— जय भीम शब्द के जनक,महान अम्बेडकरवादी, महान क्रांतिकारी योद्धा,बहुजन नायक,बाबू एल एन हरदास की जंयती की हार्दिक बधाईयां

           

  06,जनवरी,1904 
         वो थे इसलिए आज हम है
            इतिहास के पन्नों से                         
 — जय भीम शब्द के जनक,महान अम्बेडकरवादी, महान क्रांतिकारी योद्धा,बहुजन नायक,बाबू एल एन हरदास की जंयती की हार्दिक बधाईयां एवं मंगलकामनाएं —
— धम्म प्रेमियों हम उसी को याद करते हैं, जो इतिहास का निर्माण करते हैं। ‘जयभीम’ शब्द जो आज परस्पर सम्बोधन का पयार्यवाची बन गया है,जय भीम शब्द के प्रणेता बाबू एल.एन.हरदास थे। यह वही शख्सीयत थे जिन्होंने इस सम्बोधन का पहली बार भरी सभा में प्रयोग कर इतिहास का निर्माण किया था —
— बाबू एन. एल.हरदास,मध्य भारत और बरार (विदर्भ ) में दलित समाज के लोकप्रिय नेता थे। वे आल इण्डिया डिप्रेस्ड कास्ट्स फेडरेशन के कार्य कारिणी के सदस्य थे। वे प्रांतीय बीडी मजदूर संघ के सेक्रेटरी भी थे।  वे स्वतंत्र मजदूर पक्ष (Independent Lab our Party) के जनरल सेक्रेटरी और बाद में अध्यक्ष नियुक्त किये गए थे। वे बाबासाहब के विश्वास पात्र थे —
— अफसोस है, बाबू हरदास लम्बी उम्र नहीं जी सकें। वे मात्रा 35 वर्स की अल्पायु में ही चल बसे थे। किन्तु इतने कम समय में वे इतना काम कर गए कि लोग उनका नाम लेना गर्व का सबब समझते हैं। सच है, इतिहास गढ़ने के लिए लम्बी उम्र की दरकार नहीं होती?
— 1933-34 में बाबू एल.एन.हरदास ने समता सैनिक दल को 'जय भीम' का नारा नागपुर में दिया. इस तरह 'जय भीम' हर जगह छा गया —
— जयभीम के जनक हरदास लक्ष्मणराव नगराळे उपाख्य बाबू हरदास इनका जन्म 6 जनवरी 1904 को नागपूर जिले के कामठी तहसील में हुआ. बाबू हरदास शुरू से ही डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के आंदोलन से जुडे हुए थे.. इंग्लंड के गोलमेज परिषदे जब गांधी ने अस्पृश्यों के नेता हम ही है.. डॉ. आंबेडकर नही.. तो बाबू हरदास ने हजारों टेलीग्राम इंग्लंड भेजकर कहा की अस्पृश्यों के नेता गांधी नहीं डॉ. अम्बेडकर है —
—  ऐसा कहकर अंग्रेजों के मन में डॉ. आंबेडकर के प्रति सहानुभूती पैदा की.. अकोला में जब स्वतंत्र मजदूर पक्ष की बैठक थी तब कामठी में उनके पुत्र का देहांत हुआ.. तब उन्होंने कहा.. मेरा समाज दुःखी है.. और उनके दुः ख दुर करने के लिए मैंने बैठक में हिस्सा लिया.. मेरे पुत्र पर अंतिम संस्कार मेरा समाज करेंगा.. यह बोलकर उन्होंने अपनी निष्ठा जाहीर की. नाग विदर्भ के महार समाज के लोग अपने उपजातीमें विभाजित होकर आपस में नफरत के नजर से देखते थे.. गरिबी और दारिद्री की पीढ़ा के अंतर्गत रहनेवाले महार समाज को इकठ्ठा करके उनमें बाबासाहेब आंबेडकर के विचारों की बीज डालने का महत्त्वपूर्ण कार्य बाबू हरदास नगरकर इन्होंने बहुत की समर्पित भाव से किया.. उपजातियों की दीवार तोड़ने के लिए बाबू हरदास इन्होंने नाम के पीछे का सरनेम की पूछ काटकर महार समाज में उपजातिविहन कृतीका नया आदर्श निर्माण किया.. तब से उन्हे बाबू हरदास नाम से ही जाना जाता —
       “जय भीम” आज बहुजन अस्मिता और एकता का प्रतीक बन चुका है. हर बहुजन युवा उत्साह से “जय भीम” के साथ एक-दूसरे का अभिवादन करते हैं. “जय भीम” शब्द की उत्पत्ति महाराष्ट्र में हुई. इस “जय भीम” शब्द के जनक बाबू हरदास एल. एन. थे, जो 1921 में बाबा साहेब डा भीमराव अम्बेडकर जी के साथ सामाजिक आंदोलन में उतरे. बाबू हरदास का परिवार पढ़ा-लिखा था —
— पिता लक्ष्मण उरकुडा नगराले रेलवे विभाग में बाबू थे. उस समय देश में वर्णभेद और जाति भेद के कारण भीषण सामाजिक और आर्थिक विषमता फैली हुई थी.सन 1922 में महाराष्ट्र के अछूत संत चोखामेला के नाम पर उन्होंने एक छात्रावास शुरू किया. 1924 में उन्होंने एक प्रिंटिंग प्रेस खरीदी थी और सामाजिक जागृति के लिये “मंडई महात्म्य” नामक किताब सामाजिक जागृति के लिये लिखी थी, साथ ही “चोखामेला विशेषांक” भी निकाला था. बाबा साहेब जी के आंदोलनों में उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. 1930 के नासिक कालाराम मंदिर सत्याग्रह तथा 1932 में पूना पैक्ट के दौरान उन्होंने बाबासाहब के साथ महत्वपूर्ण 
भूमिका निभाई —
— बाबू हरदास मध्य भारत (वर्तमान मध्यप्रदेश) की विधानसभा में सन 1935 में चुनकर विधायक भी बने।
आपके मस्तिष्क में हमेशा एक बात रहती थी कि हमारा भी एक अभिवादन करने का तरीका होना चाहिए, जिससे सवाभिमान झलके और शांति का प्रतीक भी लगे —
“जय भीम” का संबोधन पहली बार उनके मन में एक मुस्लिम व्यक्ति को देखकर आया. उस समय कार्यकर्त्ताओं के साथ घूमते हुये रास्ते में एक मुस्लिम को दूसरे मुस्लिम से “अस्सलाम-अलेकुम” कहते हुये सुना —
— जवाब में दूसरे व्यक्ति ने भी “अलेकुम-सलाम” कहा. तब बाबू हरदास ने सोचा कि हमें एक दूसरे से क्या कहना चाहिये? उन्होंने कार्यकर्त्ताओं से कहा, “मैं ‘जय भीम’ कहूँगा और आप ‘बल भीम’ कहिये. उस समय से ये अभिवादन शुरू हो गया, पर बाद में ‘बल भीम’ प्रचलन से गायब हो गया, केवल ‘जय भीम’ ही प्रचलन में रहा. 1933-34 में बाबू हरदास ने समता सैनिक दल को ‘जय भीम’ का नारा नागपुर में दिया.आपका सोचना था कि डॉ.अंबेडकर ने ईमानदारी और निष्ठा से अछूत, शोषित समाज के लोगों के जीवन को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई —
— उन्हें सामाजिक दास्तां, राजनैतिक परतंत्रता, आर्थिक विपन्नता तथा धार्मिक शून्यता के प्रति जागृत किया और अंधविश्वास, धार्मिक भेदभाव, जातिवाद और अमानवीय व्यवहार के विरुद्ध लड़ना सिखाया ताकि ऊँच-नीच, छुआछूत और असमानता को समाप्त किया जा सके —
— इस तरह ‘जय भीम’ हर जगह छा गया. बाद में डाॅ अम्बेडकर ने खुद भी 1949 में अपने पत्रों में जय भीम लिखना और कहना शुरू कर दिया था. 12 जनवरी 1939 को उनका परिनिर्वाण हो गया था. उस दिन उनको श्रद्धांजलि देते समय बाबासाहब ने कहा था, “बाबू हरदास के रूप में मेरा दाहिना हाथ चला गया.”
       —  जय भीम शब्द के जनक,महान अम्बेडकरवादी, महान क्रांतिकारी योद्धा ,बहुजन नायक,बाबू एल एन हरदास की संघर्षगाथा पढें विस्तार से —
 —साथियों नागपुर (महाराष्ट्र) के नजदीक एक छोटा कस्बा है जहां एक छावनी भी है। इसी नगर के बैल बाजार क्षेत्र में 6 जनवरी 1904 को लक्ष्मणराव नाम के महार के घर एक लड़के का जन्म हुआ था जिसका नाम हरदास रखा गया, जिसे बाद में बाबू हरदास लक्ष्मण नगरकर के नाम से जाना गया। इसी व्यक्ति ने 18 वर्ष की आयु में "महारट्ठा" नाम से मराठी का साप्ताहिक पत्र भी निकाला —
— 18 वर्ष की उम्र होने के कारण कम आयु का संपादक होने का रिकॉर्ड भी आपके नाम है —
— 1921 में बाबासाहब डाॅ अम्बेडकर के साथ सामाजिक आंदोलन में उतरे. बाबू हरदास का परिवार पढ़ा-लिखा था. पिता लक्ष्मण उरकुडा नगराले रेलवे विभाग में बाबू थे. उस समय देश में वर्णभेद और जाति भेद के कारण भीषण सामाजिक और आर्थिक विषमता फैली हुई थी. सन 1922 में महाराष्ट्र के अछूत संत चोखामेला के नाम पर उन्होंने एक छात्रावास शुरू किया. 1924 में उन्होंने एक प्रिंटिंग प्रेस खरीदी थी और सामाजिक जागृति के लिये "मंडई महात्म्य" नामक किताब सामाजिक जागृति के लिये लिखी थी, साथ ही"चोखामेला विशेषांक" भी निकाला था —
— बाबू हरदास ने काम बीड़ी कामगारों का शोषण रोकने यह बाबू हरदास ही थे जिसने कोऑपरेटीव आधार पर बीड़ी बनवाने की व्यवस्था आरम्भ की। आपने दलित महिलाओं को इस हेतु  ट्रेनिंग देने के लिए नागपूर में एक महिला आश्रम स्थापित किया था —
— बाबा साहेब के आंदोलनों में उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया.स्थानीय स्तर पर आपने कई संस्थाओं की स्थापना की। गरीब लोगों की समस्याओं को सुलझाया। 1930 के नासिक कालाराम मंदिर सत्याग्रह तथा 1932 में पूना पैक्ट के दौरान उन्होंने बाबासाहब के साथ महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
ब्राह्मण व्यवस्था से अछूतों को डॉ.अंबेडकर ने बचाया। अत: इनके सम्मान में हरदास बाबू ने सन 1934 में "भीम विजय स्तंभ" नामक संस्था की स्थापना अपने सहयोगियों के साथ मिलकर की। इस संस्था के अध्यक्ष मागोजी रगारी और सचिव हरि चांदोरकर थे —
— बाबू हरदास ने महार समाज को संगठित करने के निमित्त सन् 1922 में एक संगठन तैयार किया था। वे इसके महासचिव थे। हिन्दू अत्याचारों से समाज के लोगों की रक्षा करने इन्होंने ‘महार सेवक संघ‘ नामक एक यूवाओं को स्वयं-सेवी संगठन बनाया था। बाबू हरदास चाहते थे कि डिप्रेस्ड कास्ट में जितनी जातियां आती हैं, वे सब एक बेनर के नीचे आएं। दरअसल, वे इन जातियों में उप-जाति की बाधा खत्म करना चाहते थे। सन्त चोखामेला की पुण्य-तिथि के समारोह में वे इन सभी उप-जातियों के लोगों को आमत्रित कर सह-भोज का आयोजन करते थे —
— सन् 1923 में बाबू हरदास ने मध्य-प्रान्त और बरार के वायसराय से आग्रह किया था कि विधान-परिषद, डिस्ट्रिक लोकल बोर्ड और नगरपालिकाओं में डिप्प्रेस्ड क्लॉस के लोगों को नामित कर उन्हें प्रतिनिधत्व दिया जाए ताकि विघायिका और कार्यपालिका में उनकी सहभागिता सुनिश्चित हो सकें। सन् 1924 की अवधि में बाबू हरदास ने कामटी और नागपुर में महार समाज के लोगों के लिए कई रात्रि-कालीन विद्यालय खोलें। कामटी में आपने सन्त चोखामेला पुस्तकालय खोला था। वे हर प्रकार के अन्ध-विश्वास, सड़ी-गली परम्पराओं के विरूद्ध थे। इस निमित्त इन्होंने अक्टू. 1924 में ‘मण्डल महात्मे‘ नामक एक पुस्तक लिखकर समाज के लोगों में वितरित की। इसी प्रकार ‘वीर बालक‘ नामक एक नाटक का मंचन भी किया था —
— सन् 1927 में बाबू हरदास ने मूर्ति-पूजा के विरूद्ध रामटेक(नागपुर) में एक सभा, किशन फागुजी बन्सोड़ की अध्यक्षता में आयोजित की थी, जो उस समय के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता थे। इस सभा में हरदास बाबू ने समाज के लोगों को आव्हान किया कि वे मदिर की सीढ़ियों पर लेटना छोड़ दे और साथ ही अम्बादा तालाब के गंदे पानी में न नहाएं। यद्यपि, आपने नाशिक के कालाराम मंदिर-प्रवेश के लिए चल रहे सत्याग्रह में अपनी सहभागिता सुनिश्चित करने अपने आदमियों का एक दल 2 मार्च 1930 को भेजा था —
— डिप्रेस्ड क्लासेस की कन्फ्रेन्स जो नागपुर में 8 अग. 1930 को हुई थी, के आयोजन में मुख्य भूमिका बाबू हरदास की थी। सनद रहे, इस कन्फ्रेन्स की अध्यक्षता बाबासाहेब अम्बेडकर ने स्वयं की थी। इस कन्फ्रेन्स में डिप्रेस्ड क्लासेस के लिए ‘पृथक चुनाव’ की मांग का प्रस्ताव पारित हुआ था। कन्फ्रेन्स में ऑल इण्डिया डिप्रेस्ड-क्लासेस फेडेरेशन का गठन हुआ था जिसका अध्यक्ष मद्रास के राव साहेब मूनिस्वामी पिल्लई को बनाया गया था। बाबू हरदास इसके सयुंक्त सचिव निर्वाचित हुए थे।
— सन 1930 में ही ‘म. प्र. बीड़ी मजदूर संघ’ की स्थापना हुई थी जिसके सचिव बाबू हरदास और अध्यक्ष रामचन्द्र फुले थे। सन 1932 में ऑल इण्डिया डिप्रेस्ड क्लासेस फेडेरेशन का दूसरा अधिवेशन कामटी 7-8 मई का हुआ था। इस समय फेडरेशन की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का चुनाव हुआ था जिसमे वाइस प्रेसिडेन्ट एम. बी. मलिक बंगाल, एलए एन. हरदास को सचिव, स्वामी अच्छूतानन्द लखनउ को संयुक्त सचिव चुना गया था —
— बाबू हरदास सन् 1936 में सीपी. एण्ड बरार के ‘इन्डीपेन्डेन्ट लेबर पार्टी’ के सचिव निर्वाचित हुए थे। आपने सन् 1937 में नागपुर-कामटी सुरक्षित क्षेत्र असेम्बली से चुनाव लड़ा था और निर्वाचित हुए थे। सन् 1938 में आप ‘इन्डीपेन्डेन्ट लेबर पार्टी’ सीपी. एण्ड बरार के अध्यक्ष नामित हुए थे —
— बाबू हरदास शुरू से ही डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के आंदोलन से जुडे हुए थे.. इंग्लंड के गोलमेज परिषदे जब गांधी ने अस्पृश्यों के नेता हम ही है.. डॉ. आंबेडकर नही.. तो बाबू हरदास ने हजारों टेलीग्राम इंग्लंड भेजकर कहा की अस्पृश्यों के नेता गांधी नहीं डॉ. आंबेडकर है. ऐसा कहकर अंग्रेजों के मन में डॉ. आंबेडकर के प्रति सहानुभूती पैदा की.. अकोला में जब स्वतंत्र मजदूर पक्ष की बैठक थी तब कामठी में उनके पुत्र का देहांत हुआ.. तब उन्होंने कहा.. मेरा समाज दुःखी है.. और उनके दुः ख दुर करने के लिए मैंने बैठक में हिस्सा लिया.. मेरे पुत्र पर अंतिम संस्कार मेरा समाज करेंगा.यह बोलकर उन्होंने अपनी निष्ठा जाहीर की —
— नाग विदर्भ के महार समाज के लोग अपने उपजातीमें विभाजित होकर आपस में नफरत के नजर से देखते थे.. गरिबी और दारिद्री की पीढ़ा के अंतर्गत रहनेवाले महार समाज को इकठ्ठा करके उनमें बाबासाहेब आंबेडकर के विचारों की बीज डालने का महत्त्वपूर्ण कार्य बाबू हरदास नगरकर इन्होंने बहुत की समर्पित भाव से किया.. उपजातियों की दीवार तोड़ने के लिए बाबू हरदास इन्होंने नाम के पीछे का सरनेम की पूछ काटकर महार समाज में उपजातिविहन कृतीका नया आदर्श निर्माण किया.. तब से उन्हे बाबू हरदास नाम से ही जाना जाता है —
— बाबू हरदास और उनके रामटेक सत्याग्रह के उल्लेख के बिना यह क्रांति अध्याय अधूरा रह जायेगा. बाबू हरदास (१९०४-३४) ने बंसोडे और जाई बाई के काम को आगे बढ़ाया. १९२१ में उन्होंने दलितों में जागृति लाने के लिए एक अख़बार 'महाराठे' निकला और बीड़ी मजदूरों का शोषण रोकने के लिए सहकारिता के आधार पर काम शुरू किया. महिलाओं की दशा सुधरने के लिए एक प्रशिक्षण केंद्र खोला. 1922 में उन्होंने महार समाज संगठन और एट्रोसिटी रोकने के लिए महार सेवक पथक बनाया. ये संगठन दलितों के बीच अनुशासन लाने का काम भी करता था —
— 1923 में उन्होंने गवर्नर से असेम्बली और नगरीय निकायों में दलितों का प्रतिनिधि नामित करने की मांग की. समुदाय में शिक्षा का प्रसार करने के लिए उन्होंने कई नाइट स्कूल खोले और अंधविश्वास ख़त्म करने के लिए 'मंडई महात्म्य' नाम की पुस्तक लिखी, जिसका काफी असर हुआ. उन्होंने १९२७ में किसान फागुजी बंसोडे की मौजूदगी में नागपुर के पास स्थित रामटेक में दलित समुदाय से आह्वान किया कि वे रामटेक के मंदिर में पूजा न करें और न ही गंदे अम्बाडा तालाब में नहायें. साथ ही नासिक में मंदिर प्रवेश आन्दोलन में भाग लेने के लिए एक दल भेजा. १९३० में नागपुर में दलित परिषद के आयोजन में उन्होंने मुख्य भूमिका निभाई, जिसमें डा. आंबेडकर की मौजूदगी में दलितों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र की मांग की गई. यहीं ऑल इंडिया डिप्रेस क्लास फेडरेशन का गठन हुआ और वे सह सचिव चुने गए. १९३२ में उन्होंने मध्यप्रदेश बीडी मजदूर संघ की स्थापना की. १९३७ में वे नागपुर-कामठी से असेम्बली 
सदस्य चुने गए —
— बाबू एल. एन हरादस ने नागपूर जिले के कामठी स्थित अपने घरसे बाबासाहब डॉ.आंबेडकर के आंदोलन को आगे बढ़ाया.. वह घर आज खंडहर के रुप में तब्दील हो गया.. जिस जगह उनके देह को मिट्टी दी गयी उस कन्हान नदी के किनारे पर उनकी समाधी पुरी तरह से उपेक्षित है.. वैसे हर साल 12 जनवरी को "हरादस यात्रा" का आयोजन करके बाबासाहेब के अनुयायी हजारों की संख्या में एकत्र होकर अपने थोर सेनानी के स्मृति को विनम्र अभिवादन करते है.. हमारे समाज के पुढारी इस यात्रा में आकर जोर-सोर से भाषण देकर चले जाते है —
 — लेकिन उनकी स्मृती भूमि के तरफ जाकर देखते भी नहीं की किस हालत में जर्जर अवस्था में है.. यह भूमी "हरदास घाट' नाम से नागविदर्भ में प्रसिद्ध है.. लेकिन इस परिसर में कुछ असामाजिक तत्त्वों ने अवैध तरीके से कही पर वैकुंठ धाम, तो कही पर शांतीघाट इस नाम से सर्रास अतिक्रमण करवाया है —
— हर साल 12 जनवरी को बडी संख्या में इकट्ठा होती थी.. इस वजह से आंबेडकरी आंदोलन से जुड़े छोटे-मोठे नेताओं द्वारा दिये हुए मार्गदर्शन से बहुजन समाज में उत्साह संचार होता था.. इसी दरम्यान नागपूर जिले में भव्य व दिव्य ड्रैगेन पैलेस की इमारत खड़ी की गयी लेकिन बाबू हरदास इनके समाधी की दुर्दशा जैसी थी वैसे ही कायम है —
— विशेष संदर्भ- पुस्तक-शिक्षित बनो संघर्ष करो संगठित रहो एवं जय भीम से आप क्या समझते हैं
संपादक- एस एस गौतम-प्रकाशक-सिद्धार्थ बुक्स दिल्ली-1/4446, रामनगर एक्सटेंशन, गली नंबर 4,डॉ अंबेडकर गेट, मंडोली रोड, शाहदरा दिल्ली 110032 फोन/फैक्स-22123916,मो. -9810123667, 9810173667
—— वो थे इसलिए आज हम है ——
—— यारों अगर भीम न होते तो बहुजन समाज और महिलाओं का मान सम्मान न होता अगर भीम न होते तो इस देश की मुखिया कोई महिला न होती,ये सूट बूट वाले साहब न होते शोषितों वंचित समाज में ये ऐसो आराम के समान न होते ये आलिशान महल न होते ——
   —— अगर इस भारत भूमि पर भीम न होते तो ये बड़ी बड़ी गाडियां, ये शोहरत ये इज्जत, ये अफसरशाही, सत्ता का स्वाद,न होता,ये उस सूर्य कोटि महापुरुष परमपूज्य 
बाबा साहेब की देन है जिन्होंने अपने समाज को गुलामी से आजाद कराने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर
 कर दिया ——
—— ऐसे महान शख्सियत के चरणों में शत शत नमन करता हूं, मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर वो बाबा थे जिन्होंने अपने समाज के बेटों को बचाने के लिए अपने बच्चों, पत्नी की कुर्बानी दे दी थी समाज के लिए ——
—— जरा हम लोग सोचे कि हमने क्या किया बाबा साहेब के लिए बाबा साहेब की पूजा तो हम बड़ी शिद्दत से करते हैं
ले उनकी बातों को नहीं मानते हैं ऐसे महान शख्सियत,आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक के चरणों में शत शत प्रणाम करता हूं ——
—  तो ऐसे थे हमारे आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर — 
—— साथियों आज वे हमारे बीच नही है, पर उनके द्वारा किये गए कार्यों,संघर्षों और उनके उपदेशों से हमेशा वे हमारे बीच जीवंत है। संविधान के रचयिता और ऐसे अद्वितीय समाज सुधारक को हमारा कोटि-कोटि नमन ——
 — आधुनिक भारत के महानतम समाज सुधारक और सच्चे
 महानायक, लेकिन”भारतीय जातिवादी-मानसिकता ने सदा ही इस महापुरुष की उपेक्षा ही की गई |भारत में शायद ही कोई दूसरा व्यक्ति ऐसा हो, जिसने देश के निर्माण,उत्थान और प्रगति के लिए थोड़े समय में इतना कुछ कार्य किया हो, जितना बाबासाहेब आंबेडकर जी ने किया है और शायद ही कोई दूसरा व्यक्ति हो, जो निंदा, आलोचनाओं आदि का उतना शिकार हुआ हो,जितना बाबासाहेब आंबेडकर जी हुए थे —
—— बाबासाहेब आंबेडकर जी ने भारतीय संविधान के तहत कमजोर तबके के लोगों को जो कानूनी हक दिलाये है। इसके लिए बाबा साहेब आंबेडकर जी को कदम-कदम पर काफी संघर्ष करना पड़ा था ——
—— आवो जानें पे बैक टू सोसायटी क्या ——
—— ऐ मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय,ज्ञान,बुद्धि, पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो ——
—— तुम्हारें अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए मैं दुबारा नहीं आऊंगा,ये क्रांति का रथ संघर्षो का कारवां ,जो मैं बड़े दुखों,कष्टों को सहकर यहाँ तक ले आया हूँ,अब आगे तुम्हे ही ले जाना है  ——
—— साथियों बाबा साहेब जी अपने अंतरिम दिनोँ में अकेले रोते हुऐ पाए गए। बाबा साहेब अम्बेडकर जी से जब काका कालेलकर कमीशन 1953 में मिलने के लिए गया ,तब कमीशन का सवाल था कि आपने पूरी जिन्दगी पिछड़े,शोषित,वंचित वर्ग समाज  के उत्थान के लिए लगा दी काका कालेकर कमीशन ने पूछा बाबा साहेब जी आपकी राय में क्या किया जाना चाहिए बाबा साहेब ने जवाब दिया कि पिछड़े,शोषित,वंचित समाज का उत्थान करना है तो इनके अंदर बड़े लोग पैदा करने होंगें ——
—— काका कालेलकर कमीशन के सदस्यों को यह बात समझ नहीं आई  तो उन्होने फिर सवाल किया “बड़े लोग से आपका क्या तात्पर्य है ? " बाबा साहेब जी ने जवाब दिया कि अगर किसी समाज में 10 डॉक्टर , 20 वकील और 30 इन्जिनियर पैदा हो जाऐ तो उस समाज की तरफ कोई आंख ऊठाकर भी देख नहीं सकता !"
—— इस वाकये के ठीक 3 वर्ष बाद 18 मार्च 1956 में आगरा के रामलीला मैदान में बोलते हुऐ बाबा साहेब ने कहा "मुझे पढे लिखे लोगों ने धोखा दिया। मैं समझता था कि ये लोग पढ लिखकर अपने समाज का नेतृत्व करेगें , मगर मैं देख रहा हुँ कि  मेरे आस-पास बाबुओं की भीड़ खड़ी हो रही है जो अपना ही पेट पालने में लगी है !" 
—— साथियों बाबा साहेब अपने अन्तिम दिनो में अकेले रोते हुए पाए गए ! जब वे सोने की कोशिश करते थे तो उन्हें नींद नहीं आती थी,अत्यधिक परेशान रहने वाले थे बाबा साहेब के निजी सचिव  नानकचंद रत्तु ने बाबा साहेब जी से सवाल पुछा कि , आप इतना परेशान क्यों रहते है बाबा साहेब जी ? ऊनका जवाब था , " ——
—— नानकचंद , ये जो तुम दिल्ली देख रहो हो अकेली दिल्ली में 10,000 कर्मचारी ,अधिकारी यह केवल अनुसूचित जाति के है  ! जो कुछ साल पहले शून्य थे मैँने अपनी जिन्दगी का सब कुछ दांव पर लगा दिया,अपने लोगों में पढ़े लिखे लोग पैदा करने के लिए क्योंकि  मैं जानता था कि जब मैं अकेल पढ लिख कर इतना काम कर सकता हुँ  अगर हमारे हजारों लोग पढ लिख जायेगें तो बहुजन समाज में कितना बड़ा परिवर्तन आयेगा लेकिन नानकचंद,मैं जब पुरे देश की तरफ निगाह दौड़ाता हूँ हूँ तो मुझे कोई ऐसा  नौजवान नजर नहीं आता है,जो मेरे कारवाँ को आगे ले जा सकता है नानकचंद,मेरा शरीर मेरा साथ नहीं दे रहा है ,जब मैं अपने मिशन के बारे में सोचता हुँ,तो मेरा सीना दर्द से फटने लगता है ——
—— जिस महापुरुष ने अपनी पुरी जिन्दगी,अपना परिवार ,बच्चे आन्दोलन की भेँट चढाए,जिसने पुरी जिन्दगी इस विश्वास में लगा दी  कि , पढा -लिखा वर्ग ही अपने शोषित वंचित भाइयों को आजाद करवा सकता हैं जिन्होंने अपने लोगों को आजाद कर पाने का मकसद अपना मकसद बनाया था,क्या उनका सपना पूरा हो गया ? आपके क्या फर्ज  बनते हैं समाज के लिए ?
—— सम्मानित साथियों जरा सोचो आज बाबा साहेब की वजह से हम ब्रांडेड कपड़े, ब्रांडेड जूते, ब्रांडेड मोबाइल, ब्रांडेड घड़ियां हर कुछ ब्रांडेड इस्तेमाल करने के लायक बन गए हैं बहुत सारे लोग बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू, शराब पर सैकड़ों रुपये बर्बाद करते हैं ! इस पर औसतन 500 रुपये खर्च आता है,चाउमीन, गोलगप्पे, सूप आदि पर हरोज 20 से 50 रुपये खर्च आता है। महिने में ओसतन 600 से 1500 रुपये तक खर्च हो सकते हैं ——
—— बाबा साहेब के अधिकारों,संघर्षो,प्रावधानों की वजह से जो लोग इस लायक हो गए हैं  हम लोगों पर बाबा साहेब ने विश्वास नहीं किया क्योंकि हमने बाबा साहेब के साथ विश्वासघात किया था ! उनके द्वारा दिखाए गए सपनों से हम दूर चले गए नौकरी आयी और आधुनिक भारत के युगप्रवर्तक बाबा साहेब अम्बेडकर जी को भूल गए —— 
——"हमारे उपर बाबा साहेब का बहुत बड़ा कर्ज है, 
क्या आप उसे उतार सकते हैं,नहीं रत्तीभर भी नहीं हम जिस शख्स ने इस देश के शोषित,वंचित, पिछले, समाज,सर्वसमाज,महिलाओं भारतवर्ष के लिए अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी,अपने बच्चे,पत्नी अपने सुख चैन सब कुछ कुर्बान कर दिया जरा सोचो किसके लिए आप लोगों के लिए और हम लोग क्या कर रहें हैं टीवी,बीवी में मस्त है मिशन को भूल गये ——
—— लेकिन हमें फिर से पहले की तरह बाबा साहेब को धोखा नहीं देना चाहिए,पढ़े-लिखे लोगो अपने उपर से धोखेबाज का लेबल उतारो और बाबा साहेब के मिशन को आगे बढ़ाओ ——
——आपके बीड़ी, सिगरेट पर खर्च होने वाले 15 रुपये से न जाने कितने बच्चों को शिक्षा मिल सकती है,आपके फास्टफूड पर खर्च होने वाले 50 रुपये से न जाने कितने गरीब लोगों को दवाई मिल सकती है !आपके इन पैसों से न जाने कितने मिशनरी साथियों का खर्च चल रहा है जो पूरा जीवन समाज सेवा मे लगा रहे हैं ——
—— जरा अपने दिल पर हाथ रख कर कहो तुम क्या बाबा साहेब के पे बैक टू सोसाइटी सिद्धांत पर चल रहे हो ——
—— केवल भंडारे देना,चंदा देना,कार्यक्रम करना,ठंडे पानी की स्टाल लगाना पे बैक टू सोसाइटी नहीं है ——
——अपने जैसे सक्षम लोग पैदा करना पे बैक टू सोसाइटी है गरीब बच्चों को शिक्षित करना पे बैक टू सोसाइटी है,शिक्षित लोगों को नौकरियां दिलाना डाक्टर है ——
——बहुजनों को वैज्ञानिक,इंजिनियर,वकील,शिक्षक,डाक्टर इत्यादि बनाना पे बैक टू सोसाइटी है.बाबा साहेब के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए लगे हुए मिशनरियों को मदद देना असली पे बैक टू सोसाइटी है ——
—— आप जो पोजिशन पर है आपका फर्ज बनता है कि मेरे समाज का हर बच्चा उस पोजिशन पर पहुंचे यह पे बैक टू सोसाइटी है,अतः हम पढे-लिखे, नौकरीपेशा समाज से अपील करते हैं कि आप अपने उपर लगे धोखेबाज के लेबल को उतारने की कोशिश करें आपने ग़ैर-भाई बहनों के पास जाओ,उनकी ऊपर उठने में मदद करें,अपने उद्योग धंधे, व्यापार आदि शुरू करें, अपने आप को बेरोजगार बहुजनों के लिए रोजगार की व्यवस्था करें,अपना व्यवसाय शुरू करें, अपने समाज का पैसा अपने समाज में रोकें ——
 —— प्रयत्न करें,जब तक बाबा साहेब का पे बैक टू सोसाइटी  का सिद्धांत लागू नहीं होगा तब तक देश से गरीबी नहीं मिटेगी ——
——  साभार-: बहुजन समाज और उसकी राजनिति,मेरे संघर्षमय जीवन एवं बहुजन समाज का मूवमेंट {संदर्भ- सलेक्टेड ऑफ डाँ अम्बेडकर – लेखक डी.सी. अहीर पृष्ठ क्रमांक 110 से 112 तक के भाषण का हिन्दी अनुवाद), श्री गुरु रविदास जन-जागृति एवं शिक्षा समिति,(राजी),दलित दस्तक ,समय बुद्धा,,पुस्तक-'डॉ.बाबासाहेब अंबेडकर के महत्वपूर्ण संदेश एवं विद्वत्तापूर्ण कथन' के थर्ड कवर पृष्ठ से,लेखक-नानकचंद रत्तू-अनुवादक-गौरव कुमार रजक, अंकित कुमार गौतम,संपादन-अमोल वज्जी,प्रकाशक-डी के खापर्डे मेमोरियल ट्रस्ट (पब्लिकेशन डिवीजन)527ए, नेहरू कुटिया, निकट अंबेडकर पार्क, कबीर बस्ती, मलका गंज, नई दिल्ली -07, विकिपीडिया} ——
 ——"सामाजिक क्रांति के अग्रदूत,मानवता की प्रचारक महामानव बाबा साहेब अम्बेडकर जी के  चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं ——
— साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए आधुनिक भारत के निर्माता बाबासाहेब अम्बेडकर जी ने वह कर दिखाया जो उस दौर में सोच पाना भी मुश्किल था —  
— साथियों आज हमें अगर कहीं भी खड़े होकर अपने विचारों की अभिव्यक्ति करने की आजादी है,समानता का अधिकार है तो यह सिर्फ और सिर्फ परमपूज्य बाबासाहेब आंबेडकर जी के संघर्षों से मुमकिन हो सका है.भारत वर्ष का जनमानस सदैव बाबा साहेब डा भीमराव अंबेडकर जी का कृतज्ञ रहेगा.इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी बात खत्म करता हूं। सामाजिक न्याय के पुरोधा तेजस्वी क्रांन्तिकारी शख्शियत परमपूज्य बोधिसत्व भारत रत्न बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं 
      — जिसने देश को दी नई दिशा””…जिसने आपको नया जीवन दिया वह है आधुनिक भारत के निर्माता बाबा साहेब अम्बेडकर जी का संविधान —
  — सच  अक्सर कड़वा लगता है। इसी लिए सच बोलने वाले भी अप्रिय लगते हैं। सच बोलने वालों को इतिहास के पन्नों में दबाने का प्रयास किया जाता है, पर सच बोलने का सबसे बड़ा लाभ यही है, कि वह खुद पहचान कराता है और घोर अंधेरे में भी चमकते तारे की तरह दमका देता है। सच बोलने वाले से लोग भले ही घृणा करें, पर उसके तेज के सामने झुकना ही पड़ता है ! इतिहास के पन्नों पर जमी धूल के नीचे ऐसे ही बहुजन महापुरुषों का गौरवशाली इतिहास दबा है —
     ―मां कांशीराम साहब जी ने एक एक बहुजन नायक को बहुजन से परिचय कराकर, बहुजन समाज के लिए किए गए कार्य से अवगत कराया सन 1980 से पहले भारत के  बहुजन नायक भारत के बहुजन की पहुँच से दूर थे,इसके हमें निश्चय ही मान्यवर कांशीराम साहब जी का शुक्रगुजार होना चाहिए जिन्होंने इतिहास की क्रब में दफन किए गए बहुजन नायक/नायिकाओं के व्यक्तित्व को सामने लाकर समाज में प्रेरणा स्रोत जगाया ——
   ―इसका पूरा श्रेय मां कांशीराम साहब जी को ही जाता है कि उन्होंने जन जन तक गुमनाम बहुजन नायकों को पहुंचाया, मां कांशीराम साहब के बारे में जान कर मुझे भी लगा कि गुमनाम बहुजन नायकों के बारे में लिखा जाए !
   —— ऐ मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय ज्ञान,पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो ——
      —―साथियों एक बात याद रखना आज करोड़ों लोग जो बाबासाहेब जी,माँ रमाई के संघर्षों की बदौलत कमाई गई रोटी को मुफ्त में बड़े चाव और मजे से खा रहे हैं ऐसे लोगों को इस बात का अंदाजा भी नहीं है जो उन्हें ताकत,पैसा,इज्जत,मान-सम्मान मिला है वो उनकी बुद्धि और होशियारी का नहीं है बाबासाहेब जी के संघर्षों की बदौलत है ——
      —– साथियों आँधियाँ हसरत से अपना सर पटकती रहीं,बच गए वो पेड़ जिनमें हुनर लचकने का था ——
       ―तमन्ना सच्ची है,तो रास्ते मिल जाते हैं,तमन्ना झूठी है,तो बहाने मिल जाते हैं,जिसकी जरूरत है रास्ते उसी को खोजने होंगें निर्धनों का धन उनका अपना संगठन है,ये मेरे बहुजन समाज के लोगों अपने संगठन अपने झंडे को मजबूत करों शिक्षित हो संगठित हो,संघर्ष करो !
      ―साथियों झुको नही,बिको नहीं,रुको नही, हौसला करो,तुम हुकमरान बन सकते हो,फैसला करो हुकमरान बनो"
       ―सम्मानित साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए !
        ―सभी अम्बेडकरवादी भाईयों, बहनो,को नमो बुद्धाय सप्रेम जयभीम! सप्रेम जयभीम !!
             ―बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर  जी ने कहा है जिस समाज का इतिहास नहीं होता, वह समाज कभी भी शासक नहीं बन पाता… क्योंकि इतिहास से प्रेरणा मिलती है, प्रेरणा से जागृति आती है, जागृति से सोच बनती है, सोच से ताकत बनती है, ताकत से शक्ति बनती है और शक्ति से शासक बनता है !”
        ― इसलिए मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर आप लोगो को इतिहास के उन पन्नों से रूबरू कराने की कोशिश कर रहा हूं जिन पन्नों से बहुजन समाज का सम्बन्ध है जो पन्ने गुमनामी के अंधेरों में खो गए और उन पन्नों पर धूल जम गई है, उन पन्नों से धूल हटाने की कोशिश कर रहा हूं इस मुहिम में आप लोगों मेरा साथ दे, सकते हैं !
           ―पता नहीं क्यूं बहुजन समाज के महापुरुषों के बारे कुछ भी लिखने या प्रकाशित करते समय “भारतीय जातिवादी मीडिया” की कलम से स्याही सूख जाती है —
— इतिहासकारों की बड़ी विडम्बना ये रही है,कि उन्होंने बहुजन नायकों के योगदान को इतिहास में जगह नहीं दी इसका सबसे बड़ा कारण जातिगत भावना से ग्रस्त होना एक सबसे बड़ा कारण है इसी तरह के तमाम ऐसे बहुजन नायक हैं,जिनका योगदान कहीं दर्ज न हो पाने से वो इतिहास के पन्नों में गुम हो गए —
     ―उन तमाम बहुजन नायकों को मैं अमित गौतम जंनपद   रमाबाई नगर,कानपुर कोटि-कोटि नमन करता हूं !
जय रविदास
जय कबीर
जय भीम
जय नारायण गुरु
जय सावित्रीबाई फुले
जय माता रमाबाई अम्बेडकर जी
जय ऊदा देवी पासी जी
जय झलकारी बाई कोरी
जय बिरसा मुंडा
जय बाबा घासीदास
जय संत गाडगे बाबा
जय पेरियार रामास्वामी नायकर
जय छत्रपति शाहूजी महाराज
जय शिवाजी महाराज
जय काशीराम साहब
जय मातादीन भंगी जी
जय कर्पूरी ठाकुर 
जय पेरियार ललई सिंह यादव
जय मंडल
जय हो उन सभी गुमनाम बहुजन महानायकों की जिंन्होने अपने संघर्षो से बहुजन समाज को एक नई पहचान दी,स्वाभिमान से जीना सिखाया !    
              अमित गौतम
             युवा सामाजिक
                कार्यकर्ता         
              बहुजन समाज
  जंनपद-रमाबाई नगर कानपुर
           सम्पर्क सूत्र-9452963593


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