एक राजनीतिक योद्धा जिसने अपमान का घूंट पीकर भी बदलाव की इबादत लिखी, जननायक कर्पूरी ठाकुर की जंयती की हार्दिक बधाईयां एवं मंगलकामनाएं

  
      24,जनवरी,1924
      वो थे इसलिए आज हम हैं 
        इतिहास के पन्नों से 
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  — शायद आप लोगों न पता हो नाई समाज(OBC) में जंन्में स्वाभिमान के प्रतीक,शोषितों,वंचितों,पिछडों के मशीहा महान देशभक्त,स्वतंत्रता सेनानी,पूर्व शिक्षामंत्री , उपमुख्यमंत्री,मुख्यमंत्री,एक राजनीतिक योद्धा जिसने अपमान का घूंट पीकर भी बदलाव की इबादत लिखी, जननायक कर्पूरी ठाकुर की जंयती की हार्दिक बधाईयां एवं मंगलकामनाएं —
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— जब जरूरत थी चमन को तो लहू हमने दिया अब बहार आई तो कहते हैं तेरा काम नहीं है —
— जब हौसला बना लिया ऊंची उड़ान का फिर देखना  फिजूल है,कद आसमान का —

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— जागो बहुजन समाज जागो अपने इतिहास को पढ़ो —
  — बहुजन समाज के सम्मानित साथियों एंव माता बहनों को सबसे पहले धम्म प्रभात,नमो बुद्धाय,जय भीम मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर, कानपुर आप लोगों को इतिहास के उन पन्नों से रूबरू करवाना चाहता हूँ ! जिससे आप लोग शायद अनिभिज्ञ हो —
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           — जय कर्पूरी ठाकुर —
— आज हम बात कर रहें हैं नाई समाज(OBC) के स्वाभिमान के प्रतीक,शोषितों,वंचितों,पिछडों के मशीहा महान देशभक्त,स्वतंत्रता सेनानी,पूर्व शिक्षामंत्री , उपमुख्यमंत्री,मुख्यमंत्री,एक राजनीतिक योद्धा जिसने अपमान का घूंट पीकर भी बदलाव की इबादत लिखी, जननायक कर्पूरी ठाकुर की  —
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— हिन्दी पट्टी के बहुजन नेता कर्पूरी ठाकुर
जब वे राज्य के उपमुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री थे तब उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा में अंग्रेज़ी विषय की अनिवार्यता समाप्त कर दी। मुख्यमंत्री बतौर अपनी पहली पारी में उन्होंने सरकारी ठेकों में बेरोज़गार इंजीनियरों को प्राथमिकता देने का निर्णय लिया। मुख्यमंत्री बतौर अपनी दूसरी पारी में उन्होंने सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थाओं में ओबीसी के लिए आरक्षण लागू किया और आगे चलकर भूमिहीन दलितों और गरीबों को हथियारों से लैस करने की वकालत की —
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— मानवता के प्रचारक,जननायक कर्पूरी ठाकुर को शत्-शत् नमन एंव विनम्र श्रद्धांजलि —
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 — जननायक कर्पूरी ठाकुर ने अपनी पूरी जिंदगी जनता के लिए संघर्षों, गरीबों, मजलूमों और हासिए पर पड़ी ताकतों के लिए अर्पित कर दी। उन्होंने देश की आजादी की लड़ाई लड़ने के साथ ही देश में सामाजिक न्याय और समरसता स्थापित करने के लिए संघर्ष किया गरीबों,मजलूमों एक दमदार आवाज थे —       
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— जागो बहुजन समाज जागो अपने इतिहास को पढ़ो —
  — बहुजन समाज के सम्मानित साथियों एंव माता बहनों को सबसे पहले धम्म प्रभात,नमो बुद्धाय,जय भीम मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर, कानपुर आप लोगों को इतिहास के उन पन्नों से रूबरू करवाना चाहता हूँ ! जिससे आप लोग शायद अनिभिज्ञ हो —
— दर्द सबके एक है,मगर हौंसले सबके अलग अलग है,कोई हताश हो के बिखर गया तो कोई संघर्ष करके निखर गया —
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— बहुजन नायक,एक राजनीतिक योद्धा जिसने अपमान का घूंट पीकर भी बदलाव की इबारत लिखी :-- शोषित,वंचितों,पिछड़ो के मशीहा जननायक कर्पूरी ठाकुर जी की —
— आज उनकी जंयती है.आवो हम सभी मिलकर उंन्हे याद करें और विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करें —
— सबके एक है,मगर हौंसले सबके अलग अलग है,कोई हताश हो के बिखर गया तो कोई संघर्ष करके निखर गया —
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— बहुजन समाज के सम्मानित साथियों जब भी देश की जंगे आजादी उसके संघर्ष की बात की बात होती है, तो अक्सर उच्च वर्ग के लोगों के नाम सामने आते हैं.इतिहास के पन्ने पलटने पर भी शोषित,वंचित,समाज को मायूसी ही लगती है.असल में एक सोची-समझी साजिश के तहत इतिहासकारों ने जंगे आजादी की लड़ाई के इतिहास से बहुजनों का नाम और उनके द्वारा किए गये संघर्षो को मिटा दिया  या फिर उनकी पहचान जाहिर नहीं की शिक्षा के प्रसार के बाद अब इस समाज के लोग आजादी के अपने नायकों को ढूंढ़-ढूंढ़ कर सामने लाने लगे हैं —
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— अंग्रेजों की गुलामी से देश को आजाद कराने में न जाने कितने शोषित,वंचित, पिछड़ो और आदिवासियों ने जान की बाजी लगा दी.अपना लहू बहाया और शहीद हो गए 
ऐसे वीर योद्धाओं को शत्-शत् नमन —
— बेदाग छवि के कर्पूरी ठाकुर से पहले 2 बार और आजादी के बाद 18 बार जेल गये.जंगे आजादी की लड़ाई में 26 माह तक जेल में रहे.फिर आपातकाल के दौरान नेपाल में रहे,1952 में बिहार विधानसभा के सदस्य बने —
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—शोषितों को जगाने के लिए वो अक्सर भाषणों में कहा करतें थे —
— उठ जाग मुसाफिर भोर भई अब रैन कहाँ जो सोवत है —
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— जननायक कर्पूरी ठाकुर का संपूर्ण जीवन ही सहजता का पर्याय था ! कर्पूरी ठाकुर का जन्म भारत में ब्रिटिश शासन काल के दौरान समस्तीपुर के एक गांव पितौंझिया में 24 जनवरी,1924 को हुआ था. इनके माता-पिता का नाम रामदुलारी देवी और गोकुल ठाकुर था। वे नाई जाति से थे। अपने कॉलेज दिनों से ही वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय हो गए और गिरफ्तार हुए। वे आजादी के बाद 1952 में हुए पहले आम चुनाव में बतौर जननेता लड़े और बिहार विधानसभा पहुँचे.उसके बाद बिहार की मजलूम जनता ने उन्हें हमेशा सर आँखों पर ही बिठा कर रखा। फलतः, वह चुनाव कभी नहीं हारेउन्होंने भी अपना पूरा जीवन जनता के मुद्दों के लिए लड़ते हुए और समाधान करते हुए बिता दिया।बाद में उनके सम्मान में इस गांव का नाम कर्पूरीग्राम हो गया. सामाजिक रुप से पिछड़ी किन्तु सेवा भाव के महान लक्ष्य को चरितार्थ करती नाई जाति में उनका जन्म हुआ —
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— वे कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे और उसकी जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वाह किया और आनेवाले पीढ़ियों के लिए मिसाल कायम की। वे 1967-68 में द्वितीय उपमुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री रहे। उसके बाद, वे पहली बार लगभग छह महीने के लिए (22 दिसंबर,1970 – 2 जून,1971) मुख्यमंत्री बने और दूसरी बार लगभग दो साल के लिए (24 जून,1977 – 21 अप्रैल,1979) मुख्यमंत्री बने। अपने अल्प कार्यकाल में ही उन्होंने भारतीय राजनीति में इतना काम कर दिया जिसके कारण उन्हें “जननायक” कहा जाने लगा —
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— जननायक कर्पूरी ठाकुर भारत के स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक, राजनीतिज्ञ तथा बिहार राज्य के मुख्यमंत्री रहे !  लोकप्रियता के कारण उन्हें जन-नायक कहा जाता है. उनका पूरा जीवन संघर्ष की मिसाल रहा. तो अपने राजनीतिक जीवन को भी उन्होंने निष्कलंक और पूरी ईमानदारी के साथ जीया और हमेशा गरीबों और शोषितों की भलाई के लिए सोचते और लड़ते रहें. भारत छोड़ो आन्दोलन के समय उन्होंने 26 महीने जेल में बिताए थे —
— आजादी के बाद उनके राजनीतिक जीवन को नई ऊंचाई मिली. तब सत्ता में आने पर देश भर में कांग्रेस के भीतर कई तरह की बुराइयां पैदा हो चुकी थीं,इसलिए उसे सत्ताच्युत करने के लिए सन 1967 के आम चुनाव में डॉ. राममनोहर लोहिया के नेतृत्व में गैर कांग्रेसवाद का नारा दिया गया. कांग्रेस पराजित हुई और बिहार में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी.कमान कर्पूरी ठाकुर को मिली
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— जननायक कर्पूरी ठाकुर जी के मुख्यमंत्री रहते हुए ही बिहार अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण लागू करने वाला देश का पहला राज्य बना था —
— बिहार में 1978 में हाशिये पर धकेल दिये वर्ग के लिए सरकारी रोजगार में 26 प्रतिशत आरक्षण लागू करने पर उन्हें क्या क्या न कहा गया भद्दी गालियां दी गयीं,जो यहाँ लिखने लायक नहीं है —
— जातिगत मानसिकता से ग्रस्त लोग उन पर तंज कसते.हुए ये भी बोलते थे कर कर्पूरी कर पूरा छोड़ गद्दी धर उस्तरा —
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— 1952 में कर्पूरी ठाकुर पहली बार.विधायक बने थे ! उन्हीं दिनों उनका आस्ट्रिया जाने वाले एक प्रतिनिधि मंडल मएं चयन हुआ था ! उनके पास कोट नहीं था.तो एक दोस्त से कोट मांगा —
— वह भी फटा हुआ था.खैर कर्पूरी ठाकुर जी वही कोट पहन कर चले गये,वहाँ यूगोस्लाविया के मुखिया मार्शल टीटो ने देखा कि कर्पूरी जी का कोट फटा हुआ है,तो नया कोट गिफ्ट किया —
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— आज जब रातनेता अपने मंहगे कपड़ो और  दिन में कई बार ड्रेस बदलने को लेकर चर्चा में आते रहते हो.तो ऐसे किस्से अविश्वसनीय ही लगते हैं.एक और उदाहरण है सन् 1974 में कर्पूरी ठाकुर जी के छोटे बेटे का मेडिकल की पढ़ाई के लिए चयन हुआ, पर.वे बिमार पड़ गये.दिल्ली के राममनोहर लोहिया हास्पिटल में भर्ती थे.हार्ट की सर्जरी होनी थी,इंदिरा गांधी जी को जैसे ही पता चला,एक राज्यसभा सांसद को भेजा और उन्हें एम्स भर्ती कराया —
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— खुद भी दो बार मिलने गईं. इलाज के लिए अमेरिका भेजने की पेशकश की सरकारी खर्च पर.कर्पूरी ठाकुर जी को पता चला तो उन्होंने कहा कि वे मर जाएंगे पर बेटे का इलाज़ सरकारी खर्च पर नहीं कराएंगे. बाद में जेपी ने कुछ व्यवस्था कर न्यूज़ीलैंड भेजकर उनके बेटे का इलाज़ कराया —
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—  इसी तरह एक और किस्सा है कि प्रधानमंत्री चरण सिंह उनके घर गए तो दरवाज़ा इतना छोटा था कि चौधरी जी को सर में चोट लग गई. पश्चिमी उत्तर प्रदेश वाली खांटी शैली में चरण सिंह ने कहा, ‘कर्पूरी, इसको ज़रा ऊंचा करवाओ.’ जवाब आया, ‘जब तक बिहार के ग़रीबों का घर नहीं बन जाता, मेरा घर बन जाने से क्या होगा?’
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— जननायक कर्पूरी ठाकुर का जीवन ताउम्र संघर्ष रहा. 1978 में बिहार का मुख्यमंत्री रहते हुए जब उन्होंने हाशिये पर धकेल दिये वर्ग के लिए सरकारी नौकरियों में 26 प्रतिशत आरक्षण लागू किया तो उन्हें क्या-क्या न कहा गया. लोग उनकी मां-बहन-बेटी-बहू का नाम लेकर भद्दी गालियां देते —
— 1978 में कर्पूरी ठाकुर की सरकार ने सिंचाई विभाग में 17000 पदों के लिए आवेदन मंगाए. हफ्ता भर बीतते-बीतते उनकी सरकार गिर गई. कई इन दोनों बातों का आपस में संबंध मानते हैं. उनके मुताबिक पहले होता यह था कि बैक डोर से अस्थायी बहाली कर दी जाती थी, बाद में उसी को नियमित कर दिया जाता था. माना जाता है कि एक साथ इतने लोग खुली भर्ती के ज़रिये नौकरी पाएं, यह सरकारी व्यवस्था पर कुंडली मारकर बैठे एक वर्ग को मंजूर नहीं था सो कर्पूरी ठाकुर को जाना पड़ा —
— मां लालू प्रसाद यादव जी के वे राजनीतिक गुरू थे. जननायक कर्पूरी ठाकुर जब मुख्यमंत्री थे तो उनके प्रधान सचिव थे यशवंत सिन्हा. वे आगे जाकर वाजपेयी सरकार में वित्त और विदेश मंत्री बने  —
—  किस्सा है कि एक दिन दोनों अकेले में बैठे थे तो कर्पूरी ठाकुर ने यशवंत सिन्हा कहा, ‘आर्थिक दृष्टिकोण से आगे बढ़ जाना,सरकारी नौकरी मिल जाना, इससे क्या यशवंत बाबू आप समझते हैं कि समाज में सम्मान मिल जाता है? जो वंचित वर्ग के लोग हैं,उसको इसी से सम्मान प्राप्त हो जाता है क्या? नहीं होता है.’
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— आगे उन्होंने अपना उदाहरण दिया. वे मैट्रिक में फर्स्ट डिविज़न से पास हुए थे. नाई का काम कर रहे उनके बाबूजी उन्हें गांव के समृद्ध वर्ग के एक व्यक्ति के पास लेकर गए और कहा, ‘सरकार,ये मेरा बेटा है,फर्स्ट डिविजन से पास किया है.’ उस आदमी ने अपनी टांगें टेबल के ऊपर रखते हुए कहा, ‘अच्छा,फर्स्ट डिविज़न से पास किए हो? मेरा पैर दबाओ —
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— इस तरह की तमाम चुनौतियों से पार पाते हुए जननायक कर्पूरी ठाकुर आगे बढ़े.1967 में जब पहली बार नौ राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारों का गठन हुआ तो महामाया प्रसाद के मंत्रिमंडल में वे शिक्षा मंत्री और उपमुख्यमंत्री बने.उन्होंने मैट्रिक में अंग्रेज़ी की अनिवार्यता समाप्त कर दी और यह बाधा दूर होते ही क़स्बाई-देहाती लड़के भी उच्च शिक्षा की ओर अग्रसर हुए,नहीं तो पहले वे मैट्रिक में ही अटक जाते थे.
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— कांग्रेस विरोधी राजनीति के अहम नेताओं में कर्पूरी ठाकुर शुमार किए जाते रहे. इंदिरा गांधी अपातकाल के दौरान तमाम कोशिशों के बावजूद उन्हें गिरफ़्तार नहीं करवा सकीं थीं —
— पहली बार उपमुख्यमंत्री बनने पर उन्होंने अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म किया. उन्हें शिक्षा मंत्री का पद भी मिला हुआ था और उनकी कोशिशों के चलते ही मिशनरी स्कूलों ने हिंदी में पढ़ाना शुरू किया —
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— वो देश के पहले मुख्यमंत्री थे,जिन्होंने अपने राज्य में मैट्रिक तक मुफ्त पढ़ाई की घोषणा की थी. उन्होंने राज्य में उर्दू को दूसरी राजकीय भाषा का दर्जा देने का काम किया —
— मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने राज्य के सभी विभागों में हिंदी में काम करने को अनिवार्य बना दिया था. इतना ही नहीं उन्होंने राज्य सरकार के कर्मचारियों के समान वेतन आयोग को राज्य में भी लागू करने का काम सबसे पहले किया था.युवाओं को रोजगार देने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता इतनी थी कि एक कैंप आयोजित कर 9000 से ज़्यादा इंजीनियरों और डॉक्टरों को एक साथ नौकरी दे दी. इतने बड़े पैमाने पर एक साथ राज्य में इसके बाद आज तक इंजीनियर और डॉक्टर बहाल नहीं हुए —
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— मुख्यमंत्री के तौर पर महज ढाई साल के वक्त में गरीबों के लिए उनकी कोशिशें की ख़ासी सराहना हुई. ख़ास बात ये भी है कि वे बिहार के पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे.दिन रात राजनीति में ग़रीब गुरबों की आवाज़ को बुलंद रखने की कोशिशों में जुटे कर्पूरी की साहित्य, कला एवं संस्कृति में काफी दिलचस्पी थी —
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— 1970 में 163 दिनों के कार्यकाल वाली कर्पूरी ठाकुर की पहली सरकार ने कई ऐतिहासिक फ़ैसले लिए. आठवीं तक की शिक्षा मुफ़्त कर दी गई. उर्दू को दूसरी राजकीय भाषा का दर्ज़ा दिया गया. सरकार ने पांच एकड़ तक की ज़मीन पर मालगुज़ारी खत्म कर दी. जब 1977 में वे दोबारा मुख्यमंत्री बने तो एस-एसटी के अलावा ओबीसी के लिए आरक्षण लागू करने वाला बिहार देश का पहला सूबा बना —
— 11 नवंबर 1978 को उन्होंने महिलाओं के लिए तीन फीसदी (इसमें सभी जातियों की महिलाएं शामिल थीं), पिछडों के लिए 20 फीसदी यानी कुल 26 फीसदी आरक्षण की घोषणा की. इसके लिए ऊंचे तबकों ने एक बड़े वर्ग ने भले ही कर्पूरी ठाकुर को कोसा हो, लेकिन वंचितों ने उन्हें सर माथे बिठाया. इस हद तक कि 1984 के एक अपवाद को छोड़ दें तो वे कभी चुनाव नहीं हारे —
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— सादगी के पर्याय कर्पूरी ठाकुर लोकराज की स्थापना के हिमायती थे. उन्होंने अपना सारा जीवन इसमें लगा दिया. 17 फरवरी 1988 को अचानक तबीयत बिगड़ने से उनका देहांत हो गया. आज उन्हें एक जातिविशेष के दायरे में सीमित कर दिया जाता है जबकि उनके दायरे में वह पूरा समाज आता था जिसकी तीमारदारी को उन्होंने अपना मिशन बना लिया था —
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— मानवता के प्रचारक,जननायक कर्पूरी ठाकुर जी अपने मुख्यमंत्री काल में उपेक्षित लोगों को राजनीति में स्थापित करने का कार्य किया था। उनके द्वारा किए गये कार्य को भुलाया नही जा सकता —
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— 1990 की बात है. बिहार में खगड़िया जिले में पड़ने वाले अलौली में मां लालू प्रसाद यादव जी का एक कार्यक्रम था. इस दौरान उन्होंने राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर का जिक्र किया. लालू यादव जी का कहना था, ‘जब कर्पूरी जी आरक्षण की बात करते थे, तो लोग उन्हें मां-बहन-बेटी की गाली देते थे. और, जब मैं आरक्षण (रिजर्वेशन) की बात करता हूं, तो लोग गाली देने के पहले अगल-बगल देख लेते हैं कि कहीं कोई पिछड़ा-दलित-आदिवासी सुन तो नहीं रहा है.’ मां लालू प्रसाद यादव जी ने आगे इसका श्रेय उस ताकत को दिया जो जननायक कर्पूरी ठाकुर जी ने हाशिये पर रह रहे समुदायों को दी थी —
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— जननायक कर्पूरी ठाकुर जी से जुड़ी कुछ बातें —
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— कर्पूरी के 'कर्पूरी ठाकुर' होने की कहानी भी बहुत दिलचस्प है. वशिष्ठ नारायण सिंह लिखते हैं,समाजवादी नेता रामनंदन मिश्र का समस्तीपुर में भाषण होने वाला था, जिसमें छात्रों ने कर्पूरी ठाकुर से अपने प्रतिनिधि के रूप में भाषण कराया. उनके ओजस्वी भाषण को सुनकर मिश्र ने कहा कि यह कर्पूरी नहीं, ‘कर्पूरी ठाकुर’ है और अब इसी नाम से तुम लोग इसे जानो और तभी से कर्पूरी, कर्पूरी ठाकुर हो गए —
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— कर्पूरी ठाकुर का जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ था, जो जन्मतिथि लिखकर नहीं रखते और न फूल की थाली बजाते हैं. 1924 में नाई जाति के परिवार में जन्मे कर्पूरी ठाकुर की जन्मतिथि 24,जनवरी,1924 मान ली गई. स्कूल में नामांकन के समय उनकी जन्मतिथि 24,जनवरी,1924 अंकित हैं  —
— बेदाग छवि के कर्पूरी ठाकुर आजादी से पहले 2 बार और आजादी मिलने के बाद 18 बार जेल गए —
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— ये कर्पूरी ठाकुर का ही कमाल था कि लोहिया की इच्छा के विपरीत उन्होंने सन् 1967 में जनसंघ-कम्युनिस्ट को एक चटाई पर समेटते हुए अवसर और भावना से सदा अनुप्राणित रहने वाले महामाया प्रसाद सिन्हा को गैर-कांग्रेसवाद की स्थापना के लिए मुख्यमंत्री बनाने की दिशा में पहल की और स्वयं को परदे के पीछे रखकर सफलता भी पाई —
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—  अपने लेख में राजीव रंजन लिखते हैं, किसी को लिखाते समय ही यदि उन्हें नींद आ जाती थी, तो नींद टूटने के बाद वे ठीक उसी शब्द से वह बात लिखवाना शुरू करते थे, जो लिखवाने के ठीक पहले वे सोये हुए थे —
— साभार :-आज तक न्यूज —
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— इसी के साथ मैं अपने लेख को अंतिम रूप देता हूं जननायक कर्पूरी ठाकुर जी को कोटि-कोटि नमन —
— एक बात हमेशा याद रखनी चाहिए ,शहीदों की कुर्बानी के कारण ही आज हम सभी आजाद हैं। उनकी कुर्बानी को हमें कभी नहीं भूलना चाहिए —
— लेकिन आज भी पिछड़े,शोषित, आदिवासी समाज गरीबी अशिक्षा के अभाव में गुलामी का जीवन जी रहे हैं —
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— इसके हम लोग दोषी है बाबा साहेब आंबेडकर जी ने हमें वोट का अधिकार दिलाया क्यूं नहीं हम लोग अपने वोट की ताकत से ऐसी सरकार बनाये जो हमारे बारे में सोचें समनता समानता की बात करें —
—  बहुजन नायक महान क्रांतिकारी देशभक्त,स्वतंत्रता सेनानी जननायक कर्पूरी ठाकुर जी के कार्यों ने उन्हें जाति-धर्म से ऊपर उठा दिया है। इस लिए वह हमेशा याद रखे जायेंगे —
 —  बहुजन नायक महान क्रांतिकारी देशभक्त,स्वतंत्रता सेनानी जननायक कर्पूरी ठाकुर जी को कोटि-कोटि नमन करता हूं —
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—— वो थे इसलिए आज हम है ——
—— यारों अगर भीम न होते तो बहुजन समाज और महिलाओं का मान सम्मान न होता अगर भीम न होते तो इस देश की मुखिया कोई महिला न होती,ये सूट बूट वाले साहब न होते शोषितों वंचित समाज में ये ऐसो आराम के समान न होते ये आलिशान महल न होते ——
   —— अगर इस भारत भूमि पर भीम न होते तो ये बड़ी बड़ी गाडियां, ये शोहरत ये इज्जत, ये अफसरशाही, सत्ता का स्वाद,न होता,ये उस सूर्य कोटि महापुरुष परमपूज्य 
बाबा साहेब की देन है जिन्होंने अपने समाज को गुलामी से आजाद कराने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर
 कर दिया ——
—— ऐसे महान शख्सियत के चरणों में शत शत नमन करता हूं, मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर वो बाबा थे जिन्होंने अपने समाज के बेटों को बचाने के लिए अपने बच्चों, पत्नी की कुर्बानी दे दी थी समाज के लिए ——
—— जरा हम लोग सोचे कि हमने क्या किया बाबा साहेब के लिए बाबा साहेब की पूजा तो हम बड़ी शिद्दत से करते हैं
ले उनकी बातों को नहीं मानते हैं ऐसे महान शख्सियत,आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक के चरणों में शत शत प्रणाम करता हूं ——
—  तो ऐसे थे हमारे आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर — 
—— साथियों आज वे हमारे बीच नही है, पर उनके द्वारा किये गए कार्यों,संघर्षों और उनके उपदेशों से हमेशा वे हमारे बीच जीवंत है। संविधान के रचयिता और ऐसे अद्वितीय समाज सुधारक को हमारा कोटि-कोटि नमन ——
 — आधुनिक भारत के महानतम समाज सुधारक और सच्चे
 महानायक, लेकिन”भारतीय जातिवादी-मानसिकता ने सदा ही इस महापुरुष की उपेक्षा ही की गई |भारत में शायद ही कोई दूसरा व्यक्ति ऐसा हो, जिसने देश के निर्माण,उत्थान और प्रगति के लिए थोड़े समय में इतना कुछ कार्य किया हो, जितना बाबासाहेब आंबेडकर जी ने किया है और शायद ही कोई दूसरा व्यक्ति हो, जो निंदा, आलोचनाओं आदि का उतना शिकार हुआ हो,जितना बाबासाहेब आंबेडकर जी हुए थे —
—— बाबासाहेब आंबेडकर जी ने भारतीय संविधान के तहत कमजोर तबके के लोगों को जो कानूनी हक दिलाये है। इसके लिए बाबा साहेब आंबेडकर जी को कदम-कदम पर काफी संघर्ष करना पड़ा था ——
—— आवो जानें पे बैक टू सोसायटी क्या ——
—— ऐ मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय,ज्ञान,बुद्धि, पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो ——
—— तुम्हारें अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए मैं दुबारा नहीं आऊंगा,ये क्रांति का रथ संघर्षो का कारवां ,जो मैं बड़े दुखों,कष्टों को सहकर यहाँ तक ले आया हूँ,अब आगे तुम्हे ही ले जाना है  ——
—— साथियों बाबा साहेब जी अपने अंतरिम दिनोँ में अकेले रोते हुऐ पाए गए। बाबा साहेब अम्बेडकर जी से जब काका कालेलकर कमीशन 1953 में मिलने के लिए गया ,तब कमीशन का सवाल था कि आपने पूरी जिन्दगी पिछड़े,शोषित,वंचित वर्ग समाज  के उत्थान के लिए लगा दी काका कालेकर कमीशन ने पूछा बाबा साहेब जी आपकी राय में क्या किया जाना चाहिए बाबा साहेब ने जवाब दिया कि पिछड़े,शोषित,वंचित समाज का उत्थान करना है तो इनके अंदर बड़े लोग पैदा करने होंगें ——
—— काका कालेलकर कमीशन के सदस्यों को यह बात समझ नहीं आई  तो उन्होने फिर सवाल किया “बड़े लोग से आपका क्या तात्पर्य है ? " बाबा साहेब जी ने जवाब दिया कि अगर किसी समाज में 10 डॉक्टर , 20 वकील और 30 इन्जिनियर पैदा हो जाऐ तो उस समाज की तरफ कोई आंख ऊठाकर भी देख नहीं सकता !"
—— इस वाकये के ठीक 3 वर्ष बाद 18 मार्च 1956 में आगरा के रामलीला मैदान में बोलते हुऐ बाबा साहेब ने कहा "मुझे पढे लिखे लोगों ने धोखा दिया। मैं समझता था कि ये लोग पढ लिखकर अपने समाज का नेतृत्व करेगें , मगर मैं देख रहा हुँ कि  मेरे आस-पास बाबुओं की भीड़ खड़ी हो रही है जो अपना ही पेट पालने में लगी है !" 
—— साथियों बाबा साहेब अपने अन्तिम दिनो में अकेले रोते हुए पाए गए ! जब वे सोने की कोशिश करते थे तो उन्हें नींद नहीं आती थी,अत्यधिक परेशान रहने वाले थे बाबा साहेब के निजी सचिव  नानकचंद रत्तु ने बाबा साहेब जी से सवाल पुछा कि , आप इतना परेशान क्यों रहते है बाबा साहेब जी ? ऊनका जवाब था , " ——
—— नानकचंद , ये जो तुम दिल्ली देख रहो हो अकेली दिल्ली में 10,000 कर्मचारी ,अधिकारी यह केवल अनुसूचित जाति के है  ! जो कुछ साल पहले शून्य थे मैँने अपनी जिन्दगी का सब कुछ दांव पर लगा दिया,अपने लोगों में पढ़े लिखे लोग पैदा करने के लिए क्योंकि  मैं जानता था कि जब मैं अकेल पढ लिख कर इतना काम कर सकता हुँ  अगर हमारे हजारों लोग पढ लिख जायेगें तो बहुजन समाज में कितना बड़ा परिवर्तन आयेगा लेकिन नानकचंद,मैं जब पुरे देश की तरफ निगाह दौड़ाता हूँ हूँ तो मुझे कोई ऐसा  नौजवान नजर नहीं आता है,जो मेरे कारवाँ को आगे ले जा सकता है नानकचंद,मेरा शरीर मेरा साथ नहीं दे रहा है ,जब मैं अपने मिशन के बारे में सोचता हुँ,तो मेरा सीना दर्द से फटने लगता है ——
—— जिस महापुरुष ने अपनी पुरी जिन्दगी,अपना परिवार ,बच्चे आन्दोलन की भेँट चढाए,जिसने पुरी जिन्दगी इस विश्वास में लगा दी  कि , पढा -लिखा वर्ग ही अपने शोषित वंचित भाइयों को आजाद करवा सकता हैं जिन्होंने अपने लोगों को आजाद कर पाने का मकसद अपना मकसद बनाया था,क्या उनका सपना पूरा हो गया ? आपके क्या फर्ज  बनते हैं समाज के लिए ?
—— सम्मानित साथियों जरा सोचो आज बाबा साहेब की वजह से हम ब्रांडेड कपड़े, ब्रांडेड जूते, ब्रांडेड मोबाइल, ब्रांडेड घड़ियां हर कुछ ब्रांडेड इस्तेमाल करने के लायक बन गए हैं बहुत सारे लोग बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू, शराब पर सैकड़ों रुपये बर्बाद करते हैं ! इस पर औसतन 500 रुपये खर्च आता है,चाउमीन, गोलगप्पे, सूप आदि पर हरोज 20 से 50 रुपये खर्च आता है। महिने में ओसतन 600 से 1500 रुपये तक खर्च हो सकते हैं ——
—— बाबा साहेब के अधिकारों,संघर्षो,प्रावधानों की वजह से जो लोग इस लायक हो गए हैं  हम लोगों पर बाबा साहेब ने विश्वास नहीं किया क्योंकि हमने बाबा साहेब के साथ विश्वासघात किया था ! उनके द्वारा दिखाए गए सपनों से हम दूर चले गए नौकरी आयी और आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक बाबा साहेब अम्बेडकर जी को भूल गए —— 
——"हमारे उपर बाबा साहेब का बहुत बड़ा कर्ज है, 
क्या आप उसे उतार सकते हैं,नहीं रत्तीभर भी नहीं हम जिस शख्स ने इस देश के शोषित,वंचित, पिछले, समाज,सर्वसमाज,महिलाओं भारतवर्ष के लिए अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी,अपने बच्चे,पत्नी अपने सुख चैन सब कुछ कुर्बान कर दिया जरा सोचो किसके लिए आप लोगों के लिए और हम लोग क्या कर रहें हैं टीवी,बीवी में मस्त है मिशन को भूल गये ——
—— लेकिन हमें फिर से पहले की तरह बाबा साहेब को धोखा नहीं देना चाहिए,पढ़े-लिखे लोगो अपने उपर से धोखेबाज का लेबल उतारो और बाबा साहेब के मिशन को आगे बढ़ाओ ——
——आपके बीड़ी, सिगरेट पर खर्च होने वाले 15 रुपये से न जाने कितने बच्चों को शिक्षा मिल सकती है,आपके फास्टफूड पर खर्च होने वाले 50 रुपये से न जाने कितने गरीब लोगों को दवाई मिल सकती है !आपके इन पैसों से न जाने कितने मिशनरी साथियों का खर्च चल रहा है जो पूरा जीवन समाज सेवा मे लगा रहे हैं ——
—— जरा अपने दिल पर हाथ रख कर कहो तुम क्या बाबा साहेब के पे बैक टू सोसाइटी सिद्धांत पर चल रहे हो ——
—— केवल भंडारे देना,चंदा देना,कार्यक्रम करना,ठंडे पानी की स्टाल लगाना पे बैक टू सोसाइटी नहीं है ——
——अपने जैसे सक्षम लोग पैदा करना पे बैक टू सोसाइटी है गरीब बच्चों को शिक्षित करना पे बैक टू सोसाइटी है,शिक्षित लोगों को नौकरियां दिलाना डाक्टर है ——
——बहुजनों को वैज्ञानिक,इंजिनियर,वकील,शिक्षक,डाक्टर इत्यादि बनाना पे बैक टू सोसाइटी है.बाबा साहेब के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए लगे हुए मिशनरियों को मदद देना असली पे बैक टू सोसाइटी है ——
—— आप जो पोजिशन पर है आपका फर्ज बनता है कि मेरे समाज का हर बच्चा उस पोजिशन पर पहुंचे यह पे बैक टू सोसाइटी है,अतः हम पढे-लिखे, नौकरीपेशा समाज से अपील करते हैं कि आप अपने उपर लगे धोखेबाज के लेबल को उतारने की कोशिश करें आपने ग़ैर-भाई बहनों के पास जाओ,उनकी ऊपर उठने में मदद करें,अपने उद्योग धंधे, व्यापार आदि शुरू करें, अपने आप को बेरोजगार बहुजनों के लिए रोजगार की व्यवस्था करें,अपना व्यवसाय शुरू करें, अपने समाज का पैसा अपने समाज में रोकें ——
 —— प्रयत्न करें,जब तक बाबा साहेब का पे बैक टू सोसाइटी  का सिद्धांत लागू नहीं होगा तब तक देश से गरीबी नहीं मिटेगी ——
——  साभार-: बहुजन समाज और उसकी राजनिति,मेरे संघर्षमय जीवन एवं बहुजन समाज का मूवमेंट {संदर्भ- सलेक्टेड ऑफ डाँ अम्बेडकर – लेखक डी.सी. अहीर पृष्ठ क्रमांक 110 से 112 तक के भाषण का हिन्दी अनुवाद), श्री गुरु रविदास जन-जागृति एवं शिक्षा समिति,(राजी),दलित दस्तक ,समय बुद्धा,,पुस्तक-'डॉ.बाबासाहेब अंबेडकर के महत्वपूर्ण संदेश एवं विद्वत्तापूर्ण कथन' के थर्ड कवर पृष्ठ से,लेखक-नानकचंद रत्तू-अनुवादक-गौरव कुमार रजक, अंकित कुमार गौतम,संपादन-अमोल वज्जी,प्रकाशक-डी के खापर्डे मेमोरियल ट्रस्ट (पब्लिकेशन डिवीजन)527ए, नेहरू कुटिया, निकट अंबेडकर पार्क, कबीर बस्ती, मलका गंज, नई दिल्ली -07, विकिपीडिया} ——
 ——"सामाजिक क्रांति के अग्रदूत,मानवता की प्रचारक महामानव बाबा साहेब अम्बेडकर जी के  चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं ——
— साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए आधुनिक भारत के निर्माता बाबासाहेब अम्बेडकर जी ने वह कर दिखाया जो उस दौर में सोच पाना भी मुश्किल था —  
— साथियों आज हमें अगर कहीं भी खड़े होकर अपने विचारों की अभिव्यक्ति करने की आजादी है,समानता का अधिकार है तो यह सिर्फ और सिर्फ परमपूज्य बाबासाहेब आंबेडकर जी के संघर्षों से मुमकिन हो सका है.भारत वर्ष का जनमानस सदैव बाबा साहेब डा भीमराव अंबेडकर जी का कृतज्ञ रहेगा.इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी बात खत्म करता हूं। सामाजिक न्याय के पुरोधा तेजस्वी क्रांन्तिकारी शख्शियत परमपूज्य बोधिसत्व भारत रत्न बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं 
      — जिसने देश को दी नई दिशा””…जिसने आपको नया जीवन दिया वह है आधुनिक भारत के निर्माता बाबा साहेब अम्बेडकर जी का संविधान —
  — सच  अक्सर कड़वा लगता है। इसी लिए सच बोलने वाले भी अप्रिय लगते हैं। सच बोलने वालों को इतिहास के पन्नों में दबाने का प्रयास किया जाता है, पर सच बोलने का सबसे बड़ा लाभ यही है, कि वह खुद पहचान कराता है और घोर अंधेरे में भी चमकते तारे की तरह दमका देता है। सच बोलने वाले से लोग भले ही घृणा करें, पर उसके तेज के सामने झुकना ही पड़ता है ! इतिहास के पन्नों पर जमी धूल के नीचे ऐसे ही बहुजन महापुरुषों का गौरवशाली इतिहास दबा है —
     ―मां कांशीराम साहब जी ने एक एक बहुजन नायक को बहुजन से परिचय कराकर, बहुजन समाज के लिए किए गए कार्य से अवगत कराया सन 1980 से पहले भारत के  बहुजन नायक भारत के बहुजन की पहुँच से दूर थे,इसके हमें निश्चय ही मान्यवर कांशीराम साहब जी का शुक्रगुजार होना चाहिए जिन्होंने इतिहास की क्रब में दफन किए गए बहुजन नायक/नायिकाओं के व्यक्तित्व को सामने लाकर समाज में प्रेरणा स्रोत जगाया ——
   ―इसका पूरा श्रेय मां कांशीराम साहब जी को ही जाता है कि उन्होंने जन जन तक गुमनाम बहुजन नायकों को पहुंचाया, मां कांशीराम साहब के बारे में जान कर मुझे भी लगा कि गुमनाम बहुजन नायकों के बारे में लिखा जाए !
   —— ऐ मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय ज्ञान,पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो ——
      —―साथियों एक बात याद रखना आज करोड़ों लोग जो बाबासाहेब जी,माँ रमाई के संघर्षों की बदौलत कमाई गई रोटी को मुफ्त में बड़े चाव और मजे से खा रहे हैं ऐसे लोगों को इस बात का अंदाजा भी नहीं है जो उन्हें ताकत,पैसा,इज्जत,मान-सम्मान मिला है वो उनकी बुद्धि और होशियारी का नहीं है बाबासाहेब जी के संघर्षों की बदौलत है ——
      —– साथियों आँधियाँ हसरत से अपना सर पटकती रहीं,बच गए वो पेड़ जिनमें हुनर लचकने का था ——
       ―तमन्ना सच्ची है,तो रास्ते मिल जाते हैं,तमन्ना झूठी है,तो बहाने मिल जाते हैं,जिसकी जरूरत है रास्ते उसी को खोजने होंगें निर्धनों का धन उनका अपना संगठन है,ये मेरे बहुजन समाज के लोगों अपने संगठन अपने झंडे को मजबूत करों शिक्षित हो संगठित हो,संघर्ष करो !
      ―साथियों झुको नही,बिको नहीं,रुको नही, हौसला करो,तुम हुकमरान बन सकते हो,फैसला करो हुकमरान बनो"
       ―सम्मानित साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए !
        ―सभी अम्बेडकरवादी भाईयों, बहनो,को नमो बुद्धाय सप्रेम जयभीम! सप्रेम जयभीम !!
             ―बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर  जी ने कहा है जिस समाज का इतिहास नहीं होता, वह समाज कभी भी शासक नहीं बन पाता… क्योंकि इतिहास से प्रेरणा मिलती है, प्रेरणा से जागृति आती है, जागृति से सोच बनती है, सोच से ताकत बनती है, ताकत से शक्ति बनती है और शक्ति से शासक बनता है !”
        ― इसलिए मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर आप लोगो को इतिहास के उन पन्नों से रूबरू कराने की कोशिश कर रहा हूं जिन पन्नों से बहुजन समाज का सम्बन्ध है जो पन्ने गुमनामी के अंधेरों में खो गए और उन पन्नों पर धूल जम गई है, उन पन्नों से धूल हटाने की कोशिश कर रहा हूं इस मुहिम में आप लोगों मेरा साथ दे, सकते हैं !
           ―पता नहीं क्यूं बहुजन समाज के महापुरुषों के बारे कुछ भी लिखने या प्रकाशित करते समय “भारतीय जातिवादी मीडिया” की कलम से स्याही सूख जाती है —
— इतिहासकारों की बड़ी विडम्बना ये रही है,कि उन्होंने बहुजन नायकों के योगदान को इतिहास में जगह नहीं दी इसका सबसे बड़ा कारण जातिगत भावना से ग्रस्त होना एक सबसे बड़ा कारण है इसी तरह के तमाम ऐसे बहुजन नायक हैं,जिनका योगदान कहीं दर्ज न हो पाने से वो इतिहास के पन्नों में गुम हो गए —
     ―उन तमाम बहुजन नायकों को मैं अमित गौतम जंनपद   रमाबाई नगर,कानपुर कोटि-कोटि नमन करता हूं !
जय रविदास
जय कबीर
जय भीम
जय नारायण गुरु
जय सावित्रीबाई फुले
जय माता रमाबाई अम्बेडकर जी
जय ऊदा देवी पासी जी
जय झलकारी बाई कोरी
जय बिरसा मुंडा
जय बाबा घासीदास
जय संत गाडगे बाबा
जय पेरियार रामास्वामी नायकर
जय छत्रपति शाहूजी महाराज
जय शिवाजी महाराज
जय काशीराम साहब
जय मातादीन भंगी जी
जय कर्पूरी ठाकुर 
जय पेरियार ललई सिंह यादव
जय मंडल
जय हो उन सभी गुमनाम बहुजन महानायकों की जिंन्होने अपने संघर्षो से बहुजन समाज को एक नई पहचान दी,स्वाभिमान से जीना सिखाया !    
              अमित गौतम
             युवा सामाजिक
                कार्यकर्ता         
              बहुजन समाज
  जंनपद-रमाबाई नगर कानपुर
           सम्पर्क सूत्र-9452963593

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