“मूकनायक शताब्दी वर्ष” की हार्दिक बधाईयां एवं मंगलकामनाएं

             
 31,जनवरी,1920
           वो थे इसलिए आज हम हैं 
              इतिहास के पन्नों से 
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             “मूकनायक शताब्दी वर्ष” 
                    1920-2020
“आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक,गणतंत्र के महानायक परमपूज्य बोधिसत्व बाबासाहेब अम्बेडकर द्वारा प्रकाशित प्रथम समाचार पत्र मराठी पाक्षिक “मूकनायक” के सौ साल पूरे होने पर हार्दिक बधाईयां और मंगलकामनाएं”
       “मूकनायक’ यानी मूक लोगों का नायक”

“मूकनायक’ — डॉ. भीमराव अम्बेडकर की बुलंद आवाज का दस्तावेज”
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— 31,जनवरी,1920 में बाबा साहब ने ‘मूकनायक’ समाचार पत्र से अपने पत्रकारिता जीवन की शुरुआत की थी. बाबा साहब ऐसे बहुजन नेता,चिंतक,लेखक,पत्रकार थे.जिन्होंने समाचार पत्र को अपने आंदोलन का एक जरिया बनाया था. बहुतजनों की आवाज को जोरदार ढंग से उठाने के लिए उन्होंने ‘मूकनायक’ की शुरुआत की थी —
— साथियों वर्ष 2020 ‘मूकनायक’ समाचार–पत्र का शताब्दी वर्ष है। ठीक सौ वर्ष पहले 31 जनवरी,1920 को  ‘मूकनायक’ का पहला अंक प्रकाशित हुआ था. जबकि अंतिम अखबार ‘प्रबुद्ध भारत’ का पहला अंक 4 फरवरी,1956 को प्रकाशित हुआ —
अमेरिका में अध्ययन कर 21,अगस्त,1917 को डॉ. आंबेडकर के बम्बई वापस आने के बाद उनका यह प्रथम सामाजिक उद्यम था, जिसका उद्देश्य समाज के शोषितों, उत्पीड़ितों और वंचितों को जगाना था, विशेषकर बहिष्कृत अछूतों को —

बाबा साहब अम्बेडकर के तेवर ने सब को हिला कर रख दिया था यहाँ तक कि ‘मूकनायक’ के प्रकाशन को लेकर जब आंबेडकर ने तिलक के समाचारपत्र केसरी में विज्ञापन दिया तो राशि लेकर भी विज्ञापन छापने से इंकार कर दिया गया था —

  • — जब जरूरत थी चमन को तो लहू हमने दिया अब बहार आई तो कहते हैं तेरा काम नहीं —
— सम्मानित साथियों आज ही के दिन परमपूज्य बोधिसत्व,भारत रत्न बाबा साहेब डा भीमराव अम्बेडकर का मानना था कि शोषितों,वंचितों,पिछड़ो को जागरूक बनाने और उन्हें संगठित करने के लिए उनका अपना स्वयं का मीडिया अति आवश्यक है। इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए उन्होने 31,जनवरी,1920 को मराठी पाक्षिक “मूकनायक” नामक पत्रिका को शुरू किया था
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— यह पत्रिका उन मूक शोषित, वंचित, पिछड़े,दबे कुचले लोगों की आवाज बन कर उभरी जो सदियों से जातिवाद का दंश झेल रहे थे
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— बाबासाहेब अम्बेडकर ने कहा था, "किसी भी आंदोलन को सफल होने के लिए, उस आंदोलन का अखबार बनना होगा। जिस आंदोलन का कोई अखबार नहीं है, वह एक टूटे हुए पंख की तरह है।"
— इस पत्रिका के अग्रलेखों में बाबा साहेब अम्बेडकर ने बहुजनों के तत्कालीन आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं को निर्भीकता से उजागर किया। यह पत्रिका उन मूक-दलित, दबे-कुचले लोगों की आवाज बनकर उभरी जो सदियों से जातिवादियों का अन्याय और शोषण चुपचाप सहन कर रहे थे —
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— हालांकि इस पत्रिका के प्रकाशन में “छत्रपति शाहू जी महाराज” ने भी सहयोग किया था,यह पत्रिका महाराज के राज्य में कोल्हापुर में ही प्रकाशित होती थी। चूंकि महाराज अंबेडकर की विद्वता से परिचित थे जिस वजह से वो उनसे विशेष स्नेह भी रखते थे —
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— एक बार तो शाहू जी महाराज ने नागपुर में “अखिल भारतीय बहिष्कृत समाज परिषद” की सभा संबोधित करते हुऐ भी कह दिया था कि – “दलितों को अब चिंता करने की जरूरत नहीं है, उन्हें अंबेडकर के रूप में ओजस्वी विद्वान नेता प्राप्त हो गया है”! 
— इसी सभा में बाबा साहेब अम्बेडकर ने निर्भीकतापूर्वक दलितों को संबोधित करते हुऐ कहा था कि- “ऐसे कोई भी सवर्ण संगठन दलितों के अधिकारों की वकालत करने के पात्र नहीं हैं जो दलितों द्वारा संचालित न हो —
—  उन्होंने स्पष्टतः कहा था कि दलित ही दलितों के संगठन चलाने के हकदार हैं और वे ही दलितों की भलाई की बात सोच सकते हैं।”
—  उन्होंने स्पष्टतः कहा था कि दलित ही दलितों के संगठन चलाने के हकदार हैं और वे ही दलितों की भलाई की बात सोच सकते हैं।”उपर्युक्त परिषद में डॉ. आंबेडकर में नेतृत्व के लिए आवश्यक सभी गुण दिखाई पड़े। सार्वजनिक जीवन में डॉ. आंबेडकर की यह पहली कामयाबी थी। ‘मूकनायक’ (डॉ. आंबेडकर) ने अपने भावी महान कार्य की झलक दी थी। (धनंजय कीर, पृ.  42) —
— 1920 में हुऐ  त्रिदिवसीय सम्मेलन की कार्यवाही,भाषण, प्रस्तावों आदि का वृतांत भी 5 जून,1920 को “मूकनायक” पत्रिका के दसवें अंक में प्रकाशित हुआ था —
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— इस पत्रिका के माध्यम से बाबा साहेब अम्बेडकर ने बहुजनों के तत्कालीन आर्थिक,सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं को उजागर किया —
‘मूकनायक’ समाचार–पत्र के कुल 19 अंक निकले थे। अंक 12 तक  ‘मूकनायक’ समाचार–पत्र का लेखन पूर्ण रूप से बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर द्वारा किया गया —
(‘मूकनायक’, वासनिक पृ.15) उसके बाद डॉ. आंबेडकर सन् 1920 के जुलाई महीने के अंतिम सप्ताह में अपने — 
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— अध्ययन को आगे बढ़ाने के लिए लंदन चले गए.इस प्रकार उन्होंने करीब 7 महीने  ‘मूकनायक’ का प्रकाशन सीधे अपनी देख–रेख में की। 13वें से 19वें अंक तक का संपादन ज्ञानदेव ध्रुवनाथ घोलप ने किया। उनके संपादन में 7 अंक निकले। (मूकनायक, वासनिक,पृ.  15) —
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— मूकनायक’ के प्रवेशांक की शुरुआत डॉ. आंबेडकर ने संत तुकाराम की इन पंक्तियों से की है —
 — अभी मैं इच्छाएं धारण करके क्या करूं
व्यर्थ तोमड़ी बजाकर क्या करूं.संसार में खामोश लोगों की कोई नहीं सुनता —
              —  अभी कोई लाज, हित सार्थक नहीं ( मूकनायक, श्यौराज सिंह ‘बेचैन’ पृ. 23)
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— संत तुकाराम कह रहे हैं कि ‘संसार में खामोश लोगों की कोई नहीं सुनता’। ‘मूकनायक’  समाचार–पत्र दलितों की सदियों की खामोशी को तोड़ने के लिए डॉ. आंबेडकर ने शुरू किया था और करीब 7 महीने के भीतर ही उन्होंने दलितों की आवाज ‘मूकनायक’ के माध्यम से देश के साथ–साथ बल्कि विश्व पटल पर पहुंचा दिया —
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— ‘मूकनायक’ यानी मूक लोगों का नायक ‘मूकनायक’ के प्रवेशांक की संपादकीय में आंबेडकर ने इसके प्रकाशन के औचित्य के बारे में लिखा था, “बहिष्कृत लोगों पर हो रहे और भविष्य में होनेवाले अन्याय के उपाय सोचकर उनकी भावी उन्नति व उनके मार्ग के सच्चे स्वरूप की चर्चा करने के लिए वर्तमान पत्रों में जगह नहीं। अधिसंख्य समाचार पत्र विशिष्ट जातियों के हित साधन करनेवाले हैं। कभी-कभी उनका आलाप इतर जातियों को अहितकारक होता है।” 
— इसी संपादकीय टिप्पणी में डा भीमराव अम्बेडकर लिखते हैं, “हिंदू समाज एक मीनार है.एक-एक जाति इस मीनार का एक-एक तल है और एक से दूसरे तल में जाने का कोई मार्ग नहीं। जो जिस तल में जन्म लेता है, उसी तल में मरता है।” वे कहते हैं,“परस्पर रोटी-बेटी का व्यवहार न होने के कारण प्रत्येक जाति इन घनिष्ठ संबंधों में स्वयंभू जाति है.रोटी-बेटी व्यवहार के अभाव कायम रहने से परायापन स्पृश्यापृश्य भावना से इतना ओत-प्रोत है कि यह जाति हिंदू समाज से बाहर है, ऐसा कहना चाहिए।” आंबेडकर ने इस संपादकीय टिप्पणी में 97 वर्ष पहले जो कहा था, वही आज का भी कटु यथार्थ है.बाबासाहेब अम्बेडकर के समय भी मीडिया में जातिगत पूर्वग्रह था और आज भी है —
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— मीडिया के ढांचे के जातिगत पूर्वग्रहों से प्रभावित होने तथा मीडिया संस्थानों में उच्च पदों पर सवर्णों का कब्जा होने से कई बार दलितों के साथ होने वाले अन्याय की खबरों की अनदेखी होती है। यानी मीडिया उत्पादों पर सामाजिक पृष्ठभूमि का प्रभाव सामग्री के चयन, प्रकाशन तथा प्रसारण में देखा जाता है। जाहिर है कि जब तक मीडिया में हरेक तबके की यथोचित भागीदारी नहीं होगी,सूचना का एकपक्षीय, आग्रहपूर्ण और असंतुलित प्रसार जारी रहेगा —
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  — इस असंतुलित प्रसार के प्रतिरोध में ही बाबासाहेब अम्बेडकर ने दलितों के अपने खुद की मीडिया की जोरदार वकालत की थी। वे मानते थे कि अछूतों के साथ होनेवाले अन्याय के खिलाफ दलित पत्रकारिता ही संघर्ष कर 
सकती है —
— स्वयं बाबा साहेब अम्बेडकर की पत्रकारिता कैसे इस सवाल पर मुखर थी,इसकी बानगी उनकी लिखी ‘मूकनायक’ के 14,अगस्त,1920 के अंक की संपादकीय में देखी जा सकती है, “कुत्ते-बिल्ली जो अछूतों का भी जूठा खाते हैं,वे बच्चों का मल भी खाते हैं। उसके बाद वरिष्ठों-स्पृश्यों के घरों में जाते हैं तो उन्हें छूत नहीं लगती —
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— वे उनके बदन से लिपटते-चिपटते हैं। उनकी थाली तक में मुंह डालते हैं तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं होती। लेकिन यदि अछूत उनके घर काम से भी जाता है तो वह पहले से बाहर दीवार से सटकर खड़ा हो जाता है.घर का मालिक दूर से देखते ही कहता है-अरे-अरे दूर हो, यहां बच्चे की टट्टी डालने का खपड़ा रखा है, तू उसे छूएगा?” कहना न होगा कि विकल कर देने वाली यह संपादकीय टिप्पणी जाति में बंटे भारतीय समाज को आईना दिखाने में आज भी सक्षम है —
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—  केवल मीडिया ही नहीं, सभी क्षेत्रों में दलितों की हिस्सेदारी सुनिश्चित किए जाने के प्रबल पक्षधर थे आंबेडकर। 28 फरवरी 1920 को प्रकाशित ‘मूकनायक’ के तीसरे अंक में आंबेडकर ने ‘यह स्वराज्य नहीं, हमारे ऊपर राज्य है’ शीर्षक संपादकीय में साफ-साफ कहा था कि स्वराज्य मिले तो उसमें अछूतों का भी हिस्सा हो.स्वराज्य पर बाबासाहेब अम्बेडकर का चिंतन लंबे समय तक चला —
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— 27,मार्च,1920 को प्रकाशित ‘मूकनायक’ के पांचवें अंक की संपादकीय का शीर्षक हैः ‘स्वराज्य में हमारा आरोहण, उसका प्रमाण और उसकी पद्धति।’ इसमें आंबेडकर ने मुख्यतः निम्न बिंदुओं को उठाया है —
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— भारत का भावी राज्य एक सत्तात्मक या प्रजा सत्तात्मक न होकर प्रजा प्रतिनिधि सत्तात्मक राज्य होनेवाले हैं। इस प्रकार के राज्य को स्वराज्य होने के लिए मतदान का अधिकार विस्तृत करके जातिवार प्रतिनिधित्व देना जरूरी है।
हिंदू धर्म ने कुछ जातियों को श्रेष्ठ और वरिष्ठ व कुछ को कनिष्ठ और अपवित्र ठहराया है। स्वाभिमान शून्य नीचे की जातियों के लोग ऊपर की जातियों को पूज्य मानते हैं और शील शून्य ऊपर की जाति के लोग नम्र भाव रखनेवाली इन जातियों को नीच मानते हैं —
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— दलित उम्मीदवार को ऊंची जाति का मतदाता नीच समझकर मत नहीं देगा और आश्चर्य की बात यह है कि ब्राह्मणेतर और बहिष्कृत लोग बाह्मण सेवा का सुनहरा संयोग आया देख पुण्य संचय करने के लिए उनके पैरों में गिरने को दौड़ पड़ेंगे —
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—हरेक व्यक्ति को मतदान का अधिकार मिलने पर चुनाव की पद्धति से, संख्या के अनुपात से जातिवार प्रतिनिधित्व देना चाहिए —
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— स्वराज्य मिलेगा,उससे प्राप्त होनेवाली स्वयंसत्ता सब जातियों में कैसे विभाजित की जाएगी, जिसकी वजह से स्वराज्य धर्म के ठेकेदारों का राज्य नहीं होना चाहिए, यह प्रश्न मुख्य है —
   — आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक बाबा साहब डा. भीमराव अम्बेडकर —
— साथियों आज हमें अगर कहीं भी खड़े होकर अपने विचारों की अभिव्यक्ति करने की आजादी है।
समानता का अधिकार है तो यह सिर्फ और सिर्फ परमपूज्य बाबासाहेब आंबेडकर जी के संघर्षों से मुमकिन हो सका है. 
.भारत वर्ष का जनमानस सदैव बाबा साहेब डा भीमराव अंबेडकर जी का कृतज्ञ रहेगा —
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— गणतन्त्र के महानायक परमपपूज्य बोधिसत्व,भारत रत्न बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी के चरणों में शत् -शत् नमन एंव विनम्र श्रद्धांजलि —
विशेष साभार ——मूकनायक’, डॉ. आंबेडकर, अनुवाद तथा संपादन, डॉ. श्यौराज सिंह बैचैन, गौतम बुक सेंटर, दिल्ली, 2019,मूकनायक’, डॉ. बी. आर. आंबेडकर, अनुवाद, विनय कुमार वासनिक, सम्यक प्रकाशन, 2019 www.velivada.com,दलित दस्तक, फारवर्ड प्रेस —
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       —— वो थे इसलिए आज हम है ——
—— यारों अगर भीम न होते तो बहुजन समाज और महिलाओं का मान सम्मान न होता अगर भीम न होते तो इस देश की मुखिया कोई महिला न होती,ये सूट बूट वाले साहब न होते शोषितों वंचित समाज में ये ऐसो आराम के समान न होते ये आलिशान महल न होते ——
   —— अगर इस भारत भूमि पर भीम न होते तो ये बड़ी बड़ी गाडियां, ये शोहरत ये इज्जत, ये अफसरशाही, सत्ता का स्वाद,न होता,ये उस सूर्य कोटि महापुरुष परमपूज्य 
बाबा साहेब की देन है जिन्होंने अपने समाज को गुलामी से आजाद कराने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर
 कर दिया ——
—— ऐसे महान शख्सियत के चरणों में शत शत नमन करता हूं, मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर वो बाबा थे जिन्होंने अपने समाज के बेटों को बचाने के लिए अपने बच्चों, पत्नी की कुर्बानी दे दी थी समाज के लिए ——
—— जरा हम लोग सोचे कि हमने क्या किया बाबा साहेब के लिए बाबा साहेब की पूजा तो हम बड़ी शिद्दत से करते हैं
ले उनकी बातों को नहीं मानते हैं ऐसे महान शख्सियत,आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक के चरणों में शत शत प्रणाम करता हूं ——
—  तो ऐसे थे हमारे आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर — 
— साथियों आज वे हमारे बीच नही है, पर उनके द्वारा किये गए कार्यों,संघर्षों और उनके उपदेशों से हमेशा वे हमारे बीच जीवंत है। संविधान के रचयिता और ऐसे अद्वितीय समाज सुधारक को हमारा कोटि-कोटि नमन ——
 — आधुनिक भारत के महानतम समाज सुधारक और सच्चे
 महानायक, लेकिन”भारतीय जातिवादी-मानसिकता ने सदा ही इस महापुरुष की उपेक्षा ही की गई |भारत में शायद ही कोई दूसरा व्यक्ति ऐसा हो, जिसने देश के निर्माण,उत्थान और प्रगति के लिए थोड़े समय में इतना कुछ कार्य किया हो, जितना बाबासाहेब आंबेडकर जी ने किया है और शायद ही कोई दूसरा व्यक्ति हो, जो निंदा, आलोचनाओं आदि का उतना शिकार हुआ हो,जितना बाबासाहेब आंबेडकर जी हुए थे —
—— बाबासाहेब आंबेडकर जी ने भारतीय संविधान के तहत कमजोर तबके के लोगों को जो कानूनी हक दिलाये है। इसके लिए बाबा साहेब आंबेडकर जी को कदम-कदम पर काफी संघर्ष करना पड़ा था ——
—— आवो जानें पे बैक टू सोसायटी क्या ——
—— ऐ मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय,ज्ञान,बुद्धि, पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो ——
—— तुम्हारें अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए मैं दुबारा नहीं आऊंगा,ये क्रांति का रथ संघर्षो का कारवां ,जो मैं बड़े दुखों,कष्टों को सहकर यहाँ तक ले आया हूँ,अब आगे तुम्हे ही ले जाना है  ——
—— साथियों बाबा साहेब जी अपने अंतरिम दिनोँ में अकेले रोते हुऐ पाए गए। बाबा साहेब अम्बेडकर जी से जब काका कालेलकर कमीशन 1953 में मिलने के लिए गया ,तब कमीशन का सवाल था कि आपने पूरी जिन्दगी पिछड़े,शोषित,वंचित वर्ग समाज  के उत्थान के लिए लगा दी काका कालेकर कमीशन ने पूछा बाबा साहेब जी आपकी राय में क्या किया जाना चाहिए बाबा साहेब ने जवाब दिया कि पिछड़े,शोषित,वंचित समाज का उत्थान करना है तो इनके अंदर बड़े लोग पैदा करने होंगें —
— काका कालेलकर कमीशन के सदस्यों को यह बात समझ नहीं आई  तो उन्होने फिर सवाल किया “बड़े लोग से आपका क्या तात्पर्य है ? " बाबा साहेब जी ने जवाब दिया कि अगर किसी समाज में 10 डॉक्टर , 20 वकील और 30 इन्जिनियर पैदा हो जाऐ तो उस समाज की तरफ कोई आंख ऊठाकर भी देख नहीं सकता !"
—— इस वाकये के ठीक 3 वर्ष बाद 18 मार्च 1956 में आगरा के रामलीला मैदान में बोलते हुऐ बाबा साहेब ने कहा "मुझे पढे लिखे लोगों ने धोखा दिया। मैं समझता था कि ये लोग पढ लिखकर अपने समाज का नेतृत्व करेगें , मगर मैं देख रहा हुँ कि  मेरे आस-पास बाबुओं की भीड़ खड़ी हो रही है जो अपना ही पेट पालने में लगी है !" 
—— साथियों बाबा साहेब अपने अन्तिम दिनो में अकेले रोते हुए पाए गए ! जब वे सोने की कोशिश करते थे तो उन्हें नींद नहीं आती थी,अत्यधिक परेशान रहने वाले थे बाबा साहेब के निजी सचिव  नानकचंद रत्तु ने बाबा साहेब जी से सवाल पुछा कि , आप इतना परेशान क्यों रहते है बाबा साहेब जी ? ऊनका जवाब था , " ——
—— नानकचंद , ये जो तुम दिल्ली देख रहो हो अकेली दिल्ली में 10,000 कर्मचारी ,अधिकारी यह केवल अनुसूचित जाति के है  ! जो कुछ साल पहले शून्य थे मैँने अपनी जिन्दगी का सब कुछ दांव पर लगा दिया,अपने लोगों में पढ़े लिखे लोग पैदा करने के लिए क्योंकि  मैं जानता था कि जब मैं अकेल पढ लिख कर इतना काम कर सकता हुँ  अगर हमारे हजारों लोग पढ लिख जायेगें तो बहुजन समाज में कितना बड़ा परिवर्तन आयेगा लेकिन नानकचंद,मैं जब पुरे देश की तरफ निगाह दौड़ाता हूँ हूँ तो मुझे कोई ऐसा  नौजवान नजर नहीं आता है,जो मेरे कारवाँ को आगे ले जा सकता है नानकचंद,मेरा शरीर मेरा साथ नहीं दे रहा है ,जब मैं अपने मिशन के बारे में सोचता हुँ,तो मेरा सीना दर्द से फटने लगता है ——
—— जिस महापुरुष ने अपनी पुरी जिन्दगी,अपना परिवार ,बच्चे आन्दोलन की भेँट चढाए,जिसने पुरी जिन्दगी इस विश्वास में लगा दी  कि , पढा -लिखा वर्ग ही अपने शोषित वंचित भाइयों को आजाद करवा सकता हैं जिन्होंने अपने लोगों को आजाद कर पाने का मकसद अपना मकसद बनाया था,क्या उनका सपना पूरा हो गया ? आपके क्या फर्ज  बनते हैं समाज के लिए ?
—— सम्मानित साथियों जरा सोचो आज बाबा साहेब की वजह से हम ब्रांडेड कपड़े, ब्रांडेड जूते, ब्रांडेड मोबाइल, ब्रांडेड घड़ियां हर कुछ ब्रांडेड इस्तेमाल करने के लायक बन गए हैं बहुत सारे लोग बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू, शराब पर सैकड़ों रुपये बर्बाद करते हैं ! इस पर औसतन 500 रुपये खर्च आता है,चाउमीन, गोलगप्पे, सूप आदि पर हरोज 20 से 50 रुपये खर्च आता है। महिने में ओसतन 600 से 1500 रुपये तक खर्च हो सकते हैं ——
—— बाबा साहेब के अधिकारों,संघर्षो,प्रावधानों की वजह से जो लोग इस लायक हो गए हैं  हम लोगों पर बाबा साहेब ने विश्वास नहीं किया क्योंकि हमने बाबा साहेब के साथ विश्वासघात किया था ! उनके द्वारा दिखाए गए सपनों से हम दूर चले गए नौकरी आयी और आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक बाबा साहेब अम्बेडकर जी को भूल गए —— 
——"हमारे उपर बाबा साहेब का बहुत बड़ा कर्ज है, 
क्या आप उसे उतार सकते हैं,नहीं रत्तीभर भी नहीं हम जिस शख्स ने इस देश के शोषित,वंचित, पिछले, समाज,सर्वसमाज,महिलाओं भारतवर्ष के लिए अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी,अपने बच्चे,पत्नी अपने सुख चैन सब कुछ कुर्बान कर दिया जरा सोचो किसके लिए आप लोगों के लिए और हम लोग क्या कर रहें हैं टीवी,बीवी में मस्त है मिशन को भूल गये ——
—— लेकिन हमें फिर से पहले की तरह बाबा साहेब को धोखा नहीं देना चाहिए,पढ़े-लिखे लोगो अपने उपर से धोखेबाज का लेबल उतारो और बाबा साहेब के मिशन को आगे बढ़ाओ ——
——आपके बीड़ी, सिगरेट पर खर्च होने वाले 15 रुपये से न जाने कितने बच्चों को शिक्षा मिल सकती है,आपके फास्टफूड पर खर्च होने वाले 50 रुपये से न जाने कितने गरीब लोगों को दवाई मिल सकती है !आपके इन पैसों से न जाने कितने मिशनरी साथियों का खर्च चल रहा है जो पूरा जीवन समाज सेवा मे लगा रहे हैं ——
—— जरा अपने दिल पर हाथ रख कर कहो तुम क्या बाबा साहेब के पे बैक टू सोसाइटी सिद्धांत पर चल रहे हो ——
—— केवल भंडारे देना,चंदा देना,कार्यक्रम करना,ठंडे पानी की स्टाल लगाना पे बैक टू सोसाइटी नहीं है ——
——अपने जैसे सक्षम लोग पैदा करना पे बैक टू सोसाइटी है गरीब बच्चों को शिक्षित करना पे बैक टू सोसाइटी है,शिक्षित लोगों को नौकरियां दिलाना डाक्टर है ——
——बहुजनों को वैज्ञानिक,इंजिनियर,वकील,शिक्षक,डाक्टर इत्यादि बनाना पे बैक टू सोसाइटी है.बाबा साहेब के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए लगे हुए मिशनरियों को मदद देना असली पे बैक टू सोसाइटी है ——
—— आप जो पोजिशन पर है आपका फर्ज बनता है कि मेरे समाज का हर बच्चा उस पोजिशन पर पहुंचे यह पे बैक टू सोसाइटी है,अतः हम पढे-लिखे, नौकरीपेशा समाज से अपील करते हैं कि आप अपने उपर लगे धोखेबाज के लेबल को उतारने की कोशिश करें आपने ग़ैर-भाई बहनों के पास जाओ,उनकी ऊपर उठने में मदद करें,अपने उद्योग धंधे, व्यापार आदि शुरू करें, अपने आप को बेरोजगार बहुजनों के लिए रोजगार की व्यवस्था करें,अपना व्यवसाय शुरू करें, अपने समाज का पैसा अपने समाज में रोकें ——
 —— प्रयत्न करें,जब तक बाबा साहेब का पे बैक टू सोसाइटी  का सिद्धांत लागू नहीं होगा तब तक देश से गरीबी नहीं मिटेगी ——
——  साभार-: बहुजन समाज और उसकी राजनिति,मेरे संघर्षमय जीवन एवं बहुजन समाज का मूवमेंट,फारवर्ड प्रेस, दलित दस्तक {संदर्भ- सलेक्टेड ऑफ डाँ अम्बेडकर – लेखक डी.सी. अहीर पृष्ठ क्रमांक 110 से 112 तक के भाषण का हिन्दी अनुवाद), श्री गुरु रविदास जन-जागृति एवं शिक्षा समिति,(राजी),दलित दस्तक ,समय बुद्धा,,पुस्तक-'डॉ.बाबासाहेब अंबेडकर के महत्वपूर्ण संदेश एवं विद्वत्तापूर्ण कथन' के थर्ड कवर पृष्ठ से,लेखक-नानकचंद रत्तू-अनुवादक-गौरव कुमार रजक, अंकित कुमार गौतम,संपादन-अमोल वज्जी,प्रकाशक-डी के खापर्डे मेमोरियल ट्रस्ट (पब्लिकेशन डिवीजन)527ए, नेहरू कुटिया, निकट अंबेडकर पार्क, कबीर बस्ती, मलका गंज, नई दिल्ली -07, विकिपीडिया} ——
 ——"सामाजिक क्रांति के अग्रदूत,मानवता की प्रचारक महामानव बाबा साहेब अम्बेडकर जी के  चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं ——
— साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए आधुनिक भारत के निर्माता बाबासाहेब अम्बेडकर जी ने वह कर दिखाया जो उस दौर में सोच पाना भी मुश्किल था —  
— साथियों आज हमें अगर कहीं भी खड़े होकर अपने विचारों की अभिव्यक्ति करने की आजादी है,समानता का अधिकार है तो यह सिर्फ और सिर्फ परमपूज्य बाबासाहेब आंबेडकर जी के संघर्षों से मुमकिन हो सका है.भारत वर्ष का जनमानस सदैव बाबा साहेब डा भीमराव अंबेडकर जी का कृतज्ञ रहेगा.इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी बात खत्म करता हूं। सामाजिक न्याय के पुरोधा तेजस्वी क्रांन्तिकारी शख्शियत परमपूज्य बोधिसत्व भारत रत्न बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं 
      — जिसने देश को दी नई दिशा””…जिसने आपको नया जीवन दिया वह है आधुनिक भारत के निर्माता बाबा साहेब अम्बेडकर जी का संविधान —
  — सच  अक्सर कड़वा लगता है। इसी लिए सच बोलने वाले भी अप्रिय लगते हैं। सच बोलने वालों को इतिहास के पन्नों में दबाने का प्रयास किया जाता है, पर सच बोलने का सबसे बड़ा लाभ यही है, कि वह खुद पहचान कराता है और घोर अंधेरे में भी चमकते तारे की तरह दमका देता है। सच बोलने वाले से लोग भले ही घृणा करें, पर उसके तेज के सामने झुकना ही पड़ता है ! इतिहास के पन्नों पर जमी धूल के नीचे ऐसे ही बहुजन महापुरुषों का गौरवशाली इतिहास दबा है —
     ―मां कांशीराम साहब जी ने एक एक बहुजन नायक को बहुजन से परिचय कराकर, बहुजन समाज के लिए किए गए कार्य से अवगत कराया सन 1980 से पहले भारत के  बहुजन नायक भारत के बहुजन की पहुँच से दूर थे,इसके हमें निश्चय ही मान्यवर कांशीराम साहब जी का शुक्रगुजार होना चाहिए जिन्होंने इतिहास की क्रब में दफन किए गए बहुजन नायक/नायिकाओं के व्यक्तित्व को सामने लाकर समाज में प्रेरणा स्रोत जगाया ——
   ―इसका पूरा श्रेय मां कांशीराम साहब जी को ही जाता है कि उन्होंने जन जन तक गुमनाम बहुजन नायकों को पहुंचाया, मां कांशीराम साहब के बारे में जान कर मुझे भी लगा कि गुमनाम बहुजन नायकों के बारे में लिखा जाए !
   —— ऐ मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय ज्ञान,पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो ——
      —―साथियों एक बात याद रखना आज करोड़ों लोग जो बाबासाहेब जी,माँ रमाई के संघर्षों की बदौलत कमाई गई रोटी को मुफ्त में बड़े चाव और मजे से खा रहे हैं ऐसे लोगों को इस बात का अंदाजा भी नहीं है जो उन्हें ताकत,पैसा,इज्जत,मान-सम्मान मिला है वो उनकी बुद्धि और होशियारी का नहीं है बाबासाहेब जी के संघर्षों की बदौलत है ——
      —– साथियों आँधियाँ हसरत से अपना सर पटकती रहीं,बच गए वो पेड़ जिनमें हुनर लचकने का था ——
       ―तमन्ना सच्ची है,तो रास्ते मिल जाते हैं,तमन्ना झूठी है,तो बहाने मिल जाते हैं,जिसकी जरूरत है रास्ते उसी को खोजने होंगें निर्धनों का धन उनका अपना संगठन है,ये मेरे बहुजन समाज के लोगों अपने संगठन अपने झंडे को मजबूत करों शिक्षित हो संगठित हो,संघर्ष करो !
      ―साथियों झुको नही,बिको नहीं,रुको नही, हौसला करो,तुम हुकमरान बन सकते हो,फैसला करो हुकमरान बनो"
       ―सम्मानित साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए !
        ―सभी अम्बेडकरवादी भाईयों, बहनो,को नमो बुद्धाय सप्रेम जयभीम! सप्रेम जयभीम !!
             ―बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर  जी ने कहा है जिस समाज का इतिहास नहीं होता, वह समाज कभी भी शासक नहीं बन पाता… क्योंकि इतिहास से प्रेरणा मिलती है, प्रेरणा से जागृति आती है, जागृति से सोच बनती है, सोच से ताकत बनती है, ताकत से शक्ति बनती है और शक्ति से शासक बनता है !”
        ― इसलिए मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर आप लोगो को इतिहास के उन पन्नों से रूबरू कराने की कोशिश कर रहा हूं जिन पन्नों से बहुजन समाज का सम्बन्ध है जो पन्ने गुमनामी के अंधेरों में खो गए और उन पन्नों पर धूल जम गई है, उन पन्नों से धूल हटाने की कोशिश कर रहा हूं इस मुहिम में आप लोगों मेरा साथ दे, सकते हैं !
           ―पता नहीं क्यूं बहुजन समाज के महापुरुषों के बारे कुछ भी लिखने या प्रकाशित करते समय “भारतीय जातिवादी मीडिया” की कलम से स्याही सूख जाती है —
— इतिहासकारों की बड़ी विडम्बना ये रही है,कि उन्होंने बहुजन नायकों के योगदान को इतिहास में जगह नहीं दी इसका सबसे बड़ा कारण जातिगत भावना से ग्रस्त होना एक सबसे बड़ा कारण है इसी तरह के तमाम ऐसे बहुजन नायक हैं,जिनका योगदान कहीं दर्ज न हो पाने से वो इतिहास के पन्नों में गुम हो गए —
     ―उन तमाम बहुजन नायकों को मैं अमित गौतम जंनपद   रमाबाई नगर,कानपुर कोटि-कोटि नमन करता हूं !
जय रविदास
जय कबीर
जय भीम
जय नारायण गुरु
जय सावित्रीबाई फुले
जय माता रमाबाई अम्बेडकर जी
जय ऊदा देवी पासी जी
जय झलकारी बाई कोरी
जय बिरसा मुंडा
जय बाबा घासीदास
जय संत गाडगे बाबा
जय पेरियार रामास्वामी नायकर
जय छत्रपति शाहूजी महाराज
जय शिवाजी महाराज
जय काशीराम साहब
जय मातादीन भंगी जी
जय कर्पूरी ठाकुर 
जय पेरियार ललई सिंह यादव
जय मंडल
जय हो उन सभी गुमनाम बहुजन महानायकों की जिंन्होने अपने संघर्षो से बहुजन समाज को एक नई पहचान दी,स्वाभिमान से जीना सिखाया !    
              अमित गौतम
             युवा सामाजिक
                कार्यकर्ता         
              बहुजन समाज
  जंनपद-रमाबाई नगर कानपुर
           सम्पर्क सूत्र-9452963593

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