परगना में तिलका मांझी की अगुवाई में शुरू हो गया था. बाबा तिलका मांझी युद्ध कला में निपुण और एक अच्छे निशानेबाज थे ! इस वीर सपूत ने ताड़ के पेड़ पर चढ़कर तीर से कई अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया था —
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— जननायक बाबा तिलका मांझी ने आदिवासियों द्वारा किये गए प्रसिद्ध ‘आदिवासी विद्रोह’ का नेतृत्त्व करते हुए 1771 से 1784 तक अंग्रेजों से लम्बी लड़ाई लड़ी तथा 1778 ई. में पहाडिय़ा सरदारों से मिलकर रामगढ़ कैंप को अंग्रेजों से मुक्त कराया —
— तिलका मांझी भारत के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी हैं। 1857 की क्रांति से लगभग सौ साल पहले स्वाधीनता का बिगुल फूंकने वाले बाबा तिलका माँझी को इतिहास में खास तवज्जो नहीं दी गई —
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— अमर शहीद बाबा तिलका मांझी ने अंग्रेज़ों और सामंतो पर हमले तेज़ कर दिए। हर जगह तिलका मांझी की जीत हुई सन 1784 में तिलका मांझी ने भागलपुर पर हमला किया और 13 जनवरी 1784 में ताड़ के पेड़ पर चढ़कर घोड़े पर सवार अंग्रेज़ कलेक्टर ‘अगस्टस क्लीवलैंड’ को अपने विष-बुझे तीर का निशाना बनाया और मार गिराया —
— अंग्रेज कलेक्टर की मौत से ब्रिटिश सेना में आतंक मच गया। तिलका मांझी और उनके साथियों के लिए यह एक बड़ी कामयाबी थी —
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— जब तिलका मांझी और उनके साथी इस जीत का जश्न मना रहे थे तब रात के अंधेरे में अंग्रेज सेनापति आयरकूट ने हमला बोला लेकिन किसी तरह तिलका मांझी बच निकले और उन्होंने राजमहल की पहाड़ियों में शरण लेकर अंग्रेज़ों के खिलाफ छापेमारी जारी रखी। तब अंग्रेज़ों ने पहाड़ों की घेराबंदी करके तिलका मांझी तक पहुंचने वाली तमाम सहायता रोक दी ! मजबूरन तिलका मांझी को अन्न और पानी के अभाव के कारण पहाड़ों से निकल कर लड़ना पड़ा और एक दिन वो पकड़े गए —
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 — कहा जाता है कि बाबा तिलका मांझी को चार घोड़ों से घसीट कर भागलपुर ले जाया गया, मीलों घसीटे जाने के बावजूद वह पहाडिय़ा लड़ाका जीवित था ! उनकी देह भले ही खून से लथपथ थी लेकिन उनका मस्तिष्क तब भी क्रोध से दहक रहा था। उनकी लाल-लाल आंखें ब्रितानी राज को डरा रहीं थीं। 13,जनवरी,1785 को भागलपुर के चौराहे पर स्थित विशाल  बरगद के पेड़ से लटकाकर उन्हें फांसी दे दी गई थी —
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— जब बाबा अमर शहीद तिलका मांझी को फांसी दी गई तब भारत के  प्रथम शहीद मंगल पांडे जी का जन्म भी नहीं हुआ था.भारत के आज़ादी के बाद जब भारतीय सिनेमा की शुरुआत हुई तो स्वतंत्रता संग्राम से सम्बंधित कई फिल्में बनी और लोगों ने बड़ी सराहना की। लेकिन बड़े दुःख की बात है 
कि भारत के प्रथम शहीद तिलका मांझी पर बॉलीवुड ने आजतक  कोई फिल्म नहीं बनाई जिससे भारत के लोग जान पाते कि आदिवासी  क्षेत्रों में भी वीर साहसी और योद्धा पाये जाते हैं —
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— प्रथम स्वतंत्रता सेनानी अमर शहीद, बहुजन महायोद्धा बाबा तिलका मांझी जी के कार्यों ने उन्हें जाति-धर्म से ऊपर उठा दिया है। इस लिए वह हमेशा याद रखे जायेंगे —
—  इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपने लेख को अंतिम रूप देता हूं. शत्-शत् नमन बाबा तिलका मांझी को —
 — साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए —
— अमर शहीद, आदिवासी जननायक,प्रथम स्वतंत्रता सेनानी बाबा तिलका मांझी अमर रहे —
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— सच अक्सर कड़वा लगता है। इसी लिए सच बोलने वाले भी अप्रिय लगते हैं। सच बोलने वालों को इतिहास के पन्नों में दबाने का प्रयास किया जाता है, पर सच बोलने का सबसे बड़ा लाभ यही है, कि वह खुद पहचान कराता है और घोर अंधेरे में भी चमकते तारे की तरह दमका देता है। सच बोलने वाले से लोग भले ही घृणा करें, पर उसके तेज के सामने झुकना ही पड़ता है। इतिहास के पन्नों पर जमी धूल के नीचे ऐसे ही त्याग,समर्पण के एक तेजस्वी शख्सियत भारत के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी अमर शहीद, बहुजन महायोद्धा बाबा तिलका मांझी जी का नाम दबा है —    
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       —— वो थे इसलिए आज हम है ——
—— यारों अगर भीम न होते तो बहुजन समाज और महिलाओं का मान सम्मान न होता अगर भीम न होते तो इस देश की मुखिया कोई महिला न होती,ये सूट बूट वाले साहब न होते शोषितों वंचित समाज में ये ऐसो आराम के समान न होते ये आलिशान महल न होते ——
   —— अगर इस भारत भूमि पर भीम न होते तो ये बड़ी बड़ी गाडियां, ये शोहरत ये इज्जत, ये अफसरशाही, सत्ता का स्वाद,न होता,ये उस सूर्य कोटि महापुरुष परमपूज्य 
बाबा साहेब की देन है जिन्होंने अपने समाज को गुलामी से आजाद कराने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर
 कर दिया ——
—— ऐसे महान शख्सियत के चरणों में शत शत नमन करता हूं, मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर वो बाबा थे जिन्होंने अपने समाज के बेटों को बचाने के लिए अपने बच्चों, पत्नी की कुर्बानी दे दी थी समाज के लिए ——
—— जरा हम लोग सोचे कि हमने क्या किया बाबा साहेब के लिए बाबा साहेब की पूजा तो हम बड़ी शिद्दत से करते हैं
ले उनकी बातों को नहीं मानते हैं ऐसे महान शख्सियत,आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक के चरणों में शत शत प्रणाम करता हूं ——
—  तो ऐसे थे हमारे आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर — 
—— साथियों आज वे हमारे बीच नही है, पर उनके द्वारा किये गए कार्यों,संघर्षों और उनके उपदेशों से हमेशा वे हमारे बीच जीवंत है। संविधान के रचयिता और ऐसे अद्वितीय समाज सुधारक को हमारा कोटि-कोटि नमन ——
 — आधुनिक भारत के महानतम समाज सुधारक और सच्चे
 महानायक, लेकिन”भारतीय जातिवादी-मानसिकता ने सदा ही इस महापुरुष की उपेक्षा ही की गई |भारत में शायद ही कोई दूसरा व्यक्ति ऐसा हो, जिसने देश के निर्माण,उत्थान और प्रगति के लिए थोड़े समय में इतना कुछ कार्य किया हो, जितना बाबासाहेब आंबेडकर जी ने किया है और शायद ही कोई दूसरा व्यक्ति हो, जो निंदा, आलोचनाओं आदि का उतना शिकार हुआ हो,जितना बाबासाहेब आंबेडकर जी हुए थे —
—— बाबासाहेब आंबेडकर जी ने भारतीय संविधान के तहत कमजोर तबके के लोगों को जो कानूनी हक दिलाये है। इसके लिए बाबा साहेब आंबेडकर जी को कदम-कदम पर काफी संघर्ष करना पड़ा था ——
—— आवो जानें पे बैक टू सोसायटी क्या ——
—— ऐ मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय,ज्ञान,बुद्धि, पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो ——
—— तुम्हारें अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए मैं दुबारा नहीं आऊंगा,ये क्रांति का रथ संघर्षो का कारवां ,जो मैं बड़े दुखों,कष्टों को सहकर यहाँ तक ले आया हूँ,अब आगे तुम्हे ही ले जाना है  ——
—— साथियों बाबा साहेब जी अपने अंतरिम दिनोँ में अकेले रोते हुऐ पाए गए। बाबा साहेब अम्बेडकर जी से जब काका कालेलकर कमीशन 1953 में मिलने के लिए गया ,तब कमीशन का सवाल था कि आपने पूरी जिन्दगी पिछड़े,शोषित,वंचित वर्ग समाज  के उत्थान के लिए लगा दी काका कालेकर कमीशन ने पूछा बाबा साहेब जी आपकी राय में क्या किया जाना चाहिए बाबा साहेब ने जवाब दिया कि पिछड़े,शोषित,वंचित समाज का उत्थान करना है तो इनके अंदर बड़े लोग पैदा करने होंगें ——
—— काका कालेलकर कमीशन के सदस्यों को यह बात समझ नहीं आई  तो उन्होने फिर सवाल किया “बड़े लोग से आपका क्या तात्पर्य है ? " बाबा साहेब जी ने जवाब दिया कि अगर किसी समाज में 10 डॉक्टर , 20 वकील और 30 इन्जिनियर पैदा हो जाऐ तो उस समाज की तरफ कोई आंख ऊठाकर भी देख नहीं सकता !"
—— इस वाकये के ठीक 3 वर्ष बाद 18 मार्च 1956 में आगरा के रामलीला मैदान में बोलते हुऐ बाबा साहेब ने कहा "मुझे पढे लिखे लोगों ने धोखा दिया। मैं समझता था कि ये लोग पढ लिखकर अपने समाज का नेतृत्व करेगें , मगर मैं देख रहा हुँ कि  मेरे आस-पास बाबुओं की भीड़ खड़ी हो रही है जो अपना ही पेट पालने में लगी है !" 
—— साथियों बाबा साहेब अपने अन्तिम दिनो में अकेले रोते हुए पाए गए ! जब वे सोने की कोशिश करते थे तो उन्हें नींद नहीं आती थी,अत्यधिक परेशान रहने वाले थे बाबा साहेब के निजी सचिव  नानकचंद रत्तु ने बाबा साहेब जी से सवाल पुछा कि , आप इतना परेशान क्यों रहते है बाबा साहेब जी ? ऊनका जवाब था , " ——
—— नानकचंद , ये जो तुम दिल्ली देख रहो हो अकेली दिल्ली में 10,000 कर्मचारी ,अधिकारी यह केवल अनुसूचित जाति के है  ! जो कुछ साल पहले शून्य थे मैँने अपनी जिन्दगी का सब कुछ दांव पर लगा दिया,अपने लोगों में पढ़े लिखे लोग पैदा करने के लिए क्योंकि  मैं जानता था कि जब मैं अकेल पढ लिख कर इतना काम कर सकता हुँ  अगर हमारे हजारों लोग पढ लिख जायेगें तो बहुजन समाज में कितना बड़ा परिवर्तन आयेगा लेकिन नानकचंद,मैं जब पुरे देश की तरफ निगाह दौड़ाता हूँ हूँ तो मुझे कोई ऐसा  नौजवान नजर नहीं आता है,जो मेरे कारवाँ को आगे ले जा सकता है नानकचंद,मेरा शरीर मेरा साथ नहीं दे रहा है ,जब मैं अपने मिशन के बारे में सोचता हुँ,तो मेरा सीना दर्द से फटने लगता है ——
—— जिस महापुरुष ने अपनी पुरी जिन्दगी,अपना परिवार ,बच्चे आन्दोलन की भेँट चढाए,जिसने पुरी जिन्दगी इस विश्वास में लगा दी  कि , पढा -लिखा वर्ग ही अपने शोषित वंचित भाइयों को आजाद करवा सकता हैं जिन्होंने अपने लोगों को आजाद कर पाने का मकसद अपना मकसद बनाया था,क्या उनका सपना पूरा हो गया ? आपके क्या फर्ज  बनते हैं समाज के लिए ?
—— सम्मानित साथियों जरा सोचो आज बाबा साहेब की वजह से हम ब्रांडेड कपड़े, ब्रांडेड जूते, ब्रांडेड मोबाइल, ब्रांडेड घड़ियां हर कुछ ब्रांडेड इस्तेमाल करने के लायक बन गए हैं बहुत सारे लोग बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू, शराब पर सैकड़ों रुपये बर्बाद करते हैं ! इस पर औसतन 500 रुपये खर्च आता है,चाउमीन, गोलगप्पे, सूप आदि पर हरोज 20 से 50 रुपये खर्च आता है। महिने में ओसतन 600 से 1500 रुपये तक खर्च हो सकते हैं ——
—— बाबा साहेब के अधिकारों,संघर्षो,प्रावधानों की वजह से जो लोग इस लायक हो गए हैं  हम लोगों पर बाबा साहेब ने विश्वास नहीं किया क्योंकि हमने बाबा साहेब के साथ विश्वासघात किया था ! उनके द्वारा दिखाए गए सपनों से हम दूर चले गए नौकरी आयी और आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक बाबा साहेब अम्बेडकर जी को भूल गए —— 
——"हमारे उपर बाबा साहेब का बहुत बड़ा कर्ज है, 
क्या आप उसे उतार सकते हैं,नहीं रत्तीभर भी नहीं हम जिस शख्स ने इस देश के शोषित,वंचित, पिछले, समाज,सर्वसमाज,महिलाओं भारतवर्ष के लिए अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी,अपने बच्चे,पत्नी अपने सुख चैन सब कुछ कुर्बान कर दिया जरा सोचो किसके लिए आप लोगों के लिए और हम लोग क्या कर रहें हैं टीवी,बीवी में मस्त है मिशन को भूल गये ——
—— लेकिन हमें फिर से पहले की तरह बाबा साहेब को धोखा नहीं देना चाहिए,पढ़े-लिखे लोगो अपने उपर से धोखेबाज का लेबल उतारो और बाबा साहेब के मिशन को आगे बढ़ाओ ——
——आपके बीड़ी, सिगरेट पर खर्च होने वाले 15 रुपये से न जाने कितने बच्चों को शिक्षा मिल सकती है,आपके फास्टफूड पर खर्च होने वाले 50 रुपये से न जाने कितने गरीब लोगों को दवाई मिल सकती है !आपके इन पैसों से न जाने कितने मिशनरी साथियों का खर्च चल रहा है जो पूरा जीवन समाज सेवा मे लगा रहे हैं ——
—— जरा अपने दिल पर हाथ रख कर कहो तुम क्या बाबा साहेब के पे बैक टू सोसाइटी सिद्धांत पर चल रहे हो ——
—— केवल भंडारे देना,चंदा देना,कार्यक्रम करना,ठंडे पानी की स्टाल लगाना पे बैक टू सोसाइटी नहीं है ——
——अपने जैसे सक्षम लोग पैदा करना पे बैक टू सोसाइटी है गरीब बच्चों को शिक्षित करना पे बैक टू सोसाइटी है,शिक्षित लोगों को नौकरियां दिलाना डाक्टर है ——
——बहुजनों को वैज्ञानिक,इंजिनियर,वकील,शिक्षक,डाक्टर इत्यादि बनाना पे बैक टू सोसाइटी है.बाबा साहेब के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए लगे हुए मिशनरियों को मदद देना असली पे बैक टू सोसाइटी है ——
—— आप जो पोजिशन पर है आपका फर्ज बनता है कि मेरे समाज का हर बच्चा उस पोजिशन पर पहुंचे यह पे बैक टू सोसाइटी है,अतः हम पढे-लिखे, नौकरीपेशा समाज से अपील करते हैं कि आप अपने उपर लगे धोखेबाज के लेबल को उतारने की कोशिश करें आपने ग़ैर-भाई बहनों के पास जाओ,उनकी ऊपर उठने में मदद करें,अपने उद्योग धंधे, व्यापार आदि शुरू करें, अपने आप को बेरोजगार बहुजनों के लिए रोजगार की व्यवस्था करें,अपना व्यवसाय शुरू करें, अपने समाज का पैसा अपने समाज में रोकें ——
 —— प्रयत्न करें,जब तक बाबा साहेब का पे बैक टू सोसाइटी  का सिद्धांत लागू नहीं होगा तब तक देश से गरीबी नहीं मिटेगी ——
——  साभार-: बहुजन समाज और उसकी राजनिति,मेरे संघर्षमय जीवन एवं बहुजन समाज का मूवमेंट,फारवर्ड प्रेस, दलित दस्तक {संदर्भ- सलेक्टेड ऑफ डाँ अम्बेडकर – लेखक डी.सी. अहीर पृष्ठ क्रमांक 110 से 112 तक के भाषण का हिन्दी अनुवाद), श्री गुरु रविदास जन-जागृति एवं शिक्षा समिति,(राजी),दलित दस्तक ,समय बुद्धा,,पुस्तक-'डॉ.बाबासाहेब अंबेडकर के महत्वपूर्ण संदेश एवं विद्वत्तापूर्ण कथन' के थर्ड कवर पृष्ठ से,लेखक-नानकचंद रत्तू-अनुवादक-गौरव कुमार रजक, अंकित कुमार गौतम,संपादन-अमोल वज्जी,प्रकाशक-डी के खापर्डे मेमोरियल ट्रस्ट (पब्लिकेशन डिवीजन)527ए, नेहरू कुटिया, निकट अंबेडकर पार्क, कबीर बस्ती, मलका गंज, नई दिल्ली -07, विकिपीडिया} ——
 ——"सामाजिक क्रांति के अग्रदूत,मानवता की प्रचारक महामानव बाबा साहेब अम्बेडकर जी के  चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं ——
— साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए आधुनिक भारत के निर्माता बाबासाहेब अम्बेडकर जी ने वह कर दिखाया जो उस दौर में सोच पाना भी मुश्किल था —  
— साथियों आज हमें अगर कहीं भी खड़े होकर अपने विचारों की अभिव्यक्ति करने की आजादी है,समानता का अधिकार है तो यह सिर्फ और सिर्फ परमपूज्य बाबासाहेब आंबेडकर जी के संघर्षों से मुमकिन हो सका है.भारत वर्ष का जनमानस सदैव बाबा साहेब डा भीमराव अंबेडकर जी का कृतज्ञ रहेगा.इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी बात खत्म करता हूं। सामाजिक न्याय के पुरोधा तेजस्वी क्रांन्तिकारी शख्शियत परमपूज्य बोधिसत्व भारत रत्न बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं 
      — जिसने देश को दी नई दिशा””…जिसने आपको नया जीवन दिया वह है आधुनिक भारत के निर्माता बाबा साहेब अम्बेडकर जी का संविधान —
  — सच  अक्सर कड़वा लगता है। इसी लिए सच बोलने वाले भी अप्रिय लगते हैं। सच बोलने वालों को इतिहास के पन्नों में दबाने का प्रयास किया जाता है, पर सच बोलने का सबसे बड़ा लाभ यही है, कि वह खुद पहचान कराता है और घोर अंधेरे में भी चमकते तारे की तरह दमका देता है। सच बोलने वाले से लोग भले ही घृणा करें, पर उसके तेज के सामने झुकना ही पड़ता है ! इतिहास के पन्नों पर जमी धूल के नीचे ऐसे ही बहुजन महापुरुषों का गौरवशाली इतिहास दबा है —
     ―मां कांशीराम साहब जी ने एक एक बहुजन नायक को बहुजन से परिचय कराकर, बहुजन समाज के लिए किए गए कार्य से अवगत कराया सन 1980 से पहले भारत के  बहुजन नायक भारत के बहुजन की पहुँच से दूर थे,इसके हमें निश्चय ही मान्यवर कांशीराम साहब जी का शुक्रगुजार होना चाहिए जिन्होंने इतिहास की क्रब में दफन किए गए बहुजन नायक/नायिकाओं के व्यक्तित्व को सामने लाकर समाज में प्रेरणा स्रोत जगाया ——
   ―इसका पूरा श्रेय मां कांशीराम साहब जी को ही जाता है कि उन्होंने जन जन तक गुमनाम बहुजन नायकों को पहुंचाया, मां कांशीराम साहब के बारे में जान कर मुझे भी लगा कि गुमनाम बहुजन नायकों के बारे में लिखा जाए !
   —— ऐ मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय ज्ञान,पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो ——
      —―साथियों एक बात याद रखना आज करोड़ों लोग जो बाबासाहेब जी,माँ रमाई के संघर्षों की बदौलत कमाई गई रोटी को मुफ्त में बड़े चाव और मजे से खा रहे हैं ऐसे लोगों को इस बात का अंदाजा भी नहीं है जो उन्हें ताकत,पैसा,इज्जत,मान-सम्मान मिला है वो उनकी बुद्धि और होशियारी का नहीं है बाबासाहेब जी के संघर्षों की बदौलत है ——
      —– साथियों आँधियाँ हसरत से अपना सर पटकती रहीं,बच गए वो पेड़ जिनमें हुनर लचकने का था ——
       ―तमन्ना सच्ची है,तो रास्ते मिल जाते हैं,तमन्ना झूठी है,तो बहाने मिल जाते हैं,जिसकी जरूरत है रास्ते उसी को खोजने होंगें निर्धनों का धन उनका अपना संगठन है,ये मेरे बहुजन समाज के लोगों अपने संगठन अपने झंडे को मजबूत करों शिक्षित हो संगठित हो,संघर्ष करो !
      ―साथियों झुको नही,बिको नहीं,रुको नही, हौसला करो,तुम हुकमरान बन सकते हो,फैसला करो हुकमरान बनो"
       ―सम्मानित साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए !
        ―सभी अम्बेडकरवादी भाईयों, बहनो,को नमो बुद्धाय सप्रेम जयभीम! सप्रेम जयभीम !!
             ―बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर  जी ने कहा है जिस समाज का इतिहास नहीं होता, वह समाज कभी भी शासक नहीं बन पाता… क्योंकि इतिहास से प्रेरणा मिलती है, प्रेरणा से जागृति आती है, जागृति से सोच बनती है, सोच से ताकत बनती है, ताकत से शक्ति बनती है और शक्ति से शासक बनता है !”
        ― इसलिए मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर आप लोगो को इतिहास के उन पन्नों से रूबरू कराने की कोशिश कर रहा हूं जिन पन्नों से बहुजन समाज का सम्बन्ध है जो पन्ने गुमनामी के अंधेरों में खो गए और उन पन्नों पर धूल जम गई है, उन पन्नों से धूल हटाने की कोशिश कर रहा हूं इस मुहिम में आप लोगों मेरा साथ दे, सकते हैं !
           ―पता नहीं क्यूं बहुजन समाज के महापुरुषों के बारे कुछ भी लिखने या प्रकाशित करते समय “भारतीय जातिवादी मीडिया” की कलम से स्याही सूख जाती है —
— इतिहासकारों की बड़ी विडम्बना ये रही है,कि उन्होंने बहुजन नायकों के योगदान को इतिहास में जगह नहीं दी इसका सबसे बड़ा कारण जातिगत भावना से ग्रस्त होना एक सबसे बड़ा कारण है इसी तरह के तमाम ऐसे बहुजन नायक हैं,जिनका योगदान कहीं दर्ज न हो पाने से वो इतिहास के पन्नों में गुम हो गए —
     ―उन तमाम बहुजन नायकों को मैं अमित गौतम जंनपद   रमाबाई नगर,कानपुर कोटि-कोटि नमन करता हूं !
जय रविदास
जय कबीर
जय भीम
जय नारायण गुरु
जय सावित्रीबाई फुले
जय माता रमाबाई अम्बेडकर जी
जय ऊदा देवी पासी जी
जय झलकारी बाई कोरी
जय बिरसा मुंडा
जय बाबा घासीदास
जय संत गाडगे बाबा
जय पेरियार रामास्वामी नायकर
जय छत्रपति शाहूजी महाराज
जय शिवाजी महाराज
जय काशीराम साहब
जय मातादीन भंगी जी
जय कर्पूरी ठाकुर 
जय पेरियार ललई सिंह यादव
जय मंडल
जय हो उन सभी गुमनाम बहुजन महानायकों की जिंन्होने अपने संघर्षो से बहुजन समाज को एक नई पहचान दी,स्वाभिमान से जीना सिखाया !    
              अमित गौतम
             युवा सामाजिक
                कार्यकर्ता         
              बहुजन समाज
  जंनपद-रमाबाई नगर कानपुर
           सम्पर्क सूत्र-9452963593

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