समग्र सामाजिक क्रांति की अग्रदूत,महान वीरांगना,राजमाता जीजाऊ (जीजाबाई) की जंयती की हार्दिक बधाईयां एवं मंगलकामनाएं


       12,जनवरी,1598
    वो थे इसलिए आज हम हैं 
       इतिहास के पन्नों से           
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— समग्र सामाजिक क्रांति की अग्रदूत,महान वीरांगना,राजमाता जीजाऊ (जीजाबाई) की जंयती की हार्दिक बधाईयां एवं मंगलकामनाएं —
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—साथियों क्या आप लोगों को पता है राजमाता जीजाबाई ने भारत वर्ष को एक राजा ही नही दिया,उन्होंने एक सामाजिक आंदोलक भी दिया। सामाजिक एकता का एक संकल्पबद्ध राजा दिया,उन्होने एक बहुभाषिक राजा दिया, उन्होने एक वास्तु रचनाकार दिया एक वास्तविक सोशल इंजीनियरिंग का स्वरूप भी दिया —
— जब जरूरत थी चमन को तो लहू हमने दिया अब बहार आई तो कहते हैं तेरा काम नहीं है —
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—एक अनोखा राजनीतिज्ञ दिया, एक कृषि वैज्ञानिक दिया, उन्होंने एक नये-नये शस्त्र औजारों का खोजकर्ता दिया। एक नई युद्धनीति का निर्माता दिया, एक नया जासूसी तंत्र दिया, एक विदेशनीतिकार दिया, सबको समान अवसर देनेवाला राजा दिया —
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— समग्र सामाजिक क्रांति की अग्रदूत,सोशल इंजीनियरिंग की पुरोधा,सेना में जातीय विभेद मिटा कर,ना कोई चमार ना कोई भंगी ना कोई गड़रिया,ना कोई,ना कोई आदिवासी। सबको एक प्रतिष्ठा,एक विचार,एक समाज,एक स्वराज्य संकल्प,एक संस्कृति की पहचान दिलाई वह है मावला ,जातिवादी समाज के खिलाफ बिगुल फूंकने वाली,महान वीरांगना,राजमाता जीजाऊ (जीजाबाई) की जंयती पर शत्-शत् नमन एंव विनम्र श्रद्धांजलि —
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— समग्र सामाजिक क्रांति के अग्रदूत राष्ट्रमाता जीजाबाई ने भारत को सामाजिक आंदोलनकारी दिया —
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— मराठा सम्राज्य की जब भी चर्चा होती है, लोगों की जुबान छत्रपति शिवाजी महाराज की शौर्यता की कहानियों आ ही हैं। किंतु क्या आप उस महिला को जानते हैं, जिन्होंने पहले शिवाजी को अंगुलियां पकड़कर चलना सिखाया फिर उन्हें एक महान योद्धा बनाया —
 
— मराठा सम्राज्य की जब भी चर्चा होती है, लोगों की जुबान छत्रपति शिवाजी महाराज की शौर्यता की कहानियां आ ही हैं। किंतु क्या आप उस वीरांगना को जानते हैं, जिन्होंने पहले शिवाजी को अंगुलियां पकड़कर चलना सिखाया फिर उन्हें एक महान संत बनाया —
— जी हां, यहां बात हो रही है छत्रपति शिवाजी महाराज की मां जीजाबाई की —
— कहते हैं कि वह शिवाजी की सिर्फ माता ही नहीं बल्कि उनके मित्र और विषक भी थे। उनका सारा जीवन साहस और त्याग से भरा हुआ है। उन्होंने जीवन भर कठिनाइयों और विपरीत परिस्थितियों का सामना किया, लेकिन धैर्य नहीं खोया और अपने 'बेटे' शिवाजी 'को समाज कल्याण के प्रति समर्पित रहने की सीख दी —
— तो इये लोगों के लिए अपने बेटे को मानवतावादी राजा बनाने वाली राजमाता जीजाबाई को जानते हैं —
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— माता जीजाऊ ने सेना में जातिय विभेद मिटा दिया- 
माँ जीजाऊ ने सारी जातियों का एकीकरण करके उन्हें एक राष्ट्रीय पहचान दी थी, वह थी मावला (मावळा)। इसमें समस्त छोटी-बडी जातियों का एकीकरण किया गया और एक नये नाम के साथ पहचान और उपाधी दी गई मावला —
— शिवराय के समाज और सैनिको की पहचान बनी मावला. ना कोई मोची ना कोई भंगी ना कोई गड़रिया ना कोई राजपूत ना कोई ठाकुर,ना कोई आदिवासी.सबको एक प्रतिष्ठा,एक विचार,एक समाज,एक स्वराज्य संकल्प, एक धर्म एक संस्कृति की पहचान दिलाई वह है मावला —
— जातिवादी समाज के खिलाफ बिगुल फूंका राजमाता जीजाऊ ने
— शिवाजी महाराज के लिए उनके जीवन में तकरीबन 3 बार साथी सैनिक शिवाजी महाराज बनकर शत्रु के पास गए और शिवराय को सही सलामत निकाला. यह इतिहास दुनिया के किसी राजा महाराजाओं के संदर्भ में आपको नही मिलेगा —
— इन सब कार्यान्वयन के पीछे थीं राष्ट्रमाता जिजाऊ जो जमात दूसरी जमात के आंगन में नही जा सकती थी. वैसे सैकड़ों बिरादरियों को जिजाऊ ने इन्सानी प्रतिष्ठा देकर शिवाजी के साथ खाना खिलाया, एक पंक्ति में बैठाया —
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— स्वराज्य आंदोलन शुरु करने से पहले का यह जो सामाजिक एकता का परिवर्तन जिजाऊ ने शिवबा के माध्यम से स्थापित किया, जिससे प्राप्त एक वैचारिक संकल्प दृढता ने ही भारतीय समाज को स्वराज्य प्रदान दिया —
—  जीजाबाई का जन्म 12,जनवरी,1598 में बुलढाणा के जिले सिंधखेद के करीब 'लखुजी जाधव' की बेटी के रूप में हुआ। उनकी माता का नाम महालस्कोई था। वह बहुत कम उम्र की थीं, जब उनकी शादी 'शाहजी भोसले' के साथ कर दी गई। जिस समय जीजाबाई की शहाजी के साथ शादी हुई, 
एक माता-पिता और पत्नी के अलावा उनके अंदर और भी तमाम गुण थे। वह खुद एक सक्षम व्यक्ति और प्रशासक के रूप में होना चाहिए थे। इस लिहाज से शौर्यता उनके रगों में भरी हुई थी —
— वह शिवाजी को हमेशा वीरता के किस्से सुनाकर उन्हें प्रेरित करता रहता था। जब शिवाजी मुश्किल में आते हैं, तो  जीजाबाई उनकी मदद में नज़र आती हैं। पिता के बिना शिवाजी को बड़ा करना उनके लिए एक बड़ी चुनौती थी, जिसको उन्होंने बखूबी निभाया —

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— छत्रपति शिवाजी महाराज को शौर्यता का पाठ पढ़ाते हुए जीजाबाई का एक किस्सा खासा मशहूर है। इसके तहत जब शिवाजी एक दुश्मन के रूप में आकार ले रहे थे, तब जीजाबाई ने एक दिन उन्हें अपने पास बुलाया और कहा, बेटा तुम्हें सिंहगढ़ के ऊपर फहराते हुए विदेशी झंडे को किसी भी तरह से उतार फेंकना होगा —
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— वह यहीं नहीं रूकीं… आगे बोलते हुए उन्होंने कहा कि अगर तुम ऐसा करने में सफल नहीं रहे, तो मैं तुम्हें अपना बेटा नहीं समझूंगी.इस पर शिवाजी ने उन्हें टोकते हुए कहा, मां मुगलों की सेना काफी बड़ी है। दूसरी हम अभी मजबूत स्थिति में नहीं हैं। ऐसे में उन पर विजय पाना कठिन होगा। इस समय ये पर विजय पाना अत्यंत कठिन कार्य है —
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— शिवाजी के यह शब्द उनके लिए बाण समान लगे 
उनकी नाराज होना लाजमी था ! मैं स्वयं ही सिंहगढ पर आक्रमण करूंगी और उस विदेशी झंडे को उतारूगीं.
माँ का यह जवाब शिवाजी को हैरान कर देने वाला था। फिर भी उन्होंने माँ की भावनाओं का सम्मान किया और तत्काल नानाजी को बुलवाया और निमंत्रण की तैयारी करने के लिए कहा। बाद में उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से सिंहगढ़ पर आक्रमण कर दिया और बड़ी जीत भी दर्ज की —
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— राजमाता जीजाऊ ने एक शेर पैदा किया था —
— महाराष्ट्र के जाधव राजा की पुत्री जीजाऊ ने कुन्बी/ कुर्मी जागीरदार शाहजी भोंसले से घर की मर्जी के खिलाफ शादी करके स्पष्ट कर दिया था कि वो सामाजिक बंधनों की गुलाम नहीं हैं। इस शेरनी से उत्पन्न पुत्र एक शेर ही हो सकता था। जिसे अपने संस्कार और शौर्य देकर जीजाऊ ने छत्रपति की कुर्सी तक पहुंचा दिया

— मां जीजाबाई ने शिवाजी में जो संस्कार दिए उससे शिवाजी महाराज ने एक राष्ट्रीय सेना बनाई जिसे मावला नाम दिया। जिसमें हजारों जातियों के एकीकरण से एक राष्ट्रीय सेना एक राष्ट्रीय समाज बना था। उससे पहले धर्म ग्रंथों के नियमों के अनुसार सिर्फ राजपूतों को ही सेना मे भर्ती होने की छूट थी ! शिवाजी महाराज के बाद पेशवाओ ने शिवाजी के पोते शाहूजी प्रथम को धोखे से मारकर मराठा सल्तनत के स्वराज्य पर कब्जा कर लिया। इसके बाद राष्ट्रीय सेना में जातियों की पक्तियां खड़ी कर दी गईं। सतारा से राजधानी पुणे ले आये और आगे चलकर भारतीय समाज के स्वाभिमान को पेशवाओं ने चकनाचूर कर दिया —
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— इस राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन की जनक राष्ट्रमाता जिजाऊ ने वीर शिवाजी के राज्याभिषेक के बारवें दिन, 17 जून 1674 को इस संसार से अपना जीवन त्याग दिया.जीजाबाई ने शिवा को तलवारबाजी, भाला चलाने की कला,घुड़सवारी, आत्मरक्षा, युद्ध-कौशल की शिक्षा में निपुण बनाया.उन्होंने दादा कोंणदेव की सहायता से शिवा को डर के सामने झुकने की बजाय उसका साहसपूर्वक सामना करने की शिक्षा दी थी —
— अच्छा प्रजाप्रिय,वीर व साहसी शासक बनाने के साथ-साथ उसमें उच्चतम चारित्रिक आदर्शों को समाहित किया । एक स्त्री होने के नाते उन्होंने शिवाजी को स्त्रियों के सम्मान तथा स्वाभिमान की रक्षा करने का दायित्व सौंपा था, जिसके कारण शिवाजी में एक आदर्श व्यक्ति,महान सेनापति, महान् साम्राज्य निर्माता, सफल प्रशासक,धार्मिक सहिष्णुता एवं उदारता के साथ-साथ कठिनाइयों का साहसपूर्ण सामना बहादुरी से करने के गुण विकसित हुए —
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— राष्ट्रमाता जीजाबाई सच्चे अर्थों में राष्ट्रमाता कहलाने के गौरव की अधिकारिणी हैं । एक भारतीय नारी किस तरह अपने पुत्र को पति की सहायता के बिना भी शिवाजी के रूप में राष्ट्रभक्त पुत्र बना सकती हैं, वह इसका उदाहरण हैं । शिवाजी के राज्याभिषेक के 11 दिनों बाद 17,जून,1674 को उनकी मृत्यु हो गयी —
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— धन्य है वह माता,जिसने छत्रपति शिवाजी महाराज जैसे निर्भिक,साहसी,शेर,सुपुत्र को जंन्म दिया एंव  प्रजा का हित करने के लिए सदा प्रेरित किया —
— विशेष साभार – नेशनल जनमत ब्यूरो 
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—  सच अक्सर कड़वा लगता है। इसी लिए सच बोलने वाले भी अप्रिय लगते हैं। सच बोलने वालों को इतिहास के पन्नों में दबाने का प्रयास किया जाता है, पर सच बोलने का सबसे बड़ा लाभ यही है, कि वह खुद पहचान कराता है और घोर अंधेरे में भी चमकते तारे की तरह दमका देता है। सच बोलने वाले से लोग भले ही घृणा करें, पर उसके तेज के सामने झुकना ही पड़ता है। इतिहास के पन्नों पर जमी धूल के नीचे ऐसे ही राष्ट्रमाता जीजाबाई जी का नाम दबा है —
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— साभार-: बहुजन समाज और उसकी राजनीति,मेरे संघर्षमय जीवन एवं बहुजन समाज का मूवमेंट,नेशनल जनमत,दलित दस्तक,विकिपीडिया —
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—— वो थे इसलिए आज हम है ——
—— यारों अगर भीम न होते तो बहुजन समाज और महिलाओं का मान सम्मान न होता अगर भीम न होते तो इस देश की मुखिया कोई महिला न होती,ये सूट बूट वाले साहब न होते शोषितों वंचित समाज में ये ऐसो आराम के समान न होते ये आलिशान महल न होते ——
   —— अगर इस भारत भूमि पर भीम न होते तो ये बड़ी बड़ी गाडियां, ये शोहरत ये इज्जत, ये अफसरशाही, सत्ता का स्वाद,न होता,ये उस सूर्य कोटि महापुरुष परमपूज्य 
बाबा साहेब की देन है जिन्होंने अपने समाज को गुलामी से आजाद कराने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर
 कर दिया ——
—— ऐसे महान शख्सियत के चरणों में शत शत नमन करता हूं, मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर वो बाबा थे जिन्होंने अपने समाज के बेटों को बचाने के लिए अपने बच्चों, पत्नी की कुर्बानी दे दी थी समाज के लिए ——
—— जरा हम लोग सोचे कि हमने क्या किया बाबा साहेब के लिए बाबा साहेब की पूजा तो हम बड़ी शिद्दत से करते हैं
ले उनकी बातों को नहीं मानते हैं ऐसे महान शख्सियत,आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक के चरणों में शत शत प्रणाम करता हूं ——
—  तो ऐसे थे हमारे आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर — 
—— साथियों आज वे हमारे बीच नही है, पर उनके द्वारा किये गए कार्यों,संघर्षों और उनके उपदेशों से हमेशा वे हमारे बीच जीवंत है। संविधान के रचयिता और ऐसे अद्वितीय समाज सुधारक को हमारा कोटि-कोटि नमन ——
 — आधुनिक भारत के महानतम समाज सुधारक और सच्चे
 महानायक, लेकिन”भारतीय जातिवादी-मानसिकता ने सदा ही इस महापुरुष की उपेक्षा ही की गई |भारत में शायद ही कोई दूसरा व्यक्ति ऐसा हो, जिसने देश के निर्माण,उत्थान और प्रगति के लिए थोड़े समय में इतना कुछ कार्य किया हो, जितना बाबासाहेब आंबेडकर जी ने किया है और शायद ही कोई दूसरा व्यक्ति हो, जो निंदा, आलोचनाओं आदि का उतना शिकार हुआ हो,जितना बाबासाहेब आंबेडकर जी हुए थे —
—— बाबासाहेब आंबेडकर जी ने भारतीय संविधान के तहत कमजोर तबके के लोगों को जो कानूनी हक दिलाये है। इसके लिए बाबा साहेब आंबेडकर जी को कदम-कदम पर काफी संघर्ष करना पड़ा था ——
—— आवो जानें पे बैक टू सोसायटी क्या ——
—— ऐ मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय,ज्ञान,बुद्धि, पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो ——
—— तुम्हारें अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए मैं दुबारा नहीं आऊंगा,ये क्रांति का रथ संघर्षो का कारवां ,जो मैं बड़े दुखों,कष्टों को सहकर यहाँ तक ले आया हूँ,अब आगे तुम्हे ही ले जाना है  ——
—— साथियों बाबा साहेब जी अपने अंतरिम दिनोँ में अकेले रोते हुऐ पाए गए। बाबा साहेब अम्बेडकर जी से जब काका कालेलकर कमीशन 1953 में मिलने के लिए गया ,तब कमीशन का सवाल था कि आपने पूरी जिन्दगी पिछड़े,शोषित,वंचित वर्ग समाज  के उत्थान के लिए लगा दी काका कालेकर कमीशन ने पूछा बाबा साहेब जी आपकी राय में क्या किया जाना चाहिए बाबा साहेब ने जवाब दिया कि पिछड़े,शोषित,वंचित समाज का उत्थान करना है तो इनके अंदर बड़े लोग पैदा करने होंगें ——
—— काका कालेलकर कमीशन के सदस्यों को यह बात समझ नहीं आई  तो उन्होने फिर सवाल किया “बड़े लोग से आपका क्या तात्पर्य है ? " बाबा साहेब जी ने जवाब दिया कि अगर किसी समाज में 10 डॉक्टर , 20 वकील और 30 इन्जिनियर पैदा हो जाऐ तो उस समाज की तरफ कोई आंख ऊठाकर भी देख नहीं सकता !"
—— इस वाकये के ठीक 3 वर्ष बाद 18 मार्च 1956 में आगरा के रामलीला मैदान में बोलते हुऐ बाबा साहेब ने कहा "मुझे पढे लिखे लोगों ने धोखा दिया। मैं समझता था कि ये लोग पढ लिखकर अपने समाज का नेतृत्व करेगें , मगर मैं देख रहा हुँ कि  मेरे आस-पास बाबुओं की भीड़ खड़ी हो रही है जो अपना ही पेट पालने में लगी है !" 
—— साथियों बाबा साहेब अपने अन्तिम दिनो में अकेले रोते हुए पाए गए ! जब वे सोने की कोशिश करते थे तो उन्हें नींद नहीं आती थी,अत्यधिक परेशान रहने वाले थे बाबा साहेब के निजी सचिव  नानकचंद रत्तु ने बाबा साहेब जी से सवाल पुछा कि , आप इतना परेशान क्यों रहते है बाबा साहेब जी ? ऊनका जवाब था , " ——
—— नानकचंद , ये जो तुम दिल्ली देख रहो हो अकेली दिल्ली में 10,000 कर्मचारी ,अधिकारी यह केवल अनुसूचित जाति के है  ! जो कुछ साल पहले शून्य थे मैँने अपनी जिन्दगी का सब कुछ दांव पर लगा दिया,अपने लोगों में पढ़े लिखे लोग पैदा करने के लिए क्योंकि  मैं जानता था कि जब मैं अकेल पढ लिख कर इतना काम कर सकता हुँ  अगर हमारे हजारों लोग पढ लिख जायेगें तो बहुजन समाज में कितना बड़ा परिवर्तन आयेगा लेकिन नानकचंद,मैं जब पुरे देश की तरफ निगाह दौड़ाता हूँ हूँ तो मुझे कोई ऐसा  नौजवान नजर नहीं आता है,जो मेरे कारवाँ को आगे ले जा सकता है नानकचंद,मेरा शरीर मेरा साथ नहीं दे रहा है ,जब मैं अपने मिशन के बारे में सोचता हुँ,तो मेरा सीना दर्द से फटने लगता है ——
—— जिस महापुरुष ने अपनी पुरी जिन्दगी,अपना परिवार ,बच्चे आन्दोलन की भेँट चढाए,जिसने पुरी जिन्दगी इस विश्वास में लगा दी  कि , पढा -लिखा वर्ग ही अपने शोषित वंचित भाइयों को आजाद करवा सकता हैं जिन्होंने अपने लोगों को आजाद कर पाने का मकसद अपना मकसद बनाया था,क्या उनका सपना पूरा हो गया ? आपके क्या फर्ज  बनते हैं समाज के लिए ?
—— सम्मानित साथियों जरा सोचो आज बाबा साहेब की वजह से हम ब्रांडेड कपड़े, ब्रांडेड जूते, ब्रांडेड मोबाइल, ब्रांडेड घड़ियां हर कुछ ब्रांडेड इस्तेमाल करने के लायक बन गए हैं बहुत सारे लोग बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू, शराब पर सैकड़ों रुपये बर्बाद करते हैं ! इस पर औसतन 500 रुपये खर्च आता है,चाउमीन, गोलगप्पे, सूप आदि पर हरोज 20 से 50 रुपये खर्च आता है। महिने में ओसतन 600 से 1500 रुपये तक खर्च हो सकते हैं ——
—— बाबा साहेब के अधिकारों,संघर्षो,प्रावधानों की वजह से जो लोग इस लायक हो गए हैं  हम लोगों पर बाबा साहेब ने विश्वास नहीं किया क्योंकि हमने बाबा साहेब के साथ विश्वासघात किया था ! उनके द्वारा दिखाए गए सपनों से हम दूर चले गए नौकरी आयी और आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक बाबा साहेब अम्बेडकर जी को भूल गए —— 
——"हमारे उपर बाबा साहेब का बहुत बड़ा कर्ज है, 
क्या आप उसे उतार सकते हैं,नहीं रत्तीभर भी नहीं हम जिस शख्स ने इस देश के शोषित,वंचित, पिछले, समाज,सर्वसमाज,महिलाओं भारतवर्ष के लिए अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी,अपने बच्चे,पत्नी अपने सुख चैन सब कुछ कुर्बान कर दिया जरा सोचो किसके लिए आप लोगों के लिए और हम लोग क्या कर रहें हैं टीवी,बीवी में मस्त है मिशन को भूल गये ——
—— लेकिन हमें फिर से पहले की तरह बाबा साहेब को धोखा नहीं देना चाहिए,पढ़े-लिखे लोगो अपने उपर से धोखेबाज का लेबल उतारो और बाबा साहेब के मिशन को आगे बढ़ाओ ——
——आपके बीड़ी, सिगरेट पर खर्च होने वाले 15 रुपये से न जाने कितने बच्चों को शिक्षा मिल सकती है,आपके फास्टफूड पर खर्च होने वाले 50 रुपये से न जाने कितने गरीब लोगों को दवाई मिल सकती है !आपके इन पैसों से न जाने कितने मिशनरी साथियों का खर्च चल रहा है जो पूरा जीवन समाज सेवा मे लगा रहे हैं ——
—— जरा अपने दिल पर हाथ रख कर कहो तुम क्या बाबा साहेब के पे बैक टू सोसाइटी सिद्धांत पर चल रहे हो ——
—— केवल भंडारे देना,चंदा देना,कार्यक्रम करना,ठंडे पानी की स्टाल लगाना पे बैक टू सोसाइटी नहीं है ——
——अपने जैसे सक्षम लोग पैदा करना पे बैक टू सोसाइटी है गरीब बच्चों को शिक्षित करना पे बैक टू सोसाइटी है,शिक्षित लोगों को नौकरियां दिलाना डाक्टर है ——
——बहुजनों को वैज्ञानिक,इंजिनियर,वकील,शिक्षक,डाक्टर इत्यादि बनाना पे बैक टू सोसाइटी है.बाबा साहेब के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए लगे हुए मिशनरियों को मदद देना असली पे बैक टू सोसाइटी है ——
—— आप जो पोजिशन पर है आपका फर्ज बनता है कि मेरे समाज का हर बच्चा उस पोजिशन पर पहुंचे यह पे बैक टू सोसाइटी है,अतः हम पढे-लिखे, नौकरीपेशा समाज से अपील करते हैं कि आप अपने उपर लगे धोखेबाज के लेबल को उतारने की कोशिश करें आपने ग़ैर-भाई बहनों के पास जाओ,उनकी ऊपर उठने में मदद करें,अपने उद्योग धंधे, व्यापार आदि शुरू करें, अपने आप को बेरोजगार बहुजनों के लिए रोजगार की व्यवस्था करें,अपना व्यवसाय शुरू करें, अपने समाज का पैसा अपने समाज में रोकें ——
 —— प्रयत्न करें,जब तक बाबा साहेब का पे बैक टू सोसाइटी  का सिद्धांत लागू नहीं होगा तब तक देश से गरीबी नहीं मिटेगी ——
——  साभार-: बहुजन समाज और उसकी राजनिति,मेरे संघर्षमय जीवन एवं बहुजन समाज का मूवमेंट {संदर्भ- सलेक्टेड ऑफ डाँ अम्बेडकर – लेखक डी.सी. अहीर पृष्ठ क्रमांक 110 से 112 तक के भाषण का हिन्दी अनुवाद), श्री गुरु रविदास जन-जागृति एवं शिक्षा समिति,(राजी),दलित दस्तक ,समय बुद्धा,,पुस्तक-'डॉ.बाबासाहेब अंबेडकर के महत्वपूर्ण संदेश एवं विद्वत्तापूर्ण कथन' के थर्ड कवर पृष्ठ से,लेखक-नानकचंद रत्तू-अनुवादक-गौरव कुमार रजक, अंकित कुमार गौतम,संपादन-अमोल वज्जी,प्रकाशक-डी के खापर्डे मेमोरियल ट्रस्ट (पब्लिकेशन डिवीजन)527ए, नेहरू कुटिया, निकट अंबेडकर पार्क, कबीर बस्ती, मलका गंज, नई दिल्ली -07, विकिपीडिया} ——
 ——"सामाजिक क्रांति के अग्रदूत,मानवता की प्रचारक महामानव बाबा साहेब अम्बेडकर जी के  चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं ——
— साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए आधुनिक भारत के निर्माता बाबासाहेब अम्बेडकर जी ने वह कर दिखाया जो उस दौर में सोच पाना भी मुश्किल था —  
— साथियों आज हमें अगर कहीं भी खड़े होकर अपने विचारों की अभिव्यक्ति करने की आजादी है,समानता का अधिकार है तो यह सिर्फ और सिर्फ परमपूज्य बाबासाहेब आंबेडकर जी के संघर्षों से मुमकिन हो सका है.भारत वर्ष का जनमानस सदैव बाबा साहेब डा भीमराव अंबेडकर जी का कृतज्ञ रहेगा.इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी बात खत्म करता हूं। सामाजिक न्याय के पुरोधा तेजस्वी क्रांन्तिकारी शख्शियत परमपूज्य बोधिसत्व भारत रत्न बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं 
      — जिसने देश को दी नई दिशा””…जिसने आपको नया जीवन दिया वह है आधुनिक भारत के निर्माता बाबा साहेब अम्बेडकर जी का संविधान —
  — सच  अक्सर कड़वा लगता है। इसी लिए सच बोलने वाले भी अप्रिय लगते हैं। सच बोलने वालों को इतिहास के पन्नों में दबाने का प्रयास किया जाता है, पर सच बोलने का सबसे बड़ा लाभ यही है, कि वह खुद पहचान कराता है और घोर अंधेरे में भी चमकते तारे की तरह दमका देता है। सच बोलने वाले से लोग भले ही घृणा करें, पर उसके तेज के सामने झुकना ही पड़ता है ! इतिहास के पन्नों पर जमी धूल के नीचे ऐसे ही बहुजन महापुरुषों का गौरवशाली इतिहास दबा है —
     ―मां कांशीराम साहब जी ने एक एक बहुजन नायक को बहुजन से परिचय कराकर, बहुजन समाज के लिए किए गए कार्य से अवगत कराया सन 1980 से पहले भारत के  बहुजन नायक भारत के बहुजन की पहुँच से दूर थे,इसके हमें निश्चय ही मान्यवर कांशीराम साहब जी का शुक्रगुजार होना चाहिए जिन्होंने इतिहास की क्रब में दफन किए गए बहुजन नायक/नायिकाओं के व्यक्तित्व को सामने लाकर समाज में प्रेरणा स्रोत जगाया ——
   ―इसका पूरा श्रेय मां कांशीराम साहब जी को ही जाता है कि उन्होंने जन जन तक गुमनाम बहुजन नायकों को पहुंचाया, मां कांशीराम साहब के बारे में जान कर मुझे भी लगा कि गुमनाम बहुजन नायकों के बारे में लिखा जाए !
   —— ऐ मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय ज्ञान,पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो ——
      —―साथियों एक बात याद रखना आज करोड़ों लोग जो बाबासाहेब जी,माँ रमाई के संघर्षों की बदौलत कमाई गई रोटी को मुफ्त में बड़े चाव और मजे से खा रहे हैं ऐसे लोगों को इस बात का अंदाजा भी नहीं है जो उन्हें ताकत,पैसा,इज्जत,मान-सम्मान मिला है वो उनकी बुद्धि और होशियारी का नहीं है बाबासाहेब जी के संघर्षों की बदौलत है ——
      —– साथियों आँधियाँ हसरत से अपना सर पटकती रहीं,बच गए वो पेड़ जिनमें हुनर लचकने का था ——
       ―तमन्ना सच्ची है,तो रास्ते मिल जाते हैं,तमन्ना झूठी है,तो बहाने मिल जाते हैं,जिसकी जरूरत है रास्ते उसी को खोजने होंगें निर्धनों का धन उनका अपना संगठन है,ये मेरे बहुजन समाज के लोगों अपने संगठन अपने झंडे को मजबूत करों शिक्षित हो संगठित हो,संघर्ष करो !
      ―साथियों झुको नही,बिको नहीं,रुको नही, हौसला करो,तुम हुकमरान बन सकते हो,फैसला करो हुकमरान बनो"
       ―सम्मानित साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए !
        ―सभी अम्बेडकरवादी भाईयों, बहनो,को नमो बुद्धाय सप्रेम जयभीम! सप्रेम जयभीम !!
             ―बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर  जी ने कहा है जिस समाज का इतिहास नहीं होता, वह समाज कभी भी शासक नहीं बन पाता… क्योंकि इतिहास से प्रेरणा मिलती है, प्रेरणा से जागृति आती है, जागृति से सोच बनती है, सोच से ताकत बनती है, ताकत से शक्ति बनती है और शक्ति से शासक बनता है !”
        ― इसलिए मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर आप लोगो को इतिहास के उन पन्नों से रूबरू कराने की कोशिश कर रहा हूं जिन पन्नों से बहुजन समाज का सम्बन्ध है जो पन्ने गुमनामी के अंधेरों में खो गए और उन पन्नों पर धूल जम गई है, उन पन्नों से धूल हटाने की कोशिश कर रहा हूं इस मुहिम में आप लोगों मेरा साथ दे, सकते हैं !
           ―पता नहीं क्यूं बहुजन समाज के महापुरुषों के बारे कुछ भी लिखने या प्रकाशित करते समय “भारतीय जातिवादी मीडिया” की कलम से स्याही सूख जाती है —
— इतिहासकारों की बड़ी विडम्बना ये रही है,कि उन्होंने बहुजन नायकों के योगदान को इतिहास में जगह नहीं दी इसका सबसे बड़ा कारण जातिगत भावना से ग्रस्त होना एक सबसे बड़ा कारण है इसी तरह के तमाम ऐसे बहुजन नायक हैं,जिनका योगदान कहीं दर्ज न हो पाने से वो इतिहास के पन्नों में गुम हो गए —
     ―उन तमाम बहुजन नायकों को मैं अमित गौतम जंनपद   रमाबाई नगर,कानपुर कोटि-कोटि नमन करता हूं !
जय रविदास
जय कबीर
जय भीम
जय नारायण गुरु
जय सावित्रीबाई फुले
जय माता रमाबाई अम्बेडकर जी
जय ऊदा देवी पासी जी
जय झलकारी बाई कोरी
जय बिरसा मुंडा
जय बाबा घासीदास
जय संत गाडगे बाबा
जय पेरियार रामास्वामी नायकर
जय छत्रपति शाहूजी महाराज
जय शिवाजी महाराज
जय काशीराम साहब
जय मातादीन भंगी जी
जय कर्पूरी ठाकुर 
जय पेरियार ललई सिंह यादव
जय मंडल
जय हो उन सभी गुमनाम बहुजन महानायकों की जिंन्होने अपने संघर्षो से बहुजन समाज को एक नई पहचान दी,स्वाभिमान से जीना सिखाया !    
              अमित गौतम
             युवा सामाजिक
                कार्यकर्ता         
              बहुजन समाज
  जंनपद-रमाबाई नगर कानपुर
           सम्पर्क सूत्र-9452963593



                                 

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