महान विद्वान,कवि,पाली भाषा के महान विद्वान भदंत आनंद कौसल्यायन महाथेरो की जंयती की हार्दिक बधाईयां एवं मंगलकामनाएं

         

5,जनवरी,1905
    वो थे इसलिए आज हम हैं 
      इतिहास के पन्नों से 
— महान विद्वान,कवि,पाली भाषा के महान विद्वान भदंत आनंद कौसल्यायन महाथेरो की जंयती की हार्दिक बधाईयां एवं मंगलकामनाएं —
—साथियों क्या आप लोगों को पता है भंदत आनंद कौशल्यान दि. 6-7 दिसम्बर,1956 में  ‘दिल्ली से मुंबई’ तक बाबासाहब के पार्थिव शरीर के साथ आए। आपके द्वारा ‘बौद्ध-विधि’ से बाबासाहेब अम्बेडकर की परिनिर्वाण की विधि गई —
— साथियों पाली भाषा के महान विद्वान डॉ भदंत आनंद कौसल्यायन जी हिंदी और पालि भाषा के विद्वान और अम्बेडकर मिशन के एक ऐसे ध्वजवाहक थे जिन्होंने अपनी किताबों और प्रचार के द्वारा बाबासाहेब के मिशन को स्थापित किया —
— साथ ही देश में हिंदी भाषा को स्थापित करने में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. वे १३ साल राष्ट्र भाषा प्रचार समिति,वर्धा के प्रधानमंत्री रहे—
— क्रांतिकारी भगतसिंह, सुखदेव राजगुरू और अनागारिक धम्मपाल तथा हिन्दी के प्रसिद्ध लेखक यशपाल उनके सहपाठी थे
—  राहुल सांस्कृत्यायन जी के व्यक्तित्व की उन पर गहरी छाप पडी। दोनो ने श्रीलंका जाकर महास्थविर लुनुपोकुने धम्मानंदन के मार्गदर्शन में 5 फरवरी 1928 में प्रव्रज्या और कुछ ही दिन बाद उपसम्पदा (बौद्ध भिक्षु की दीक्षा) ग्रहण की। अब वे हरिनामदास से स्वामी विश्वनाथ और स्वामी विश्वनाथ से ‘आनन्द कौसल्यायन’ बन गये। राहुल जी के लंका से तिब्बत जाने के कारण वे बाद में प्रव्रजित हुए।
सन् 1932-34 में बौद्ध धर्म प्रचार के उद्देश्य से इंग्लैण्ड गये। सन् 1936 में ‘सारनाथ’ रहकर ‘धम्मदूत-मासिक’ का संपादन कार्य किया। मूल पालि भाषा के त्रिपिटक ग्रन्थ जातक 6 खण्ड, अंगुत्तर निकाय 4 भाग, महावंश तथा अभिधम्मत्थ संड्गहो आदि का अनुवाद हिन्दी में किया —
आनन्दजी सन् 1956 में एक अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध भिक्षुओं का प्रतिनिधि मंडल लेकर चीन गए। 1959 से 1968 तक श्रीलंका के केलनिया विद्यालंकार विश्वविद्यालय में हिन्दी विभागध्यक्ष के पद पर आसीन रहे —
— पालि-हिन्दी शब्दकोश पर उत्तर-प्रदेश सरकार ने ‘मान-पत्र’ तथा पाॅच हजार रूपए के नगद पुरस्कार से, और नवनालन्दा (बिहार) ने, 31 अक्टूबर 1971 को ‘विद्यावारिधि’ (डी.लिट्) तथा हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग (उ.प्र.) ने उनकी अमूल्य हिन्दी सेवा के उपलक्ष्य में सन्मानार्थ ‘साहित्य वाचस्पति की उपाधि देकर ताम्रपत्र पद्रान किया —
डाॅ. भदन्त 1968 में श्रीलंका से नागपुर आये तथा यहाॅ ‘दीक्षाभूमि’ में कुछ साल तक रहे। यहाॅ रहकर छह वर्ष तक ‘दीक्षाभूमि’ पाक्षिक का प्रकाशन-सम्पादन किया तथा कुछ पुस्तकों का प्रकाशन भी किया। बाद में 5/1/1985 में ‘बौद्ध प्रशिक्षण संस्थान’ कामठी रोड़ पर अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध-केन्द्र का परम पावन दलाई लामा के हाथों द्वारा उद्घाटन करवाया।
आपने बुद्धभूमि में रहकर तथा पहले भी कई देशों का भ्रमण किया और बौद्ध-धर्म के प्रचार प्रसार में योगदान दिया। विविध स्थानों पर आयोजित बौद्ध सम्मेलनो में उन्होने भाग लिया।
— झुको नही,बिको नहीं,रुको नही,हौसला करो,तुम हुकमरान बन सकते हो, फैसला करो हुकमरान बनो —
— बाबा साहेब डॉ भीमराव आंबेडकर के मिशन को स्थापित करने में भंदत कौसल्यायन जी की अहम भूमिका है सन,1956 में नेपाल में आयोजित चतुर्थ बौद्ध सम्मेलन' में भी वे सम्मिलित हुए वहीं उनकी भेंट बाबा साहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी से हुई थी.डॉ भदंत आनंद कौसल्यायन जी को भी डॉ भीमराव अम्बेडकर से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ ! इस बातचीत में डॉ कौसल्यायन जी को  बाबा साहेब जी के बुद्ध धम्म के गंभीर अध्ययन का भी पता चला —
— तब आखिर उन्होंने बाबा साहेब जी से पूछ ही लिया कि ‘बाबासाहेब बुद्ध के धम्म का अध्ययन तो हम भी करते हैं, पर आपका अध्ययन बौद्ध धम्म ग्रहण करने के बाद वाला है या इसे जानने के लिए किया जाने वाला.इस पर बाबासाहेब ने डॉ कौसल्यायन से कहा कि ‘मुझे पता नहीं कि लोग मुझे किस धर्म का मानते हैं,उन्हें इस पर अपनी सोच बनाने का हक हैं, लेकिन आप तो समझ ही सकते हैं कि मैं किस धर्म का पालन करता हूँ —
— भदंत आनंद ने जब बाबासाहेब के ड्राइंग रूम में बुद्ध की मूर्ति देखी तो वे इससे आकर्षित होकर बाबासाहेब आंबेडकर जी से इस बाबत से कहने लगे कि —
— मुझे बुद्ध की सारनाथ वाली मूर्ती बहुत पसंद है’ तब बाबासाहेब अम्बेडकर ने उन्हें कहा कि ‘मुझे बुद्ध की ऐसी मूर्ति चाहिए जिसमें वे जनसेवा के लिए चल-फिर रहे हो! बाबासाहेब अम्बेडकर जी का यह उत्तर सुनकर डॉ भंदत कौसल्यायन जी आवाक रह गए और उन्हें तब पता चला कि बाबासाहेब कि बौद्ध धम्म के प्रति कितना गहरा लगाव है —
— डॉ भंदत आनंद कौसल्यायन ने इस दिन से ही निश्चित कर लिया था कि अब वे ताउम्र बाबासाहेब के मिशन में सहभागी बनेंगे —
— वे ‘अखिल भारतीय भिक्षु संघ’ के 10 साल तक संघानुशासक (अध्यक्ष) रहे।
— वैसे भी डॉ भदंत आनंद कौसल्यायन पाली भाषा के मूर्धन्य विद्वान तो थे ही इसलिए उन्होंने पाली जातकों का हिंदी में अनुवाद किया जो ६ खंडों में प्रकाशित हुआ. इस समय जहाँ उन्होंने आम जन को बुद्ध की जीवनी और दर्शन उपलब्ध कराये वहीँ हिंदी में बाबासाहेब की जीवनी की अनुपलब्धता देखकर अब इसे लिपिबद्ध करने के लिए कलम उठायी. इस छोटी किन्तु प्रभावशाली किताब का नाम ‘यदि बाबा न होते’ है. डॉ कौसल्यायन द्वारा लिखित ये किताबें समाज में बाबासाहेब की कमी से उत्पन्न शून्य का भरने में काफी हद तक सफल रही. पर इस समय डॉ भदंत आनंद कौसल्यायन ने यह अनुभव किया कि बाबासाहेब के न रहने से लोग अंधविश्वास की गिरफ्त में वापिस जा सकते हैं क्योंकि समाज में काल्पनिक ग्रन्थ बड़ी आसानी से लोगों को आकर्षित कर रहे हैं —
— वहीँ बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए‘बौद्ध जीवन पद्धति’ जैसी पुस्तिका रची जिसमें उन्होंने बुद्ध संस्कृति, पर्व, विवाह आदि संस्कार की कर्मकांड से मुक्त सरल पद्धतियों को समझाया और जब उन्होंने महसूस किया कि बौद्ध धर्म के प्रति आकृष्ट होने वाले सभी जनों में स्वाभाविक रूप से कई जिज्ञासा उभरती है जिनका जवाब उन्हें कहीं भी नहीं मिल पाता, तब इस कमी को दूर करने के लिए उन्होंने ‘बौद्ध धर्म एक बुद्धिवादी अध्ययन’ की रचना की जो सामान्य किताब से अलग प्रश्नों और उनके उत्तरों के रूप में हैं. इसमे लेखक ने खुद बौद्ध धर्म से सम्बन्धी प्रश्नों के सहज उत्तर दिए.
— बाबासाहेब द्वारा रचित ‘बुद्ध एंड हिस धम्म’ जो आज देश के बौद्धों के एक प्रामाणिक ग्रन्थ है भी अंग्रेज़ी में लिखा होने की वजह से आम जनता को दिशा-निर्देश देने में असमर्थ था. ऐसे समय नागपुर में विख्यात बौद्ध भिक्खु डॉ भदंत आनंद कौसल्यायन का आगमन हुआ, जिन्होंने न सिर्फ नागपुर में धम्म प्रचार के लिए कुछ स्थानों का भ्रमण किया बल्कि उन्होंने डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर जी के विचार एवं दर्शन को जन-जन तक पहुंचाने के लिए नागपुर को ही अपना निवास बना लिया और उन्होंने बाबासाहेब द्वारा अंग्रेज़ी में लिखी किताबों और बौद्ध धर्म पर उपलब्ध पालि और अंग्रेज़ी की तमाम पुस्तकों का सरल हिंदी में अनुवाद कर आम जनमानष तक सुलभ बनाया —
— डॉ कौसल्यायन एक विद्वान भिक्खु थे, जिनका जन्म  05,जनवरी,1905 को अविभाजित पंजाब प्रान्त के मोहाली के पास सोहना गाँव के एक खत्री परिवार में हुआ था. उनके पिता लाला रामशरण दास अम्बाला में अध्यापक थे. भदन्त जी के बचपन का नाम विश्वनाथ वर्मा (हरिनाम) था. हरिनाम अपने लड़कपन से ही घुम्मकड और शोध प्रवृत्ति के थे सो उन्हें घर-संसार के जीवन में कतई रूचि नहीं थी —
— जब महाराष्ट्र सरकार ने आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर के राइटिंग्स एंड स्पीचेस के वोल्यूम 4 यानि ‘रिडल्स इन हिन्दुइज्म’ के प्रकाशन पर कुछ दलों ने बाबासाहेब के अनुयायियों को अपना निशाना बनाना शुरू किया तब एक बार फिर डॉ कौसल्यायन ने साहित्यिक स्तर पर मोर्चा संभालते हुए तत्क्षण इस किताब का हिंदी में अनुवाद किया —                                                                                                        — डॉ भदंत आनंद कौसल्यायन कुशाग्र-बुद्धि और ज्ञान के मालिक थे उन्हें कभी भी किसी भाषण या वार्ता की अलग से तैय्यारी नहीं करनी पड़ती थी. नागपुर आकाशवाणी में उन्होंने अनेक बार रेडियो वार्ता में बिना किसी पेपर और पूर्व तैय्यारी के बेहद प्रभावशाली रेडियो वार्ता प्रस्तुत की है. ये रेडियो वार्ताएं इतनी प्रभावशाली हैं कि आज भी आकाशवाणी का नागपुर केन्द्र नववार्ताकारों को डॉ कौसल्यायन की वार्ताएं एक आदर्श के रूप में सुनाता था —
— इन्हीं कुछ रेडियो वार्ताओं का संकलन ‘बोधिद्र्म के कुछ पन्ने’ नामक किताब में संकलित हैं. डॉ कौसल्यायन अपने अंतिम समय तक बौद्ध धम्म के प्रचार के लिए सक्रीय रहे उनका प्रयास देश के कोने-कोने में बाबासाहेब के मिशन को प्रचारित-प्रसारित करना था. अपने आखिरी दिनों में उन्होंने बेहद दृवित होकर कहा था कि बुद्ध और बाबा साहेब  जी दोनों का ही उद्देश्य जाति-पांति को जड़ से खत्म कर समाज में समता स्थापित करना है, परन्तु यह बेहद दुःख की बात है कि खुद को अम्बेडकरवादी और बौद्ध कहलाने वाले लोग भी जात-पात से मुक्त नहीं हो पाए हैं —
— डॉ भदंत आनंद कौसल्यायन ने 22,जून 1988 में अपनी अंतिम सांस नागपुर के मेयो अस्पताल में ली. डॉ भीमराव अम्बेडकर जी के मिशन को स्थापित करने में उनकी भूमिका का कोई सानी नहीं है —
     — विशेष साभार-समयबुद्धा —
—— वो थे इसलिए आज हम है ——
—— यारों अगर भीम न होते तो बहुजन समाज और महिलाओं का मान सम्मान न होता अगर भीम न होते तो इस देश की मुखिया कोई महिला न होती,ये सूट बूट वाले साहब न होते शोषितों वंचित समाज में ये ऐसो आराम के समान न होते ये आलिशान महल न होते ——
   —— अगर इस भारत भूमि पर भीम न होते तो ये बड़ी बड़ी गाडियां, ये शोहरत ये इज्जत, ये अफसरशाही, सत्ता का स्वाद,न होता,ये उस सूर्य कोटि महापुरुष परमपूज्य 
बाबा साहेब की देन है जिन्होंने अपने समाज को गुलामी से आजाद कराने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर
 कर दिया ——
—— ऐसे महान शख्सियत के चरणों में शत शत नमन करता हूं, मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर वो बाबा थे जिन्होंने अपने समाज के बेटों को बचाने के लिए अपने बच्चों, पत्नी की कुर्बानी दे दी थी समाज के लिए ——
—— जरा हम लोग सोचे कि हमने क्या किया बाबा साहेब के लिए बाबा साहेब की पूजा तो हम बड़ी शिद्दत से करते हैं
ले उनकी बातों को नहीं मानते हैं ऐसे महान शख्सियत,आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक के चरणों में शत शत प्रणाम करता हूं ——
—  तो ऐसे थे हमारे आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर — 
—— साथियों आज वे हमारे बीच नही है, पर उनके द्वारा किये गए कार्यों,संघर्षों और उनके उपदेशों से हमेशा वे हमारे बीच जीवंत है। संविधान के रचयिता और ऐसे अद्वितीय समाज सुधारक को हमारा कोटि-कोटि नमन ——
 — आधुनिक भारत के महानतम समाज सुधारक और सच्चे
 महानायक, लेकिन”भारतीय जातिवादी-मानसिकता ने सदा ही इस महापुरुष की उपेक्षा ही की गई |भारत में शायद ही कोई दूसरा व्यक्ति ऐसा हो, जिसने देश के निर्माण,उत्थान और प्रगति के लिए थोड़े समय में इतना कुछ कार्य किया हो, जितना बाबासाहेब आंबेडकर जी ने किया है और शायद ही कोई दूसरा व्यक्ति हो, जो निंदा, आलोचनाओं आदि का उतना शिकार हुआ हो,जितना बाबासाहेब आंबेडकर जी हुए थे —
—— बाबासाहेब आंबेडकर जी ने भारतीय संविधान के तहत कमजोर तबके के लोगों को जो कानूनी हक दिलाये है। इसके लिए बाबा साहेब आंबेडकर जी को कदम-कदम पर काफी संघर्ष करना पड़ा था ——
—— आवो जानें पे बैक टू सोसायटी क्या ——
—— ऐ मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय,ज्ञान,बुद्धि, पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो ——
—— तुम्हारें अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए मैं दुबारा नहीं आऊंगा,ये क्रांति का रथ संघर्षो का कारवां ,जो मैं बड़े दुखों,कष्टों को सहकर यहाँ तक ले आया हूँ,अब आगे तुम्हे ही ले जाना है  ——
—— साथियों बाबा साहेब जी अपने अंतरिम दिनोँ में अकेले रोते हुऐ पाए गए। बाबा साहेब अम्बेडकर जी से जब काका कालेलकर कमीशन 1953 में मिलने के लिए गया ,तब कमीशन का सवाल था कि आपने पूरी जिन्दगी पिछड़े,शोषित,वंचित वर्ग समाज  के उत्थान के लिए लगा दी काका कालेकर कमीशन ने पूछा बाबा साहेब जी आपकी राय में क्या किया जाना चाहिए बाबा साहेब ने जवाब दिया कि पिछड़े,शोषित,वंचित समाज का उत्थान करना है तो इनके अंदर बड़े लोग पैदा करने होंगें ——
—— काका कालेलकर कमीशन के सदस्यों को यह बात समझ नहीं आई  तो उन्होने फिर सवाल किया “बड़े लोग से आपका क्या तात्पर्य है ? " बाबा साहेब जी ने जवाब दिया कि अगर किसी समाज में 10 डॉक्टर , 20 वकील और 30 इन्जिनियर पैदा हो जाऐ तो उस समाज की तरफ कोई आंख ऊठाकर भी देख नहीं सकता !"
—— इस वाकये के ठीक 3 वर्ष बाद 18 मार्च 1956 में आगरा के रामलीला मैदान में बोलते हुऐ बाबा साहेब ने कहा "मुझे पढे लिखे लोगों ने धोखा दिया। मैं समझता था कि ये लोग पढ लिखकर अपने समाज का नेतृत्व करेगें , मगर मैं देख रहा हुँ कि  मेरे आस-पास बाबुओं की भीड़ खड़ी हो रही है जो अपना ही पेट पालने में लगी है !" 
—— साथियों बाबा साहेब अपने अन्तिम दिनो में अकेले रोते हुए पाए गए ! जब वे सोने की कोशिश करते थे तो उन्हें नींद नहीं आती थी,अत्यधिक परेशान रहने वाले थे बाबा साहेब के निजी सचिव  नानकचंद रत्तु ने बाबा साहेब जी से सवाल पुछा कि , आप इतना परेशान क्यों रहते है बाबा साहेब जी ? ऊनका जवाब था , " ——
—— नानकचंद , ये जो तुम दिल्ली देख रहो हो अकेली दिल्ली में 10,000 कर्मचारी ,अधिकारी यह केवल अनुसूचित जाति के है  ! जो कुछ साल पहले शून्य थे मैँने अपनी जिन्दगी का सब कुछ दांव पर लगा दिया,अपने लोगों में पढ़े लिखे लोग पैदा करने के लिए क्योंकि  मैं जानता था कि जब मैं अकेल पढ लिख कर इतना काम कर सकता हुँ  अगर हमारे हजारों लोग पढ लिख जायेगें तो बहुजन समाज में कितना बड़ा परिवर्तन आयेगा लेकिन नानकचंद,मैं जब पुरे देश की तरफ निगाह दौड़ाता हूँ हूँ तो मुझे कोई ऐसा  नौजवान नजर नहीं आता है,जो मेरे कारवाँ को आगे ले जा सकता है नानकचंद,मेरा शरीर मेरा साथ नहीं दे रहा है ,जब मैं अपने मिशन के बारे में सोचता हुँ,तो मेरा सीना दर्द से फटने लगता है ——
—— जिस महापुरुष ने अपनी पुरी जिन्दगी,अपना परिवार ,बच्चे आन्दोलन की भेँट चढाए,जिसने पुरी जिन्दगी इस विश्वास में लगा दी  कि , पढा -लिखा वर्ग ही अपने शोषित वंचित भाइयों को आजाद करवा सकता हैं जिन्होंने अपने लोगों को आजाद कर पाने का मकसद अपना मकसद बनाया था,क्या उनका सपना पूरा हो गया ? आपके क्या फर्ज  बनते हैं समाज के लिए ?
—— सम्मानित साथियों जरा सोचो आज बाबा साहेब की वजह से हम ब्रांडेड कपड़े, ब्रांडेड जूते, ब्रांडेड मोबाइल, ब्रांडेड घड़ियां हर कुछ ब्रांडेड इस्तेमाल करने के लायक बन गए हैं बहुत सारे लोग बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू, शराब पर सैकड़ों रुपये बर्बाद करते हैं ! इस पर औसतन 500 रुपये खर्च आता है,चाउमीन, गोलगप्पे, सूप आदि पर हरोज 20 से 50 रुपये खर्च आता है। महिने में ओसतन 600 से 1500 रुपये तक खर्च हो सकते हैं ——
—— बाबा साहेब के अधिकारों,संघर्षो,प्रावधानों की वजह से जो लोग इस लायक हो गए हैं  हम लोगों पर बाबा साहेब ने विश्वास नहीं किया क्योंकि हमने बाबा साहेब के साथ विश्वासघात किया था ! उनके द्वारा दिखाए गए सपनों से हम दूर चले गए नौकरी आयी और आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक बाबा साहेब अम्बेडकर जी को भूल गए —— 
——"हमारे उपर बाबा साहेब का बहुत बड़ा कर्ज है, 
क्या आप उसे उतार सकते हैं,नहीं रत्तीभर भी नहीं हम जिस शख्स ने इस देश के शोषित,वंचित, पिछले, समाज,सर्वसमाज,महिलाओं भारतवर्ष के लिए अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी,अपने बच्चे,पत्नी अपने सुख चैन सब कुछ कुर्बान कर दिया जरा सोचो किसके लिए आप लोगों के लिए और हम लोग क्या कर रहें हैं टीवी,बीवी में मस्त है मिशन को भूल गये ——
—— लेकिन हमें फिर से पहले की तरह बाबा साहेब को धोखा नहीं देना चाहिए,पढ़े-लिखे लोगो अपने उपर से धोखेबाज का लेबल उतारो और बाबा साहेब के मिशन को आगे बढ़ाओ ——
——आपके बीड़ी, सिगरेट पर खर्च होने वाले 15 रुपये से न जाने कितने बच्चों को शिक्षा मिल सकती है,आपके फास्टफूड पर खर्च होने वाले 50 रुपये से न जाने कितने गरीब लोगों को दवाई मिल सकती है !आपके इन पैसों से न जाने कितने मिशनरी साथियों का खर्च चल रहा है जो पूरा जीवन समाज सेवा मे लगा रहे हैं ——
—— जरा अपने दिल पर हाथ रख कर कहो तुम क्या बाबा साहेब के पे बैक टू सोसाइटी सिद्धांत पर चल रहे हो ——
—— केवल भंडारे देना,चंदा देना,कार्यक्रम करना,ठंडे पानी की स्टाल लगाना पे बैक टू सोसाइटी नहीं है ——
——अपने जैसे सक्षम लोग पैदा करना पे बैक टू सोसाइटी है गरीब बच्चों को शिक्षित करना पे बैक टू सोसाइटी है,शिक्षित लोगों को नौकरियां दिलाना डाक्टर है ——
——बहुजनों को वैज्ञानिक,इंजिनियर,वकील,शिक्षक,डाक्टर इत्यादि बनाना पे बैक टू सोसाइटी है.बाबा साहेब के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए लगे हुए मिशनरियों को मदद देना असली पे बैक टू सोसाइटी है ——
—— आप जो पोजिशन पर है आपका फर्ज बनता है कि मेरे समाज का हर बच्चा उस पोजिशन पर पहुंचे यह पे बैक टू सोसाइटी है,अतः हम पढे-लिखे, नौकरीपेशा समाज से अपील करते हैं कि आप अपने उपर लगे धोखेबाज के लेबल को उतारने की कोशिश करें आपने ग़ैर-भाई बहनों के पास जाओ,उनकी ऊपर उठने में मदद करें,अपने उद्योग धंधे, व्यापार आदि शुरू करें, अपने आप को बेरोजगार बहुजनों के लिए रोजगार की व्यवस्था करें,अपना व्यवसाय शुरू करें, अपने समाज का पैसा अपने समाज में रोकें ——
 —— प्रयत्न करें,जब तक बाबा साहेब का पे बैक टू सोसाइटी  का सिद्धांत लागू नहीं होगा तब तक देश से गरीबी नहीं मिटेगी ——
——  साभार-: बहुजन समाज और उसकी राजनिति,मेरे संघर्षमय जीवन एवं बहुजन समाज का मूवमेंट {संदर्भ- सलेक्टेड ऑफ डाँ अम्बेडकर – लेखक डी.सी. अहीर पृष्ठ क्रमांक 110 से 112 तक के भाषण का हिन्दी अनुवाद), श्री गुरु रविदास जन-जागृति एवं शिक्षा समिति,(राजी),दलित दस्तक ,समय बुद्धा,,पुस्तक-'डॉ.बाबासाहेब अंबेडकर के महत्वपूर्ण संदेश एवं विद्वत्तापूर्ण कथन' के थर्ड कवर पृष्ठ से,लेखक-नानकचंद रत्तू-अनुवादक-गौरव कुमार रजक, अंकित कुमार गौतम,संपादन-अमोल वज्जी,प्रकाशक-डी के खापर्डे मेमोरियल ट्रस्ट (पब्लिकेशन डिवीजन)527ए, नेहरू कुटिया, निकट अंबेडकर पार्क, कबीर बस्ती, मलका गंज, नई दिल्ली -07, विकिपीडिया} ——
 ——"सामाजिक क्रांति के अग्रदूत,मानवता की प्रचारक महामानव बाबा साहेब अम्बेडकर जी के  चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं ——
— साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए आधुनिक भारत के निर्माता बाबासाहेब अम्बेडकर जी ने वह कर दिखाया जो उस दौर में सोच पाना भी मुश्किल था —  
— साथियों आज हमें अगर कहीं भी खड़े होकर अपने विचारों की अभिव्यक्ति करने की आजादी है,समानता का अधिकार है तो यह सिर्फ और सिर्फ परमपूज्य बाबासाहेब आंबेडकर जी के संघर्षों से मुमकिन हो सका है.भारत वर्ष का जनमानस सदैव बाबा साहेब डा भीमराव अंबेडकर जी का कृतज्ञ रहेगा.इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी बात खत्म करता हूं। सामाजिक न्याय के पुरोधा तेजस्वी क्रांन्तिकारी शख्शियत परमपूज्य बोधिसत्व भारत रत्न बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं 
      — जिसने देश को दी नई दिशा””…जिसने आपको नया जीवन दिया वह है आधुनिक भारत के निर्माता बाबा साहेब अम्बेडकर जी का संविधान —
  — सच  अक्सर कड़वा लगता है। इसी लिए सच बोलने वाले भी अप्रिय लगते हैं। सच बोलने वालों को इतिहास के पन्नों में दबाने का प्रयास किया जाता है, पर सच बोलने का सबसे बड़ा लाभ यही है, कि वह खुद पहचान कराता है और घोर अंधेरे में भी चमकते तारे की तरह दमका देता है। सच बोलने वाले से लोग भले ही घृणा करें, पर उसके तेज के सामने झुकना ही पड़ता है ! इतिहास के पन्नों पर जमी धूल के नीचे ऐसे ही बहुजन महापुरुषों का गौरवशाली इतिहास दबा है —
     ―मां कांशीराम साहब जी ने एक एक बहुजन नायक को बहुजन से परिचय कराकर, बहुजन समाज के लिए किए गए कार्य से अवगत कराया सन 1980 से पहले भारत के  बहुजन नायक भारत के बहुजन की पहुँच से दूर थे,इसके हमें निश्चय ही मान्यवर कांशीराम साहब जी का शुक्रगुजार होना चाहिए जिन्होंने इतिहास की क्रब में दफन किए गए बहुजन नायक/नायिकाओं के व्यक्तित्व को सामने लाकर समाज में प्रेरणा स्रोत जगाया ——
   ―इसका पूरा श्रेय मां कांशीराम साहब जी को ही जाता है कि उन्होंने जन जन तक गुमनाम बहुजन नायकों को पहुंचाया, मां कांशीराम साहब के बारे में जान कर मुझे भी लगा कि गुमनाम बहुजन नायकों के बारे में लिखा जाए !
   —— ऐ मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय ज्ञान,पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो ——
      —―साथियों एक बात याद रखना आज करोड़ों लोग जो बाबासाहेब जी,माँ रमाई के संघर्षों की बदौलत कमाई गई रोटी को मुफ्त में बड़े चाव और मजे से खा रहे हैं ऐसे लोगों को इस बात का अंदाजा भी नहीं है जो उन्हें ताकत,पैसा,इज्जत,मान-सम्मान मिला है वो उनकी बुद्धि और होशियारी का नहीं है बाबासाहेब जी के संघर्षों की बदौलत है ——
      —– साथियों आँधियाँ हसरत से अपना सर पटकती रहीं,बच गए वो पेड़ जिनमें हुनर लचकने का था ——
       ―तमन्ना सच्ची है,तो रास्ते मिल जाते हैं,तमन्ना झूठी है,तो बहाने मिल जाते हैं,जिसकी जरूरत है रास्ते उसी को खोजने होंगें निर्धनों का धन उनका अपना संगठन है,ये मेरे बहुजन समाज के लोगों अपने संगठन अपने झंडे को मजबूत करों शिक्षित हो संगठित हो,संघर्ष करो !
      ―साथियों झुको नही,बिको नहीं,रुको नही, हौसला करो,तुम हुकमरान बन सकते हो,फैसला करो हुकमरान बनो"
       ―सम्मानित साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए !
        ―सभी अम्बेडकरवादी भाईयों, बहनो,को नमो बुद्धाय सप्रेम जयभीम! सप्रेम जयभीम !!
             ―बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर  जी ने कहा है जिस समाज का इतिहास नहीं होता, वह समाज कभी भी शासक नहीं बन पाता… क्योंकि इतिहास से प्रेरणा मिलती है, प्रेरणा से जागृति आती है, जागृति से सोच बनती है, सोच से ताकत बनती है, ताकत से शक्ति बनती है और शक्ति से शासक बनता है !”
        ― इसलिए मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर आप लोगो को इतिहास के उन पन्नों से रूबरू कराने की कोशिश कर रहा हूं जिन पन्नों से बहुजन समाज का सम्बन्ध है जो पन्ने गुमनामी के अंधेरों में खो गए और उन पन्नों पर धूल जम गई है, उन पन्नों से धूल हटाने की कोशिश कर रहा हूं इस मुहिम में आप लोगों मेरा साथ दे, सकते हैं !
           ―पता नहीं क्यूं बहुजन समाज के महापुरुषों के बारे कुछ भी लिखने या प्रकाशित करते समय “भारतीय जातिवादी मीडिया” की कलम से स्याही सूख जाती है —
— इतिहासकारों की बड़ी विडम्बना ये रही है,कि उन्होंने बहुजन नायकों के योगदान को इतिहास में जगह नहीं दी इसका सबसे बड़ा कारण जातिगत भावना से ग्रस्त होना एक सबसे बड़ा कारण है इसी तरह के तमाम ऐसे बहुजन नायक हैं,जिनका योगदान कहीं दर्ज न हो पाने से वो इतिहास के पन्नों में गुम हो गए —
     ―उन तमाम बहुजन नायकों को मैं अमित गौतम जंनपद   रमाबाई नगर,कानपुर कोटि-कोटि नमन करता हूं !
जय रविदास
जय कबीर
जय भीम
जय नारायण गुरु
जय सावित्रीबाई फुले
जय माता रमाबाई अम्बेडकर जी
जय ऊदा देवी पासी जी
जय झलकारी बाई कोरी
जय बिरसा मुंडा
जय बाबा घासीदास
जय संत गाडगे बाबा
जय पेरियार रामास्वामी नायकर
जय छत्रपति शाहूजी महाराज
जय शिवाजी महाराज
जय काशीराम साहब
जय मातादीन भंगी जी
जय कर्पूरी ठाकुर 
जय पेरियार ललई सिंह यादव
जय मंडल
जय हो उन सभी गुमनाम बहुजन महानायकों की जिंन्होने अपने संघर्षो से बहुजन समाज को एक नई पहचान दी,स्वाभिमान से जीना सिखाया !    
              अमित गौतम
             युवा सामाजिक
                कार्यकर्ता         
              बहुजन समाज
  जंनपद-रमाबाई नगर कानपुर
           सम्पर्क सूत्र-9452963593



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